बुधवार, 6 अप्रैल 2022

बिहार की भौगोलिक संरचना (Geographical Structure of Bihar)

  बिहार की भौगोलिक स्थिति 


        बिहार गंगा के समृद्ध मैदानी भाग के मध्य बसा हुआ, पूर्वी भारत में अवस्थित एक प्रमुख राज्य है। 15 नवंबर, 2000 को झारखण्ड के पृथक होने के पश्चात् बिहार अपने वर्तमान स्वरूप में आया।

         

           बिहार राज्य कर्क रेखा के उत्तर में स्थित है। इसका भौगोलिक विस्तार 24° 20' 10'' से 27° 31' 15" उत्तरी अक्षांश तथा 83° 19' 50" से 88° 17' 40" पूर्वी देशान्तर के मध्य है। इसकी आकृति ज्यामितीय दृष्टि से लगभग आयताकार (Rectangular) है। बिहार का कुल क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किमी. है। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण दिशा में 345 किमी. (लम्बाई) तथा पश्चिम से पूर्व 483 किमी. (चौड़ाई) है। 


           क्षेत्रफल की दृष्टि से बिहार का भारत में 13 वाँ स्थान है जो भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 2.86 प्रतिशत है। 

         2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार राज्य की जनसंख्या 10,38,04.637 है जो भारत की कुल जनंख्या का 8.59% है। जनसंख्या की दृष्टि से बिहार देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। समुद्र तल से बिहार की औसत ऊँचाई लगभग 53 मीटर (173 फीट) है।


समुद्र तटीय क्षेत्र से बिहार की दूरी लगभग 200 किमी. है। 


         बिहार की भौगोलिक सीमा का निर्धारण गण्डक, घाघरा, कर्मनाशा तथा गंगा आदि नदियों के द्वारा हुआ है। इसका मैदानी भाग कृषि आधारित उद्योग एवं विविध कृषि फसलों के लिए प्रसिद्ध है। 


       प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के कारण यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही भारतीय इतिहास में आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण रहा है। 


बिहार की भूगर्मिक संरचना 

(Geological Structure of Bihar) 


        किसी स्थान की भूआकृति उसकी भूगार्मिक संरचना, उसके निर्माण की प्रक्रिया और विकास की अवस्थाओं का परिणाम होती है। बिहार की भूगर्मिक सरचना में प्री-कैम्ब्रियन काल (Pre-Cambrian Period) से लेकर चतुर्थ कल्प (Quatermary Era) तक की चट्टानें (Rocks) पाई जाती है। 

         बिहार का दक्षिणी पठार जोकि छोटानागपुर पठार का ही भाग है, उसका निर्माण प्री-कैम्ब्रियन काल में हुआ है। यह पठार संरचनात्मक दृष्टि से सबसे अत्यन्त प्राचीन है। 

        बिहार का जलोढ़ मैदान भूगर्मिक संरचना की दृष्टि से सबसे नवीन संरचना वाला क्षेत्र है। मुंगेर और जमुई धारवाड़ चट्टान, रोहतास और कैमूर विध्यन चट्टान, उत्तरी चम्पारण दर्शियरी चट्टान तथा बिहार का उत्तरी मैदान क्वार्टरनरी चट्टानों से सम्बंधित है। 

       भूगर्भिक संरचना की दृष्टि से बिहार की धरातलीय चट्टानों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है:-

बिहार की भूगर्भिक संरचना

  1. विध्यन चट्टान 
  2. टर्शियरी चट्टान 
  3. धारवाड़ चट्टान 
  4. क्वार्टरनरी चट्टान

(1). धारवाड़ चट्टान (Dharwar Rock). 


      इसका निर्माण प्री-कैम्ब्रियन युग में हुआ है। धारवाड़ क्रम की चट्टाने बिहार के दक्षिण-पूर्व में जमुई, नवादा, मुंगेर की पहाड़ी, खड़गपुर की पहाड़ी, राजगीर एवं बोधगया आदि। क्षेत्रों में पाई जाती हैं।


      इसमें शिस्ट, नीस, ग्रेनाइट, फाइलाइट एवं क्वाटंजाइट आदि खनिज तत्वों की प्रधानता होती है। ये चट्टानें जीवाश्म रहित होती हैं परन्तु इनका आर्थिक महत्व अधिक होता है क्योंकि इसमें कोबाल्ट, मैंगनीज, अभ्रक, क्रोमियम आदि के निक्षेप पाए जाते हैं। 

(2). विंध्यन चट्टान (Vindhyan Rock) 

       इसका निर्माण भी प्री-कैम्ब्रियन युग में हुआ है। विध्यन क्रम की चट्टानें बिहार के दक्षिण-पश्चिम में सोन नदी के उत्तर में कैमूर तथा रोहतास आदि क्षेत्रों में पाई जाती हैं। कैमूर पठार को रोहतास पठार के नाम से भी जाना जाता है। विंध्यन क्रम की चट्टानों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

विध्यन चट्टान 

  • निचला विध्यन क्रम 
  • ऊपरी विध्यन क्रम 

(i) निचला विध्यन क्रम (Lower Vindhyan System) या सेमरी क्रम की चट्टानें एक संकीर्ण पट्टी के रूप में सोन नदी के उत्तर में रोहतास जिले में पाई जाती हैं। यह क्षेत्र चूना पत्थर, बलुआ पत्थर तथा शैल आदि के खनन का प्रमुख क्षेत्र है। कच्चे माल की उपलब्धता के कारण इस क्षेत्र में सीमेण्ट उद्योग का विकास हुआ है। 

(ii) ऊपरी विध्यन क्रम (Upper Vindhyan System) के अन्तंगत् कैमूर क्रम की चट्टानें रोहतास एवं कैमूर जिलों में पाई जाती हैं। इसमें बालू पत्थर, शैल, कांग्लोमोरेट तथा क्वार्टजाइट आदि खनिज पाए जाते हैं। पाइराइट के उत्पादन में बिहार अग्रणी राज्य है। बिहार में अमझोर (रोहतास), पाइराइट के उत्पादन के लिए प्रसद्धि है। यहाँ के पाइराइट में गंधक की मात्रा लगभग 40 प्रतिशत तक होती है। पाइराइट का उपयोग सल्फ्यूरिक अम्ल, कागज, रबड़ तथा चीनी आदि उद्योगों में किया जाता है। 

         विध्यन क्रम की चट्टानें सामान्यतः जीवाश्म विहीन (Fossils Less) होती हैं, किन्तु कैमूर क्रम की चट्टानों के नितल में कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति से वानस्पतिक जीवन के कुछ संकेत मिलते हैं। इन चट्टानों का प्रयोग सासाराम में स्थित शेरशाह सूरी के मकबरे, सारनाथ के स्तूप, दिल्ली के लाल किले एवं जामा मस्जिद के निर्माण में हुआ है।



(3). टर्शियरी चट्टान (Tertiary Rock) 

       टिशियरी चट्टानें, हिमालय के दक्षिण में शिवालिक पर्वत श्रेणी में पाई जाती हैं। इसका निर्माण टर्शियरी कल्प (Tertiary Era) के मायोसीन से लेकर क्वार्टरनरी कल्प (Quaternary Era) के आरम्भ प्लीस्टोसीन तक हुआ है। 

       बिहार के उत्तर - पश्चिम भाग में स्थित सोमेश्वर की पहाड़ी तथा दून घाटी बाह्य हिमालय या शिवालिक पर्वत श्रेणी का भाग है, इसमें कांगलोमोरेट, बालू पत्थर तथा चूना पत्थर आदि निक्षेप पाए जाते हैं। इसका निर्माण टेथिस सागर (Tethys Sea) के अवसादों के निक्षेप से होने के कारण इसमें खनिज तेल के संचित भण्डार प्राप्त होते हैं। 

(4). क्वार्टरनरी चट्टान (Quaternary Rock)

      क्वार्टरनरी चट्टानों का विकास प्लीस्टोसीन तथा होलोसीन काल में हुआ है। गंगा के मैदान का निर्माण, प्रायद्वीपीय पठार और हिमालय के मध्य एक द्रोणीनुमा गर्त में, टेथिस सागर के अवशेष तथा गंगा और उसकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के निक्षेप से हुआ है। 

       बिहार का मैदान, गंगा के मैदान का ही एक भाग है। क्वार्टरनरी कल्प की चटदानें परतदार होती हैं, जिनका निर्माण वर्तमान में भी जारी है। इसका निर्माण जलोढ़, बालू, बजरी, पत्थर और कांग्लोमरेट से बनी चट्टानों से हुआ हैं। यह अत्यंत मंद ढालवाला मैदान है। इसकी गहराई 1000 मीटर से 1500 मीटर के मध्य है। यद्यपि कहीं-कहीं इससे अधिक भी गहराई पायी जाती है। 

