शनिवार, 23 अप्रैल 2022

बचपन का प्यार, भूल नही जाना रे.. ..


      जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता था तो एक लड़की👩‍🦰 को मुझ से इश्क💗 हो गया। एक दिन उसने बोला कि सुबह मेरे चने के खेत में मिलना, मैं तो सुबह 08 बजे ही उसके खेत में जाकर बैठ गया और समय व्यतीत करने के लिए है यह गाना गुनगुनाने लगा।


फँसी गोरी चने के खेत में,
हुयी चोरी चने के खेत में।

      .....गाना अभी पूरा होता उससे पूर्व खेत मे कुछ खरखराहट हुईं। पता चला की बकरियों का झुंड उसके खेतों की तरफ बढ़ा आ रहा हैं चूंकि खेत मे हम थे तो मेरा दायित्व था कि उसके खेतों की रक्षा करते ताकि जब वह आये तो उनको हम गर्व से कह सके कि मैंने आपके चने की खेतो को रक्षा की हैं।

 

     शाम तक मैं उनके खेतों से आवारा जानवर को भगाता रहा। जानवरों को भगाते-भगाते मेरा बुरा हाल हो गया परंतु वो शाम के 05 बजे तक नहीं आई।

          उसके उपरांत जब गांव में आया तो पता चला कि वो तो 09 बजे वाली बस से अपने मामा के घर चली गई हैं। मैंने ये सोच कर सब्र कर लिया कि इश्क में हीर ने राझें से 12-13 साल भैंसे चरवाई थी तो ये तो एक दिन की ही बात है। भूखा-प्यासा घर पहुंचा तो मां ने खाना देने से पहले चप्पलों से पीटा ये पूछते हुए की दिन-भर कहां था।


     कुछ दिन बाद उसके खेतों की तरफ से निकला तो देखा कि मेरा एक दोस्त भाग-भागकर उनके खेत से जानवर🐎 निकाल रहा है। मैंने पूछा कि तू क्यूं भाग रहा है तो बोला कि बस ऐसे ही......। मैंने माचिस की डिब्बी में रखी आधी बीड़ी निकालकर सुलगाई🔥 और दो बड़े कश खींचकर धागे तक लगाकर उसको दी।


      दोस्त का प्यार💗 मैं देखकर पिघल गया और बताया कि उसने मुझको भी मिलने के लिए बुलाया था। तब समझ में आया जिस दिन उसके यहां कोई रखवाली करने वाला ना हो उस दिन हम जैसों को खेत में बुलाती हैं। पहली बार चूतिया कटने का एहसास अंदर तक पसर गया।


      फिर मैं भी मौका तकने लगा, एक दिन द्वार पर अकेले वह गोबर पाथते हुए दिख गई। धीरे से पीछे जाकर दोनों हाथों से उसकी पीठ ठोकी, वो तो उधर गोबर में ही पसर गई और उसका गोबर में मुंह टिकते ही मेरा पहला विधिवत ब्रेकअप💔 हो गया। लेकिन मुझे बहुत दर्द हुआ, ब्रेकअप का नहीं.... मेरी कुटाई का। क्योंकि हिंदी फिल्म की भांति 02-04 लौंडे वहां टपक आये थे।


       दसवीं तक आते-आते 03 और लड़कियों को मुझ से इश्क💗 हुआ पर एक के हाथ से दो चमाटे खाने के अलावा ज्यादा कुछ विशेष नहीं हुआ। फिर एक नई लड़की👩‍🦰 आई क्लास में और मुझे पहली बार पहली ही नजर में इश्क💗 हो गया।


       40 लड़को में सिर्फ 12 लड़कियां ही थी इसलिए कम्पिटीशन तगड़ा था।


         वैसे तो वो सांवले रंग की साधारण सी दिखती थी पर मुझे उसकी आंखों👀 से पहली ही नजर में इश्क💗 हो गया था। एक दिन वो सरकारी चापाकल पर हाथ से ओंजरी लगाकर पानी पी रही थी और मैंने उसकी हथेलियों से गिरते पानी से चुल्लू भर कर पी ली। वो भड़क गई और बोली कि 


"चप्पल मारूंगी तेरे मुंह पै"!!!


      मुझे एहसास हुआ कि आज तो वो स्पोर्ट्स शूज🥾 पहन कर आई हैं और लम्बे फीते जो टखनों पर स्टाइल में बांध रखे हैं उनको खोलने में तो बहुत समय लग जाएगा। तभी मास्टर जी आ गये और मुझे क्लास में जाना पड़ा। अगले दिन बुखार हो गया दिल टूटने💔 के चक्कर में,  इसलिए तीन दिन स्कूल नहीं गये।


      मैं 12 किलोमीटर दूर से पढ़ने आता था तो जब लगातार 03 दिन स्कूल नहीं आया तो उसने मेरे दोस्त से मेरे बारे में पूछा। दोस्त ने भी मज़ाक में बोल दिया कि विश्वजीत तो बस की छत पर से गिरकर हाथ-पैर तुड़वा लिया हैं। जब तीन दिन बाद हम स्कूल पहुंचे तो मुझे सही-सलामत देखकर उसकी आंखों में आंसू और चेहरे पर मुस्कान थी। तब मुझे लगा कि मेरी किस्मत बहुत अच्छी है जो उस दिन वो चप्पल नहीं पहनी थी।

       सारे स्कूल के बच्चे और मास्टर जी मुझे मेरे गांव के नाम यानी कोईरी-गाँवा से "कुशवाहा जी" बुलाते थे क्योंकि मेरे गांव में लगभग 80% कोईरी (कुशवाहा) जाति के लोग हैं। परंतु सिर्फ वो अकेली थी जो मुझे मेरे नाम लेकर बुलाती थी। बहुत स्पेशल फील होता था जब वो "विश्वजीत" की जगह जितु या विशु कहती थी। अभी दो महीने ही गुजरे थे कि उसका बाप विलेन बनकर आ गया मेरी लव स्टोरी💌 में।


       स्कूल के हालात देखकर उसने उसका वहां से नाम कटवाकर सिवान के DAV (Dayanand Anglo Vadic) में दाखिला करवा दिया। मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई। उस दिन मैंने कसम खाई थी कि वो मुझे अगर दसवीं में छोड़कर गई है तो मैं भी दसवीं से बाहर नहीं निकलूंगा। घरवालों और मास्टरों ने पूरी कोशिश कर ली पर मैं तीसरी बार भी फेल हो गया।

       वो बाद में MBBS करके डॉक्टर बन गई। परन्तु आज भी आंख बंद करके यदि मैं उसको याद करूं तो उसे हिचकी ना सही ढकार जरूर आएगी। और मेरे कारनामे और शैक्षणिक योग्यता देखते हुए मेरे लिए दुनिया की सिर्फ दो जगह ही बची थी, आईटीआई और आटो मार्केट। पहली जगह के लिए दसवीं पास होना जरूरी था तो कोई और आप्शन नहीं था।  इसलिए ऑटो मार्किट ही जाना पड़ा।


        ये मेरी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट था क्योंकि बचपन से ही चाचा को वर्कशॉप पर काम करते हुए देखता था तो मैं भी सोचता था कि लोग मुझे भी मिस्त्री जी बोले। विडंबना ये थी उस उम्र में लङके स्कूल, कालेज में मस्ती करते थे और मैं ऐसी जगह फंसा जहां लाल कपड़ा भी नहीं दिखता कभी।


        पर मेरा दुर्भाग्य था कि आटो मार्केट के पीछे  रहने वाले घर की लड़की👩‍🦰 से आंखें लड़ गई मेरी।चाचा ने वर्कशॉप के ऊपर मकान बना रखा है तो पड़ोसी होने के नाते सब मुझे भी जानने लगे। लड़की खूबसूरत थी और मुझे हंसकर देखती थी, वो तो मुझे बाद में पता चला कि वो हंसकर देखती नही, देखकर हंसती है।

