रविवार, 27 सितंबर 2020

“डायरी के पन्नों से”

नमस्कार 🙏आप सभी का हमारे Blog पर स्वागत है। आज आप सभी के बीच प्रस्तुत हैं “डायरी के पन्नों से” का सातवां  (Seventh) अंश। इस श्रृंखला को पढ़कर आप मेरे और मेरे कार्य क्षेत्र को और भी बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। जैसा की आप सभी को ज्ञात है कि मैं अपनी आत्मकथा लिख रहा हूं। प्रत्येक रविवार को उसी आत्मकथा के छोटे-छोटे अंश को मैं आप सभी के बीच प्रस्तुत करूंगा और मुझे आपकी प्रतिक्रिया (Comment) का इंतजार रहेगा ताकि मैं इसे और बेहतर तरीके से आप सभी के बीच प्रस्तुत करता रहूं।

      "डायरी के पन्नों से" के छठे अंश के अंतर्गत आपने पढ़ा था कि कैसे हमारे सीनियर भैया ने हमें आर्ट कॉलेज छोड़ने की नसीहत दी थी अब आगे की कहानी.....

        गोपाल भैया से उसदिन वार्तालाप के बाद मै कई रातों तक  ठीक से सो नहीं पाया, हमेशा यही ख्याल आता कि- अब क्या करना चाहिए?  

        लेकिन फिर भी मन में कहीं-ना-कहीं यह भी चल रहा था कि मैं कला में जरूर कुछ बेहतर करूंगा। ऐसे ही मेरा नामांकन, थोड़े ही आर्ट कॉलेज में हुआ है। उक्त बातें सोच कर मैं फिर अपने कार्य में लग गया। उसके उपरांत गोपाल भैया से मेरी कभी बात नहीं हुई एवं ना ही इस बारे में कभी चर्चा ही हुई और मैं लगातार महाविद्यालय आता-जाता रहा। यह बातें 2010 की है उसके उपरांत गोपाल भैया से फिर मेरी मुलाकात ठीक छ: (06) साल बाद, यानी कि  2016 में, महाविद्यालय के उसी सीढ़ी पर हुई जिस पर बैठकर वो मुझे महाविद्यालय छोड़ने की सलाह दिए थे। लेकिन उस दिन का परिदृश्य थोड़ा उल्टा था मैं सीढ़ी पर बैठा हुआ था और वह बाहर से आ रहे थे।

      मैं थोड़ा सा उनके बारे में आज जिक्र करना चाहता हूं क्योंकि उनका मैं दिल से शुक्रगुजार हूं क्योंकि वह मुझे महाविद्यालय में रहने एवं अपने कार्य को बेहतर करने की सलाह जो दिए थे। भले ही उनका वह तरीका अलग था और मुझे वर्तमान में अच्छा नहीं लगा था लेकिन अब लगता है कि वह सही था। यदि वह उस दिन ऐसी बातें नहीं करते तो शायद मैं अपने कार्य में सुधार नहीं कर पाता। 2010 में ही एक और घटना महाविद्यालय में घटी थी और वह यह थी की परीक्षा के पूर्व असाइनमेंट जमा करने में उनके द्वारा एक पेंटिंग चित्रकला विभाग में जमा की गई थी जो कि मैम के द्वारा आपत्तिजनक करार देकर उन्हें फेल कर दिया गया था। जिसको लेकर महाविद्यालय में बहुत दिनों तक आंदोलन चला। कॉलेज बंद भी रहा। मेरे साथ भले ही वह जो भी व्यवहार किये हो लेकिन मैं उनके पूरे पक्ष में था। सोशल मीडिया से लेकर हर जगह उनका सहयोग किया। मैं क्या पूरा कॉलेज उन को सहयोग कर रहा था लेकिन धीरे-धीरे महाविद्यालय के छात्र दो गुटो में विभक्त हो गए एक गुट उनके पक्ष में था और एक उनके विपक्ष में। धीरे धीरे इनकी समस्या राजनीतिक माहौल लेने लगी और महाविद्यालय परिसर में AISF (All India Students Federation) का आना-जाना शुरू हो गया। मुझे याद है उस समय ही में मैंने AISF ज्वाइन किया था और राजनीति को धीरे-धीरे समझने लगा था। माहौल को बिगड़ता देख महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय प्रशासन ने कड़ा रुख अपनाते हुए एवं उनके इस कार्य को अनुचित ठहराते हुए उनको महाविद्यालय से निकाल दिया गया। और शायद उन्हें यह भी कहा गया कि आप पटना विश्वविद्यालय के किसी भी महाविद्यालय में पुनः नामांकन नहीं ले सकते हैं। पटना विश्वविद्यालय से निकलने के बाद उन्होंने AISF की मदद से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (JNU) में नामांकन लिया और वहीं से अपना कोर्स संपादित किया एवं AISF के सक्रिय कार्यकर्ता बने रहे।

