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कला के माध्यम से विचारों (Ideas) भावों (Emotions) एवं इच्छाओं (Wishes) को अभिव्यक्त किया जाता है। कला को विभिन्न नामों से भी पुकारा जाता है।
जैसे:- साहित्य कला, संगीत कला, चित्रकला, मूर्तिकला एवं स्थापत्य कला। इन समस्त कलाओं को ललित कला (Fine Art) कहा जाता है।
विष्णुधर्मोत्तरपुराण में लिखा हुआ है-
"कलानाम प्रवरम चित्रम"
ललित कला में मुख्य रूप से 05 कलाओं की संख्या बताई गई है:-
(1) साहित्य कला
(2)संगीत कला
(3)चित्रकला
(4)मूर्तिकला
(5)स्थापत्य कला
कला की प्रकृति
(The Nature of Art)
कला की प्रकृति का प्रत्यक्ष संबंध मानवीय प्रकृति से है I कला की प्रकृति का आदर्श रूप भाव को सुंदर रूप प्रदान करना है I कला की प्रकृति एक ऐसे सौंदर्य को निरूपित करती है जिसे मनुष्य को आनंद की प्राप्ति होती हैI यदि कला में से सौंदर्य के तत्व को अलग कर दिया जाए तो उसे कला नहीं कहा जा सकता।
कलाकार स्वयं को आनंद प्रदान करने एवं सुख प्रदान करने के लिए अपनी कलाकृति में सुंदरता की रचना करता हैI इस प्रकार सम्मोहन शक्ति के सौंदर्य को ही कला की प्रकृति कहा जा सकता है।
कला एक प्रकार का समाजिक तथा मनुष्य का व्यक्तिगत गुण होता है I कला के माध्यम से भावों एवं विचारों का आदान प्रदान किया जाता है, कला में सत्यम, शिवम, सुंदरम तीनों का ही समावेश रहता है इनके उचित अनुपात के कारण सौंदर्य का संचार होता हैI कला की प्रकृति सत्य पर आधारित रहती है तथा आदान-प्रदान करना इसका प्रमुख केंद्र होता हैI इसके माध्यम से कला सौंदर्य बोध उत्पन्न करने में सफल रहती है। इसलिए कहा जा सकता है कि कला की प्रकृति का अस्तित्व सदैव बना रहता है।
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