बिहार की भौतिक संरचना 
(Physical Structure of Bihar) 

           बिहार राज्य को एक मैदानी भू - भाग के रूप में जाना जाता है। यहाँ पर पर्वत, पठार झील, दलदल तथा मैदान आदि लगभग सभी प्रकार की भू-आकृतियाँ पाई जाती है। बिहार के उत्तर-पश्चिम में शिवालिक पर्वत श्रेणी, मध्य में बिहार का विशाल मैदान तथा दक्षिण का संकीर्ण पठारी क्षेत्र भू - आकृतिक विविधता उत्पन्न करते हैं। बिहार की भौतिक संरचना का निर्माण अलग-अलग युगों (Epochs) में विभिन्न प्रकार की चट्टानों से हुआ है। भौतिक संरचना या उच्चावच के आधार पर बिहार को तीन प्राकृतिक प्रदेशों (Three Natural Regions) में विभाजित किया जा सकता है-

बिहार की भौतिक संरचना 

  1. शिवालिक का पर्वतीय क्षेत्र 
  2. बिहार का मैदानी क्षेत्र 
  3. दक्षिण का संकीर्ण पठारी क्षेत्र 

(1). शिवालिक का पर्वतीय क्षेत्र (Shivalik Mountain Range)

      बिहार के उत्तर-पश्चिम भाग में लगभग 932 वर्ग किमी. में शिवालिक पर्वत श्रेणी का विस्तार है। इस पर्वतीय क्षेत्र की औसत ऊँचाई 80 से 850 मीटर तक है तथा स्थानीय उच्चावच के आधार पर इसे तीन उप-भागों में विभाजित किया गया है-

शिवालिक का पर्वतीय क्षेत्र
(Shivalik Mountain Range)

  • हरहा घाटी या दून घाटी
  • सोमेश्वर श्रेणी  
  • रामनगर दून की पहाड़ी 

(i) सोमेश्वर श्रेणी (Someshwar Range) :- यह बिहार की सबसे उत्तरी श्रेणी है। इसका विस्तार पश्चिम में त्रिवेणी नहर से पूर्व में भिखना ठोरी दरें तक है, इसकी लम्बाई 75 किमी. तथा चौड़ाई 5 से 6 किमी. है। इसका शीर्ष भाग बिहार को नेपाल से अलग करता है। 

इसकी सर्वोच्च चोटी 880 मीटर है, जिस पर सोमेश्वर किला अवस्थित है। इस श्रेणी में नदियों के अपरदन से अनेक दरों का निर्माण हुआ है जैसे- भिखना ठोरी दर्रा , सोमेश्वर दर्रा और मरवात दर्रा प्रमुख हैं। ये दरें (Pass) बिहार और नेपाल के बीच यातयात हेतु मार्ग प्रदान करते हैं।

(ii) हरहा घाटी या दून घाटी (Harha Valley or Doon Valley) :- सोमेश्वर श्रेणी तथा रामनगर दून के मध्य स्थित घाटी को हरहा नदी घाटी या दून घाटी कहते हैं, जिसकी लम्बाई लगभग 24 किमी. है।

(iii) रामनगर दून की पहाड़ी (Ramnagar Doon Hills) :- सोमेश्वर श्रेणी के दक्षिण में स्थित है, इसकी लम्बाई 32 किमी तथा चौडाई 8 किमी. है। इसका कुल क्षेत्रफल 214 वर्ग किमी है। इसकी अधिकतम ऊँचाई संतपुर के निकट 242 मीटर है। 

बिहार का मैदानी क्षेत्र 
(Plain Region of Bihar) 

      बिहार का मैदानी क्षेत्र, उत्तर में नेपाल से लेकर दक्षिण में छोटानागपुर पठार की उत्तरी सीमा तक विस्तृत है। इसका लगभग 95 प्रतिशत भाग मैदानी है जो गंगा तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के निक्षेप से निर्मित है। इसका क्षेत्रफल लगभग 90,650 वर्ग किमी. है तथा समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई 60 से 120 मीटर तक हैं। 

          इस मैदान का ढाल सर्वत्र एक समान एवं धीमा है, जो 6 सेमी. प्रति किमी. है। पश्चिम में इस मैदान की चौड़ाई, पूर्व की अपेक्षा अधिक है तथा इसका ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है। गंगा नदी बिहार के मैदान को दो भागों में विभाजित करती है।

