चीनी लिपि
(Chinese Script)
चीनी लिपि विश्व में एक ऐसी लिपि है जो चित्रों से प्रारम्भ होकर, आज तक चित्रों द्वारा लिखी जाती है। यह विश्व की सबसे कठिन लिपि है। जब हम चीनी लिपि में कुछ लिखा हुआ देखते हैं तो वह लिपि कम, अलंकरण अधिक दिखती है। चीनी सभ्यता भी बहुत प्राचीन है और इस सभ्यता में भी चित्रों द्वारा ही भाव व्यक्त किये जाते थे। इसके बाद वस्तु चित्रों में परिवर्तन कर कुछ रेखाओं और बिन्दुओं की सहायता से अमूर्त भावों को व्यक्त किया जाने लगा तथा शाँग युग में चीनी लिपि का सबसे अधिक विकास हुआ।
चीन में भी सम्भवतः लिपि की आवश्यकता धर्म के लिए प्रारम्भ हुई थी। प्राचीन काल में चीन के लोग प्रार्थना करते समय अपना संदेश देवताओं व पूर्वजों तक पहुँचाने के लिए हड्डियों पर चित्रों का अंकन करते थे जो लिपि का प्रारम्भिक रूप था किन्तु यह कहना मुश्किल है कि इस लिपि का अविष्कार कब हुआ। सन् 1860 में होनान प्रदेश के सिआन टून स्थान पर ली नामक किसान को अपने खेत में कुछ विचित्र सी हड्डियाँ मिली जिन पर कुछ चिन्ह बने हुए थे। विद्वानों के अनुसार चीन में प्राचीन काल में इन हड्डियों पर चिन्ह अंकित किये जाते थे तथा उन्हें गर्म किया जाता था और हड्डी के गर्म होने के बाद उसमें आने वाले बदलाव को देखकर भविष्यवाणी की जाती थी। इन हड्डियों को ड्रेगनबोन कहा जाता था। इनमें 800 मौलिक चित्र थे जिनका रूपान्तरण करके अन्य शब्दों का निर्माण किया गया।
चीनी लिपि का विकास
(Development of Chinese Script)
संसार की अन्य लिपियों की तरह ही चीनी लिपि में भी सर्वप्रथम चित्रों द्वारा पेड़, पशु, पक्षी, सूर्य आदि के भाव को व्यक्त करने के लिए चिन्ह बनाये गये और उन चिन्हों में से दो चिन्हों को मिलाकर भाव व्यक्त किये जाने लगे जिन्हें भावबोधक चिन्ह कहा जा सकता है। जैसे- दो पेड़ों का चित्र बनाने से जंगल का भाव व्यक्त होता था। भावबोधक चित्र चिन्हों की जगह धीरे-धीरे ध्वनिबोधक चित्रों का आविष्कार हुआ तथा कठिन ध्वनिबोधक चित्रों के लिए चिन्ह बनने लगे और चिन्हों का प्रयोग होने लगा।
चीनी लिपि में ध्वनि का बहुत महत्व है। बोलते समय सुर (ध्वनि) के कम ज्यादा और हल्का-भारी होने से उसका अर्थ बदल जाता है, अर्थात् अर्थ का अनर्थ हो जाता है। चीनी भाषा में चार सुरों का प्रयोग किया जाता है- ऊँचा एक समान सुर, उठता हुआ सुर, नीचा सुर और उठकर एक समान होने वाला सुर। मूलतः 214 चीनी शब्दों को चीनी लिपि में छः तरह के चित्रों (चिन्हों) में बाँटा गया है।
1. वस्तु चित्र,
2. सांकेतिक चित्र,
3. संयुक्त सांकेतिक चित्र,
4. क्रम द्वारा निर्मित चित्र,
5. ध्वनि-सूचक चित्र एवं
6 ग्रहण किये गये चित्र।
शॉग युग में चीनी लिपि का अधिक विकास हुआ। इस काल के प्राप्त अस्तिलेखों से पता चलता है कि आधुनिक चीनी लिपि का प्रत्येक सिद्धान्त न्यूनाधिक रूप से अस्तित्व में आ चुका था और आने वाले समय में इसके बाह्य रूप में परिवर्तन हुआ। चाऊ वंश के शासन काल में चाऊ वन लिपि का विकास हुआ। 400 ई. पूर्व तक इस लिपि का प्रचलन था । इसके पश्चात् ली शू लिपि का विकास हुआ जो जेल में बन्द कैदियों के पंजीकरण के लिए खींची गई रेखायें थीं। चीनी लिपि में रेखाओं का प्रयोग इसी समय से प्रारम्भ हुआ। इसका काल 100 ई.पू. तक माना जाता है। इसके पश्चात् बा फन और काय शू नामक लिपियों का विकास हुआ तथा शिंग शू लिपि का प्रयोग घसीट लिखाई के लिए होने लगा।
छठी शताब्दी के मध्य में फैनचीय ने चीनी लिपि में ध्वन्यात्मक पद्धति का विकास किया जो चीनी लिपि के लिए अनोखा था। उस समय इस लिपि का प्रयोग कम हुआ लेकिन 20वीं सदी में इसका पुनर्जन्म हुआ और होई प्रान्त में इसे पूर्णरूप से ग्रहण कर लिया गया। इसके बाद चीनी लिपि में सुधार होते रहे और अब तक जारी है।
चीनी लिपि को दो तरह से लिखा जाता है। ऊपर से नीचे और दायें से बायें खड़ी पंक्ति दायें उपर से प्रारम्भ होकर नीचे तक तथा दूसरी पंक्ति उसके बाएँ से प्रारम्भ होकर नीचे तक क्रमवार लिखी जाती है।
1. बिन्दु,
2. सीधी रेखा,
3. खड़ी रेखा,
4. मुड़ा हुआ स्ट्रोक,
5. दायीं तरफ लगाया हुआ स्ट्रोक,
8. बायीं तरफ लगाया हुआ स्ट्रोक,
7. ऊपर चढ़ता हुआ स्ट्रोक एवं
8. कांटे।
इस लिपि में एक स्ट्रोक के शब्द से 33 स्ट्रोक तक के शब्द लिखे जाते हैं। अधिकतर 20 या 22 स्ट्रोक द्वारा ही बहुत से शब्द लिख लिये जाते हैं। इन रेखाओं द्वारा लिखने की एक निश्चित विधि है। इसे लिखने के लिए बहुत ज्यादा अभ्यास की आवश्यकता होती है जिसकी वजह से चीन में साक्षरता दर बहुत कम है। अब इस लिपि को सरल वर्णात्मक बनाया जा रहा है। चीन में अलग-अलग क्षेत्रों में कई तरह की लिपियों का प्रयोग किया जाता है। जैसे- मोसो लिपि, लोलो लिपि, चीतान लिपि तथा म्याओत्से लिपि आदि।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें