हिन्दी काव्य जगत की देदिप्येमान सूरज राष्ट्रकवि माखन लाल चतुर्वेदी जी की कालजयी रचना✍️
पुष्प🥀 की अभिलाषा
चाह नहीं!!! मैं सुरबाला के,
गहनों में गूँथा जाऊँ।
चाह नहीं!!! प्रेमी-माला में।
बिंध प्यारी को ललचाऊँ।
चाह नहीं!!! सम्राटों के शव पर,
हे हरि, डाला जाऊँ।
चाह नहीं!!! देवों के सिर पर,
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!!!
उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक।
माखन लाल चतुर्वेदी✍️
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें