बुधवार, 27 अप्रैल 2022

कामसूत्र में वर्णित चौसठ कलाएँ। Sixty-four arts mentioned in the Kamasutra.

कामसूत्र में वर्णित चौसठ कलाएँ 


       प्राचीन भारत की सभ्यता, संस्कृति और इतिहास का क्रमबद्ध परिचय प्रस्तुत करने वाली सामग्री में कलाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। संस्कृत के प्राचीन ग्रन्थों में कलाओं की संख्या 64 मानी गयी है। भारत की इस चौसठविध कलाओं का परिचय यहाँ 'वात्स्यायन मुनि' के 'कामसूत्र' के आधार पर प्रस्तुत किया जा रहा है। 


      'कामसूत्र' के 'तीसरे अध्याय' में 'चौसठ कलाओं' का विवेचन किया गया है और वहाँ निर्देश किया गया है कि सभी नागरिकों को इन कलाओं का ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए। इन चौसठ कलाओं की नामावली इस प्रकार है:- 

(1) गीतम् (संगीत), 

(2) वाद्यम् (वाद्य - वादन), 

(3) नृत्यम् ( नाच ), 

(4) आलेख्यम् (चित्रकला), 

(5) विशेषकच्छेद्यम् (पत्तियों को काट-छाँटकर विभिन्न आकृतियां बनाना या  तिलक लगाने के लिए विशेष प्रकार के साँचे बनाना), 

(6) तंदुलकुसुमावलिविकारा (देवपूजन के समय विभिन्न प्रकार के जौ - चावल तथा पुष्पों को सजाना),

(7)  पुष्पास्तरणम् (कक्षों तथा भवनों के उपस्थानों को पुष्पों से सजाना),

(8) दशनवासनांगराग (दाँत, वस्त्र और शरीर के दूसरे अंगों को रंगना), 

(9) मणिभूमिकाकर्म (घर के फर्श को मणि - मोतियों से जड़ित करना), 

(10) शयनरचनम् (शैय्या को सजाना), 

(11) उदकवाद्यम् (पानी में ढोलक की सी आवाज निकालना), 

(12) उदकाघात (पानी की चोट मारना या पिचकारी छोड़ना), 

(13) चित्राश्वयोगा (शत्रु को विनष्ट करने के लिए तरह-तरह के योगों का प्रयोग करना), 

(14) माल्यग्रंथनविकल्पा (पहनने तथा चढ़ाने के लिए फूलों की मालाएँ बनाना), 

(15) शेखरकापीडयोजनम् (शेखरक तथा आपीड जेवरों को उचित स्थान पर धारण करना), 

(16) नेपथ्यप्रयोगा (अपने शरीर को अलंकारों और पुष्षों से भूषित करना), 

(17) कर्णपत्रभंगा (शंख, हाथी दाँत आदि के कर्ण आभूषण बनाना,

(18) गंधयुक्ति (सुगंधित धूप बनाना), 

(19) भूषणयोजनम् (भूषण तथा अलंकार पहनने की कला), 

(20) ऐंद्रजाल (जादू का खेल दिखाकर दृष्टि को बाँधना), 

(21) कौचुमारयोग (बल - वीर्य बढ़ाने की औषधियाँ बनाना), 

(22) हस्तलाघवम् (हाथ की सफाई दिखान), 

(23) विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकारक्रिया (अनेक प्रकार के भोजन, जैसे शाक, रस मिष्ठान आदि बनाने की निपुणता), 

(24) पानकरसरागासवयोजनम् (नाना प्रकार के पेय शर्बत बनाना), 

(25) सूचीवानकर्माणि (सूई के कार्य में निपुणता),  

(26) सूचनक्रीड़ा (सूत में करतब दिखाना), 

(27) वीणाडमरूकवाद्यानि (वीणा और डमरू आदि वाद्यों को बजाना), 

(28) प्रहेलिका (पहेलियों में निपुणता), 

(29) प्रतिमाला (दोहा श्लोक पढ़ने की रोचक रीति),

(30) दुर्वाचकयोग (कठिन अर्थ और जटिल उच्चारण वाले वाक्यों को पढ़ना), 

(31) पुस्तकवाचनम् (मधुर स्वर में ग्रंथ पाठ करना), 

(32) नाटकाख्यायिकादर्शनम् (नाटकों तथा उपन्यासों में निपुणता), 

(33) काव्यसमस्यापूरणम् (समस्यापूर्ति करना), 

(34) पट्टिकावेत्रवानविकल्पानि (छोटे उद्योगों में निपुण), 

(35) तक्षकर्मणि (लकड़ी, धातु आदि की चीजों को बनाना), 

(36) तक्षणम् (बढ़ई के कार्य में निपुण), 

(37) वास्तुविधा (गृहनिर्माणकला), 

(38) रूप्यरत्नपरीक्षा (सिक्कों तथा रत्नों की परीक्षा), 

(39) धातुवाद (धातुओं को मिलाने तथा शुद्ध करने की कला), 

(40) मणिरागाकारज्ञानम् (मणि तथा स्फटिक काँच आदि के रंगने की क्रिया का ज्ञान), 

(41) वृक्षायुर्वेदयोग (वृक्ष तथा कृषि विद्या), 

(42) मेष - कुक्कुट लावक - युद्धविधि (मेढ़े, मुर्गे और तीतरों की लड़ाई परखने की कला) 

(43) शुक - सारिका - प्रलापनम् (शुक सारिका को सिखाना तथा उनके द्वारा संदेश भेजना), 

(44) उत्सादने संवादने केशमर्दने च कौशलम (हाथ-पैर से शरीर दबाना, केशों को मलना, उनका मैल दूर करना और उनमें तैलादि सुगंधित चीजें मलना), 

(45) अक्षर - मुष्टिका - कथनम् (अक्षरों को संबद्ध करना और उनसे किसी संकेत अर्थ को निकालना), 

(46) मलेच्चितविकल्पा (सांकेतिक वाक्यों को बनाना), 

(47) देशभाषाविज्ञानम् (विभिन्न देशों की भाषाओं का ज्ञान), 

(48) निमित्तज्ञानम् (शुभाशुभ शकुनों का ज्ञान), 

(50) यंत्रमातृका (चलाने की कलें तथा जल निकालने के यंत्र आदि बनाना), 

(51) धरणमातृका (स्मृति को तीव्र बनाने की कला), 

(52) संपाठ्यम् (स्मृति तथा ध्यान संबंधी कला), 

(53) मानसी (मन से श्लोकों तथा पदों की पूर्ति करना), 

(54) काव्यक्रिया (काव्य करना), 

(55) अमिधान - कोश - छंदोपज्ञानम् (कोश और छंद का ज्ञान), 

(56) क्रियाकल्प काव्यालंकारज्ञानम् (काव्य और अलंकार का ज्ञान), 

(57) छलितकयोग (रूप और बोली छिपाने की कला), 

(58) वस्त्रगोपनानि (शरीर के गुप्तांग को कपड़े से छिपाना), 

(59) छूतविशेष (विशेष प्रकार का जुआ), 

(60) आकर्षक्रीडा (पासों का खेल खेलना), 

(61) बालक्रीडनकानि (बच्चों का खेल), 

(62) वैनियिकीनाम् (अपने पराये के साथ विनयपूर्वक शिष्टाचार दर्शित करना), 

(63) वैजयिकीनाम (शस्त्रविद्या), 

(64) व्यायामिकीनां च विद्यानां ज्ञानम (व्यायाम, शिकार आदि की विद्याएँ)। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें