किस्से आर्ट कॉलेज के...
यह कहानी है उस लड़के की, जो हमेशा अपने शरीर, अपनी सोच, एवं अपने कार्य को लेकर असमंजस की स्थिति में रहता था। घर पर उसके मम्मी-पापा के अलावा उससे छोटी एवं बड़ी चार बहने थी। पापा का छोटा-मोटा व्यवसाय था मछली पकड़ना एवं उसे बेचना, दरअसल बात यह थी की कुछ ऐसे कार्य होते हैं जो की जाति विशेष के बना दिए जाते हैं तो उनका मछली पकड़ना एवं उसे बेचना भी जातिगत ही कार्य था। यानी उन्ही के जाति के लोग यह कार्य किया करते थे और संभवत: यही वजह भी रही थी कि उन्होंने भी इसे ही चुना। लेकिन बच्चों को पढ़ाने की लालसा उनके अंदर थी तभी तो सुरेश (बदला हुआ नाम) को पढ़ने के लिए उन्होंने पटना भेजने का निर्णय लिया था। एक मेरा स्वं का किस्सा यहां याद आ रहा है पहले उसकी बात कर, फिर हम सुरेश की कहानी को आगे बढ़ाते हैं। दरअसल बात यह थी की बरसात के समय में मेरे घर के तीन तरफ पूरा पानी लग गया था और उसमें बहुत सारी मछलियां आ गई थी। क्योंकि हमें मछली खाना पसंद है तो हम लोगों ने भी छिप, बंसी एवं आरसी (यह तीनों मछली पकड़ने के यंत्र हैं।) बनाकर के मछली पकड़ने लगे। उसी समय हमारे बड़े पापा के लड़के की शादी के लिए कुछ रिश्तेदार आए थे। जैसा अक्सर हर गांव में होता है कुछ लोग "विवाह कटवा" होते हैं। एक विवाह कटवा पहुंच गए लड़की वाले के यहां चुंकि लड़की वाले पूर्णत: शाकाहारी थे उन्होंने जाते ही सबसे पहले कहां -
अरे महाराज!!! कहां शादी कर रहे हैं वह लोग जो है ना, बिन-मल्लाह की तरह मछली पकड़ के खाता है।
लड़की के पिता थोड़े समझदार थे उन्होंने कहां - तो क्या बात हो गई? वो लोग मछली खाते हैं तो पकड़ते हैं। उस दिन उस विवाह कटवा की दाल नहीं गली और फाइनली रिश्ता हमारा वही हुआ।
बचपन में मैंने एक कविता पढ़ी थी - "इ विवाह कटवा हाँ, बड़ा विवाह काटेला" की लाइने दिमाग में चलने लगी।
खैर!!! हम अपनी कहानी पर लौटते हैं और सुरेश जो की कलाकार बनने के लिए प्रयत्नशील था उसे कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना में उम्मीद की किरण दिखाई देती है और इसके नामांकन की प्रक्रिया को समझने लगता हैं। जिस दिन वह अपने गांव की गलियों से निकल कर पटना में आता है संभवत: पहली बार महाविद्यालय में एंट्रेंस एग्जाम देने क्योंकि उसने फॉर्म ऑनलाइन फील किया था। कॉलेज के मुख्य प्रवेश द्वार से प्रवेश करते ही अचानक से उसकी नजर अंकेश (बदला हुआ नाम) पर पड़ती है और पता नहीं सुरेश के मन में क्या इच्छा जागृत होती है सबसे पहले वह उसका नंबर मांगता है और उसके बाद शुरू होती है उन दोनो के बीच घंटो बातचीत। ऐसे अंकेश, सुरेश से दो-तीन साल बड़ा होगा लेकिन दोनों एक ही क्लास के थे और शायद इन दोनों की दोस्ती को और आगे जाना था तभी तो दोनों का एंट्रेंस एग्जाम क्लियर हो गया और यह सूचना सुरेश को अंकेश ही फोन करके दी। सुरेश को तो मानो पूरी दुनिया की खुशी एक बार में ही मिल गई हो। अब वो जल्द से जल्द पटना आना चाहता था। सुरेश के घर वाले इससे थोड़े चिंतित हो गए क्योंकि इससे पहले कभी भी सुरेश को अकेले बाहर नहीं भेजे थे और घर का इकलौता लड़का होने की वजह से इसकी मां को उसकी सबसे ज्यादा चिंता थी, वह सोचने लगी कि लड़का अकेले कैसे सब कुछ मैनेज करेगा यहां तो अपना खाया हुआ थाली तक नहीं उठाता है वहां खाना बनायेगा कैसे? नहाने के बाद गंजी पैंट तक नहीं धोता है वहां पूरे कपड़े कैसे साफ करेगा? उपरोक्त बाते सोच-सोच कर के उसकी माँ को रोना आ रहा था लेकिन उसके पापा कठोर थे वह उसकी माँ को समझा तो रहे थे की लेकिन अंदर ही अंदर वह भी सुबक😓 रहे थे। घर पर आटा, चावल, आलू, प्याज, चुरा का भुजा, आम का अचार, तिलकुट, नमकीन, बिस्कुट इत्यादि बोरे में रखकर सुरेश के पापा ने उसका मुंह बांधते हुए सुरेश की मां से कहां - सुनs तारु हो!!! अवरी कुछू रखे के बा का?
