शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

बिहुला : पूर्वी बिहार का अनोखा पर्व


बिहुला : पूर्वी बिहार का अनोखा पर्व B.Ed.1st Year EPC-2, Unit-2. Munger University, Munger. Video Link:-  https://www.youtube.com/watch?v=qFwmY5-9-60&t=2s

           पूर्वी बिहार का एक अनोखा पर्व है बिहुला। इसे विषहरी पूजा के नाम से भी जाना जाता है। बंगाल में इसी पर्व को पद्मपुराण भी कहा जाता है। इस पर्व में मनसा देवी की पूजा की जाती है। धर्मग्रंथों में मनसा को वासुकी की बहन और ऋषि जातक को पत्नी बताया गया है। वासुकी को सर्पो का राजा माना गया है, तो मनसा को सर्पो की देवी वताया गया है। मनसा का दूसरा नाम ' विषहरा ' विष को हरने वाली है। कहां जाता है कि मनसा मानव जाति की रक्षा सर्पो से करती है इसलिए इसकी पूजा होती है। बिहार में विशेषकर पूर्वी बिहार में यह पर्व ज्यादातर मछुआरा और अन्य जातियों द्वारा मनाया जाता है। भागलपुर में इस पर्व को विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। यह पूजा सिंह नक्षत्र में होती है। इस पूजा में पहले मूर्ति का प्रचलन नहीं था। लेकिन अब इस पूजा से जुड़े मनसा, बिहुला, बाला लखीन्द्र तथा चांद सौदागर की मूर्तियां जगह - जगह बनती है। मनसा की मूर्ति स्त्री वस्त्र में सर्प के साथ या कमल पर बैठी हुई या फिर सर्प पर खड़ी बनती है। इनकी पूजा ज्यादातर महिलाएं करती हैं। पूजा करने के दो कारण बताये जाते हैं। एक यह कि विषहरी यानी मनसा पति को सर्प आदि से बचाएं तथा दूसरा यह कि अगर कभी कोई सर्प काट भी ले तो विषहरी देवी उनके विष को हर कर उन्हें लम्बी आयु प्रदान करें।
           इस पर्व से सम्बन्धित कथा के अनुसार भागलपुर के चम्पानगर में चांद सौदागर नामक एक बहुत बड़ा व्यापारी था। चम्पानगर अंग-जनपद की राजधानी थी। चांद सौदागर का व्यापार बिहार से बंगाल राज्य तक होता था। उस समय मनसा या विषहरी जो शिव की बहन तथा जातक ऋषि की पत्नी थी, की पूजा पृथ्वी पर नहीं होती थी। लेकिन मनसा की इच्छा थी कि पृथ्वी पर मेरी पूजा हो। चांद सौदागर बहुत बड़ा व्यापारी था, इसलिए मनसा देवी ने अपनी पूजा की शुरूआत के लिए उसका घर चुना। वहां जाकर मनसा देवी ने चांद सौदागर को अपने कुल देवता में स्वयं का भी स्थान मांगा, तो उन्होंने इनकार कर दिया। इससे मनसा ने कुद्ध होकर शाप दिया कि तुमने मेरा अपमान किया है इसलिए तुम्हारा सभी पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे। इसके उपरांत ही चांद सौदागर के छः पुत्रों की मृत्यु सर्प के डंसने से हो जाती हैं। चांद सौदागर को कुछ दिनों बात एक और बेटे की प्राप्ति होती है जिसका नाम बाला लखेंद्र रखा जाता है। जिसका विवाह बिहुला नाम की कन्या से होता है। ठीक सुहागरात के दिन बाला लखेन्द्र को सांप डंस लेता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है। बिहुला विधवा हो जाती है। इस संबंध मे किंवदंती है कि जिस घर मे पति-पत्नी सोये थे, उनका निर्माण विश्वकर्मा जी ने किया था ताकि कहीं कोई छिद्र न हो। लेकिन सुई की नोंक के बराबर एक छिद्र कहीं था जिससे होकर मनसा देवी ने एक धागे जैसे पतले सांप को उसमें प्रवेश कराया था। उस साँप को भागलपुर जिला में 'सुतिया सर्प' के नाम से लोग जानते है, जो अभी तक प्रचलित है। विधवा बिहुला रोती हुई अपनी सास के पास गयी । मनसा देवी का दिल जीतने के लिए प्रायश्चित भी किया। जब इतनी बड़ी घटना घट गयी तो चांद सौदागर ने सबों को विषहरी की पूजा करने को कहा। उसने अन्यमनस्क ढंग से अपने बायें हाथ से एक फूल को मनसा देवी की मूर्ति पर फेंका। मनसा खुश होकर उनके पुत्र का जीवन लौटा दी। इसके बाद लोगों को मनसा की शक्ति का पता चला और तब से पृथ्वी पर मनसा यानी विषहरी की पूजा होने लगी।
 

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