रविवार, 2 अगस्त 2020

रक्षाबंधन और मैं

रक्षाबंधन और मैं


बाजारों में लग रहा था, 
आज तक जिस का मोल। 
वह कलाई में क्या बंधी, 
अब तो वह हो गई अनमोल।।
        
             जी हां!!! हम आज बात कर रहे हैं राखी की। एक ऐसा त्यौहार जिसमें भाई-बहन की पवित्रता, उनका स्नेह, असीम प्यार छुपा होता है। आज रक्षाबंधन के दिन मैं अपनी बहन से दूर तो हूं लेकिन केवल तन से, मन से नहीं। मन तो आज भी वही घर पर बैठा हुआ है। कैसे?  बचपन में नहा-धोकर नये कपड़े पहनकर राखी बंधवाने हम बैठते थे। सालभर हम अपनी बहन से छोटी-छोटी बातों के लिए  झगड़ते रहते क्योंकि हम दोनों एक साथ ही विद्यालय जाते और आते। उस समय हम तीसरी कक्षा में थे और मेरी बहन पहली कक्षा में।  मुझे आज भी याद है जब विद्यालय के लिए निकलना होता था। जब तक एक-एक रुपए हम दोनों के हाथ में नहीं आ जाता तब-तक विद्यालय के लिए प्रस्थान नहीं करते थे।
             राखी के दिन परिस्थिति कुछ और रहती ₹10 पापा हमें देते और कहते कि इसे बहन को देना। मैं हमेशा पापा को कहता था कि ₹10 क्यों दें? और कम नहीं दे सकते हैं?  और हम ही क्यों दें? वह क्यों नहीं देगी? ऐसे ही ना जाने कई सवाल थे जो हम मासूमियत के साथ पापा से पूछा करते और पापा मुस्कुरा कर सभी  सवालों का जवाब देते।  पापा से भले ही मैं सब बातों को नहीं कहता लेकिन मां के साथ अपनी मन की सभी बातों को साझा (Share) करता और कहता कि मुझे भी पैसे चाहिए, हम बहन को केवल क्यों दे? मां भी समझाते हुए कहती कि बाबू आज के दिन बड़े भाई ही छोटी बहन को पैसे देते हैं।  तब मैं जिद करके उनसे भी ₹10 प्राप्त कर लेता। क्योंकि कभी भी मुझे  असमानता अच्छी नहीं लगी है। यानी जितना मुझे मिला है मेरी बहन को भी मिलना चाहिए।
                  मैट्रिक की तैयारी करने के लिए मैं छपरा में रहने लगा यूं कहिए की तभी से हम अपनी बहन से दूर हुए और उसके बाद पटना, वाराणसी का सफर रहा। इसी दरम्यान मैंने अपना +2, UG और PG पूरा किया। इन 9 सालों में मैं शायद ही कभी घर पर रहा और स्वयं से ही राखी खरीद कर अपनी कलाई पर बांध लेता। प्रत्येक साल मैं अपनी बहन से कहता था कि अगली बार जरूर मैं घर पर आऊंगा क्योंकि इस बार असाइनमेंट तैयार करना है या फिर फाइनल परीक्षा की तैयारी करनी है। वह भी ऐसे बहानो से तंग आ गई। एक दिन उसने भी बोल दिया कि आपको तो कभी समय ही नहीं मिलता। तब मैंने कहा- जब मेरी पढ़ाई पूरी हो जाएगी और जॉब करने लगूंगा तब प्रत्येक साल में तुम्हारे पास आऊंगा और मैं इस प्रण को निभा भी रहा था लेकिन इस बार 2020 में कोरोनावायरस की महामारी, बिहार में लॉकडाउन, ऑनलाइन क्लासेस, मेरे कर्मभूमि से जन्मभूमि की दूरी लगभग 300 किलोमीटर होने की वजह से इस बार भी मैं राखी बंधवाने अपने घर नहीं जा पाया। आज मेरी कलाई सुनी तो नहीं है लेकिन बहन का वो प्यार भी इसमें नहीं है।

और अंत में मैं कहना चाहूंगा........
              
ये कोई साधारण सा धागा नहीं, 
ये तो एक विश्वास की डोर है। 
कोई तोड़ सके इसको, 
किसी में नहीं इतना जोर है।

कौन कहता है कि वक्त के साथ अंत हो जाता है सभी रिश्तो का,  -2
यह तो वह रिश्ता है जिसका ना कोई ओर है और ना कोई छोर है।

               आप सभी को मेरा यह आलेख कैसा लगा Comment  में जरूर बताइएगा यदि आप की भी कोई राखी से संबंधित यादें हैं तो आप मेरे साथ साझा कर सकते हैं। 

धन्यवाद

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