       महीने बाद एक दिन गली में उसका तब रास्ता रोक लिया जब वो सिलाई सीखने जा रही थी, मैंने कुछ किया नहीं बस कुछ पूछना था पर एक पड़ोसी ने हमें देख लिया और लड़की ने डर के मारे अपनी मां को बता दिया। मेरी लव स्टोरी💌 पर तो फिर ग्रहण लग गया जब उसकी मां ने नमक मिर्च लगाकर मेरे चाचा को बताया।


       शाम को चाचा ने सामने बैठाकर थप्पड़ मारकर पूछा "आदमी बनेगा या शहाबुद्दीन के गैंग में जायेगा?" उस वक्त शहाबुद्दीन का गैंग बहुत मशहूर था। बेइज्जती महसूस हुई थोड़ी सी पर संतोष इस बात का था कि मारने वाला बंदा घर का ही था। मुझे लगा कि मैंने लड़की के साथ गलत किया और उससे दूर से ही कान पकड़कर माफ़ी मांगना चालू किया।

        उसने भी कुछ टाइम बाद माफ कर दिया तो दोबारा नैन मटक्का चालू हुआ। मुझे झटका तब लगा जब एक भाभी ने बताया कि कहां आशिकी मार रहा है इसके भाई तेरे हाथ-पांव तोड़ने की सोच रहे हैं। वो सच बोली या झूठ पर मैंने सच मान लिया।एक दिन वो अपनी भाभी के साथ पानी लाने निकली तो पीछे आने का इशारा किया।


       मैं भी दूसरी गली से भागकर गया और जाते ही लड़की को दो रहपटे मार दिए, उसका घड़ा गिरकर फूट गया। फिर उसकी भाभी ने पता नहीं किस एंगल से निशाना साधकर टोकणी मेरे सिर पर मारी कि दिखना ही बंद हो गया। जब थोड़ा होश आया तो वहां पर सिर्फ मैं था और सिर पर अमरूद जितना बड़ा गूमड़ा।

        साली, मेरी चप्पल भी सबूत के तौर पर साथ उठा ले गई। मैं लुटा पिटा घर पहुंचा और चाची को सच बता दिया। लोगों पर छेड़छाड़ के केस होते होंगे मुझ पर मारपीट का केस बना। दो घंटे बाद मैं थाने में था और थानेदार बार-बार मेरे सिर पर हाथ फेरकर गुमड़े का साइज़ लेने की कोशिश कर रहा था।

       आखिर में संतुष्ट होकर उसने अपनी डायरी में लिखा "अमरूद जितना बड़ा"! लड़की के चरित्र, घरवालों की पहुंच और मेरे गुमड़े के साइज ने केस को तो रफा-दफा कर दिया परन्तु इस घटना ने मेरे भीतर के इश्क को भी खत्म कर दिया। आज भी जब मैं उसको दिखता हूं तो वो अपने आँखों का शटर हल्की मुस्कान के साथ गिरा लेती है। मेरे मन में Sahdev Dirdo का गाया गाना उभरने लगता है।



जाने मेरी जानेमन,
बचपन का प्यार मेरा।

भूल नहीं जाना रे!!!

जैसा मेरा प्यार है,
जान तुझे किया है,
बचपन का प्यार मेरा।

भूल नहीं जाना रे!!!

जाने मेरी जानेमन,
बचपन का प्यार मेरा।

भूल नहीं जाना रे!!!

जैसा मेरा प्यार है,
जान तुझे किया है,
बचपन का प्यार मेरा।

भूल नहीं जाना रे!!!

1 टिप्पणी:

  1. Wow Bishwajeet bhai aapane to Apne Bachpan ke pyar ko bahut hi sundarta ke sath Apne shabdon mein Apne bayan Kiye Hai but hamen ek shayari yaad aa rahi hai "kisi Ko pana ya khona Apne Bus mein Nahin hota, kisi Ko Badal ke pyar karna, pyar ke Naseeb mein Nahin hota! Sachi Chahat Hai agar usey Paani ki, Toh himmat rakho usey waise hi apnane ki!" Again aapko bahut bahut dhanyvad kyunki aapane Apne Bachpan ke pyar Ko share kar ham sabhi ko romanchit kiye Hain.❤️❤️

    जवाब देंहटाएं