सुरेश की मां सुबकते हुए बोली - बेटवा के विदाई थोड़े करतs बानी...
तभी सुरेश की छोटी बहन दौड़ते हुए आई और बोली - भैया केने बाड़े ? अचानक से सभी का ध्यान आया कि, हां!!! सही है सुरेश कहीं दिख नहीं रहा है। सुरेश की माँ, पुन: उसके कपड़े को एक-एक कर के अच्छे से बैग में पैक करने लगी।
सुरेश की उंगलियां बार-बार मोबाइल के स्क्रीन पर चल रही थी, अब तो वह नंबर भी उसे याद हो गया था 9131.....857. यह नंबर था अंकेश का, सुरेश इसलिए बहुत परेशान हो रहा था क्योंकि अंकेश उसका कॉल उठा नहीं रहा था। अंकेश के फोन का हेलो ट्यून था - सांसों की जरूरत है जैसे, जिंदगी के लिए बस एक.... सुरेश को यह गाना बहुत पसंद था लेकिन आज उसकी सांसे अटक रही थी, यह सोच करके की अंकेश फोन क्यों नहीं उठा रहा है। अचानक से फोन रिसीव हुआ और अंकेश ने हेलो कहा। सुरेश कुछ बोल नहीं पाया बस आंखों से झर-झर आंसू गिरने लगे। अंकेश ने दो-तीन बार हेलो!!! हेलो!!! कहा और फिर यह कहते हुए फोन रख दिया कि हम क्लास ले रहे हैं बाद में फोन करते हैं। सुरेश ने अपने आंसू पोछे और नीचे रूम में आया, वहां सभी उसका इंतजार कर रहे थे। खाना वगैरा खाकर सभी सोने चले गए रात में तीन लोगों की आंख में आंसू थे सुरेश के पापा-मम्मी एवं स्वयं सुरेश के। सुरेश के पापा मम्मी तो बेटे की विदाई में रो रहे थे लेकिन सुरेश क्यों रो रहा था चलिए उसके आंसुओं से ही पूछते हैं।
सुरेश एकतक से छत को देख रहा था आंसू की बूंदे उसके गालों पर गिरकर तकिया को भींगोये जा रही थी रात के 12:00 बज चुके थे लेकिन अभी भी सुरेश को अंकेश के कॉल का इंतजार था। आज पहली बार सुरेश, अंकेश के लिए इतना रोया😭 था। शायद उसके आंसुओं का प्रभाव था कि सुबह में हल्की बारिश हुई एवं मौसम सुहाना हो गया।
नम है मौसम🌧️ कहीं तो कोई रो😭 रहा होगा।
अपने अश्कों से वो रोज तकिया भिगो रहा होगा।।
भीनी-भीनी सी फिजाओं में घुली है खुशबू🌼 ।
प्रेम😍 के फूल का बीज कोई तो बो रहा होगा।।
मेरी यह पंक्तियां शायद सुरेश की स्थिति पर बिल्कुल सटीक बैठती है। उसने सुबह-सुबह अंकेश को सुप्रभात 💐 का मैसेज किया और जब कुछ देर तक उसका रिप्लाई नहीं आया तो उसने कॉल कर दिया। सुरेश अंकेश को तब तक कॉल करता रहा जब तक की अंकेश ने कॉल उठा नहीं लिया हो। उसके कॉल उठाते ही सुरेश ने एकदम से चहकते हुये कहा - अंकेश जानते हो, हम ना आज पटना आ रहे हैं। ये बाते सुरेश ने इतनी तेज आवाज़ में कही थी की किचन में काम कर रही उसकी मम्मी भी उसके रूम में जाकर देखने लगी। अंकेश नींद में ही बोला - भाई, इतनी सुबह-सुबह कौन फोन करता है अभी हम सो रहे हैं। अच्छा तुम आ रहे हो पटना में स्वागत💐 है। सुरेश को तो बस इतना ही सुनना था। अंकेश की आवाज, भले ही वह गुस्से वाली क्यों ना हो लेकिन उसे प्यारी लगी। वह उठ करके फ्रेश हुआ और नाश्ता करके अपने सामान पर एक नजर दौड़ाया। सभी सामान एक-एक करके बहुत अच्छे से पैक किया गया था। मम्मी उसके लिए ठेकुआ तैयार करके ला कर दी, उसने जानबूझकर कुछ ज्यादा ठेकुआ पैक कर लिया। उसके पापा साइकिल पर सामान बांध करके बस स्टैंड तक छोड़ने आए, जब वह पटना के लिए बस में बैठा तो उसे एक समय के लिए महसूस हुआ कि उसकी पुरानी दुनिया छूट रही है लेकिन पटना में मिलने वाली नई दुनिया से वह बहुत खुश था।
पटना में सुरेश ने पहले चाहा की वह अंकेश के साथ ही रहे लेकिन अंकेश का पटना में अपना घर था तो वह पॉसिबल नहीं हो पाया तब सुरेश ने कॉलेज के पास ही रूम ले लिया। धीरे-धीरे उसने खाना बनाने से लेकर कपड़ा धोने तक सीख लिया। वह रोज अंकेश के लिए लंच बना कर ले जाता, अंकेश पटना का होते हुए भी लंच क्यों नहीं लाता उसने कभी भी यह जानने की कोशिश नहीं की। एक दो बार सुरेश ने चाहा की अंकेश के घर जाए लेकिन उसने मना कर दिया। महाविद्यालय में दोनों साथ-साथ पढ़ते ही थे लेकिन जैसे छुट्टी होता, पल-पल की जानकारी वह अंकेश की लेता। जैसे - वह घर पहुंचा कि नहीं? नाश्ता किया कि नहीं? रात का खाना खाया कि नहीं? सुबह का नाश्ता हुआ या नहीं? कॉलेज कब आएगा? कहां पर है? शुरू-शुरू में तो अंकेश को यह सब बहुत अच्छा लगा, वह सोच रहा था की कोई तो है जो उसकी इतनी फिक्र कर रहा है वरना किसके पास इतना समय है। रात में जब तक अंकेश खाना नहीं खा लेता तब तक सुरेश नहीं खाता था और कल के लंच में अंकेश को क्या पसंद है वही सुरेश बनाकर ले जाता। सुरेश के घर में कभी मछली की कमी तो रही नहीं थी लेकिन बस उसे बनाने नहीं आता था, वह फोन करके अपनी मम्मी से सारी डिश बनाने की ट्रेनिंग लेता और उसे तैयार करके ले जाता।
एक दिन दोनो लंच कर रहे थे, सुरेश अंकेश के लिये मछली बना कर ले गया था। मछली खाते-खाते सुरेश ने कहा - जानते हो अंकेश हम चाहते हैं ना!!! मेरा भी घर पटना में हो और ठीक तुम्हारे घर के पास हो ताकि हमदोनो हमेशा साथ रह सके कॉलेज से निकलने के बाद भी। सोचो कितना अच्छा लगेगा जब हम दोनों एक साथ पार्क में टहलने जाएंगे और....
सुरेश अपनी बात पुरी करता उससे पूर्व ही अंकेश को जोड़ की खांसी आई शायद उसके गले में मछली का कांटा अटक गया था। सुरेश दौड़कर पानी लाया और अंकेश को दिया। अंकेश के गले से मछली का कांटा तो निकल गया था लेकिन सुरेश की बाते उसके जेहन में अटकी रही। वह सोचने लगा🤔 कहीं सुरेश बहुत आगे तो नहीं बढ़ गया? कहीं वह हमारे रिश्ते को लेकर बहुत ज्यादा सीरियस तो नहीं है? वह मन ही मन सोचा कि अब सुरेश से थोड़ी सी दूरी बनाकर वह रहेगा और शुरुआत उसने उसी दिन से कर दी। अमूमन जब भी वह महाविद्यालय से निकलता तो एक बार जरूर सुरेश को बोल देता कि हम घर जा रहे हैं लेकिन उस दिन बिना बताए ही वह चला गया और उस शाम सुरेश का कोई भी कॉल रिसीव नहीं किया और ना ही व्हाट्सएप मैसेज को देखा। सुरेश उसे लगातार फोन किये जा रहा था। सुरेश इस बात से चिंतित था कि लगता है उसे मछली पसंद नहीं आई या फिर जो गले में कांटा अटक गया था इस वजह से वह मुझसे नाराज है लेकिन जब तक बात नहीं हो जाती उसे पता कैसे चले कि किस बात की नाराजगी है। बार-बार वह मोबाइल के स्क्रीन को देख रहा था शायद अंकेश का कोई मैसेज आ जाए या कॉल आ जाए। जब बहुत रात हो गई तो एक बार पुनः कॉल किया शायद अंतिम बार यह सोचते हुए की फोन रिसीव हो जाएगा लेकिन जब फोन नहीं रिसीव हुआ तो फूट-फूट कर रोने😭 लगा।
अगले दिन वह 09:00 बजे ही कॉलेज चला गया, उस दिन वह अंकेश का पसंदीदा खाना खीर, पूरी, पनीर की सब्जी एवं कुछ मिठाइयां ले कर के गया था लेकिन उस दिन उसे अंकेश कॉलेज में दिखा ही नहीं। लंच के समय वह कई बार उसे फोन किया लेकिन फोन रिसीव नहीं हुआ। थक-हार कर उसने भी लंच नहीं किया और उसी तरफ पैक करके फिर बैग में रख लिया। उसके उपरांत वह क्लास में नहीं गया बल्कि महाविद्यालय के प्रांगण में बने बुद्धा गार्डन में भगवान बुद्ध की विशाल मूर्ति के नीचे बैठकर कुछ सोचने लगा। संभवतः उसके मन में यही ख्याल आ रहे थे...
शायद!!! बात बंद कर देना ही सबसे आसान लगा होगा तुम्हें,
कुछ होगा ही नहीं तुम्हारे पास जवाब देने के लिए।
और यहां मुझे नींद आनी बंद हो गई हैं,
बेचैन सा रहने लगा हूँ इतना तड़प रहा था लेकिन तुम्हें कोई मतलब ही नहीं।
अब तो बता दो - क्या हुआ?
हम बात कर सकते हैं... मिल सकते हैं...
बताओगे तभी तो मालूम चलेगा की आख़िरकार क्या हुआ?
तुम्हारे ही कॉल से मेरा फोन बजता था बस...
अब फोन और हम दोनों बिल्कुल खामोश हो गए हैं।
...लेकिन तुम खामोश मत रहो कुछ तो जवाब दो।
कुछ तो जवाब दो...
सुरेश की आंखें नम हो गई थी, ना चाहते हुए भी आंसुओं की धार बह निकली। अचानक से उसके फोन की घंटी बजी स्क्रीन देखकर वह खुशी से उछल उठा क्योंकि अंकेश का कॉल था। उसने जैसे ही फोन उठाया उधर से अंकेश बोला - सुरेश कहां हो? तुम्हें कब से ढूंढ रहे हैं।
सुरेश- बुद्धा गार्डन में है बोलो कहा पर आ जाएं
अंकेश - तुम वहीं रुको, हम आते हैं।
...कुछ देर उपरांत अंकेश एवं सुरेश आमने-सामने थे। सुरेश के पास तो प्रश्नों की लंबी झड़ी थी लेकिन जैसे मानसून के मौसम में बादल उमड़-घूमड़ कर आते हैं लेकिन बारिश नहीं होती ठीक उसी प्रकार सुरेश के मन में प्रश्न तो बहुत आ रहे थे लेकिन वह पूछ नहीं पा रहा था। फिर भी उसने हिम्मत जुटा करके पूछा - अंकेश, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?
