नाटक की अवधारणा एवं बेंजामिन फ्रेंकलिन के विचार B.Ed.1st Year. EPC-2, Unit-1. Munger University. Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=qG9WuWpgWqo&t=4s
भारतीय दृष्टि से नाटक लोकरंजन की एक विद्या है। यह किसी भी विषय जैसे:- राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक क्षेत्रों में अभिनव के द्वारा व्यक्ति के समझ को विकसित करती है। भारत में इस विद्या की शुरुआत प्राचीन काल से ही मानी जाती हैं।
लोक-कथाओं के अनुसार,
भारत में इसका जन्म भरत की कथा से होता है उनके अनुसार त्रेतायुग के समापन के समय व्यक्ति लोक ईर्ष्या, क्रोध, वासना, काम और लाभ से वशीभूत थे। तो उस समय इंद्र आदि देवताओं ने परमपिता ब्रह्मा से कहा:- हम ऐसा मनोरंजन का साधन चाहते हैं जिसे देखा भी जाए और सुना भी। उस समय वेदो का व्यवहार और श्रवण शुद्रो द्वारा नहीं किया जाता था। अतः ऐसे 05वें वेद की रचना कीजिए जो सार्वजनिक हो अथवा जो सभी वर्णों के लिए हो। देवताओं के इस अनुरोध को मानकर ब्रह्मा जी ने चारों वेदों से कुछ अंश लेकर पांचवें वेद अर्थात नाट्य वेद की रचना की। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि नाटक एक ऐसा मनोरंजन का साधन है जो श्रव्य एवं दृश्य हैं। ब्रह्मा जी नाट्य की मनोरंजकता के विषय में नाट्यशास्त्र के प्रथम अध्याय में ही कहा है:-
विनोदजननं लोके नाट्यमेतदु भविष्यति
अर्थात, नाट्य संसार में विनोद उत्पन्न करने वाला होगा
भरतमुनि के सैकड़ों वर्ष बाद कालिदास के समय इसके गुणों में और अधिक वृद्धि हुई। उस समय नाटक से सामान्य जनता का तो मनोरंजन होता ही रहा देवताओं को प्रिय लगने वाला यज्ञ का कार्य भी करता रहा। वर्तमान समय में नाटक के स्वरूप में परिवर्तन आया हैं। नाटक अब केवल मनोरंजन की वस्तु नहीं रही बल्कि यह अन्य व्यवस्थाओं में सम्मिलित होकर नए आयामों को स्थापित किया हैं। वर्तमान में राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में नुक्कड़ नाटक के द्वारा समय-समय पर सरकार द्वारा राजनीतिक संदेशों का प्रसार किया जाता रहा है। वहीं दूसरी ओर सामाजिक बुराइयों जैसे:- दहेज प्रथा, बाल-विवाह, भ्रूण हत्या तथा अन्य सामाजिक प्रथाओं को नुक्कड़ नाटक के द्वारा प्रदर्शित करके लोगों को जागरूक करने का काम भी किया जा रहा है। वहीं सांस्कृतिक रूप से भी किसी राज्य की वेशभूषा, रहन-सहन, खान-पान, बोल-व्यवहार एवं संस्कृति का प्रदर्शन का मुख्य विद्या नाटक ही है। इन सभी के अलावा नाटक को शैक्षणिक क्षेत्रो में भी प्रयोग किया गया। शैक्षणिक क्षेत्रों में इनके अनुप्रयोग को देखते हुए बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा है:-
मुझे कहोगे तो मैं भूल जाऊंगा
अगर तुम मुझसे सिखाओगे तो मैं याद रखूंगा
लेकिन अगर तुम मुझे समस्या सुलझाने में शामिल करोगे तो मैं सीख जाऊंगा।
जीवन में दु:खद बात यह है कि हम बहुत जल्दी बड़े हो जाते हैं लेकिन समझदार देर से होते हैं।
बुद्धिमान व्यक्तियों को सलाह की जरूरत नहीं होती और मूर्ख लोग इसे स्वीकार नहीं कर पाते हैं।
मछलियों की तरह मेहमान भी तीन दिन बाद बदबू करने लगते हैं।
कुछ ऐसा लिखो जो पढ़ने लायक हो या कुछ ऐसा करो जो लिखने लायक।
ज्ञान में पूंजी लगाने से सर्वाधिक ब्याज मिलता है।
मित्र बनाने में धीमे रहिए और बदलने में और भी
छोटे-छोटे खर्चों से सावधान रहिए एक छोटा सा छेद बड़े से जहाज को डुबो सकता है।
लेनदारों की याददाश्त देनदारों से अच्छी होती है।
आलसी होना उतनी शर्म की बात नहीं है जितना कि सीखने की इच्छा ना रखना।
संतोष गरीबों को अमीर बनाता है और असंतोष अमीरों को गरीब।
ईश्वर उसकी सहायता करता है जो खुद अपनी सहायता करें।
थकान सबसे अच्छी तकिया है।
अर्ध सत्य अक्सर एक बड़ा झूठ होता है।
धन से आज तक किसी को खुशी नहीं मिली और ना ही मिलेगा। जितना अधिक व्यक्ति के पास धन होता है वह उससे कहीं अधिक चाहता है। धन रिक्त स्थान को भरने के बजाय शून्यता को पैदा करता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें