नमस्कार 🙏आप सभी का हमारे Blog पर स्वागत है। आज आप सभी के बीच प्रस्तुत हैं “डायरी के पन्नों से” का चौथा अंश। इस श्रृंखला को पढ़कर आप मेरे और मेरे कार्य क्षेत्र को और भी बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। जैसा की आप सभी को ज्ञात है कि मैं अपनी आत्मकथा लिख रहा हूं। प्रत्येक रविवार को उसी आत्मकथा के छोटे-छोटे अंश को मैं आप सभी के बीच प्रस्तुत करूंगा और मुझे आपकी प्रतिक्रिया (Comment) का इंतजार रहेगा ताकि मैं इसे और बेहतर तरीके से आप सभी के बीच प्रस्तुत करता रहूं।
तो चलिए प्रस्तुत है, “डायरी के पन्नों से” का चौथा अंश
हम पिछले रविवार को "डायरी के पन्नों से" में बात किए थे पटना में आने और रूम की व्यवस्था करने के संबंध में। आगे की कहानी अब हम अपने कॉलेज से शुरू करते हैं। प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद एवं नामांकन के पाश्चात मै उस दिन प्रथम बार महाविद्यालय में प्रवेश किया। मेरे हाथ में एक कॉपी और एक स्केच बुक था। चूंकि मैं लगभग 2 महीने विलम्ब से कॉलेज गया था इसी वजह से महाविद्यालय में जो रैंगिग होता था वह लगभग कम हो चुका था फिर भी थोड़ा बहुत चल रहा था। महाविद्यालय परिसर में मुझे ज्ञात नहीं था कि फर्स्ट इयर (1st Year) का क्लास कहां चलता है इसीलिए वहां कार्यरत एक कर्मचारी से अपने क्लास के बारे में पूछा और सीधे अपने क्लास में चला गया। क्लास में 30 से 40 विद्यार्थी थे और एक महाविद्यालय के ही सीनियर छात्र उन्हें कुछ बता रहे थे। उनका नाम पुरुषोत्तम था जो कि मुझे बाद में ज्ञात हुआ। उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और बोले कि:-
कहां आए हो?
तुम्हें पता नहीं महाविद्यालय के क्लास में कैसे प्रवेश करना है?
मैंने कहा- नहीं।
तब उन्होंने कहा- जाओ बाहर गेट पर जाओ और वहां से फिर अनुमती लो अंदर प्रवेश करने के लिए। मैंने वैसा ही किया गेट के पास गया और बोला कि-
क्या मैं अंदर आ सकता हूं?
तब वह बोले कि ठीक है। आओ। जैसे ही मैं अंदर प्रवेश किया उनका पहला प्रश्न था।
अच्छा यह बताओ अपने महाविद्यालय का नाम क्या है?
मैंने कहा- कला एवं शिल्प महाविद्यालय और अंग्रेजी में Arts & Crafts College
वह दो-तीन बार मुझसे यही प्रश्न पूछते रहें और बार-बार बोलते कि सही बोल रहे हो।
मैंने कहा- हाँ सही बोल रहा हूं।
तब वह फिर बोले ठीक है। जाओ!!! महाविद्यालय के मुख्य प्रवेश द्वार पर महाविद्यालय का नाम लिखा हुआ है उसे देख कर आओ।
मैं क्लास से बाहर निकला और सोचने लगा की नाम तो मैं सही ही बता रहा था लेकिन फिर भी वह क्यों कह रहे हैं कि गलत है। क्योंकि मुझे अच्छी तरह से याद हैं कि मेरे महाविद्यालय का नाम कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना है और इसी को मैंने अंग्रेजी भी कर दिया- Arts & Crafts College मैं महाविद्यालय के मुख्य प्रवेश द्वार के पास जा ही रहा था कि अचानक से मेरी नजर महाविद्यालय के सूचनापट्ट पर पड़ी। जो कि मेरे क्लास के बगल में स्थित तक्षशिला आर्ट गैलरी के पास लगा हुआ था जहां पर महाविद्यालय का नाम हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखा हुआ था। हिंदी नाम पढ़ते ही बहुत खुशी हुई जो मैं नाम बता रहा था वही नाम महाविद्यालय का है। कला एवं शिल्प महाविद्यालय। फिर मुझे लगा कि भैया क्यों बोल रहे थे कि गलत है। कहीं उनको भी नाम तो नहीं पता। फिर मैंने अंग्रेजी नाम देखा तो लगा कि गलती कहां हुई थी क्योंकि महाविद्यालय का नाम अंग्रेजी में College of Arts & Crafts है। मैंने तुरंत उस नाम को याद किया और वापस क्लास रूम की तरफ बढ़ चला। कक्षा-कक्ष के द्वार पर पहुंचते ही सबसे पहले मैंने फिर से अंदर आने की अनुमति मांगी क्योंकि कुछ देर पहले इसी के लिए डांट सुन चुका था। मुझे देखते ही वह बोले-
अरे!!! इतनी जल्दी आ गया, गया नहीं था क्या?
मैंने कहां- भैया मैं नाम देख कर आ गया।
तब वह बोले कि ठीक है बताओ।
मैंने बताया- College of Arts & Crafts, Patna. और हिंदी में कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना।
अंग्रेजी नाम पहले इसलिए बताया क्योंकि तुरंत याद कर के गया था। अगर कहीं कोई कमी रह जाती तो फिर से वह मुझे दोबारा भेजते। उन्हें इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि मैं इतनी जल्दी मुख्य प्रवेश द्वार से नाम याद करके कैसे आ गया। अंत में वह मुझसे पूछ भी दिए कि तुम इतनी जल्दी गेट से कैसे वापस आ गए मैंने कहां- मैं तो मुख्य प्रवेश द्वार के पास गया ही नहीं था।
अब तो उनका चौंकना लाजिमी था। वह बोले कि-
मैंने तुम्हें बोला था कि महाविद्यालय के मुख्य प्रवेश द्वार पर जाकर के नाम देख कर के आना है। तुम किसी से पूछ लिया क्या?
और फिर उन्होंने क्लास की तरह मुख करते हुए सभी विद्यार्थियों से पूछे कि इसे महाविद्यालय का नाम किसने बता दिया? अब उसको सजा मिलेगी, जो बताया होगा।
पूरा क्लास मुझे देखने लगा क्योंकि उस दिन मेरा पहला दिन था और ना ही मैं किसी को पहचानता था और ना ही कोई मुझे। लेकिन इस घटना से एक फायदा भी यह हुआ कि उस दिन सभी मुझे पहचान गए क्योंकि मैं वर्ग में प्रवेश करते ही सभी को असहज जो कर दिया था। सभी एक दूसरे को देख रहे थे कि इसे तो कोई पहचानता तो है नहीं फिर बताया कौन होगा? फिर मैंने सभी की शंका का निवारण किया और बताया कि-
नहीं, मैंने किसी से पूछा और ना ही, मुझे किसी ने बताया और यह बात भी सत्य है कि मैं महाविद्यालय के प्रवेश द्वार पर भी नहीं गया था।
मैंने महाविद्यालय में निर्मित तक्षशिला आर्ट गैलरी के बगल में लगे सूचनापट्ट पर कॉलेज के नाम को देखा और वहीं से पुनः वापस आ गया क्योंकि तक्षशिला आर्ट गैलरी मेरे वर्ग के ठीक बगल में था और उसमें समय-समय पर उसमें चित्रकला एवं अन्य कलाओं की प्रदर्शनी लगती थी मैंने सभी से कहा कि- मैंने महाविद्यालय का नाम वहीं से देखा है। तब पुरुषोत्तम भैया बोले कि-
ठीक है, जाओ। अपनी सीट पर बैठो।
और इस तरह कला महाविद्यालय में मेरे पहले दिन की शुरुआत हुई। मैं बाकी महाविद्यालय की तरफ सोच रहा था कि अब क्लास शुरू होगा, प्रोफेसर आएंगे और हमें पेंटिंग सिखाएंगे, मैं उन्हें बनाऊंगा। ऐसे ही तमाम तरह के सवाल मेरे मन में घूम रहे थे और मैं क्लास रूम से कहीं दूर चला गया। कला की हसीन दुनियां में। इस दरम्यान मेरे वर्ग में क्या-क्या घटनाएं घटित हो रही थी मैं उससे एकदम अंजान रहा। ऐसे भी महाविद्यालय में क्लासेस 2 महीने पहले से ही शुरू हो चुका था और लगभग सभी छात्र महाविद्यालय के नियम कानून को भी समझ चुके थे केवल मैं ही था जो इन सभी नियमों से अंजान था। तभी अचानक से मेरे बगल में खड़े छात्र ने मुझसे बोला-
अरे!!! तुम अपनी सीट पर बैठे हुए हो जल्दी खड़े हो जाओ।
मैंने अपने आसपास देखा तो पाया कि सभी छात्र एवं छात्राएं अपनी-अपनी सीटों के पास खड़े हैं मैंने सोचा कि इन्हें अचानक से क्या हो गया। मेरे साथ के लड़के ने फिर मुझसे बोला-
अरे मैंने बोला ना खड़े हो जाओ वर्ग में सीनियर भैया लोग आए हुए हैं।
मैं अपनी सीट के पास जैसे ही खड़ा हुआ एक भैया की नजर मेरे उपर पर गई और वह मुझे लगभग डांटते हुए बोले कि-
तुम्हें महाविद्यालय का नियम नहीं पता है!!! सीनियरों का इज्जत करना तुम्हें नहीं आता है!!! तुम आना बुड्ढा गार्डन।😠
मैंने कहां- ठीक है भैया मैं आ जाऊंगा।
मेरे इतना बोलते ही मेरे सभी साथी मेरे तरफ ऐसे देखने लगे कि मैंने क्या गलत बोल दिया। मेरे साथ का लड़का बोला-
अरे तुमने यह क्या बोल दिया। मैंने कहा कि क्या बोला- उन्होंने कहा कि बुद्धा गार्डन आना। मैंने कहा- ठीक है आ जाऊंगा।
