सोमवार, 24 अगस्त 2020

चित्र संयोजन के सिद्धांत (Principles of picture combination)

 

चित्र संयोजन के सिद्धांत, भाग -1 B.Ed.1st Year. EPC-2 Unit-2. Munger University, Munger. Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=9MByTSuicxk&t=2s

चित्र संयोजन के सिद्धांत, भाग - 2. B.Ed.1st Year. EPC-2 Unit-2. Munger University, Munger. Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=s_tq7mBmVfc&t=450s

          जब एक कलाकार चित्र के तत्व रेखा, रूप, रंग, तान, पोत एवं अंतराल को सुनियोजित एवं कलात्मक रूप में प्रयोग करके अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति चित्र रूप में करता है तो वह संयोजन कहलाता है। 

चित्र संयोजन के छह (06) सिद्धांत होते हैं-

  1. सहयोग (collaborate)
  2. सामंजस्य (consistence)
  3. संतुलन (Balance)
  4. प्रभाविता (Effectiveness)
  5. लय (Rhythm)
  6. परिप्रेक्ष्य (Perspective)
  1. सहयोग (collaborate):-  सहयोग का अर्थ होता है कि चित्र संयोजन के विभिन्न तत्वों में एकता, समानता तथा एक प्रकार का संबंध जो समस्त संयोजन को एकता के सूत्र में बांधे रखता है, सहयोग कहलाता है। सहयोग का तात्पर्य चित्र में आकर्षण को बिखराव से बचाना है। चाहे वह कोई कल्पना चित्र हो अथवा व्यक्ति चित्र। नवीन आकार अथवा उचित रंग संयोजन के द्वारा चित्र को प्रभावी बनाया जा सकता है।
  2. सामंजस्य (consistence):- सामंजस्य कला सृजन का वह सिद्धांत है जिसके माध्यम से चित्र के सभी तत्व:-  रेखा, रूप, वर्ण, तान, पोत एवं अंतराल को एक दूसरे के साथ प्रतीत हो तथा चित्र में निरर्थक विकर्षण तत्व न आने पाए।
  3. संतुलन (Balance):- संतुलन एक ऐसा सिद्धांत है जिसके माध्यम से चित्र के विरोधी तत्वों को व्यवस्थित किया जाता है। संतुलन के अंतर्गत चित्र में रेखा, रूप, वर्ण, इत्यादि। सभी को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि कोई भी तत्व अनावश्यक भारयुक्त प्रतीत ना हो। यदि ऐसा हुआ तो चित्र असंतुलित हो जाएगा।
उदाहरण,  यदि कलाकार चित्र के एक भाग में कुछ रुपाकृतियां अंकित करता है और अंतराल का दूसरा भाग रिक्त छोड़ देता है तो यह गलत होगा क्योंकि इससे अंतराल के उस भाग का भार बहुत बढ़ जाएगा जिसमें रूपों की रचना हुई है और इसके विपरीत अंतराल का रिक्त भाग शून्य  लगेगा। अतः इसे सही करने के लिए अंतराल के रिक्त भाग में भी कुछ रूपो का निर्माण करना चाहिए तभी चित्र संतुलित प्रतीत होगा।

