मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

गजल (Gazal)

 तुझे गुलाब🌹 कहूँ या,

मैं आफताब🌅 कहूँ।

तेरे हसीन चेहरे👸 को, 

मैं खुली किताब📖 कहूँ।


तेरे रौशन सी हुई, 

आँखों मे सब समाया है।

सवाल खुद मैं बना हूँ, 

तुझे जवाब कहूँ।


तेरे हुस्न के आगे, 

ये जहान फीका है।

की तेरी जुल्फों मैं घटा का, 

बेहिसाब कहूँ।


तेरी लटो का वो गुच्छा, 

जो गाल छूता है।

की तेरे लब पे सजते तिल को, 

लाजवाब कहूँ।


है अप्सरा जैसी सीरत, 

तन ये संगमरमर है।

है दमकता हुआ कोई, 

मैं आफताब कहूँ।

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