सोमवार, 25 अप्रैल 2022

वो छठी (Six) उंगली की दास्तां....


          कई बार चेहरे से ज्यादा खूबसूरत पैरों की उंगलियां होती है शायद आप मेरी बातों से सहमत ना हो लेकिन फिर भी एक लेखक की कल्पनाशीलता को आप महसूस करते हुए इस लेख को पढ़ेंगे ऐसा हम उम्मीद करते हैं। तो चलिए शुरू करते हैं वो छठी (Six) उंगली की दास्तां....


      डॉ० तुलसीराम द्वारा रचित उपन्यास या यूं कह सकते हैं उनकी आत्मकथा "मुर्दहिया" को पढ़ने के बाद से ही आजमगढ़ जाने और उस परिवेश को देखने की इच्छा जागृत थी। हम तो सौभाग्यशाली हैं कि सुरेंद्र प्रजापति जी जैसे व्यक्तित्व से मेरा परिचय हुआ जो की आजमगढ़ से ही आते हैं। 


       उनके छोटे भाई महेन्द्र प्रजापति जी की शादी 20 April 2022 दिन - बुधवार को थी। बरात लाहीडीह से बहेरा आज़मगढ़ को जाने वाली थी। आज़मगढ़ जाने की खुशी इतनी ज्यादा थी कि मैंने अपना टिकट एक सप्ताह पूर्व ही बुक करवा लिया था, ताकि कहीं कोई परेशानी ना हो। मेरा सीट क्रमांक D-2 में 26 था।



        चूंकि यह ट्रेन जयनगर से आती हैं तो इसी वजह से इसमें मेरे सहयात्री कुछ नेपाली व्यक्ति थे और वह स्त्री भी थी जिसके बारे में हम इस लेख✍️ में चर्चा करेंगे। हमने "स्त्रीशब्द का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि वह शादीशुदा थी। हमारे समाज में यदि लड़की की शादी 20 साल में हो जाए तो वह स्त्री या औरत कहलाती है और 25 साल तक यदि ना हो तो वह लड़की ही रहती है। उसकी उम्र 24 या 25 साल की रही होगी। वेशभूषा से लग रहा था कि मेहनत मजदूरी का कार्य करती है और कार्य के सिलसिले में ही जा रही है। मेहनतकश होने के बावजूद भी उसकी सुंदरता में कोई कमी नहीं थी। ट्रेन में बैठने के साथ ही सबसे पहले मैंने उसे अपनी सीट से हटाया क्योंकि मेरी पसंदीदा सीट यानी Window Side पर वो बैठी थी। टिकट तो उसके पास भी था लेकिन काउंटर टिकट होने की वजह से उसमें सीट नम्बर नहीं लिखा रहता है जिस वजह से उसे मेरी सीट से हटना पड़ा।


           जैसे ट्रैन छपरा पहुंचने वाली थी उसने थोड़ी नाराजगी जताते हुए मुझसे पूछा:- आप अमृतसर तक जाएंगे। एक नेपाल की महिला को इतनी शुद्ध हिंदी बोलते सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ और मैंने जवाब देने से पहले उससे पूछा:- आप हिंदी बोल लेती है ? तब उसने कहा- आहा के मैथिली भी आवेछि औरी भोजपुरी भी आवेला। मैंने मैथिली और भोजपुरी को छोड़ उससे हिंदी में ही वार्तालाप जारी रखा ताकि Blogs को अच्छे से लिख✍️ संकु। जब मैंने उससे कहा कि मैं खोरासन रोड में उतरूंगा जो कि आजमगढ़ के एक स्टेशन बाद है तब उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जो चेहरा अभी कुछ देर पहले मायूस और उदास था अब वो मेरे सामने हँसता और मुस्कुराता हुआ प्रस्तुत हुआ। इसकी वजह यह थी कि खोरासन रोड मैं शाम के 07:00 बजे उतर जाऊंगा जिससे कि वह आराम से आगे का सफर तय कर सकती है क्योंकि उसे अमृतसर तक जाना था। मुझे ऐसा लगा कि उसे यह सोचकर ज्यादा खुशी हो रही थी कि अब उसे विंडो सीट मिल जाएगा क्योंकि कुछ देर पहले मैंने उससे हासिल कर लिया था। 

          यदि कवि की नजरों से देखा जाए तो वह बहुत ही ज्यादा खूबसूरत थी और उसके हर एक अंग पर कविताएं लिखी जा सकती है लेकिन मुझे जो सबसे ज्यादा अच्छा लगा वह उसकी पैरों की उंगलियां थी। अमूमन पैरों में 05 उंगलियां होती है लेकिन उसकी छ: (06) थी शायद अच्छी लगने की यह भी एक वजह हो। मैंने उससे नजरें बचाकर एक तस्वीर ले ली ताकि आपके साथ साझा कर सकें।



       जब ट्रैन उत्तर प्रदेश के बलिया से पार कर गई तो उसके साथ जो सहयात्री यात्री थे वह थोड़ा सा परेशान होकर कुछ ढूंढने लगे और ना समझ में आने वाली भाषा में बात कर रहे थे मुझे ऐसा लगा कि वह कुछ ट्रेन में बिकने नहीं आया है उस पर चर्चा कर रहे हैं। ध्यान से सुनने पर समझ में आया कि जयनगर से जब से ट्रेन चली है तब से अभी तक कोई गुटखा बेचने नहीं आया है जिससे कि वह सभी खासा नाराज😠 थे। सभी की नाराजगी को दूर करते हुए वहीं मोहतरमा👩‍🦰 ने अपने बैग से बड़ा सा गुटका का पैकेट निकाला और सबके बीच बांटा। सभी ने गुटके को अपने मुंह में रख गाय भैंस की तरह जुगाली करने लगे। मुझे आश्चर्य उस समय हुआ जब उस स्त्री ने भी एक साथ दो गुटके को मिलाकर अपने मुंह मे रखा, एक शायद उसका मशाला रहा होगा और फिर वह मेरी ओर मुख़ातिफ हुई। उसके कुछ कहने से पूर्व ही मैं चुपचाप उसके लिए window सीट छोड़ दिया ताकि आराम से वह गुटके के पिक को बाहर फेंक सकें। अब मुझे स्पष्ट समझ में आ रहा था कि उसे विंडो सीट इतना प्रिय🥰 क्यों है।


          इस गुटका-कांड के बाद मैं उस पर से ध्यान हटाकर प्रकृति की हसीन वादियों में खो गया जो कि विंडो सीट से मुझे नजर आ रहा था और बीच-बीच में सुरेंद्र जी से अपडेट भी ले रहा था कि खोरासन रोड से कैसे उनके घर जाना है। ट्रेन ससमय तो नहीं लेकिन आधे घंटे लेट से खोरासन रोड मुझे उतार दी। स्टेशन पर उतरते ही चारों तरफ मुझे केवल अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दिया। ऐसा प्रतीत हुआ कि ट्रेन स्टेशन से पहले तो नही उतार दी है। तुलसीराम जी ने मुर्दहिया में जिस आजमगढ़ का चित्र प्रस्तुत किये हैं उसका यर्थात स्वरूप मुझे प्रतीत होने लगा था। मैंने मोबाइल की रोशनी में आगे बढ़ना शुरू किया तब मुझे खोरासन रोड लिखा हुआ दिखा तब जाकर संतोष हुआ कि मैं सही जगह उतरा हूं।


           स्टेशन परिसर में रोशनी के नाम पर दो-तीन लाइटे जल रही थी जो कि बहादुरी के साथ अंधेरे को दूर करने का भरसक प्रयास कर रही थी। एक लाइट तो ऐसा लगा जैसे कि यात्रियों के स्वागत में डिस्को डांस कर रही हो। ऊँचे-नीचे रास्तों में खुद को बचाते हुए मैं स्टेशन परिसर से बाहर निकला। मुझे उम्मीद तो नहीं थी लेकिन फिर भी स्टेशन के बाहर दो-तीन दुकानें मुझे खुली मिली, जहां से मैंने कुछ मिठाइयां एवं टॉफी ले ली ताकि आगे का सफर मधुर रहे। 20 Min. इंतजार के बाद सुरेंद्र जी अपने भाई के साथ  मोटरसाइकिल से मुझे रिसीव करने आये। मैं  खोरासन रोड से उनके गांव की तरफ चल दिया और पुनः डॉ० तुलसीराम की मुर्दहिया को अपने ज़ेहन में उतारने लगा ताकी आगे का सफर और मेरा Blogs चलता रहे।


क्रमशः

1 टिप्पणी:

  1. Vah Bishwajeet bhai aapane to murdahiya ko jivant rup me Apne shabdon ke madhyam se ek dhaage me piRone ka kam Kiya hai. Aur aapane ham sabhi ko apne lekhan Kaushal ke madhyam se ek Sundar kahani Ko prastut kiye Hain Jo kabile tarif hai ❤️

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