बिहार का मैदानी क्षेत्र

  • उत्तर बिहार का मैदान 
  • दक्षिण बिहार का मैदान 

उत्तर बिहार का मैदान 
(North Bihar Plain) 

      इसका क्षेत्रफल 56,980 वर्ग किमी. है। यह हिमालय की तराई क्षेत्र से प्रारम्भ होकर, दक्षिण में गंगा नदी तक विस्तृत है। इस मैदान का निर्माण गंगा एवं उसकी सहायक नदियों- कोसी, बागमती, बूढ़ी गण्डक, गण्डक तथा घाघरा आदि के द्वारा लाये गये अवसादों के निक्षेप से हुआ है। इसका ढ़ाल उत्तर से दक्षिण की ओर तथा उत्तर - पश्चिम से दक्षिण - पूर्व की ओर है।



     दो नदियों के मध्य स्थित क्षेत्र को दोआब (Doab) कहते हैं। इस मैदान को नदियों ने विभिन्न दोआब क्षेत्रों में विभाजित किया है, जो निम्नवत है- महानन्दा-कोसी दोआव, कोसी-गण्डक दोआब तथा गण्डक-घाघरा दोआब इस मैदान में नदी विसर्पण (River Meandering) के कारण गोखुर झीलों (अन्य नाम चौर या छाइन या मन) का निर्माण हुआ है तथा इन नदियों के मध्य बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में बड़े-बड़े दियरा प्रदेश (Diyera island) अपनी विशिष्ट क्षेत्रीय विशेषताएँ रखते हैं। 

       उत्तरी बिहार का मैदान गण्डक, कोसी और महानन्दा आदि नदियों द्वारा लायी गयी रेत और मिट्टी से निर्मित जलोढ़ पंख (Alluvial Fan) का क्षेत्र है, जहाँ पर ये नदियाँ प्रवाह मार्ग बदलती रहती है। 

        उत्तर बिहार के मैदान का विस्तार भागलपुर, सहरसा, पूर्णिया, सारण, गोपालगंज, मधुबनी, सिवान, पूर्वी चम्पारण तथा पश्चिमी चम्पारण, दरभंगा तथा मुजफ्फरपुर जिलों में है। क्षेत्रीय भिन्नता (Regional variation) के आधार पर इस मैदान को चार भागों में विभाजित गया है-

 उत्तर बिहार का मैदान 
 
  • भाबर या उप-तराई क्षेत्र
  • बागर भूमि 
  • खादर भूमि 0
  • चौर या मन  

(i) भाबर या उप-तराई क्षेत्र (Bhabar or Sub Tarai Region) 

       यह शिवालिक पर्वत श्रेणी के दक्षिण में एक संकीर्ण चौड़ी पट्टी के रूप में पश्चिम से पूर्व तक विस्तृत है। इसका विस्तार उत्तर बिहार के 07 जिलों किशनगंज, अररिया, सुपौल, मधुवनी, सीतामढ़ी , पूर्वी चम्पारण तथा पश्चिमी चम्पारण में है। 

       इसके दक्षिण में उप-तराई क्षेत्र विस्तृत है जो कि एक दलदली क्षेत्र है, पूर्वी क्षेत्र में वर्षा की अधिकता के कारण इसका विस्तार पश्चिम की अपेक्षा पूर्व में अधिक हुआ है। 


(ii) बाँगर (Bangar)

       यह पुरानी जलोढ़ से निर्मित उच्च भूमि का क्षेत्र है। बाँगर भी बाढ़ का मैदान है , किन्तु इसका निक्षेप खादर की भाँति प्रतिवर्ष नहीं होता है। 

       कैल्शियम कार्बोनेट की उपस्थिति के कारण इस मृदा में कंकड़ों की अधिकता पाई जाती है। इसका विस्तार उत्तर पश्चिम बिहार के मैदानी भागों में पाया जाता है।

(iii) खादर (Khadar)

         नदियों के द्वारा लाये गये नवीन जलोढ़ के निक्षेप को खादर कहते हैं। इसका सर्वाधिक विस्तार कोसी तथा गण्डक नदियों के मध्य हुआ है। प्रतिवर्ष बाढ़ के कारण रेत की नवीन परतो का निक्षेप होने से इसकी उर्वरता अत्यधिक होती है। इसमें बालू, रेत, पंक एवं चिकनी मिट्टी के निक्षेप पाये जाते हैं।

       इस क्षेत्र में नदियों के विसर्पण के फलस्वरूप छाड़न झील या गोखुर झील तथा दियरा भूमि (River Island) का निर्माण हुआ है, जिसमें राघोपुर दियरा द्वीप (Raghopur Diyara Island) प्रमुख है। 

(iv) चौर या मन

         बिहार के उत्तरी मैदान में प्राकृतिक रूप से जलमग्न निम्न भूमियाँ पायी जाती है, जिन्हें चौर या मन कहा जाता है। बिहार के पूर्वी चम्पारण में बहादुरपुर तथा सुन्दरपुर चौर तथा पश्चिमी चम्पारण का लखनी चौर प्रमुख हैं।

चौर या मन

        मुख्य रूप से गोखुर या छाड़न झीलें होती हैं। इनका निर्माण नदियों के मार्ग परिवर्तन से हुआ है। मन के मुख्य उदाहरण- पिपरा मन, सिमरी मन, माधोपुर मन तथा टटेरिया मन आदि। ये गहरे एवं मोठे जल के प्रमुख स्रोत होते हैं। इनका उपयोग मत्स्य पालन, सिंचाई, पक्षी विहार, पर्यटन तथा मखाना उत्पादन आदि के लिए किया जाता हैं।

Note:- बिहार के उत्तर-पूर्व के निम्न भूमि क्षेत्रों में विश्व का लगभग 90 प्रतिशत मखाना (Fox Nut) का उत्पादन किया जाता हैं।

दक्षिण बिहार का मैदान 
(South Bihar Plain)

      इसका क्षेत्रफल 33,670 वर्ग किमी. है। इसका विस्तार गंगा नदी के दक्षिण से लेकर छोटानागपुर पठार के उत्तरी भाग तक है। इस मैदान की चौड़ाई पश्चिम से पूर्व की ओर घटती जाती है। इसका निर्माण बिहार के दक्षिण में स्थित पठार एवं पहाड़ियों से होकर बहने वाली नदियों द्वारा लायी गई बलुई मिट्टी के निक्षेप से हुआ है। 

        दक्षिण बिहार का मैदान मुख्यतः समतल है, किन्तु गया (266 मी.), राजगीर (466 मी.), खड़गपुर (510 मी.), गिरियक और बराबर की पहाड़ियाँ इसकी एकरूपता को भंग करती हैं। इस मैदान में कहीं-कहीं छोटानागपुर पठार के बाहरी भाग पहाड़ियों के रूप में पाये जाते हैं। जिसमें रामशिला, जेठियन, प्रेतशिला, बिहार शरीफ की पीर पहाड़ी आदि प्रमुख हैं। 

        दक्षिण बिहार की नदियों के निक्षेप से प्राकृतिक तटबंध (Natural Levees) का निर्माण हुआ है। पठारों एवं पहाड़ियों की ओर से आने वाली नदियाँ गंगा नदी में सीधे न मिलकर उसके समानांतर प्रवाहित होती हैं। इन नदियों में पुनपुन, किऊल तथा फल्गु आदि है। 

        फल्गु नदी, गंगा में प्रवाहित होने से पहले ही टाल क्षेत्र में समाप्त हो जाती है। इस प्राकृतिक तटबंध के दक्षिण में जलमग्न निम्न भूमियाँ पायी जाती हैं, जिन्हें टाल (Tal) या ताल या तालाब कहते हैं। 

      टाल क्षेत्र पटना से भागलपुर तक 25 किमी. की चौड़ाई में क्रमिक रूप से फैले हुए हैं। इसके मुख्य उदाहरण निम्नवत है- मोकामा टाल, सियोल टाल, बड़हिया टाल, मोर दाल तथा काबर टाल।

Note:- मोकामा में किऊल हरोहर नदी घाटी (Kiul - Harohara River Basin) में विश्व का सबसे बड़ा टाल क्षेत्र (Tal Region) पाया जाता है।

• दक्षिण बिहार के मैदान को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) सोन - गंगा दोआब या भोजपुर का मैदान, यह सोन नदी के पश्चिम में स्थित है।

(ii) मगध का मैदान, यह सोन एवं किऊल नदी के मध्य स्थित है। 

(iii) अंग का मैदान, इनका विस्तार किऊल नदी से राजमहल की पहाड़ियों तक है। 

दक्षिण का संकीर्ण पठारी क्षेत्र 
(Southern Narrow Plateau Region) 

