रविवार, 20 सितंबर 2020

“डायरी के पन्नों से”

नमस्कार 🙏आप सभी का हमारे Blog पर स्वागत है। आज आप सभी के बीच प्रस्तुत हैं “डायरी के पन्नों से” का छठा (Six) अंश। इस श्रृंखला को पढ़कर आप मेरे और मेरे कार्य क्षेत्र को और भी बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। जैसा की आप सभी को ज्ञात है कि मैं अपनी आत्मकथा लिख रहा हूं। प्रत्येक रविवार को उसी आत्मकथा के छोटे-छोटे अंश को मैं आप सभी के बीच प्रस्तुत करूंगा और मुझे आपकी प्रतिक्रिया (Comment) का इंतजार रहेगा ताकि मैं इसे और बेहतर तरीके से आप सभी के बीच प्रस्तुत करता रहूं।

       डायरी के पन्नों के दुसरे, तीसरे और चौथे अंक में मैंने आपको, अपने महाविद्यालय एवं पटना के बेली रोड में स्थित अपने रूम के बारे में बताया था अब इस श्रृंखला में आगे की कहानी.........

         कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना में एक और नियम यह था कि क्लास के समाप्ति के बाद सभी विद्यार्थियों को पटना जंक्शन जाना होता था, ह्यूमन लाइव स्केचिंग (Human Live Sketching) करने के लिए। पटना जंक्शन पर सभी विद्यार्थी लगभग 3 से 4 घंटा रुकते थे और स्केचिंग का कार्य संपादित करते थे। लेकिन मुझे बेली रोड होते हुए अपने रूम जाना होता था तो इसी कारण पटना जंक्शन लाइव स्केचिंग के लिए नहीं जा पाता था पटना जंक्शन पर किए गए स्केचिंग को रोज आर्ट कॉलेज में दिखाना भी होता था इसलिए प्रत्येक विद्यार्थी कम से कम 50 स्केचिंग जरूर तैयार करते थे। केवल मैं ही ऐसा विद्यार्थी था जो स्केचिंग तैयार नहीं कर पाता था। 

            एक-दो दिन कॉलेज करने के बाद मुझे लगा कि मुझे भी बड़ा पेपर लेकर आना चाहिए क्योंकि सभी विद्यार्थी A-3 साइज के पेपर लाते थे और मैं A-4. मैंने A-3 साइज पेपर खरीदने को अभी सोच ही रहे थे कि उसी दिन अचानक से एक भैया मुझे महाविद्यालय की सीढ़ी पर मिल गये और मुझे बोले कि- अपनी स्केच बुक दिखाओ? उस भैया का नाम गोपाल था जो कि वर्तमान में गोपाल शून्य के नाम से फेसबुक पर मशहूर हैं और बतौर एक न्यूज़ चैनल में कार्टूनिस्ट जॉब कर रहे हैं। लेकिन उस समय वह महाविद्यालय के द्वितीय वर्ष में थे।


