किस्से आर्ट कॉलेज के...
इस कहानी को शुरू करने से पूर्व मैं आप सभी को बता दूं कि मैं महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय में होने वाले किसी भी तरह के रैगिंग को सपोर्ट या बढ़ावा नहीं दे रहा हूं चुंकि मैं इसे एक FUN की तरह मानता हूं तो आप सभी भी इसे मस्ती के मूड में ही पढ़े।
कला एवं शिल्प महाविद्यालय का प्रथम वर्ष, बाकियों का तो नहीं पता लेकिन मेरे लिए बहुत ही उत्साह जनक था। नामांकन लेने के कुछ दिन बाद हम कॉलेज में गए तब तक वहा पर कक्षायें शुरू हो चुकी थी। महाविद्यालय में प्रवेश करने के साथ ही वहां एक स्टाफ से पूछे कि प्रथम वर्ष की कक्षायें कहां पर संचालित हो रही है और सीधे उस कक्षा में प्रवेश कर गए।
ऐ लड़का कहां घुसा आ रहा हैं?
मैंने मुड़ कर देखा एक लड़का जो पहली पंक्ति में बैठे छात्रों को कुछ बता रहे थे, मेरी तरफ घुर कर देखते हुए फिर बोले - ऐ कहा आये हो?
मैं उन्हें देख कर बोला - क्लास करने।
वो फिर उसी अंदाज में कहे - इधर आओ।
जब मैं उनके पास गया तब बोले - तुम्हें पता नहीं, जब क्लास में सीनियर खड़े हो तो क्लास में उनकी बिना अनुमति के प्रवेश नहीं करते है।
मैंने मासूमियत के साथ कहा - मुझे नही मालूम हैं, आज पहली बार कॉलेज आए हैं।
तब उन्होंने थोड़ा तेवर नरम करते हुए कहा- ठीक है, गेट पर जाओ और अंदर आने की परमिशन लो।
मैं गेट पर गया और कहा - May I Come...
मैं अपनी बात पूरी करता इससे पहले ही वह बोल उठे - अबे हिंदी में बोल।
मैं थोड़ा डरते हुए कहा - सॉरी!!! क्या मैं अंदर आ सकता हूं।
वह हल्की मुस्कान के साथ कहे - ठीक है!!! आ जाओ।
मैं क्लास में घुसा और जाकर सीधे बेंच पर बैठ गया। अभी जो कुछ देर पहले मेरे अनुमति लेने से उनके चेहरे पर जो हल्की मुस्कान आई थी वह तुरंत गायब हो चुकी थी। उन्होंने अपना माथा पकड़ते हुए कहा - रे... इस क्लास का मॉनिटर कौन है? इसको समझाओं तो रे की जब सीनियर क्लास में हो तो बिना उसके अनुमति के नहीं बैठना है।
क्लास की एक लड़की खड़ी हुई वह कुछ बोलती उससे पूर्व हम ही बोल उठे। सीनियर जी, एक बार आप ही मुझे बता दीजिए कि जब सीनियर हो तो क्या-क्या करना होता है?
क्लास के सभी बच्चे हंस😂 दिए, अबकी बार तो उस सीनियर का गुस्सा सातवे आसमां पर था। उन्होंने एकदम से चिल्लाते हुए कहा - भैया, बोल मुझे!!! भैया। ...और वो तमतमाते हुए मेरी तरफ बढ़े, मैं डर कर दो कदम पीछे हट गया। तभी 03-04 लोग क्लास में घुसे और बोले - क्या हुआ पुरुषोत्तम?
कुछ नहीं भैया बस इसे थोड़ा सा ज्ञान दे रहे थे।
अरे ज्ञान देने की क्या आवश्यकता है इसे पीटर भैया के पास भेज दो।
पीटर भैया यह नाम मैंने पहली बार सुना था मुझे तो कोई खास फर्क नहीं पड़ा लेकिन पूरे क्लास में सन्नाटा छा गया ऐसा लगा जैसे कि पीटर भैया कोई व्यक्ति नहीं बल्कि दहशत का दूसरा नाम हो।
पिटर भैया के नाम से हर जूनियर एकदम से ख़ौफ़ खा जाता था लेकिन मैं नॉर्मल खड़ा रहा अबकी बार वह सीनियर भी कुछ समझे नहीं। उनमें से एक ने कहा - रे इसको ले चलो तो बुड्ढा गार्डन।
बुड्ढा गार्डन का नाम सुनकर मैं मुस्करा उठा मैं कुछ बोलता उससे पूर्व ही मेरी क्लास की मॉनिटर खड़ी हुई और मेरा बचाव करते हुए बोली - नहीं भैया आज इसका पहला क्लास है इसको यहां के नियम नहीं पता है हमलोग इसे समझा देंगे।
तब उन्होंने कहा ठीक है लेकिन तुम सभी शाम में 04:00 बजे बुद्धा गार्डन में मिलोगे।
सभी सीनियर जा चुके थे लेकिन क्लास में अभी भी पुरुषोत्तम भैया रुके हुए थे क्योंकि उनका पसंदीदा प्रश्न अभी बाकी था जो की वह सभी से पूछते थे भला हमसे कैसे नही पूछते ?