      4. प्रभाविता (Effectiveness):- आनंद की सक्रिय अनुभूति की उपलब्धि के निर्मित सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्तु को केन्द्र मानकर उसके चारों ओर कम महत्त्व की वस्तुओं को रखना चाहिए। जिस वस्तु पर हम सर्वाधिक बल देना चाहते हैं उसे केंद्रस्थ मानकर उसके चारों ओर अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण तथा कम आकर्षक की वस्तुयें लगानी चाहिए तभी सर्वाधिक सजे हुए बिंदु की ओर ध्यान आकर्षित होगा। 
         कला में भी प्रभावित का सिद्धान्त प्रयुक्त होता है। सजावट में पूर्ण सफलता को पाने तथा उसे प्रभावशाली बनाने के लिए निम्न बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता हैं:-
  • किस वस्तु पर प्रभाविता दी जाए:-  सर्वप्रथम कलाकार को अपने मस्तिष्क में निश्चय कर लेना चाहिए कि वह जिस कलाकृति का निर्माण कर रहा हैं, उसमें किस आकृति को सबसे पहले दर्शक को दिखाना चाह रहा है।
  • वस्तु पर किस प्रकार प्रभावित दी जाए:-  इसके लिए निम्नलिखित नियम है:- 
  1. वस्तुओं को समूहबद्ध करके 
  2. विपरीत रंग योजना का प्रयोग करके 
  3. सजावट का प्रयोग करके 
  4. वस्तुओं के चारों ओर रिक्त स्थान छोड़ करके
  • वस्तुओ पर कितनी प्रभाविता दी जाए:-  जिस वस्तु पर हम प्रभाविता देना चाहते हैं उसे ही आकर्षक बनाने के प्रयत्न करने चाहिए। उदाहरण के लिए फूलदान में पुष्पों का संयोजन यदि करना हो तो हमे सादा फूलदान प्रयोग करना चाहिए।
  • वस्तुओं में प्रभावित कहां दी जाए:-  इस नियम के अंतगर्त यह देखा जाता है कि हम कोई भी कलाकृति का निर्माण धरातल के किस भाग में करते हैं। यदि समतल स्थान पर कोई वस्तु को सजानी है तो उसे मध्य में सजाना चाहिए।
       5. लय (Rhythm):- लय या प्रवाह का अर्थ चित्रभूमि पर स्वतंत्र एवं मधुर विचरण गति होता हैं। अक्षत धरातल में कोई गति नहीं होती परंतु जैसे ही इसमें कोई बिंदु प्रकट होता हैं तनाव उत्पन्न हो जाता है क्योंकि हमारी दृष्टि बिंदु पर जम जाती है। बिंदुओ की संख्या बढ़ाने से दृष्टि एक बिंदु से दुसरे दिन बिंदु तक विचरण करती हैं और गति का अनुमान होता है।

For Example, 
                        प्रेरक प्रसंग        
                                                                     !! जीवन का सच !!
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           एक दिन एक प्रोफ़ेसर अपनी क्लास में आते ही बोले, “चलिए, Surprise Test के लिए तैयार हो जाइये। सभी स्टूडेंट्स घबरा गए…कुछ किताबों के पन्ने पलटने लगे तो कुछ सर के दिए नोट्स जल्दी-जल्दी पढने लगे। “ये सब कुछ काम नहीं आएगा….”, प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले, “ मैं Question Paper आप सबके सामने रख रहा हूँ, जब सारे पेपर बँट जायें तभी आप उसे पलट कर देखिएगा।” पेपर बाँट दिए गए। “ठीक है! अब आप पेपर देख सकते हैं!”, प्रोफेसर ने निर्देश दिया। अगले ही क्षण सभी Question Paper को निहार रहे थे, पर ये क्या इसमें तो कोई प्रश्न ही नहीं था!
                 था तो सिर्फ वाइट पेपर पर एक ब्लैक स्पॉट! ये क्या सर, इसमें तो कोई Question ही नहीं है?, एक छात्र खड़ा होकर बोला। प्रोफ़ेसर बोले, “जो कुछ भी है आपके सामने है, आपको बस इसी को एक्सप्लेन करना है… और इस काम के लिए आपके पास सिर्फ 10 मिनट हैं…चलिए शुरू हो जाइए…”स्टूडेंट्स के पास कोई चारा नहीं था…वे अपने-अपने Answers लिखने लगे। समय ख़त्म हुआ, प्रोफेसर ने Answer Sheets Collect कीं और बारी-बारी से उन्हें पढने लगे। लगभग सभी ने ब्लैक स्पॉट को अपनी-अपनी तरह से समझाने की कोशिश की थी लेकिन किसी ने भी उस स्पॉट के चारों ओर मौजूद White Space के बारे में बात नहीं की थी। 