        मैंने उन्हें अपनी स्केचिंग की बुक दिखाई और वहीं पर खड़ा हो उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार करता रहा। लगभग एक-दो मिनट के बाद वह बोले इतनी छोटी स्केच बुक में स्केच करते हो कम से कम A-3 साइज के पेपर पर स्केच करो और एक स्केच पैड भी ले लो। मैंने उन्हीं से पूछ लिया कि वह सब कहां मिलेगा? क्योंकि मैं खुद खरीदने के लिए सोच रहा था। तब वह बोले कि- पटना संग्रहालय के पास मिलन नाम का एक दुकान होगा उसमें सब कुछ मिल जाएगा। मैंने उसी दिन वर्ग समाप्ति के बाद कॉलेज से निकला क्योंकि पटना संग्रहालय मेरे कॉलेज के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने ही था और उसमें प्रवेश के लिए दोनों तरफ से रास्ता था मैंने बायें वाले रास्ते का चयन किया और संग्रहालय वाले रोड पर चलने लगा। IBM के ठीक बगल में बायें साइड मुझे एक दुकान दिखा उसका नाम था "मिलेनियम" मैं थोड़ा सा कंफ्यूज हो गया कि भैया ने मिलन बोला था या मिलेनियम फिर मुझे लगा कि हो सकता है कहीं वह मिलेनियम को ही मिलन बोले हो। मैं वहां गया लेकिन वहां भी मुझे A-3 साइज के पेपर और बोर्ड नहीं मिला वहां पर मुझे केवल A-4 साइज का ही पेपर मिला। मैंने पुनः वही वहां से खरीद लिया और रूम चला गया।
       ऐसे मनुष्य की एक प्राकृतिक प्रवृत्ति भी होती है कि जब वह कोई नई चीजों को खरीदता है तो उसका कुछ ज्यादा ही उपयोग करता है मैंने भी वही किया और उस पर खूब सारा स्केचिंग की ताकि अगले दिन मै भैया को दिखा सकूं कि आपके कहे अनुसार मैंने पेपर खरीद लिया और उस पर स्केचिंग भी कर ली। अगले दिन वह कॉलेज में मुझे नहीं दिखे। मैंने दिन भर उन्हें ढूंढा और इत्तेफाक से वही सीढ़ी पर मुझे मिल गए जहां कल मिले थे और समय भी लगभग वही था यानी कि शाम का समय। 

        उन्होंने मुझे देखते ही अपने पास बुलाया और बोले कि- आज बहुत खुश नजर आ रहे हो मैंने कहा- जी भैया😊 आपने जो मुझे दुकान बताया था उसका नाम मिलन नहीं मिलेनियम है और वहां A-3 साइज का पेपर और बोर्ड नहीं मिलता। 
अब वह चौके!!! कि तुम्हें मिलन नहीं मिला। 
मिलन कला के लिए पूरे पटना में एक प्रसिद्ध दुकान है वहां से पूरे पटना के कलाकार कला सामग्री खरीदते हैं और पूरे आर्ट कॉलेज के भी सभी विधार्थी भी वही पर से अपनी कला सामग्री की खरीदारी करते हैं क्योंकि वह कला सामग्री पर कुछ छुट प्रदान करता है। पूरे बिहार के कलाकार एवं पटना कला एवं शिल्प महाविद्यालय में पढ़ने वाला प्रत्येक विद्यार्थी उस मिलन को जानता था, सिवाय मेरे।
उसके बाद उन्होंने मेरी स्केच बुक देखी और बोले- 
तुम आर्ट कॉलेज में क्यों आए हो? 
क्या करने के लिए आए हो? 
तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं?  
क्या तुम उनका पैसा बर्बाद करने के लिए पटना आए हो?
एक साथ इतने सारे प्रश्नों को सुनकर मैं तो घबरा गया। फिर एक-एक करके उनके सारे प्रश्नों का उत्तर दिया और एक प्रश्न मैंने उनसे भी पूछा कि आप यह सब प्रश्न मुझसे क्यों पूछ रहे हैं?
तब उन्होंने कहा कि तुमने जो यह स्केचिंग बनाया है ना इससे कहीं बहुत अच्छा मेरा स्टूडेंट जिसे मैं पढ़ाने जाता हूं वह अभी आठवीं क्लास में है वह बना लेता है और तुम कला महाविद्यालय के छात्र होकर ऐसा स्केच करोगे।
तुम्हारा नामांकन हो कैसे गया?
मैंने उनसे डरते-डरते कहा कि- भैया मैंने प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की हैं। उसके बाद नामांकन लिया है। 
तब वह बोले कि- अच्छा यह बताओ तुमको अपना कोर्स पुरा करने में कितना समय और पैसा खर्च होगा?
चूंकि कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय का कॉलेज है। इसीलिए उसमें फ़ी बहुत कम लगता है मैंने पूरा गणना करके बताया कि 5 साल का लगभग 05 से ₹6000 खर्च होंगे। तब वह जोर से हंसे और बोले कि बस!!! तुमको पटना में रहने और खाने-पीने का पैसा नहीं लगेगा? तब वह मुझसे बोले कि मैं बताता हूं कि तुम्हें कितना पैसा लगेगा पूरे 5 सालों में और यह कोर्स पूरा करने में।
मान लो रहने एवं खाने-पीने में 5000 प्रत्येक महीना। 
मैंने कहां हां। इतना तो लग ही जाएगा और कभी-कभी ज्यादा भी लग सकता है। 
तब उन्होंने कहां- इस हिसाब से साल भर का हुआ 12 x 5,000 = 60,000. और 5 साल का 60,000 x 5 = 300,000. पटना में केवल रहने एवं  खाने-पीने में ही ₹300000 खर्च होंगे। उसके साथ आर्ट मैटेरियल (कला-सामग्री) मान लो 1 महीने में यदि 500 का भी कला सामग्री खरीदते हो तो 5 साल का हुआ 30,000 और पटना रहने में कुछ एक्स्ट्रा खर्च भी होते हैं मान लो यदि हम एक महीने का 200 ही मानकर चलें तो पूरे 5 साल का हुआ 12000 अब हम इसे टोटल करते हैं।
5,000 + 300,000 + 30,000 + 12,000 = 347,000.
      यह राशि अनुमानत: है। इससे ज्यादा भी खर्च हो सकता हैं कम नहीं। अब यह बताओ तुम्हारे घर वाले इतना रुपया तुम्हें देंगे? और तुम क्या सीख पाओगे यहां से कुछ नहीं।
मैं कुछ देर सोचने लगा कि बात भी भैया सही ही कह रहे हैं। मुझे स्केचिंग तो आती नहीं और इतना पैसा खर्च हो रहा है। कहां से इतना पैसा आएगा? क्योंकि घर पर इतने पैसे तो है नहीं।
मुझे सोचता देख वह फिर बोले कि मैं बताता हूं तुम्हारा नामांकन कैसे हुआ? 
मैंने कहां- बताइए कैसे?
फिर वह मुझसे पूछे तुम्हारा कॉलेज रौल नंबर क्या है? 
मैंने कहा- 60 
और महाविद्यालय में सीट कितनी है? 
तब मैंने फिर कहां- 60. 
वही तो, कॉलेज में सीट बच रहा था इसीलिए तुम्हारा नामांकन महाविद्यालय ने ले लिया, कॉलेज का क्या है। उसे तो अपनी सीट फुल करनी होती है वह तो एडमिशन  लेगा ही। 
मेरे मन में उस समय यह बातें चल रही थी कि इस महाविद्यालय में नामांकन के लिए 500 से 600 छात्रों ने फॉर्म भरा था  और उन सभी ने परीक्षा भी दी उनमें से ही 60 का नामांकन हुआ तो मैं कहीं ना कहीं उन 600 छात्रों से बेहतर तो हूं ही। क्योंकि मैंने प्रवेश प्राप्त कर लिया था। लेकिन मैंने उक्त बातें गोपाल भैया को नहीं बताई। मैंने तो बस उनसे इतना ही कहां- जी भैया आप बोल तो सही रहे हैं। इतना सारा पैसा खर्च होगा? और 5 साल का समय भी बर्बाद होगा। 
उन्होंने कहां- वही तो मैं कह रहा हूं। 
तब मैंने उनसे अंतिम सवाल पूछा की- तब भैया मुझे क्या करना चाहिए?
उन्होंने गंभीर नजरों से मुझे देखा और शांत स्वर में बोले- तुम्हें कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना छोड़ देना चाहिए और किसी दूसरे पाठ्यक्रम में नामांकन लेना चाहिए या दूसरा कोर्स करना चाहिए।

क्रमश: .........


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