गुलिस्ता बोस्ता
गुलिस्ता बोस्ता शेख सादी की एक उपदेशात्मक कथाओं का संग्रह है। अधिकतर उपदेश कथाएँ लघु रूप में निर्मित की गई है। लेकिन सादी ने ये उपदेश बड़े ही सरस एवं सुबोध ढंग से प्रस्तुत किए हैं। सादी की कथा-प्रस्तुति स्वयं उनकी विलक्षण प्रतिभा का प्रमाण है । वह जिस बात को लेते हैं उसे ऐसे उत्कृष्ट और भावपूर्ण शब्दों में वर्णन करते हैं कि आप मंत्र-मुग्ध हो जाएंगे। शेख सादी की विलक्षण बुद्धि कौशल के कुछ नमूने इस प्रकार है- उदा० (1) पेट पापी है, इसके कारण मनुष्य एवं जीव जंतुओं को बहुत ज्यादा कठिनाईयाँ झेलनी पड़ती है। वह इस वाक्य को इस प्रकार वर्णित करते हैं-
यदि पेट की चिंता ना होती तो कोई चिड़िया जाल में ना फंसती, बल्कि कोई बहेलिया जाल ही ना बिछाता।
(2) भीख मांगना जो एक निंदनीय कार्य है उसका अपराध केवल फकीरों पर ही नहीं बल्कि अमीरों पर भी है। वह इस वाक्य को इस प्रकार वर्णित करते हैं-
यदि तुममें न्याय होता और मुझमें संतोष, तो संसार से मांगने की प्रथा ही समाप्त हो जाती।
गुलिस्ता बोस्ता से कथाएं निम्न हैं-
(1) उत्तम उपासना
(2) सुखद समाचार
(3)दो फ़क़ीर
(4)निंदा
शेख सादी
शेख सादी 12वीं सदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार के साथ-ही-साथ महान संत और विचारक थे। उनकी कहानियां मूल पर्शियन भाषा में कही गई है। शेख शादी की शिक्षाप्रद कहानियां सदियों से सारे जगत के लिए प्रेरणास्रोत भी बनी हुई है। शेख शादी का पूरा नाम शेख मुसलिदुद्दीन सादी था। ईरान के दक्षिणी प्रांत में स्थित शीराज नगर में इनका जन्म हुआ था । इनकी प्रारंभिक शिक्षा शिराज में ही हुई । उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए उसने बगदाद के निजामिया कॉलेज में प्रवेश लिया। पढ़ाई समाप्ति के बाद उन्होंने इस्लामी दुनिया के कई भागों में लंबी यात्राएं की। जिसमें सीरिया, तुर्की, इत्यादि। उन्होंने भारत की भी यात्रा की जहां उसने सोमनाथ का प्रसिद्ध मंदिर देखने का जिक्र किया है। (सोमनाथ मंदिर,गुजरात में स्थित है। सरदार बल्लभ भाई पटेल के द्वारा पुनः निर्मित। प्रथम ज्योतिर्लिंग)
सीरिया में एक बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा। जहां से उसके एक पुराने दोस्त ने 10 सोने के दीनार(सिक्के) देकर वहां से मुक्त किया। औऱ 100 दीनार दहेज में देकर अपनी लड़की का विवाह भी सादी से कर दिया। वह लड़की बड़ी ही दुष्ट स्वभाव की थी। वह अपने पिता द्वारा धन दे कर छुड़ाए जाने की चर्चा कर अक्सर सादी का मजाक उड़ाया करती थी। ऐसे ही एक अवसर पर सादी ने उसके व्यग्य का उत्तर देते हुए जवाब दिया- हां तुम्हारे पिता ने 10 दीनार देकर मुझे आजाद तो करवाया था लेकिन फिर 100 दिनार के बदले उसने मुझे पुनः दास्तां/गुलामी (slavery) के बंधन में बांध दिया ।
कई वर्षों की लंबी यात्रा के बाद सादी शिराज लौट आया और अपनी प्रसिद्ध पुस्तक गुलिस्ता-बोस्ता के लिखने का कार्य आरंभ किया। इसमें उसने विभिन्न देशों से प्राप्त अनोखे तथा मूल्यवान अनुभवो का वर्णन किया है। फारस के अन्य कवियों की तरह सादी सूफी नहीं थे। वे व्यवहारिक व्यक्ति थे। जिनमें प्रचुर मात्रा में सांसारिक बुद्धि एवं विलक्षण प्रतिभा विधमान(Present) थी।
निंदा
शेख सादी बाल्यावस्था में अपने पिता के साथ मक्का जा रहे थे। सारी-सारी रात वो कुरान पढ़ते रहे। कई आदमी उनके पास खर्राटे ले रहे थे। सादी ने अपने पिता से कहा, इन सोने वालों को देखिये, कितने आलसी हैं। नमाज पढ़ना तो दूर रहा कोई सुबह उठता तक नहीं। उनके पिता ने उत्तर दिया- बेटा तू भी सोया रहता तो अच्छा था, किसी की निंदा करने से तो बचा रहता।
सच्ची कविता
एक कवि थे, जिसके सामने होते उसकी प्रशंसा में कविता सुनाते उसके बदले में उन्हें इनाम में जो कुछ भी मिलता उससे उनका गुजर-बसर आराम से चल रहा था। एक बार की बात है वह डाकुओं के डेरे पर जा पहुंचे और डाकुओं के सरदार की प्रशंसा में कविता सुनाने लगे।
डाकुओं के सरदार ने कहा- इस मुर्ख को पता नहीं है कि हम डाकू हैं। खून-खराबा, लूटपाट ही हमारा पेशा है और यह हमारी झूठी तारीफों के पुल बांध रहा है। इसके कपड़े उतार कर डेरे के बाहर फेंक दो ।
कवि को देखकर कुत्ते भौकने लगे, कुत्तों को मार भगाने के लिए कवि ने पास ही का पत्थर उठाना चाहा। परंतु वह जमीन में धंसा हुआ था। कवि गुस्से में चिल्लाया:- कैसे कमीने हैं!!! लोग यहां के यहां के, कुत्तों को तो खुला छोड़ देते हैं और पत्थरों को जमीन में गाड़ कर रखते हैं। कवि गुस्से से कांप रहा था। डाकुओं के सरदार ने कवि कि गुस्से भरी यह बातें सुनी तो हंसकर कवि को वापस बुलाया और कहा- तुम तो बड़े बुद्धिमान मालूम होते हो। चलो तुम्हारी इच्छा पूरी की जाएगी। जो चाहते हो मांगो??
कवि बोला- बस मेरे कपड़े वापस कर दीजिए। और मुझे जाने दीजिए। सरदार बोला- बस, अरे भाई कुछ और मांगो। कवि बोला- कामना किसी भले मानस से ही की जाती है आप डाकू हैं। इंसानियत के दुश्मन हैं। लुटेरे हैं। भय और गुस्से से कवि की आवाज कांप रही थी। सरदार उठाकर हंसा और बोला- कवि महोदय, यह जो तुमने अभी कहा ना। यही तुम्हारी सच्ची कविता है। सच्ची कविता वही है, जिसमें सच्ची बातें कही जाएँ।
दो फकीर
एक बार राजा के लोगों को इन फकीरों पर शक हुआ- ये तो हमारे किसी वैरी बादशाह के जासूस हैं। बस, फिर क्या था ? दोनों को पकड़ लिया गया और जेल की काल-कोठरी में डाल दिया गया।
कई दिनों बाद जेल के दरवाज़े खुले। जेल के अधिकारियों ने देखा-दोनों कैदी धरती पर लुढ़के पड़े थे। उन्होंने पास जाकर देखा कि मोटा-तगड़ा कैदी तो दम तोड़ चुका था, पर दूसरा दुबला-पतला कैदी आँखें मूँदें पड़ा था। और कदमों की आहट पाकर उठ बैठा था।
लोगों की हैरानी का ठिकाना ना था। सबको हैरान देखकर एक समझदार आदमी ने कहा- ‘‘ठीक तो है। मोटा-तगड़ा फकीर देखने में ही तगड़ा था। असल में उसमें सहने की ताकत दूसरे से कम थी। वह दिन में कई बार खाता था। पर जब उसको कई दिन तक खाने को कुछ न मिला तो वह कैसे जिंदा रहता ? हाँ, यह जो बचा है, इसने कई बार फाके किये होंगे। इसने भूख को रोक सकने की आदत डाल रखी थी जो इस कठिनाई में काम आई।’’
अपनी भूख और लालसाओं को वश में करने से सचमुच ताकत बहुत बढ़ जाती है।
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