          2016 में महाविद्यालय में फिर से आंदोलन चल रहा था।

    इस आंदोलन के बारे में हम आगे जिक्र करेंगे। मैं भी उस आंदोलन में सक्रिय रूप से प्रतिभाग लिया था क्योंकि मैंने आप को कहां ही था कि 2010 से AISF ज्वाइन किया था इसलिए महाविद्यालय की सीढ़ियों पर बैठा आगे के आंदोलन को क्या गति देनी हैं इसके बारे में निर्णय कर रहा था। तभी गोपाल भैया का आगमन हुआ वह उस समय AISF के एक सक्रिय कार्यकर्ता बन चुके थे और दिल्ली से यहां के छात्रों को मदद करने के लिए पटना आए हुए थे। मैंने तो उनको आते ही पहचान लिया लेकिन शायद वो नहीं पहचान पाए कुछ देर वार्तालाप करने के बाद वो मेरा नाम पूछे। धीरे-धीरे पिछले सारे घटनाक्रम उनको याद आ गई।

 वह हंसते हुए पूछे-अभी क्या कर रहे हो? 

मैंने कहा- B.F.A. करने के उपरांत मैंने काशी विद्यापीठ, वाराणसी में M.F.A. पाठ्यकर्म में नामांकन ले लिया है और इस वर्ष मेरा द्वितीय सेमेस्टर है। 2017 में मेरा मास्टर भी पूरा हो जाएगा। 

तब उन्होंने वहां उपस्थित सभी लोगों से कहा- मैंने इसको बहुत समझाया था, महाविद्यालय छोड़ने के लिए ये तो महाविद्यालय नहीं छोड़ा लेकिन अफसोस मुझे ही महाविद्यालय छोड़ना पड़ा।

पुनः हम आपको 2010 में लेकर चलते हैं।

एक दिन ख्याल आया कि मुझे अपना रूम अब कला महाविद्यालय के पास ही रखना चाहिए क्योंकि महाविद्यालय की समाप्ति के बाद सभी छात्र पटना जंक्शन जाते थे ह्यूमन लाइफ स्केचिंग (Human Live Sketching) के लिए लेकिन मेरा रूम दूर होने की वजह से मैं जा नहीं पाता था। रूम के लिये मैं अपने महाविद्यालय में कईयों को बोल रखा था। एक दिन एक लड़का जिसका नाम शिव शंकर था वह मुझसे मिला और बोला कि मेरे साथ रहोगे?  मैं मंदिरी में ही रहता हूं और साथ में मेरे एक सीनियर भैया भी रहते हैं जो B.F.A. 2nd Year के हैं। मुझे तो रूम की तलाश थी ही ऐसा प्रस्ताव भला मैं क्यों छोड़ता! लेकिन मन में एक डर यह भी लग रहा था कि एक द्वितीय वर्ष के भैया मिले थे जो मुझे महाविद्यालय छोड़ने कि सलाह दे चुके हैं अब एक और भैया के साथ रहना है पता नहीं वह कैसे होंगे? फिर भी लगा कि एक बार चल कर देखना चाहिए।

उत्तरी मंदिरी की संकरी गलियां होते हुए एक मकान में शिव ने प्रवेश किया मकान तो देखने में बहुत अच्छा था और वह सीढ़ियों से मुझे तीसरी मंजिल पर ले गया। रूम देखने में भी अच्छा था उस मकान की ही तरह। बड़ा सा रूम था जगह इतनी थी कि उसमें आराम दो बेड आ सकता था और सामने खुला छत। आप बस यूं समझ लीजिये की एक कलाकार के लिए बहुत ही अच्छी जगह थी। उस रूम की कमी बस यही थी कि वह छत का नहीं कर्कट का था और पूरी तरह से हवादार, मुझे रूम देखकर जयपुर के हवा-महल की याद आ गई। वह कमरा हवादार इतना था कि कभी-कभी बारिश के मौसम में पानी की बूंदे भी अंदर आ जाती होगी। कमरे में बिखरे पड़े सामानों और पेपर पर पानी के धब्बों से यह बातें साफ जाहिर हो रही थी। इन सब के बावजूद भी मैंने उस हवा-महल में रहना स्वीकार कर लिया क्योंकि उसका रूम रेंट 1500/- था और मैं जहां पहले रहता था उसका रूम रेंट 1000/- था। दो आदमी के रहने की वजह से मुझे वहां 500 लगते थे और यहां भी तीन आदमी की वजह से  मुझे 500/- ही लगेंगे और सबसे बड़ी बात यह कि आर्ट कॉलेज नजदीक था और साथ में सीनियर भैया से भी कला सीखने का मौका मिलता रहेगा।

यह सब बातें मैं सोच ही रहा था कि तभी ओम भैया (इनका नाम राजन कुमार हजारी था जो की बिहार राज्य के जमुई जिले से आते थे) महाविद्यालय से रूम पर आये। उनके आते ही शिव ने बताना शुरू किया कि भैया यह नया लड़का है हम लोग के साथ ही रहना चाहता है। 

