टिकुली कला बिहार की एक प्राचीन कलाओं में से एक है। यह कला बिहार की एक अनोखी कला है जिसका एक बहुत समृद्ध और गहरा पारंपरिक इतिहास है। टिकुली शब्द बिंदी का स्थानीय शब्द है जो आमतौर पर एक उज्जवल रंगीन बिंदु (Dot) है जो महिलाओं को अपने माथे पर दोनों आंखों के बीच लगानी होती है।
इतिहास:- टिकुली कला आज से लगभग 800 साल पहले पटना में उत्पन्न हुई थी। यह अनोखी कला अपनी खूबसूरती के लिए बहुत जल्दी ही प्रसिद्धि को प्राप्त कर ली और पूरे देश के व्यापारियों को थोक में खरीदने के लिए पटना जाने के लिए विवश करने में कामयाब रही। टिकुली कला पटना शहर के स्थानीय गली-सड़कों पर ही निर्मित होती थी। उस समय पटना क्रय-विक्रय का एक समृद्ध केंद्र था। इसी कारण टिकुली कला को बहुत जल्द ही प्रसिद्धि मिल गई। मुगलों को भी इस कला में दिलचस्पी थी इस कारण टिकुली कला को सक्रिय राजनीति संरक्षण प्राप्त हुआ और इसके प्रचार में सहायता मिली। मुगल साम्राज्य का पतन और ब्रिटिश राज के आगमन से टिकुली कला को गंभीर झटका लगा। ब्रिटिश सरकार ने औद्योगिकीकरण (Industrialization "इंडस्ट्रीलाइजेशन") की शुरुआत की और कई स्वदेशी सामान मशीन के द्वारा बनाई जाने लगी। टिकुली कला भी उनमें से एक थी हजारों टिकुली कलाकारों को बेरोजगार (Unemployed) करके छोड़ दिया गया क्योंकि मशीनों के द्वारा निर्मित बिंदिया बाजार में आ गई और इन बिंदियों की चमक में टिकुली कला कहीं खो गई।
पुनरुत्थान (Resurgence "रिसजर्नस") पुन:जीवन:- टिकुली कला के पुनरुत्थान के लिए हम जिन कलाकार के योगदान को कभी नहीं भुला सकते हैं उनका नाम है उपेंद्र महारथी।
इन्होंने इस मरणशील कला को पुन:र्जीवित करने की प्रथम पहल की। जापान में अपनी यात्रा के दौरान इनको टिकुली कला को हार्ड बोर्ड पर चित्रित करने का विचार (Idea) मिला। जिससे रंगीन रूप में हार्डबोर्ड पर पारंपरिक शैली के साथ बनाया जाने लगा और बहुत जल्द ही Commercial ( वाणिज्यक) व्यवसाय के लिए इसे बेचा भी जाने लगा। धीरे-धीरे इस कला को बिहार के बहुत से कलाकारों और शिल्पकारों ने भी अपना लिया।
टिकुली कला को बनाने की विधि:- टिकुली कलाकार टिकुली चित्र बनाने के लिए हार्डबोर्ड का प्रयोग करते हैं। सबसे पहले हार्ड बोर्ड को विभिन्न आकारों में काट लिया जाता है। जैसे:- चौकोर, आयताकार, त्रिकोण, गोलाकार, इत्यादी। उसके बाद एनामेल (Enamel) रंग से चार से पांच बार उस हार्ड बोर्ड को रंगा जाता है। एनामेल का रंग हमेशा काला (Black) ही रखा जाता है उसके बाद उसके सतह को सेंडपेपर (Sand Paper) से घिसा जाता है जिससे उसकी सतह पॉलिश की तरह चमकने लगती है उसके बाद इस सतह पर चित्रकारी का कार्य किया जाता है।
Note:- टिकुली कला अपने चित्रों में मधुबनी रूपांकनो का उपयोग करती हैं।
टिकुली कला के विषय:- टिकुली कला को सांस्कृतिक महत्व के उत्पाद के रूप में निर्यात हेतु अधिक लोकप्रिय माना जाता है। उत्पादों का प्रमुख उद्देश्य पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति को प्रदर्शित करना होता है। इस कला के ज्यादातर विषय बिहार के त्यौहार, भारतीय शादी-विवाह के दृश्य और कृष्ण-लीला प्रमुख हैं।
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