रविवार, 13 सितंबर 2020

विद्यालय संस्कृति के संदर्भ में शिक्षको की भूमिका एवं चुनौतीयां


विद्यालय संस्कृति के संदर्भ में शिक्षको की भूमिका एवं चुनौतीयां D.El.Ed.2nd Year. S-4, Unit-2. Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=D_jOF8RprXI

 विद्यालय संस्कृति:-  भारतीय संस्कृति हजारों वर्षों के विकास का फल है। यह सदैव विकासशील रही है विश्व के विभिन्न भागों से अनेक जनसमूह भारत में आकर बसे और अपने साथ अपनी संस्कृति परंपराएं भी लेकर आएं। भारतीय संस्कृति के विकास में विदेशी आक्रमणकारियों का भी योगदान रहा है। भारत में एक ऐसी मिली-जुली संस्कृति का विकास हुआ जिसमें अनेक संस्कृतियों का वैभव, श्रेष्ठता तथा तथा विविधता  साकार हो गई है। इसीलिए हम भारतीय संस्कृति को एक समाजिक संस्कृति कहते हैं। वास्तव में संस्कृति का अमूर्त संकल्पना है।जिसका मूर्त रूप मनुष्य के आचार-विचार, रीति-रिवाजों, परंपराओं वेशभूषा एवं रहन-सहन में मूर्तमान होता है।शिक्षण के क्रम में सामाजिक, संस्कृतिक तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। इनके संदर्भ में शिक्षक भूमिका एवं चुनौती पर हम चर्चा करते हैं- आज शिक्षकों की भूमिका में भी काफी बदलाव आया है। पहले जहां शिक्षक को ज्ञान दाता माना जाता था वहीं आज इसकी भूमिका सुगमकर्ता की हो गई है। यह माना जा रहा है कि शिक्षक किसी को सिखा नहीं सकते बल्कि वे वैसी परिस्थितियों के सृजनकर्ता होते हैं जिसमें बच्चा विभिन्न गतिविधियों में भाग लेकर अपने ज्ञान का सृजन करता है। शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षा शिक्षक केंद्रित न होकर बाल केंद्रित हो गई है। 

              शिक्षक निर्देशित करें बच्चों को ज्यादा से ज्यादा सोचने समझने बोलने एवं क्रिया करने का अवसर दिया जा रहा है इससे शिक्षकों की भूमिका में बड़ा बदलाव आया है परीक्षा का स्थान अब सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE- Continuous and Comprehensive Evaluation.) में ले लिया है। परीक्षा तथा सतत व्यापक मूल्यांकन को शिक्षण प्रक्रिया का अभिन्न अंग मानकर उसके अनुसार अपने मानस के निर्माण के लिए शिक्षकों की भूमिका में काफी बदलाव आया है। आज का युग ज्ञान के विस्फोट का युग है। शिक्षा के क्षेत्र में हमेशा नवीन विचारधाराओं का उदय हो रहा है जिसके कारण पूरी शिक्षण प्रक्रिया में बदलाव आया है इन बदलाव को समझकर शिक्षक स्वयं में आवश्यक कुशलताएं विकसित करने की अनिवार्यता समझ रहे हैं और उनकी भूमिका में बदलाव आ रहा है। कई बार शिक्षक अपनी समस्याओं का हल नहीं कर पाते इन समस्याओं के कुछ हद तक हल बताने में शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की भूमिका होती है। जिसके मद्देनजर शिक्षकों की भूमिका में भी बदलाव आ रहे हैं। अनुशासन एवं स्वाधीनता के मध्य समन्वय ने भी शिक्षकों की भूमिका को बदला है विद्यार्थियों को दंड देने की प्रथा में भी बदलाव आया है। 

एक सफल शिक्षक निम्नलिखित कार्यों को संपादित करते हैं:-

  1. एक सफल अध्यापक छात्र प्रेमी होता है तथा विद्यार्थियों के विकास में रुचि लेकर कठिनाइयों को हल करने में तत्पर रहता है छात्रों के हित चिंतक अध्यापक लोकप्रिय होते हैं। 
  2. अध्यापक शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ तथा चरित्रवान होना चाहिए उसमें नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता भी होनी चाहिए।
  3. अध्यापक का व्यक्तित्व प्रभावशाली होना चाहिए अर्थात वह अपने संपर्क में आने वाले छात्रों एवं अन्य व्यक्तियों का आदर और स्नेह  प्राप्त कर सकने में सक्षम हो। 
  4. अध्यापक का समाज के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण होना चाहिए। समाज के कार्यक्रमों में अध्यापकों को समुचित सहयोग प्रदान करना चाहिए। 
  5. उसे मनोविज्ञान का व्यवहारिक ज्ञान आवश्यक है जिससे कि वह बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओ तथा रूचियो, अभिरुचियो प्रेरणाओ, योग्यताओं एवं क्षमताओं को समझकर उचित मार्गदर्शन कर सके।
  6. अध्यापक अध्ययनशील होना चाहिए। शिक्षक में विषय एवं शैक्षिक विधियों में नवीनतम परिवर्तनों से परिचित होते रहने की जिज्ञासा अध्यापक में बनी रहनी चाहिए। 
  7. अध्यापक को अपने विषय पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए अर्थात उसके ज्ञान का स्तर इतना हो कि उसे पुस्तक अथवा नोट्स का दास ना बनना पड़े  अर्थात शिक्षक को अपने विषय में पूर्ण स्वामित्व  (Ownership) होना चाहिए। 
  8. अध्यापक स्वयं अथवा अपने व्यवसाय के प्रति हीनभावना से ग्रसित नहीं होना चाहिए अपने व्यवसाय में पूर्ण निष्ठा होनी चाहिए। 
  9. वह भावना ग्रंथियों एवं आत्मलोचन (Introspection आत्मनिरीक्षण) द्वारा अपने विकास में तत्पर होना चाहिए। 
  10. प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक शिक्षण विधियों बाल मनोविज्ञान एवं समस्या समाधान में दक्ष होता है। अतः अध्यापकों को प्रशिक्षित होना चाहिए तथा समय-समय पर नवीनतम पाठ्यक्रम या रिफ्रेशर कोर्स में भाग लेते रहना चाहिए। 
  11. अध्यापक की रुचियां विविध (Diverse) होनी चाहिए विशेषकर पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं तथा खेलकूद में अध्यापकों को अपना उचित योगदान प्रदान करना चाहिए। 
  12. अध्यापक का दृष्टिकोण प्रयोगात्मक होना चाहिए तभी वह शैक्षिक कार्यक्रमों की उपयोगिता का परीक्षण कर उसमें सुधार ला सकता है। 
  13. एक अध्यापक को सत्यवादी, सहिष्णु, तथा ईमानदार होना चाहिए। इन गुणों से युक्त प्रसन्नचित्त अध्यापक एक आदर्श  होता है एक अच्छे अध्यापक में अनेक गुण होते हैं अध्यापक को आदर्शवादी व्यवहारपरक होना चाहिए। एक शिक्षक को कैसा होना चाहिए यदि इस के बारे में बात की जाए तो वे निम्न बातें हैं जो एक अध्यापक के अंदर होना चाहिए समय का पाबंद हो, आदर्शवादी पहनावा हो, बातचीत करने का ढंग समुचित व नैतिकता का पालन करने वाला हो, आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण हो, सत्यभाषी हो, छात्र-छात्राओं का हितैषी  हो, सामाजिक क्रियाओ में भाग लेने वाला हो, और कल्याणी भावना से ओतप्रोत हो, इत्यादि।

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