अंकेश कुछ देर शांत रहा और फिर धीरे से बोला - सुरेश!!! प्लीज मुझे भूल जाओ और हमसे बात मत करना। मैंने दूसरा डिपार्टमेंट ले लिया है तुम्हारे साथ भी अब हम नहीं पढ़ सकते हैं। जानते हो तुम्हारे बारे में पूरे कॉलेज में क्या अफवाहे उड़ रही है? तुमको मेरे साथ सब देख करके यह बोलते हैं कि तुम्हें लड़के ही पसंद है। मेरी एक दोस्त है वह भी इसी वजह से हमसे बात नहीं कर रही है। सुरेश...
अंकेश कुछ और बोलता उससे पहले ही सुरेश ने उसे मना कर दिया और वहीं जमीन पर बैठकर सिसकियां😢 भरने लगा। मुझे नहीं पता अंकेश कि मुझे क्या पसंद है और क्या नहीं!!! मुझे यह भी नहीं पता कि सब मेरे बारे में क्या बोलते हैं!!! महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम क्या बोलते हो और समझते हो। यदि तुमको मुझसे दूर ही रहना है तो कोई बात नहीं, लो हम अपने मोबाइल से तुम्हारे सामने तुम्हारा नंबर डिलीट करते हैं और आज के बाद तुम्हें कभी कॉल या मैसेज से परेशान नहीं करेंगे। इतना बोल कर सुरेश वहां से उठा और अंकेश से ऐसे मुंह फेर लिया जैसे बाबा भारती ने अपने घोड़े सुल्तान को खड़क सिंह को देने के बाद मुंह फेर लिया था।
इस घटना को कई महीने बीत गए, इन दोनों की बातचीत नहीं हुई। लेकिन कभी-कभी सुरेश के मन में यह ख़्याल जरूर आते -
एक नंबर हुआ करता था मेरे फोन में,
जिसके साथ मुस्कुराहट का रिश्ता था।
उस नंबर का मेरे मोबाइल स्क्रीन पर दिखना,
मेरे दिन के बन जाने के लिए काफी होता था।
उस नंबर के साथ मेरा रिश्ता हर जगह था,
कॉल, टेक्स्ट, व्हाट्सएप हर जगह।
दिन के शुरुआत से रात के बीच तक,
वह नंबर कभी गुस्सा जताता तो कभी प्यार।
आज वह नंबर मेरे कांटेक्ट लिस्ट में नहीं है,
लेकिन वह नंबर मुझे आज भी याद है।
कभी-कभी टाइप कर लेता हूं फोन के स्क्रीन पर,
...और फिर मिटा देता हूं।
क्योंकि समय अब बहुत आगे निकल चुका है,
लेकिन वह नंबर आज भी मुझे याद है।
वह नंबर आज भी मुझे याद है।
एक दिन सुरेश ने देखा कि अंकेश उसी बुद्धा गार्डन में बैठा हुआ हैं जिसमें वह दोनों कभी घंटो बैठा करते थे। उसके चेहरे पर घनी उदासी छाई हुई थी, वह उसके पास मुस्कुराते हुए गया और बोला- मैंने क्या कहा था, लड़कियां हमेशा धोखा देती है वह कभी किसी की सच्ची दोस्त नहीं होती। तुमने मुझे बहुत रुलाया😢 है ना देखना तुम भी उसकी याद में वैसे ही रोओंगे 😭। अंकेश कुछ बोलना चाहा लेकिन सुरेश ने उसे मना कर दिया और बोला - आज मैं बस कहने आया हूँ तुम्हें सुनने नहीं। और हां इससे मिलो यह है मेरा नया दोस्त यह मुझे कभी नहीं रुलाता है और ना ही मेरे फोन को इग्नोर करता है। ...और सबसे बड़ी बात यह मेरे जिले से ही आता है। खैर यह सब मैं तुम्हें क्यों बता रहा हूं? तुम तो बहुत खुश थे उसके साथ मुझे इग्नोर करके...
बस!!! अंकेश ने एकदम से चीखते हुए कहा।
सुरेश एकदम चुप हो गया और धीरे से अपना बैग उठाया और चल दिया।
अंकेश सुरेश को जाते हुए देखता रहा और तब तक देखा जब तक कि वह आंखों से ओझल ना हो गया।
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