मुझे अपने पास बुलाया और कहा - अच्छा ये बताओं तुम जिस कॉलेज में आए हो उसका नाम क्या है ?
मैंने कहा - कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना।
इस प्रश्न का अभी तक सभी ने गलत उत्तर दिया था कोई इसे आर्ट कॉलेज, तो कोई कला महाविद्यालय, इत्यादि कहता।
सभी बच्चे मुझे देख रहे थे और पुरुषोतम भैया निरुत्तर थे, लेकिन उन्होंने हार नही मानी और कहा की अंग्रेजी में बताओ। मै सोच रहा था की अभी अंग्रेजी भैया को अच्छा नही लगा था, फिर भी मैंने कहा - Arts & Craft College, Patna.
अबकी बार तो पुरुषोतम भैया एकदम ख़ुशी से उछल पड़े क्योंकि उन्हें रैंगिंग लेने का मौका मिल गया था। उन्होंने कहा - तुम गलत बता रहे हो।
मै सोचने लगा Arts & Craft College, Patna. (कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना।) इसमें गलत क्या है।
उन्होंने कहा - एक काम करो जाओ, बाहर एक गेट बना हुआ हैं उस पर लिखा है, एक बार देख कर आओं।
मै क्लास से निकल तो गया लेकिन सोचते जा रहा था की मैंने गलत क्या बोला । अभी क्लास से बाहर निकले ही थे की मेरी नजर सामने नोटिस बोर्ड पर पड़ी। उस पर कॉलेज का नाम लिखा हुआ था। मैंने वहां देखा और वापस क्लासरूम में चला गया। इस बार मैंने अनुमती ले कर कक्षा में प्रवेश किया। भैया ने मुझे देखा और बोले - क्या जी तुम बाहर गेट पर नही गया था।
मैंने उन्हें कहा - मै ना, नोटिस बोर्ड पर देख लिया था।
अबको बार वो जोर से हंसे और बोले यार सही है, चलो अब सभी को बता दो की सही क्या है।
मैंने कहा - कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना और College of Arts & Crafts, Patna.
इसके बाद उन्होंने कुछ नही कहा और क्लास से बाहर चले गए।
उन के क्लास के बाहर जाते ही सभी बच्चे मेरे पास आए और बोले की तुम कॉलेज में आज पहली बार आए हो? हम सबको यहां के नियम को पालन करना होता है?
वह और कुछ आगे बोलते उससे पहले हम बोले कि कौन-कौन सा नियम? हम सभी नियम का पालन कर लेंगे।
हम सभी की यह बातें हो ही रही थी, तभी क्लास में राखी मैम ने प्रवेश किया और उसने प्रिंट मेकिंग के तहत स्टैंसिल का प्रयोग करके थंब प्रिंट कैसे करते हैं उसके बारे में बताया और हमारा पहला असाइनमेंट रहा मास्क बनाना और उसे अपने थंब का प्रयोग करते हुए प्रिंट निकालना।
आर्ट कॉलेज का मेरा पहला क्लास बहुत ही बढ़िया रहा शाम को 4:00 बजे हम सभी बुद्धा गार्डन में थे। वहां पर चारों तरफ भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में मूर्तियां बनी हुई थी और बीच में भगवान बुद्ध का शीश सोई हुई अवस्था में था और उसके चारों तरफ जातक कथाओं का वर्णन किया गया था। मेरे क्लास के सभी बच्चे डरे सहमें से एक साइड में खड़े थे और मैं उस जगह का लुफ्त (एन्जॉय) उठा रहा था। वहां सभी सीनियर बैठे हुए थे और हम लोग खड़े। सभी की आपस में यह चर्चा चल रही थी कि पीटर भैया अभी तक क्यों नहीं आए।
पीटर भैया के नाम से सभी के कान खड़े हो गए मैंने दूसरी बार उनका नाम सुना था अब उन्हें देखने की उत्सुकता और बढ़ गई। मैं सोच रहा था कि आखिर पीटर भैया कौन है जिनके बस नाम मात्र से ही इतना खौफ हो जा रहा है। तभी एक लड़का आया और बोला - पीटर भैया अभी कैंपस में नहीं है शायद स्टेशन चले गए हैं। उसके उपरांत वहां बैठे सभी सीनियरों ने हम लोगों की ओर मुखातिब होकर के बोले - देखो आज सुबह जो क्लास में हुआ वह आगे से नहीं होना चाहिए और कोई भी नया लड़का आता है तो सबसे पहले तुम लोग उसे यहां के नियम कानून को समझाओगे और उसके बाद मैं फिर से वही नियम कानून समझा कि जो कि सुबह में अपने क्लास में सुन चुके थे।
जैसे -
• कॉलेज में प्रत्येक दिन फॉर्मल ड्रेस एवं जूता पहन करके आना है।
• आई कार्ड गले में लगी होनी चाहिए।
• कभी भी, कहीं भी, कोई भी सीनियर दिख जाए तो उसे गुड मॉर्निंग भैया या दीदी बोलना है।
वह एक-एक करके हमें नियम बताए जा रहे थे और हम सभी उसे नोट करते जा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि अगली परीक्षा में यही सब प्रश्न आने वाले हैं। उस दिन पीटर भैया से मुलाकात तो नहीं हुई लेकिन उनके नाम का खौफ बरकरार रहा। मेरे मन में उनको देखने और उनसे मिलने की उत्सुकता और बढ़ती जा रही थी एक दिन मैंने अपने एक बैचमेट से पूछा - पीटर भैया से तुम मिले हो? उसने कहा कि मिले तो नहीं है लेकिन कोशिश करो कि मुलाकात भी ना हो।
मैंने पूछा - वह इतने डरावने दिखते हैं क्या?
वह एकदम से घबराते हुए बोला - अरे क्या बोल रहे हो धीरे बोलो कोई सुन लेगा तो अभी हमारी क्लास लग जाएगी।
...और हमारी क्लास लगने ही वाली थी क्योंकि हमारे पीछे मॉनिटर खड़ी होकर हमारी बातों को सुन रही थी। सीनियर के बाद यदि क्लास में किसी को कुछ पावर मिला था तो वह थी हमारी मॉनिटर। वह सीनियर की गैर मौजूदगी में हमें महाविद्यालय के नियम कानून बता एवं समझा सकती थी। उसने कहा - अच्छा तुम दोनो को पीटर भैया से मिलना है!!! ठीक है, चलो मिलाते हैं।
मेरे बैचमेट की हालत खराब होने लगी वह बोला - अरे नहीं!!! नहीं!!! मुझे नहीं इसे मिलना था।
वह मेरी तरफ मुड़ी और बोली कि तुम क्या चाहते हो, एक तो लेट आए हो और ऊपर से हम सभी को परेशान करते रहते हो।
मैंने कहा - परेशान कहां करते हैं। जो-जो नियम बताया गया हैं उसका पालन तो करते ही हैं। जो भी सीनियर दिख जाए सबसे पहले गुड मॉर्निंग दीदी और भैया बोलते हैं।
उसने कहा - ठीक है ठीक है और वहां से चली गई।
हमारे क्लास में अविनाश नाम के तीन लड़के थे। हम सभी तीनों को एक एक नाम दे दिए थे ताकि उसे पुकारने में दिक्कत ना हो। उस समय ही 3-ईडियट्स मूवी आई थी तो उन सभी के नाम भी इसी मूवी से इंस्पायर थे या कह सकते हैं की कॉपी थे। जैसे - वायरस अविनाश, पढ़ाकू अविनाश और शांत अविनाश।
वायरस और पढ़ाकू से तो मेरी उतनी दोस्ती नहीं हुई थी लेकिन शांत, अविनाश से हो गई थी।
एक दिन वह मुझे बता रहा था कि जानते हो 3 इडियट मूवी में जो रैगिंग का सीन है ना वह हम सभी एक दिन कर चुके हैं। मैंने कहा - कौन सा, वह चड्डी वाला क्या?
उसने कहा -हां।
तुम शायद उस दिन नहीं आया था। फिर वह आगे बोला कभी हॉस्टल में गए हो? मेरे कुछ बोलने से पहले ही पुन: बोल उठा - अच्छा हां, जाओगे कैसे। फर्स्ट ईयर को जाना अलाउड नहीं रहता है फिर भी हम हॉस्टल में चले जाते हैं चलो एक बार घूम कर आते हैं।
हम उसके साथ हॉस्टल में चले गए। आर्ट्स कॉलेज में केवल बॉयज हॉस्टल था हर तरफ विभिन्न तरह की कलाकृतियां फैली हुई थी। हम दोनों एक जगह बैठकर स्कैच करने लगे। कुछ देर बाद मुझे एहसास हुआ कि मेरे बगल में कोई बैठा हुआ है जब मैं घूम कर देखा तो पाया कि एक दुबला पतला सा लड़का बाल बिखरे हुए दाढ़ी थोड़ी सी बढ़ी हुई बैठकर के हमको घुर रहा है। मैंने पाया कि अविनाश वहां पर नहीं है। मैंने उन्ही से जब पूछा की अविनाश कहां चला गया? पहले तो कुछ नहीं बोले फिर थोड़ा सा गुस्सा दिखाते हुए कहा - वह चला गया। मैंने उसे जाने को बोला था। हम भी उन्हें इग्नोर करके आराम से स्कैच करने लगे। उन्होंने आगे कहा - फर्स्ट ईयर में हो? कॉलेज क्यों आए हो? क्या करना है? क्या बनना है? कलाकार बनकर क्या करेगा? कोई भविष्य नहीं है?
वह लगातार बोले जा रहे थे और मैं उन्हें देख रहा था। मुझे लगा लगता हैं, कोई बहुत ही फ्रस्ट्रेटेड इंसान है जो अपनी जिंदगी से ऊब गया है। लगातार 05 मिनट बोलने के बाद वह थोड़ा सा रुके। अब तक तो मैं इतना समझ ही गया था कि यह कोई सीनियर है। मैंने बस इतना ही कहा - भैया मुझे ना, नेम एवं फेम (fame) कमाना है बस।
वो नेम तो समझ गये लेकिन फेम नहीं समझें।
तब मैंने उन्हें समझाते हुए कहा - "फेम" मतलब मुझे ना आर्ट फील्ड में बहुत प्रसिद्ध होना है।
मेरा इतना बोलते ही वह जोर से हंसे और बोले देखो तो रे यह बहुत बड़ा सपना लेकर आया है। हम सभी कलाकार बस यह सोचते हैं कि किसी तरह दो वक्त की रोटी के लिए पैसे कमा सके और यहां इसे तो नाम कमाना है वह भी पैसे के साथ।
मैं ने भी मासूमियत के साथ कहा कि भैया इसमें गलत क्या है?
वह बोले कि गलत कुछ नहीं है। चलो तुम पहले कलाकार मुझसे मिला जो की इतना बड़ा सपना लेकर आया है उम्मीद करते हैं कि वह पूरा भी हो।
मैंने कहा - धन्यवाद भैया और वहां से उठकर आने लगे।
अचानक से उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और जोर से खींचा मैं लड़खड़ा कर गिर गया। तब उन्होंने कहा - ऐसे कैसे जाने देंगे। तुम्हें नहीं पता फर्स्ट ईयर को हॉस्टल में नहीं आना होता है। मैं कुछ नहीं बोला तब वह पुनः बोले तुम्हारे साथ रैगिंग तो नहीं कर सकते हैं न ऐसे जाने भी नहीं दे सकते हैं चलो एक काम करो बस एक गाना सुना दो।क्योंकि तुम बहुत मासूम लग रहे हो और तुम्हारा सपना भी बहुत बड़ा है लेकि
मैंने धीरे से कहा - भैया मुझे गाना गाने नहीं आता है।
सुनता है या फिर... उनकी बात पूरी होते उससे पहले ही हम गाना शुरू कर दिए थे।
जादू तेरी नजर...खुशबू तेरा बदन...
तू हां कर, या ना कर,-२
तु हैं मेरी....
मैं गाना गाए जा रहा था और वह उसमें खोये जा रहे थे। अचानक से मुझे चुप रहने का इशारा किया और चुपचाप उठकर अपने कमरे में चले गए। मुझे समझ नहीं आया की बात क्या है? खैर!!! हम हॉस्टल से बाहर आए। अविनाश द्वार पर ही मेरा इंतजार कर रहा था आते ही उसका सबसे पहला सवाल था।
पिटर भैया ने तुम्हारे साथ क्या-क्या किया?
मैंने कहा - पीटर भैया!!!
अविनाश - अरे वह पीटर भैया ही तो थे जो तुम्हारा रैगिंग ले रहे थे।
मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा- अच्छा वह पीटर भैया थे।
अविनाश - तुम्हें पता नहीं वह क्या-क्या करते हैं।
मैं ने भी उसी अंदाज में पूछा - क्या-क्या करते हैं?
उसने अपना बैग खोला और एक पेपर का सीट निकाल कर मुझे दिया। मैंने पूछा यह क्या है तब अविनाश ने कहा जैसे हम लोग थंब प्रिंट लेते हैं ना वैसे ही यह बैक प्रिंट है।
मैंने पूछा - किसका तुम्हारा?
अविनाश कुछ नहीं बोला धीरे से उठकर वहां से चल दिया मैं भी पूरी परिस्थिति को समझते हुए उसके पीछे-पीछे क्लास रूम की ओर चलने लगा।
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