उच्च शिक्षा संस्थान में अपनाई जाने वाली शिक्षण विधियां (Teaching Aptitude) Part-1 Video Link:-
https://www.youtube.com/watch?v=zh5Y3gort60&t=368s जिस तरीके से शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करते है, उसे शिक्षण विधि कहते हैं। उच्च शिक्षा संस्थानों में निम्नलिखित चार विधियों का उपयोग शिक्षण के लिए किया जाता है जो निम्नलिखित हैं :
- शिक्षक केंद्रित विधि (Teacher Centered Method)
- विद्यार्थी केंद्रित विधि ( Student Centered Method )
- ऑनलाइन विधि (Online Method)
- ऑफलाइन विधि (offline Method )
शिक्षक केंद्रित विधि (Teacher Centered Method)
• इसमें शिक्षक मुख्य होते हैं विद्यार्थी गौण होते है।
• यह वर्णनात्मक (Descriptive) प्रकार की होती है।
• इसमें केवल मौखिक संप्रेषण होता है।
• इसमें औपचारिकता की मात्रा अधिक होती है।
• इसमें विद्यार्थी केवल निष्क्रिय श्रोता होते हैं।
• शिक्षक सक्रिय रहता है इसमें विद्यार्थी के विचार, सृजनात्मकता आदि के लिए कोई स्थान नहीं होता हैं।
• इसमें केवल स्मृति स्तर व पुनः स्मरण पर ध्यान देते हुए विद्यार्थियों को ज्ञानात्मक स्तर का ज्ञान ही दिया जाता है।
शिक्षक केंद्रित विधि में निम्नलिखित विधियों को सम्मिलित किए जाते हैं :
- व्याख्यान विधि (Lecture Method)
- प्रदर्शन विधि (Demonstration Method)
- पाठ्यपुस्तक विधि (Textbook Method)
- ऐतिहासिक विधि (Historical Method )
व्याख्यान विधि (Lecture Method)
जब शिक्षक विषय वस्तु की सुव्यवस्थित व क्रमबद्ध प्रस्तुति छात्रों के समक्ष मौखिक रूप से रखता है तो छात्र उसे सुनकर बिना किसी तर्क के स्वीकार कर लेते हैं। इस विधि को व्याख्यान विधि (Lecture Method) कहा जाता है। व्याख्यान विधि प्राचीन भारतीय पद्धति है। इस विधि से प्राचीन काल में गुरु अपने शिष्यों को आश्रम में रखकर उच्च शिक्षा प्रदान किया करते थे। इस विधि में शिक्षक यह मानकर चलता है कि विद्यार्थी को सिखाई जा रही विषय वस्तु को विद्यार्थी समझने की योग्यता रखता है।
इस विधि के गुण
- यह उच्च कक्षाओं के लिए उपयोगी है।
- यह समय परिश्रम व धन की दृष्टि से कम खर्चीला है।
- इसके द्वारा एक समय में विद्यार्थियों के बड़े समूह को शिक्षण दिया जा सकता है।
- यह विद्यार्थी में तर्क शक्ति का विकास करता है।
इस विधि के दोष
- निम्न कक्षाओं के लिए अनुपयोगी।
- इसमे अध्येता निष्क्रिय श्रोता बने रहते है तथा यह विधि कर के सीखने के सिद्धांत की अवहेलना करता है।
- इसमे अधिक समय तक ध्यान केंद्रित करना पड़ता है किसी भी चीजों को समझने के लिए, जो सभी विद्याथी के लिए संभव नहीं होता है।
- इसमे सैद्धांतिक ज्ञान पर अधिक बल दिया जाता है व्यवहारिक ज्ञान पर नहीं।
प्रदर्शन विधि (Demonstration Method)
इस विधि में शिक्षक द्वारा पदाए जा रहे तथ्यों और सिद्धांतों को समझाने के लिए विभिन्न क्रियात्मक गतिविधिया या दृश्यात्मक चित्र प्रस्तुत किया जाता है। अर्थात जिस तथ्य पर व्याख्यान दिया जा रहा है उससे संबंधित चित्र या डायग्राम विद्यार्थियों को दिखाया जाता है और फिर व्याख्यान दिया जाता है।
इस विधि के गुण
- यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित होता है।
- क्रिया आधारित विधि। (Action based method)
- कठिन तथ्यों को समझाने में आसानी।
- प्रत्येक स्तर पर उपयोगी
- कम खचीला विधि
- समय की बचत
इस विधि के दोष
- "करके सीखने" (Learn by doing) के सिद्धांत की अवहेलना।
- विद्यार्थी केवल रुचिकर प्रदर्शन में ही सक्रिय रहते हैं।
- इसमें शिक्षक ही सभी कार्य करते हैं अतः यह शिक्षक केंद्रित विधि है।
- इसमें व्यक्तिगत भिन्नता के सिद्धांत (Principle of individual variation) की अवहेलना की जाती है यहां सभी स्तर के विद्यार्थी एक गति से विकास करते हैं।
- प्रदर्शन से पूर्व तैयारी ना होने से या उपकरण खराब हो जाने से शिक्षण कार्य प्रभावित होता है।
पाठ्यपुस्तक विधि ( Textbook Method )
यह सबसे सरल विधि है इसमें शिक्षक व विद्यार्थी दोनों का ही परिश्रम कम हो जाता है तथा कक्षा में सभी स्तर के विद्यार्थियों को एक साथ पढ़ाया जाता है। इस विधि में शिक्षण कार्य पाठ्य पुस्तकों के सहायता से की जाती है।
पाठ्यपुस्तक विधि के गुण
- विद्यार्थी में स्वाध्याय (Self-study) का विकास होता है।
- समय, श्रम व धन (Time, labor and money) की बचत होती है।
- विद्यार्थियों की स्मरण शक्ति का विकास होता है तथा वे सक्रिय रहते हैं।
इस विधि के दोष - यह मनोवैज्ञानिक व वैज्ञानिक (Psychologist and Scientist) दोनों के दृष्टिकोण से उचित नहीं मानी जाती हैं।
- विद्यार्थी में रटने की प्रवृति पनपती है।
- व्यक्तिगत भिन्नता (Individual variation) के सिद्धांत की अवहेलना होती है सभी विद्यार्थी एक ही पाठ्य पुस्तक का अध्ययन करते हैं।
- पाठ्यपुस्तक एक उद्देश्य प्राप्ति का साधन (Resources) होता है लेकिन इस विधि में शिक्षक उसे साध्य (Practicable) मान लेते हैं।
- इस विधि में केवल सैद्धांतिक ज्ञान दिया जाता है व्यवहारिक और प्रयोगात्मक नहीं।
ऐतिहासिक विधि (Historical Method)
इस विधि में प्रत्येक विषय वस्तु में कुछ ना कुछ ऐतिहासिक तथ्य जुड़े रहते हैं जिससे प्रभावी शिक्षण के लिए इस विधि का उपयोग किया जाता है यह शिक्षण का एक प्रभावी एवं मनोरंजक तरीका है जो छात्र को सदैव पसंद आता है।
साधारण भाषा में अगर कहा जाए तो इस विधि में शिक्षक तथ्यों को समझाने के लिए ऐतिहासिक घटनाओं को बताता है और उसे उस तथ्य से उसे जोड़कर समझाते हैं जिससे विद्यार्थियों को आसानी से तथ्य समझ में आ जाता है वो भी रोचकता के साथ।
विद्यार्थी केंद्रित विधि (Student Centred Method)
बाल केदित विधि में शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षण पद्धति अपनाया जाता है इस विधि में विद्यार्थियों को मुख्य माना जाता है वहीं शिक्षक गोण।
विद्यार्थी केंद्रित विधि की निम्नलिखित विशेषताएं हैं:-
- इसमें बालक को शिक्षण का केंद्र माना जाता हैं।
- इसमें बालक की आवश्यकता, रुचि, स्तर, सृजनात्मकता आदि का ध्यान रखा जाता हैं।
