सोमवार, 18 अप्रैल 2022

घर🏚️ का दर्द ।


घर का दर्द 


     मैं शहर के मुख्य चौराहे पर खड़ा एक पुराना मकान हूँ। मेरे मालिक यही कोई हरिहर प्रसाद हुआ करते थे। जिनका नाम भी अब मुझे अच्छे से स्मरण नहीं हो रहा, उन्होंने ही मुझे बनवाया था। अब वे तो नहीं रहे बाकी लोग भी या तो मर चुके हैं या कहीं न कहीं जा चुके हैं।   

      मैं तो टूट-फूटकर खंडहर जैसा हो गया हूँ पर एक जमाना था जब मैं सदा गुलजार रहता था। हर वक्त हँसी-खुशी और जिंदादिली का माहौल बना रहता था मेरे अंदर। बाबू हरिहर प्रसाद नामक एक व्यक्ति, जो कि बिजली विभाग में एक अभियंता थे, ने मुझे बड़े शौक से बनाया था और इसमें हर चीज करीने से सजाई थी। सफेद रंग में जब मुझे रंगा गया तब मैं एक छोटा सा ताजमहल जैसा लगता था। 

     मुझे याद है कि जब मेरे मालिक के बड़े बेटे सुरेश का जन्म हुआ था तो खूब खुशियाँ मनाई गई थी। एक सप्ताह तक लोगों का आना-जाना लगा रहा था और जमकर खाना पीना हुआ था। फिर जब दूसरे बेटे मुकेश का जन्म हुआ तो उसमें भी खूब खुशी मनाई गयी थी। मेरी मालकिन राधा देवी ने इस अवसर पर मुझे खास तौर से सजाया था।  

       दोनों बच्चों के खेलने से घर में एक शोर सा मचा रहता था। कभी-कभी मैं भी उनके साथ खेला करता था। मालिक मालकिन में भी इतना प्रेम💗 था कि मैने उन्हें कभी लड़ते झगड़ते नहीं देखा। सभी आपस में काफी प्रेम से हिल-मिलकर रहते थे।  

     उस समय मेहमान भी खूब आते थे और वे कई कई दिन तक रह जाते थे। वे जब तक रहते थे तब तक घर में हँसी-खुशी छाई रहती थी। उनके जाते ही मालिक मालकिन के साथ मैं भी उदास हो उठता था। 

क्या दिन थे वे !!! 


     हरदम कोई न कोई पर्व त्योहार और माँगलिक कार्यक्रम होते ही रहते थे और घर के सभी सदस्य उसमें काफी बढ़ चढ़कर भाग लेते थे। इन सब चीजों को देखकर मैं भी खुश होता रहता था।

     धीरे-धीरे समय बीतता गया और दोनों बच्चे जवान हो गए। पढ़ लिखकर दोनों ने एक प्राईवेट कंपनी में नौकरी पकड़ ली और दोनों की शादी भी हो गई। मालिक मालकिन ने उनकी शादी के अवसर पर खूब खुशी मनाई और लोगों को उपहार दिया पर उनकी यह खुशी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सकी। घर में बहुओं के आते ही महाभारत शुरु हो गया और वो दोनों छोटी-छोटी बात पर झगड़ने लगी। मालिक मालकिन उन्हें बहुत समझाते लेकिन उन पर कोई असर नहीं पड़ता। 

     धीरे-धीरे सबमें मनमुटाव रहने लगा और बात इतनी बढ़ गई कि यह बँटवारे तक आ पहुँची। दोनों भाईयों ने शहर के बहुत से लोगों को बुलाया और सब कुछ आधा आधा बाँट लिया तथा आँगन में एक ऊँची दिवार खड़ी कर ली। उस दिन मैंने मालिक मालकिन को पहली बार फूट-फूटकर रोते देखा था। उन्हें देखकर मुझे भी रुलाई आ गयी थी और मैं भी उनके साथ खूब रोया था। 

     बँटवारे के बाद दोनों बेटे बहू अपनी अपनी नौकरी पर चले गए और मालिक तथा मालकिन बिल्कुल अकेले रह गए। अब बुढ़ापे में दोनों का कोई सहारा नहीं था। दोनों बेटे बहुओं और अपने बीते दिनों को याद कर मालिक मालकिन अक्सर खूब रोते जिसके कारण मालकिन बहुत बीमार रहने लगी और धीरे धीरे उनका शरीर काफी टूट गया। मालिक ने उनका यथासंभव इलाज कराया पर वे अच्छी नहीं हो सकीं और एक दिन मालिक को रोता बिलखता छोड़कर सदा के लिए इस संसार से विदा हो गई।  

     उस दिन मालिक खूब रोए और रोते हुए ही उन्होंने दोनों बेटों को आने के लिए फोन किया पर कोई नहीं आया। अंत में कुछ पड़ोसियों की सहायता से मालिक ने ही मालकिन का अंतिम संस्कार किया और सारा श्राद्धकर्म भी पूरा करवाया। 

     अब मालिक बिल्कुल टूट चुके थे। न खाने की फ़िक्र न सोने की फ़िक्र। वे हमेशा उदास और खोए-खोए रहते थे। कभी-कभी वे खूब रोते थे और बेटे बहुओं तथा पत्नी को खोजते थे। उन्हें रोते देख मैं भी रो उठता था और उन्हें धीरज बँधाने की कोशिश करता पर जिसका सब कुछ लूट चुका हो उसे धीरज बँधाना इतना आसान नहीं होता है।    

     फिर धीरे-धीरे वह दिन भी आ गया जब मालिक भी मुझे रोते हुए हमेशा के लिए छोड़ गए। इस बार भी बेटे बहु नहीं आए। शहर के लोगों ने म्युनिसिपैलिटी को फोन किया तो सरकारी गाड़ी आई और उनके लाश को उठाकर ले गई। 

     बेटे बहू कुछ दिन बाद आए पर आते ही उन्होंने कमाल कर दिया। सबसे पहले उन्होंने गोदरेज और अलमारी तोड़ी तथा माँ के रखे गहने एवं कीमती सामानों को बाँट लिया, फिर बेचने के लिए जमीन का ग्राहक खोजने लगे। आनन-फानन में उन्होंने घर और जमीन का ग्राहक भी खोज लिया तथा सब कुछ बेच दिया और पैसे लेकर उड़ गए। तब से मैं यहाँ खड़ा अपनी बदनसीबी पर आँसू बहा रहा हूँ।


हाय ये इंसान !!!


सुधीर कुमार✍️

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