तभी मेरे वर्ग की एक लड़की जिसका नाम अनीमा था और वह मेरे वर्ग की मॉनिटर भी थी उसने बोली- भैया यह नया लड़का है। आज महाविद्यालय में पहली बार आया है। इसको पता नहीं था, इसे माफ कर दीजिए। वह बोलें की ठीक है। इसको बता देना और फिर सभी को बैठने के लिए कहें। उसके बाद उन्होंने कहा आज हम Human Live Sketch बनाना सीखेंगे और वह मेरे वर्ग के एक लड़के को बुलाए और सामने बैठा दिया हम सबको बोले तुम सभी इसको बनाओ। सभी ने बनाना शुरू किया लगभग 30 मिनट तक हम सभी ने sketch किया और उसके बाद वह सभी के स्केच बुक देखें एवं जहां जो कमी थी उसको बताएं। मैं सोच रहा था कि कैसा कॉलेज है? यहां कोई शिक्षक पढ़ाने आते ही नहीं है क्या? केवल सीनियर ही आ रहे हैं। उनके जाते ही सभी विद्यार्थी मेरे पास आए और महाविद्यालय में सीनियरो के द्वारा जारी सभी नियमों से मुझे अवगत कराएं जो निम्न हैं-
पहला नियम यह था कि महाविद्यालय में प्रवेश करते ही कहीं भी कोई सीनियर दिखे तो उन्हें नमस्ते भैया एवं नमस्ते दीदी बोलना है और महाविद्यालय में हमेशा शांत, सौम्य बन कर रहना है। यह सब बातें चल ही रही थी कि एक लड़का हमलोगों के रूम में आया उन्हें देखते ही सभी खड़े हो गए और नमस्ते भैया, गुड मॉर्निंग भैया सभी कहने लगे। हम समझ गए थे कि यह भी कोई सीनियर भैया ही हैं। उन्होंने आते ही कहां- सभी फर्स्ट ईयर (1st Year) को बुद्धा गार्डन में आना है। सभी विद्यार्थी डरते-डरते बुड्ढा गार्डन की ओर चल दिये। सिर्फ एक ही विद्यार्थी उन सभी में खुश था और वह था- मैं। क्योंकि मुझे बुद्धा गार्डन के बारे में ज्ञात नहीं था मैं तो बस यह सोचकर हर्षित हो रहा था कि वहां बुद्धा गार्डन मतलब वहां पर भगवान बुद्ध की बहुत सारी प्रतिमाएं होगी। और मेरा अनुमान बिल्कुल सही था वहां पर चारों तरफ भगवान बुद्ध की बहुत सारी प्रतिमाओं का अंकन हुआ था और गार्डन के बीच में भगवान बुध्द का शीश जो कि सोई हुई मुद्रा में बनी थी उसे एक चबूतरे के ऊपर रखा गया था उसके चारों तरफ रिलीफ वर्क में जातक कथाओं का अंकन भी किया गया था वहीं पर सभी सीनियर छात्र एवं छात्राएं यानी की भैया एवं दीदी बैठे हुए थे।
हम सभी ने उन लोगों को नमस्ते किया। चूंकि वर्ग में बुद्धा गार्डन की शुरुआत हमसे ही हुई थी, इसीलिए वहां भी सबसे पहले मुझे ही आगे बुलाया गया और शुरुआत भी मुझसे ही हुई और मुझे ज्ञात भी हो गया कि सभी विद्यार्थी बुद्धा गार्डन आने से क्यों डरते थे। उसके बाद फिर से कुछ नियम बताया गया जैसे:- महाविद्यालय में आते वक्त फॉर्मल ड्रेस में आना है। पैरों में जूता होना ही चाहिए और महाविद्यालय द्वारा प्रदत आई कार्ड (परिचय-पत्र) सभी के गले में होना चाहिए। क्योंकि उस दिन समय अधिक हो गया था इसलिए पुनः सभी को नमस्ते एवं गुड इवनिंग बोल कर हम सभी वहाँ से अपने क्लास में आ गए इस तरह कला एवं शिल्प महाविद्यालय पटना में मेरे पहले दिन की शुरुआत हुई। मुझे पटना आर्ट कॉलेज से बेली रोड होते हुए अपने रूम जाना होता था और शाम के समय में बेली रोड में जाम की समस्या कुछ ज्यादा ही रहती थी क्योंकि फ्लाईओवर उस समय बेली रोड में बन रहा था। इसी वजह से मुझे रूम पहुंचते-पहुंचते 1 से 2 घंटे लग जाते थे और रूम जाकर खाना भी बनाना रहता था जिस वजह से मुझे पढ़ाई एवं स्केच का समय बिल्कुल भी नहीं मिल पाता था। सुबह में महाविद्यालय के लिए मैं रूम से 9:00 बजे निकलता और शाम में 5:00 बजे महाविद्यालय से रूम के लिए। रूम पर पहुंचते-पहुंचते मुझे 7:00 से 8:00 बज जाते थे। और यह दिनचर्या जब तक मैं बेली रोड में रहा तब तक चलती रही।
Such me bhaiya bahut jyada interesting story hai . Mai v ye padhne ke bad apne 1st year ki duniya me chala gya.
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