शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

मंजूषा चित्रकला





मंजूषा चित्रकला B.Ed.1st Year EPC- 2, Unit-2. Munger University, Munger. video Link:- CLICK HERE

बिहुला : पूर्वी बिहार का अनोखा पर्व B.Ed.1st Year EPC-2, Unit-2. Munger University, Munger. Video Link:- CLICK HERE

        मंजूषा चित्रकला भागलपुर के लोक कथाओं में सर्वाधिक प्रचलित बिहुला-विषहरी की कथाओं के आधार पर चित्रित की जाती है। इस चित्र शैली में प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है। बिहुला या सती बिहुला लोककथा करुण रस से परिपूर्ण है। 13वीं से 18वीं सदी की अवधि में इस कथा पर आधारित बहुत सी रचनाएं निर्मित की गई थी। इन निर्मित रचनाओं का धार्मिक उद्देश्य मनसा देवी की महत्व का प्रतिपादन करना था किंतु मंजूषा चित्रकला में बनाई गई कलाकृतियां बिहुला एवं उसके पति बाला लखंदर के पवित्र प्रेम के लिए अधिक प्रचलित है। 

नारी के करुण त्याग की कथा

           बिहुला की कथा प्राचीन भारत के अंग प्रदेश की राजधानी चंपा की है। सती बिहुला की कथा भोजपुरी भाषी क्षेत्र में एक लोक गीत के रूप में गाई जाती है। सामान्यतः यह निचली जातियों की कथा के रूप में प्रचलित है परंतु अब यह जाति की सीमाओं को लांघ कर सर्वप्रिय एक नारी के करुण त्याग की कथा के रूप में प्रचलित है। कहानी के अनुसार, सती बिहुला अपनी कठोर तपस्या से बाला लखंदर को जीवित कर देती है। मंजूषा बांस की बनी हुई मंदिरनुमा आकृती होती है जिसके ऊपर चित्रकारी की जाती है। इस चित्रशैली की कुछ खास विशेषताओं में एक है इसके अंकन के लिए सिर्फ हरा, पीला और लाल रंग का प्रयोग। आमतौर पर आकृति के रेखांकन में सिर्फ हरे रंग का प्रयोग किया जाता है वहीं पीला, हरा और लाल रंग से रेखाओं की बीच की जगह को भरा जाता है। मनसा देवी यानी पांचों बहनों को सर्परूप में एक साथ चित्रित किया जाता है। चम्पा फूल, मनियार सांप, नेतुला धोबी, चांद सौदागर, लखिन्दर जैसे इस कथा से जुड़े सभी पात्रों को एक खास पहचान के साथ चित्रित किया जाता है ताकि दर्शक उसे आसानी से समझ सके। पुरूष आकृतियों के चेहरे पर शिखा व मूंछ का होना अनिवार्य समझा जाता है। हालांकि अब जब इस कला को सिर्फ मंजूषा को अलंकृत करने तक सीमित रखने के बजाय व्यावसायिक उत्पादों व सजावटी सामानों पर भी चित्रित किया जाने लगा है तब रंग संगतियों में कुछ नए प्रयोग भी सामने आने लगे हैं। साथ ही किसी जमाने में जाति विशेष तक सीमित माने जाने वाली इस कला को समाज के विभिन्न तबकों द्वारा एक कलारूप के तौर पर अपनाया जा रहा है।  इस चित्रकला शैली के अंतर्गत पारंपरिक विषयों का चित्रांकन अधिकतर होता आ रहा है लेकिन आज के परिपेक्ष्य में वर्तमान कलाकार बिहुला-विषहरी की लोककथा से अलग दूसरे विषयों को भी इस शैली के जरिए चित्रित कर रहे हैं।

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