        इस पठारी प्रदेश का विस्तार पश्चिम में कैमूर जिला से लेकर पूर्व में मुंगेर एवं बाँका जिलों तक है। यह प्रायद्वीपीय भारत के पठार का बाह्य भाग है। यह बिहार का प्राचीनतम भूखण्ड है, जो कठोर चट्टानों में निर्मित है इसका विस्तार बांका, मुंगेर, जमुई, नवादा, औरंगाबाद, रोहतास तथा कैमूर के दक्षिणी भाग तक फैला हुआ है। 

इसे दो भागों में विभाजित किया सकता है:-

दक्षिण का संकीर्ण पठारी क्षेत्र 

  1. कैमूर का पठार 
  2. खड़गपुर को पहाड़ी 

(1) कैमूर का पठार (Plateau of Kaimur):- यह बिहार के दक्षिण - पश्चिम में स्थित विध्यन पर्वत का भाग है। कैमूर के पठार को रोहतास का पठार भी कहते हैं। जबलपुर (मध्य प्रदेश) से प्रारम्भ होकर रोहतास (बिहार) तक विस्तृत है। इसको लम्बाई 483 किमी. एवं चौड़ाई 80 किमी. है। 

       इसकी सतह अपरदन (Erosion) के कारण ऊबड़ - खाबड़ है तथा इसमें बलुआ पत्थर की अधिकता पायी जाती है। जिसकी औसत ऊँचाई 450 मी. है। कैमूर का पठार, छोटानागपुर पठार से सोन नदी द्वारा अलग होता है। 

(2) खड़गपुर की पहाड़ी (Kharagpur Hils) की ऊँचाई 510 मीटर है, यह कोडरमा पठार के उत्तर-पूर्व स्थित है। इसका विस्तार पूर्व में बांका एवं दक्षिण में जमुई तक है। ये धारवाड़ क्रम की चट्टाने हैं जिनमें स्लेट, क्वार्टजाइट, अभ्रक, बॉक्साइट, चीनी मिट्टी, एस्बेस्टस तथा बालू पत्थर आदि खनिजों की प्रधानता है। 

भौगोलिक क्षेत्र
(Geographical Region)

        भौतिक संरचना के आधार पर बिहार को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। शिवालिक पर्वतीय श्रेणी, बिहार का मैदान तथा दक्षिण का संकीर्ण पठारी क्षेत्र। 

        प्राकृतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकरूपता के आधार पर प्रो. राम प्रवेश एवं प्रो. इनायत अहमद ने बिहार को निम्नलिखित 10 भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित किया है।

प्रोफेसर इनायत अहमद के द्वारा बिहार का 10 भौगोलिक क्षेत्रो में विभाजन।

अभ्यास प्रश्न 


1. प्रो . राम प्रवेश एवं प्रोफेसर इनायत अहमद द्वारा बिहार के कितने भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है ? 

(A) 08 
(B) 12 
(C) 15 
(D) 06 
(E) इनमें से कोई नहीं / एक से अधिक 
Ans.- 10.

2. दक्षिणी बिहार की नदियों में शामिल है ? 

(A) पुनपुन
(B) किऊल 
(C) फल्गु 
(D) गण्डक   
(E) इनमें से कोई नहीं / एक से अधिक 

3. कैमूर पठार को निम्नलिखित नाम से भी जाना जाता है। 

(A) राजगीर पठार 
(B) रोहतास पठार 
(C) रामनगर पठार 
(D) विंध्याचल पठार  
(E) इनमें से कोई नहीं / एक से अधिक

4. शिवालिक के पर्वतीय क्षेत्रों को कितने उप विभागों में विभाजित किया गया है ? 

(A) दो भागों में 
(B) तीन भागों में  
(C) पाँच भागों में 
(D) चार भागों में 
(E) इनमें से कोई नहीं / एक से अधिक 

5. उत्तर बिहार को क्षेत्रीय भिन्नता के आधार पर कितने भागों में विभाजित किया गया है ? 

(A) 03 
(B) 04 
(C) 05 
(D) 06
(E) इनमें से कोई नहीं / एक से अधिक

6. बिहार के किस क्षेत्र में मखाने के 90% से अधिक भाग का उत्पादन होता है ? 

(A) पश्चिमी भाग 
(B) दक्षिण पश्चिमी भाग  
(C) उत्तर पश्चिमी भाग 
(D) उत्तर पूर्वी भाग 
(E) इनमें से कोई नहीं / एक से अधिक 

4. कैमूर का पठार किस स्थान से आरम्भ होता है ?

(A) हजारीबाग 
(B) देवघर 
(C) ग्वालियर
(C) जबलपुर 
(E) इनमें से कोई नहीं / एक से अधिक।

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