- इसमें बालकों को सक्रिय रखा जाता है तथा उसे स्वतंत्र पूर्वक सीखने दिया जाता है।
- इसमें शिक्षक की भूमिका अधिगम परिस्थिति को उत्पन्न करने वाले तथा मार्गदर्शक (Guide) की होती है।
- करके सीखने (Learn by doing) के सिद्धांत पर यह समस्त विधियां आधारित होती हैं।
बाल केंद्रित विधि में निमलिखित विधियों को शामिल किया जाता है: - - हयूरिस्टिक विधि (Heuristic Method)
- प्रोजेक्ट विधि (Project Method)
- प्रश्न उत्तर/प्रश्नोत्तर विधि (Question Answer Method)
- अधिन्यास विधि (Assignment Method)
- समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)
- खेल विधि (Game Method )
- प्रयोगशाला विधि (Laboratory Method)
- आगमन निगमन विधि ( Inductive & Deductive Method
हयूरिस्टिक विधि/अन्वेषण विधि (Heuristic Method)
Heuristic शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द हयूरिसको से हुई है जिसका अर्थ होता है "खोज करना"/"मैं खोज करता हूँ "। इस विधि के जन्मदाता आर्म स्ट्रांग है। इस विधि में अध्यापक विद्यार्थियों के सामने कोई समस्या प्रस्तुत करता है और छात्रों को प्रेरित करता है कि वे इस समस्या का ठीक तरीके से विश्लेषण करके स्वयं के प्रयल से समाधान ढूंढे। छात्रों को समस्या के सभी पहलू पर खुलकर विचार विमर्श करने का अवसर प्रदान किया जाता है तथा समस्या का हल खोजने हेतु पूरी तरह कार्य और विचार संबंधित स्वतंत्रता प्रदान की जाती है छात्रों को जहां परामर्श और निर्देशन की आवश्यकता होती है वहां उचित सहायता प्रदान की जाती है।
हयूरिस्टिक विधि/अन्वेषण विधि के गुण
हयूरिस्टिक विधि/अन्वेषण विधि के दोष
प्रोजेक्ट विधि (Project Method)
इस विधि में विद्यार्थी किसी समस्या के समाधान के लिए किसी उचित प्रोजेक्ट को अपने हाथ में लेते हैं तथा योजनाबद्ध तरीके से कार्य करके उसे पूरा करने का प्रयत्न करते हैं प्रोजेक्ट पर कार्य करते समय विभिन्न विषयों के जिन तथ्यों और सिद्धांतों और व्यवहारों का ज्ञान की जहां-जहां आवश्यकता होती है वह ज्ञान उसी समय विद्यार्थी को शिक्षक के द्वारा दिया जाता हैं।
प्रोजेक्ट विधि के निम्नलिखित चरण है : -
- परिस्थिति उत्पन्न करना।
- प्रोजेक्ट का चुनाव और उसके उद्देश्य को स्पष्ट करना।
- कार्यक्रम बनाना।
- योजना अनुसार कार्य करना।
- कार्य का मूल्यांकन करना।
- सारे कार्यों का लेखा-जोखा रखना।
प्रश्नोत्तर विधि (Question Answer Method)
इस विधि में विद्यार्थी के द्वारा शिक्षक को और शिक्षक के द्वारा विद्यार्थी को प्रश्न पूछना होता है और दोनों एक दूसरे को उस प्रश्न का उत्तर देते हैं। एक अध्यापक को इस विधि का प्रयोग करने के लिए निम्नलिखित बातों में दक्ष होना आवश्यक है:-
- विद्यार्थी से भलीभांति प्रश्न पूछना।
- पूछे हुए प्रश्न के विद्यार्थी को उचित जवाब देना।
- विद्यार्थियों को प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करना।
