गुरुवार, 10 सितंबर 2020

प्राथमिक विद्यालयों की पाठ्यचर्या (Curriculum) में कला समेकित शिक्षा का जुड़ाव


प्राथमिक विद्यालयों की पाठ्यचर्या (Curriculum) में कला समेकित शिक्षा का जुड़ाव D.El.Ed.1st Year. Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=oxByLjbHb-4&t=34s

 प्रश्न:-  प्राथमिक विद्यालयों की पाठ्यचर्या (Curriculum) में कला समेकित शिक्षा को क्यों जोड़ना चाहिए?

उत्तर :- शिक्षार्थी का बहुमुखी विकास ही पाठ्यचर्या (Curriculum) का लक्ष्य होता है। रविन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार, "एक विद्यार्थी के प्रमुख व्यक्तित्व के निर्माण एवं विकास में कला शिक्षा शरीर के साथ-साथ मस्तिष्क को प्रेरित करती है। भावनाओं को गति प्रदान कर यह मस्तिष्क का विकास करती है। यह स्मृति बढ़ाती है और वे अन्य विषयों के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए सक्षम बनाती हैं।

         कला शिक्षा का यह समन्वय सामाजिक विज्ञान, भाषा विज्ञान तथा गणित जैसे विषयों में सामग्री के रूप में होती है। अवधारणाओं को अर्थपूर्ण समग्रता में आनन्ददायी तरीके से सीखने का सशक्त एवं आसान माध्यम है।

         हमारी शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत बच्चों के सर्वांगीण विकास की अपेक्षा की जाती है। बच्चे विद्यालय में स्वयं को सहज पायें, सीखने का आनंद लें और स्व-अभिव्यक्ति के अधिकाधिक अवसर पायें। स्वतंत्र चिंतन, सृजनशीलता और सामाजिकता उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बने। ऐसा तभी होगा जब विद्यालयों में विभिन्न कलाओं, जैसे - संगीत, नृत्य, नाटक और दृश्य कला की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाएगा। हमारे देश में कोठारी आयोग (1964-66 ) का प्रतिवेदन और 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति से लेकर राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 की रूपरेखा तक सभी इस बात को स्वीकार करते हैं लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे विद्यालयों में अब भी कला को बहुत सतही तौर पर देखा जाता है। कला की प्रतिष्ठा उस तरह से बिल्कुल भी स्थापित नहीं है जिस तरह अन्य विषयों की। पाठ्यक्रम में शामिल होने के बावजूद स्कूलों में कला व्यावहारिक धरातल से कोसों दूर है। विद्यालयों में विभिन्न प्रकार के कलाओं की उपस्थिति स्कूल की शोभा बढ़ाने या स्कूल का कला प्रेम के रूप में मौजूद है।

          हम अपने स्कूलों में कला के नाम पर चित्रकला का महत्व देते हैं। चित्रकला को जो थोड़ी बहुत जगह मिली है वह इसलिए है कि इसमें यह बताना बहुत आसान है कि उन्हें करना क्या है? चित्रकला में हम 'हू-ब-हू' चित्र बनाने के हुनर को 'अच्छा चित्र' बनाने की समझ से बहुत आगे नहीं देख पाते हैं। प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को विभिन्न कलाओं के माध्यम से अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराना अधिक महत्वपूर्ण है ना कि कला विशेष में पारंगत करना। विभिन्न ज्ञानेन्द्रिय को शामिल कर लेने के गुण के कारण कलाओं में सीखने-सिखाने की अनगिनत गाँठे खोल देने की क्षमता अन्तर्निहित होती है।

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