शनिवार, 18 अप्रैल 2020

बौद्ध साहित्य से कथाएं (जातक, थेरी एवं थेर गाथा)


B.Ed. 1st Year EPC -1 बौद्ध साहित्य से कथाएं (जातक, थेरी एवं थेर गाथा) video link;-https://www.youtube.com/watch?v=_D2uwWLbJWk&t=1s

बौद्ध धर्म:- भगवान बुध्द द्वारा स्थापित धर्म- 

         बौद्ध धर्म की स्थापना ईसा पूर्व छठी शताब्दी में हुई थी । बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध है। भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी नेपाल और महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व कुशीनगर U.P.  में हुआ था।उनके महापरिनिर्वाण के अगले पांच शताब्दियों में बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अगले 2000 वर्षों में मध्य पूर्वी और दक्षिणी पूर्वी जम्मू महाद्वीप में भी फैल गया।

गौतमबुद्ध :- गौतमबुद्ध  का वास्तविक नाम सिद्धांत था। उनका जन्म कपिलवस्तु के पास लुंबिनी में हुआ था।  इसी स्थान पर तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक ने बुद्ध की स्मृति में एक स्तंभ बनाया था।    
           
जातक कथा:-  महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएं जो मान्यता है कि गौतम बुद्ध के द्वारा कही गई है, जातक कथाएं कहलाती है।  जातक कथाओं को विश्व की प्राचीनतम लिखित कहानियों के रूप में माना जाता है। जिसमें लगभग 600 कहानियां संग्रह की गई है । इन कथाओं में मनोरंजन के माध्यम से नीति और धर्म को समझाने का प्रयास किया गया है। 

Note:- जातक कथा भगवान बुध्द के पूर्व जन्म संबंधी कथाएं हैं। इसलिए अधिकतर कहानियों में वे ही प्रधान पात्र के रूप में अंकित है। जातक कथाओं के प्रत्येक कथा में महात्मा बुद्ध का एक संदेश छिपा है इससे सिद्ध होता है कि प्राणी के अच्छे कार्य उसे किसी न किसी जन्म में अवश्य ही बुद्ध बना देते हैं प्रत्येक व्यक्ति बुद्ध बन सकता है वह इस संभावना को कैसे दिशा दें यह भी बताती है यह कहानियां।  प्रस्तुत पुस्तक पाली साहित्य में लिखी गई है जो व्यक्ति को नैतिकता, सत्य, धर्म, प्रेम और भाईचारे का संदेश देती है।

थेरी गाथा:-  यह सबसे पहले रचित एक आत्मकथा है,  थेरी का अर्थ होता है वह बौद्ध भिक्षुणी जो ज्ञान में वयोवृद्ध हो।  और गाथा का अर्थ होता है जो गाकर कही गई हो । थेरीगाथा में 73 भिक्षुणियो की 522 गाथाओं का संग्रह किया गया है जो कि 16 भागों में विभक्त है। ये सभी बौद्ध भिक्षुणियाँ बुद्ध कालीन थी एवं गौतम बुद्ध की शिष्याएं भी थी। महात्मा बुद्ध के द्वारा स्त्रियों का संघ में प्रवेश की अनुमति एक युगांतकारी घटना थी । प्रव्रज्या प्राप्त स्त्रियां थेरी कहलाती थी। प्रव्रज्या को सन्यास आश्रम कहा जाता है। इसका प्रयोग सन्यास या भिक्षु धर्म ग्रहण करने की विधि के अर्थ में होता है । बौद्ध भिक्षुणिओं ने अपने जीवन अनुभव को अत्यंत ही संगीतात्मक एवं आत्म अभिव्यंजना पूर्ण गीत के रूप में काव्य शैली के आधार पर चित्रण किया है।  थेरी गाथाएं तत्कालीन समाज में स्त्री की स्थिति को जानने एवं समझने के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज है।  तत्कालीन भारतीय समाज में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति काफी निम्नस्तर की थी। उन्हें सम्मान प्राप्त नहीं था । इसी परिस्थिति को देखते हुए भिक्षुणी संघ की स्थापना एक बड़ा ऐतिहासिक और साहसिक निर्णय था। भिक्षुणी संघ की स्थापना कराने में आनन्द का विशेष योगदान रहा। उन्होंने  ही भगवान बुध्द से महिलाओं को संघ  में दीक्षित करने के लिए प्रार्थना की थी और तर्क सहित प्रेरित भी किया था । आनन्द भगवान बुद्ध के चचेरे भाई (cousin) थे इनकी माता का नाम बिद्रह कुमारी  तथा पिता का नाम अमितोदम था।  जो शुद्धोधन भगवान बुद्ध के पिता से छोटे थे। बुद्धत्व प्राप्ति के दूसरे साल ही आनंद बौद्ध भिक्षु की दीक्षा प्राप्त कर ली थी । थेरीगाथा ग्रंथ की महत्ता उस समय और अधिक बढ़ जाती हैं जब हमें ये ज्ञात होता है कि इसमें इतिहास के उस कालखंड के विषय में जानकारी प्राप्त होती है जहां भगवान बुध्द ने एक ऐसे समय में महिलाओं को अध्यापन का रास्ता बताया जब समाज में महिलाओं की भूमिका काफी सीमित एवं निम्न स्तर की थी । उन्हें विश्व की रचना एवं प्रगति में भागी मानने के बजाय पुरुषों ने उन्हें बाधक के रूप में देखा हो। तथा इस ग्रंथ द्वारा यह भी जानकारी मिलती है कि स्त्रियां किसी भी दृष्टि से पुरुषों से कम नहीं होती।  वह बहन, मां, पत्नी के अतिरिक्त एक कुशल शिक्षिका एवं उपदेशकर्ता भी बन सकती है।

थेरगाथा:- थेरगाथा में उन बौद्ध-भिक्षुओं की उपलब्धियों का वर्णन है जिन्होंने परम पद प्राप्त कर लिया था।  इस ग्रंथ में बौद्ध संघ का भी सुंदर चित्रण हमें देखने को मिलता है। बौद्ध संघ में दिनो की कुटियो से निकले साधारण लोग भी थे और कपिलवस्तु, वैशाली और राजगृह इत्यादि।  राजभवनों से निकले संपन्न लोग भी।  परंतु संघ में वे सब एक समान थे। धन, बल और पद का कोई भेदभाव नहीं था। वे सभी भगवान बुद्ध की चरणों में आकर आध्यात्मिक समता को प्राप्त कर चुके थे। थेरगाथा में स्वानुभव, स्वाभिमान(Self-Esteem) के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य का भी सुंदर वर्णन मिलता है । समाज में मन को  विक्षिप्त करने वाले अनेक साधन है। लेकिन प्रकृति के वातावरण में मन शांत और एकाग्र हो जाता है। इसलिए बौद्ध भिक्षु प्रकृति की गोद में ही साधना करते थे ।                        
                    थेरगाथा में 264 थेरों की कहानियां संग्रहित की गई है जो कि 21 भागों में विभक्त है । गाथाओं  की कुल संख्या 1279 हैं।  थेरगाथा में परमपद को प्राप्त थेरो  के उद्धारपूर्ण (Exclamation) गाथाएं हैं । अध्यात्मिक साधना के उच्चतम शिखर पर पहुंच चुके साधकों के विजयगान हैं। कुछ गाथाओं  में साधकों की साधना को सफल बनाने में सहायक  प्रेरणाओं  का उल्लेख है।  कुछ गाथाओ  में परमपद को प्राप्त थेरो द्वारा ब्रह्मचारीयो या जनसाधारण को दिए गए उपदेशों का भी उल्लेख मिलता है।

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