- विद्यार्थी के द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का संतोषजनक जवाब देना।
अर्थात, इस विधि में शिक्षक के द्वारा पढ़ाए गए पाठ में से सवाल पूछे जाते हैं और उसका उत्तर विद्यार्थी देते हैं अगर उत्तर गलत हो तो शिक्षक द्वारा उसे सही किया जाता है वहीं अगर विद्यार्थियों के पास कोई संशय हो तो वह शिक्षक से पूछ सकते हैं और उसका जवाब शिक्षक देते हैं।
अधिन्यास विधि (Assignment Method)
इस विधि में विद्यार्थियों को या विद्यार्थियों के समूह को कुछ विशेष प्रकार के कार्य का उत्तरदायित्व दिए जाते हैं जिसे एक निर्धारित समय अवधि में पूरा करना होता है। जो विशेष कार्य दिए जाते हैं वह उसके पाठ्यक्रम या शिक्षण अधिगम से संबंधित बातों का सैद्धांतिक या क्रियात्मक और व्यवहारत्मक ज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से दिया जाता हैं।
आगमन एवं निगमन विधि (Inductive & Deductive Method)
आगमन विधि- इस विधि में विद्यार्थी को विविध उदाहरण का अवलोकन करते हुए स्वयं निष्कर्ष निकालकर सामान्य नियम का निर्माण करना होता है।
जैसे:- हम किसी भी वस्तु को देखते हैं तो नीचे की और गिरता है इससे हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण शक्ति होती है जिससे सभी वस्तु को वह अपनी ओर खींचती है। यहां पर हम लोग विशिष्ट से सामान्य की और चलते हैं।
निगमन विधि- यह आगमन विधि के विपरीत होती है इस विधि में विद्यार्थी के समक्ष सर्वप्रथम नियम बताया जाता है तथा उसके पक्षात नियम की सत्यता की जांच के लिए उदाहरणों द्वारा पुष्टि की जाती है।
ऑफलाइन विधि/ऑनलाइन विधि (Online Method/Offline Method)
वर्तमान समय में शिक्षा की दो प्रणालियां प्रचलित है:- जिसमें ऑफलाइन प्रणाली परंपरागत शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत आते हैं जहाँ कक्षा कार्यक्रम, कोचिंग, सेमिनार इत्यादि के माध्यम से शिक्षा दी जाती है।
वही गैर परंपरागत शिक्षा प्रणाली में ऑनलाइन प्रणाली को शामिल किया जाता है। ऑनलाइन प्रणाली में इंटरनेट आधारित विभिन्न प्रकार की सेवाएं को शामित की जाती है जिसमें सोशल मीडिया साइट की सेवा में सबसे ज्यादा विकसित माना जाता है पहले शिक्षा का माध्यम सिर्फ ऑफलाइन हुआ करता था लेकिन सूचना एवं तकनीकी के विकास के साथ अब इसमें ऑनलाइन पद्धति को भी शामिल कर लिया गया है ऑनलाइन शिक्षा पद्धति के विकास में सबसे बड़ी भूमिका इंटरनेट का रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में जब से इंटरनेट का उपयोग आरंभ हुआ तब से ज्ञान एवं कौशल में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है आज छात्रों एवं अन्य सभी अधिगमकर्ताओं के सामने या विकल्प उपलब्ध होता है कि वह ऑफलाइन बनाम ऑनलाइन पद्धति में से किसी भी पद्धति से शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं।
ऑनलाइन पद्धति के स्रोत : (Sources)
इंटरनेट (Internet)
ई-मेल (E-mail)
व्हाट्सएप (WhatsApp)
एसएमएस (SMS)
एप्स (Apps)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें