बुधवार, 9 सितंबर 2020

कला शिक्षण द्वारा छात्रों में दक्षताओं का विकास


कला शिक्षण द्वारा छात्रों में दक्षताओं का विकास, भाग-1. D.El.Ed.1st Year F-11, Unit-1. Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=1A0aqm0oY3Q

 प्रश्न.- कला शिक्षण द्वारा छात्रों में कौन-कौन सी दक्षताओं का विकास होता है? वर्णन कीजिए । 

उत्तर:- कला शिक्षण द्वारा छात्रों में निम्न दक्षताओं का विकास होता है :- 

  • 1. छात्रों में नेतृत्व की भावना एवं आगे बढ़कर कार्य करने की आदत का विकास :- आगे बढ़कर कार्य करने का मतलब है कि छात्र किसी कठिन व चुनौतीपूर्ण कार्य को करने के लिए सदैव तत्पर रहें न कि वह दूसरों के पीछे छिपें । कला शिक्षण में छात्रों को अनेक ऐसे अवसर प्राप्त होते हैं , जिनके द्वारा छात्र अपने मन में प्रत्येक कार्य को करने की चेष्टा विकसित कर सकते हैं। 
  • 2. छात्रों में जिम्मेदारी का अहसास :- छात्र एक-दूसरे के साथ ताल-मेल बिठाकर कार्य करते हैं। इससे उनमें अपने कार्य को समय पर पूरा करने की आदत व पूर्ण मनोयोग से कार्य करने की भावना का विकास होगा। उदाहरण के तौर पर शास्त्रीय नृत्य तबले की तान पर प्रस्तुत करते समय नृत्य करने वाले छात्र को अपना ध्यान तबले की तान पर केन्द्रित करना होगा एवं तबलावादक की निरन्तर अभ्यास द्वारा किसी भी चूक की सम्भावनाओं को नियन्त्रित करना होगा। इससे छात्र अपने काम के प्रति जिम्मेदार बन सकेंगे।
  • 3. छात्रों में समझ व कौशलों का विकास :- प्रत्येक कार्य को करने से पूर्व छात्रों में उस कार्य के सिद्धान्त व कौशलों से अवगत होना आवश्यक है, तभी उस कार्य को एक यथार्थ रूप दे पायेंगे। उदाहरण के तौर पर नाटक में किसी पात्र को प्रस्तुत करने से पूर्व छात्र के लिए उस पात्र को समझना अत्यन्त आवश्यक होता है। 
  • 4. लाभप्रद प्रतिस्पर्धा की भावना का विकास :- यह प्रत्येक छात्र को उत्साहित करने के लिए अत्यन्त आवश्यक है। छात्रों को दूसरों के प्रयत्नों को देखकर अपने प्रयासों को बेहतर बनाने के रूप में कार्य करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। 
  • 5. राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास :- छात्र राष्ट्र कल्याण के कार्यों में तभी लग सकेंगे, जब वह अपने राष्ट्र से जुड़ सकेंगे तथा भावी भविष्य में खूबसूरती से अपना दायित्व निभा सकेंगे। इसलिए जब छात्र कला से जुड़े किसी कार्य का हिस्सा बनते हैं, तो वह एक-दूसरे के धर्म, संस्कृति को अधिक बेहतर रूप से समझ पाते हैं। इससे उनमें सबके साथ प्यार व एकता से रहने की भावना का विकास होता है। 
  • 6. छात्रों में प्रशंसा करने की भावना का विकास :- छात्रों में दूसरों की प्रशंसा करने की भावना का विकास करना भी अत्यन्त आवश्यक है, जिससे उनमें नफरत, जलन आदि भावों को जगह न मिल सके। इससे वह एक-दूसरे से कुछ-न-कुछ नया भी सीख सकेंगे। एक-दूसरे के अच्छे प्रदर्शन को देखकर छात्र और अधिक मेहनत एवं लगन से कार्य करने के लिए भी प्रोत्साहित होंगे। 
  • 7. छात्रों में सृजनशीलता का विकास :- प्रत्येक कार्य में कुछ नवीनता व सृजनशीलता लाने के प्रवृत्ति का विकास होना अत्यन्त आवश्यक है। इस उद्देश्य को प्राप्ति के लिए छात्र पूर्ण लगन व एकाग्रता से कार्य करेंगे। वह बिना किसी दबाव के स्वछन्द रूप से कार्य करने में सक्षम बन सकेंगे तथा अपने कार्यों में नवीनता लाकर दूसरों के लिए भी मिसाल कायम करेंगे। 
  • 8. छात्रों में अंतर्राष्ट्रीय समझ का विकास :- छात्र जब विश्व की किसी समस्या आदि को अपनी कला के द्वारा व्यक्त करते हैं, चाहे वह आतंकवाद पर एक लघु नाटिका हो या प्रदूषण से जुड़ी चित्रकला तो उनको सोच का दायरा विस्तृत होता है। वह अधिक जागरूक होकर कार्य करते हैं। 
  • 9. छात्रों में नैतिक मूल्यों का विकास :- कला शिक्षण की विभिन्न क्रियाओं में दक्षता अर्जित करने के लिए छात्रों में अनेक मूल्यों व जीवन कौशलों का विकास आवश्यक है। जैसे- धैर्य, लगन, दूसरों का सम्मान करना, समर्पण, नियमितता, भाईचार को भावना, ईमनादारी, एकता, करुणा, शान्ति, सादा जीवन एवं उच्च विचार आदि।
  • 10. छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का विकास :- जीवन की विभिन्न परिस्थितयों का सामना करने के लिए छात्रों में बाल्यकाल से आत्मविश्वासी बनाना अत्यन्त आवश्यक है। कला शिक्षण को विभिन्न क्रियाओं द्वारा छात्रों में आत्मविश्वास का विकास अत्यन्त सहज रूप से सम्भव है। उदाहरण के तौर पर जब छात्र  किसी नाटक में भाग लेते हैं तो वह अपने डर व झिझक आदि से ऊपर उठकर अपने पात्र पर ध्यान केन्द्रित करते हुए बड़े जन-समूह का सामना करते हैं। इस प्रकार धीरे-धीरे वह आत्मविश्वासी बन जाते हैं। 
  • 11. स्वच्छन्द रूप से आत्म अभिव्यक्ति की खूबी का विकास :- आत्म अभिव्यक्ति का अर्थ है कि दूसरों को अपने हाव-भाव, संवेगों, भावनाओं आदि से परिचित कराना। यदि छात्र अपनी बात व अपने विभिन्न भावों, जैसे- गुस्सा, उदासी, उत्साह, खुशी आदि को व्यक्त नहीं कर पायेंगे तो वह अपने आप में सिमट जायेंगे तथा विपरीत भावों को व्यक्त न करने पर वह कुंठित मनोवृत्ति से ग्रस्त समस्यात्मक छात्रों की श्रेणी में आ जायेंगे। कला शिक्षण के अलग-अलग सृजनात्मक रूप प्रत्येक छात्र को उसकी रुचि के अनुरूप कार्य करते हुए अपने भावों को व्यक्त करने के भरपूर अवसर प्रदान करते हैं। इससे छात्र अधिक प्रसन्नचित रहकर सामाजिक बन सकेंगे। 
  • 12. सहयोग की भावना का विकास :- सहयोग जीवन के प्रत्येक स्तर पर आवश्यक है। यदि आपस में सहयोग व समन्वय की भावना हो तो कार्य शीघ्रता से बेहतर रूप में किया जा सकता है कला शिक्षण के द्वारा छात्र मिलजुल कर विभिन्न कार्यों को पूरा करते हैं। उदाहरण के तौर पर एक नृत्य में यदि 8-10 छात्र हैं तो कुछ छात्र तो उस नृत्य के चरण लय-ताल के अनुरूप जल्दी सीख जायेंगे। वह अन्य छात्रों की भी इन्हें सीखने में सहायता करेंगे न कि उनकी हंसी उड़ाकर उन्हें हतोत्साहित करेंगे। 
  • 13. एकता की भावना का विकास :- यहाँ एकता को भावना से तात्पर्य है कि एक-दूसरे के कार्य को पूर्ण रूप प्रदान करने में अहमियत समझना। उदाहरण के तौर पर यदि छात्रों ने मिलजुल कर कुछ पोस्टर बनाए हैं तो चित्रांकन करने वाले एवं रंग करने वाले छात्र दोनों का काम महत्त्वपूर्ण है और इस तरह कार्य को पूर्ण करने के लिए उनमें एकता अपने आप विकसित हो जायेगी। 
  • 14. आत्म-अनुशासन :- आत्म अनुशासन सफल जीवन की बुनियाद है। यह कला के सृजनशील रूपों द्वारा सम्भव हैं। उदाहरण के तौर पर जब छात्र किसी वस्तु का चित्र (Object drawing) बनाते हैं, तो उन्हें अपने आपको अनुशासित कर अन्य वस्तुओं पर ध्यान न देते हुए पूर्ण एकाग्रता से उस वस्तु का चित्रांकन करना होता है। 
  • 15. छात्रों में सांस्कृतिक मूल्यों को विकसित करना :- हमारी संस्कृति हमारी धरोहर है। यह हमें जीवन जीने की सही राह दिखलाती है। कला शिक्षण की विभिन्न गतिविधियों द्वारा छात्रों को उनके समाज एवं संस्कृति से जोड़ा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर प्रदर्शन कला में श्रवण कुमार की पात्रता निभाते हुए छात्र इस बात को भली - भाँति समझ जायेंगे कि हमारे लिए हमारे माता-पिता सर्वोपरि हैं एवं हमें उनके प्रति अपने कर्तव्य से कभी विमुख नहीं होना चाहिए।

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