गुरुवार, 14 अप्रैल 2022

सतुआनी पर्व पर पेश है बिहार से 🙏


बिहारी पर्व : सतुआन का वैज्ञानिक महत्व 

(भोजपुरी भाषा में)


         सतुआन भोजपुरी संस्कृति के काल बोधक पर्व हs हिन्दू पतरा में सौर मास के हिसाब से सुरूज जहिआ कर्क रेखा से दखिन के ओर जाले तहिये ई पर्व मनावल जाला। एहि दिन से खरमास के भी समाप्ति मान लिहल जाला।


       सतुआन के बहुत तरह से मनावल जाला, सामान्य रूप से आज के दिन जौ के सत्तू गरीब असहाय के दान करे के प्रचलन बा। आज के दिन लोग स्नान पावन नदी गंगा में करे ला, पूजा आदि के बाद जौ के सत्तू, गुड़, कच्चा आम के टिकोरा, आदि। गरीब असहाय के दान कइल जाला आ ईस्ट देवता, ब्रह्मबाबा आदि के चढ़ा के प्रसाद के रूप में ग्रहण कइल जाला। ई काल बोधक पर्व संस्कृति के सचेतना, मानव जीवन के उल्लास आ सामाजिक प्रेम प्रदान करेला।


सतुआन के वैज्ञानिक महत्व


       आज सउंसे पूर्वांचल में सतुआनी के पर्व मनावल जा रहल बा। आजू के दिन भोजपुरिया लोग खाली सतुआ आ आम के टिकोरा के चटनी खाला। साथे-साथ कच्चा पियाज, हरिहर मरिचा आ आचार भी रहेला। एह त्योहार के मनावे के पीछे के वैज्ञानिक कारण भी बा। इ खाली एगो परंपरे भर नइखे। असल में जब गर्मी बढ़ जाला, आ लू चले लागेला तऽ इंसान के शरीर से पानी लगातार पसीना बन के निकलले लागेला, तऽ इंसान के थकान होखे लागे ला।


      रउआ जानते बानी भोजपुरिया मानुस मेहनतकश होखेला। अइसन में सतुआ खइले से शरीर में पानी के कमी ना होखेला। अतने ना, सतुआ शरीर के कई प्रकार के रोग में भी कारगर होखेला।


       पाचन शक्ति के कमजोरी में जौ के सतुआ लाभदायक होखेला। कुल मिला के अगर इ कहल जाए कि सतुआ एगो संपूर्ण, उपयोगी, सर्वप्रिय आ सस्ता फास्ट फूड हऽ जेकरा के अमीर-गरीब, राजा-रंक, बुढ़-पुरनिया, बाल-बच्चा सभे चाव से खाला। असली सतुआ जौ के ही होखेला बाकि केराई, मकई, मटर, चना, तीसी, खेसारी, आ रहर मिलावे से एकर स्वाद आ गुणवत्ता दूनो बढ़ जाला।


       सतुआ के घोर के पीयल भी जाला, आ एकरा के सान के भी खाइल जाला‌। दू मिनट में मैगी खाए वाला पीढ़ी के इs जान के अचरज होई की सतुआ साने में मिनटों ना लागेला। ना आगी चाही ना बरतन। गमछा बिछाईं पानी डाली आ चुटकी भर नून मिलाईं राउर सतुआ तइयार.. रउआ सभे के सतुआनी के बधाई। कम से कम आज तऽ सतुआ सानी आउर पीहीं खूब पानी।🙏


साभार:- सोशल मीडिया

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