प्रोफ़ेसर गंभीर होते हुए बोले, “इस टेस्ट का आपके Academics से कोई लेना-देना नहीं है और न ही मैं इसके कोई मार्क्स देने वाला हूँ…. इस टेस्ट के पीछे मेरा एक ही मकसद है….मैं आपको जीवन का सच बताना चाहता हूँ…देखिये…इस पूरे पेपर का 99% हिस्सा सफ़ेद है, लेकिन आप में से किसी ने भी इसके बारे में नहीं लिखा और अपना 100% Answer सिर्फ उस एक चीज को Explain करने में लगा दिया जो मात्र 1% है और यही बात हमारे Life में भी देखने को मिलती है ।

शिक्षा:-
समस्याएँ, हमारे जीवन का एक छोटा सा हिस्सा होती हैं, लेकिन हम अपना पूरा ध्यान इन्ही पर लगा देते हैं…कोई दिन रात अपने Looks को लेकर परेशान रहता है तो कोई अपने करियर को लेकर चिंता में डूबा रहता है तो कोई और बस पैसों का रोना रोता रहता है। क्यों नहीं हम अपनी Blessings को Count करके खुश होते हैं… क्यों नहीं हम पेट भर खाने के लिए भगवान को थैंक्स कहते हैं…क्यों नहीं हम अपनी प्यारी सी फॅमिली के लिए शुक्रगुजार होते है।

क्यों नहीं हम लाइफ की उन 99% चीजों की तरफ ध्यान देते हैं, जो सचमुच हमारे जीवन को अच्छा बनाती हैं। तो चलिए आज से हम Life की Problems को ज़रुरत से ज्यादा Seriously लेना छोडें और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को Enjoy करना सीखें यही जीवन का सच है….तभी हम ज़िन्दगी को सही मायने में जी पायेंगे….।
 
      5. परिप्रेक्ष्य (Perspective):- परिपेक्ष्य का अर्थ होता है द्वि-आयामी (2D) चित्र तल पर वस्तुओं को  त्रि-आयामी (3D) दिखाना। द्वि-आयामी चित्रतल में गहराई का आभास और आकृतियों में घनत्व तथा क्रमिक लघुता उत्पन्न करने की विधि को परिपेक्ष्य कहते हैं। 

परिपेक्ष्य को दो भागों में विभक्त किया गया हैं:-  
  • रेखीय परिपेक्ष्य 
  • वातावरणीय परिपेक्ष्य 
  • रेखीय परिपेक्ष्य:-  रेखीय परिपेक्ष्य के आवश्यक अंग निम्नवत हैं:- 
  1. चित्र तल 
  2. स्थिर बिंदु 
  3. दृष्टि बिंदु 
  4. दृष्टि पथ
  5. अदृश्य बिंदु 
  6. क्षितिज रेखा
त्रि-आयामी आकृतियों की रचना में प्रायः उपरीयुक्त सभी नियमो का प्रयोग किया जाता हैं।
  • वातावरणीय परिपेक्ष्य:- हमारे आंखों के सामने दिखाई देने वाले दृश्य पर वायुमंडल काफी प्रभाव पड़ता है। वायुमंडल में धूल आदि के कण होने के कारण दूर की वस्तुओं के रंग धुंधले भी हो जाते हैं और उनके रंग भी परिवर्तित हो जाते हैं। जैसे:-  शीतल वातावरण में प्रत्येक वस्तु दूर जाकर नीले रंग से प्रभावित हो जाती है उसी प्रकार वर्षा ऋतु में दूर की वस्तुओं का रंग मटमैला प्रतीत होता है। तेज वर्षा में दूर की गहराई अथवा अंतराल धूमिल श्वेत हो जाते हैं। यह प्रभाव पेंसिल चित्र तथा एकरंगे एवं बहुरंगे सभी चित्रों में दिखाया जा सकता है। वातावरण का प्रभाव वस्तुओं के रंगों पर भी दिखाई पड़ता है।

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