उन्होंने मेरी तरफ देखा और बोले- तब छोटू , ठीक लगा ना रूम।

मेरे घर पर मेरे पुकार का नाम छोटू ही था क्योंकि मेरा नाम थोड़ा लंबा होने की वजह से कोई पूरा नाम नहीं पुकारता था तो घर के सभी लोग मुझे छोटू ही बुलाते थे और ऐसे भी मैं घर में सबसे छोटा हूं तो छोटू नाम पड़ गया था। और यहां पर पटना में पहली बार भैया के मुख से मेरा नाम सुनकर मुझे खुशी हुई। 

मैंने उनसे कहां- भैया यह तो मेरे घर का नाम है- छोटू।

उसने कहां:- अच्छा!! और तुम्हारा पूरा नाम क्या है?  

मैंने कहा:- विश्वजीत।

वि..श..व..जी..त.. अरे यार इतना लंबा नाम पुकारने में तो बहुत समय लग जाएगा !!! चलो छोटु आज मैं तुम्हारा एक छोटा नाम ही रख देते हैं। 

भैया अपनी पूरी बात बोलते इससे पहले ही मैं बोल उठा। सोनू, जी भैया!!! मेरा एक और नाम सोनू है। आप मुझे सोनू के नाम से बुला सकते हैं।

उसने कहा:- नहीं, सोनू एक कलाकार का नाम नहीं लग रहा है। तुमने अपना नाम क्या बताया था?

मैंने कहा:- जी, विश्वजीत

उसने कहा:- जीत हां जीतू अच्छा रहेगा। हमारे कॉलेज के एक भैया थे जिनका नाम था- जीतू।  जीतू भैया आज बहुत बड़े कलाकार हैं। चलो आज से हम तुम्हें जीतू के नाम से ही बुलायेंगे और इस तरह मेरा नाम विश्वजीत से जीतू हो गया। 

 तब मैंने शिवशंकर की तरफ देखा और भैया से बोला- भैया शिवशंकर का नाम भी तो बड़ा है इसका भी कुछ बदलाव कर दीजिए 

तो उसने कहा- इसे तो हम शिव के नाम से बुलाते हैं लेकिन तुम कहते हो तो चलो इसके बारे में भी सोच लेते हैं। जैसे कि तुम्हारा है जीतू यानी जीतने वाला और जीत का ही समानार्थी विजय होता है। तो चलो आज से ही हम इसे विजय के नाम से पुकारेंगे। और इस तरह मंदिरी में प्रवेश करते ही मेरा नाम जीतू और शिव शंकर का विजय हो गया।

       सुमित कुमार प्रसाद जिसके साथ मैं पहले रहता था उन से विदा लेकर जगदेव पथ से पटना के मंदिरी में शिफ्ट हो गया और नियमत: कला की तैयारी करने लगा। पटना कला महाविद्यालय के दीवारों पर बनी मधुबनी चित्रकला हमेशा से ही मुझे आकर्षित करती थी। मैंने नामांकन के दिन ही यह निर्णय कर लिया था कि जब मेरा इस महाविद्यालय में नामांकन हो जाएगा तो सबसे पहले मै इसी चित्र को बनाने के लिए सीखूंगा।

    लेकिन यहां पर सभी शिक्षकों एवं हमारे सीनियर भैया एवं दीदी का कहना था कि पहले स्केचिंग सीखो उसके बाद मधुबनी चित्र बनाना। लेकिन मैं अपने आपको बहुत ज्यादा दिनों तक रोक नहीं पाया और प्रथम वर्ष में ही Full Sheet पर पोस्टर कलर के माध्यम से एक मधुबनी चित्र बनाया। मेरी पेंटिंग जब पूरी हो गई तब उत्सुकता इतनी थी कि मैं उसे ग्लास में फ्रेम करवाकर अपने रूम में टांग भी दिया। एवं उसके उपरांत जो भी कोई रूम में आता तो मैं सभी को यह दिखाता कि यह जो पेंटिंग दीवाल पर टंगी है इसे मैंने बनाई है। इसी उत्सुकता के चलते एक और मधुबनी पेंटिंग मैंने बनाई, लेकिन वह Half Sheet पर। इस बार मैंने फैब्रिक कलर का प्रयोग किया और उसे भी फ्रेम करवाकर अपने घर लेकर गया। आर्ट कॉलेज में नामांकन लेने के बाद यह मेरी पहली पेंटिंग थी जिसे मैं अपने घर पर लगाया।


कला एवं शिल्प महाविद्यालय,पटना में मुझे 6 महीनों से ऊपर हो गए थे। यहां पर पढ़ाई करते हुए इस दरम्यान कई सारे मेरे मित्र भी हुए कुछ खास (Special) और कुछ तो बहुत खास (Very Special) भी हुए।


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