B.Ed. 1st Year, EPC - 1 पंचतंत्र की कहानियां (भाग -01) :- Click Here
पंचतंत्र एक नीति कथा है। नीति कथा एक साहित्यिक विद्या है, जिसमें पशु-पक्षियों पेड़-पौधों एवं अन्य निर्जीव वस्तुओं को मानव जैसे गुणों वाला दिखाकर उपदेशात्मक कथा कहीं जाती है। नीतिकथा पद्य एवं गद्य दोनों में हो सकती है। पंचतंत्र, हितोपदेश इत्यादि प्रसिद्ध नीति कथाएं हैं।
संस्कृत नीति कथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना गया है। वर्तमान में यह पुस्तक हमारे समक्ष अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं है फिर भी अनुवादो के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास निर्धारित की गई है। इस ग्रंथ के रचयिता पंडित विष्णु शर्मा है। वर्तमान में पंचतंत्र का अनुवाद 50 से भी अधिक भाषाओं में किया जा चुका है इतनी भाषाओं में इन कहानियों का अनुवाद प्रकाशित होना ही इसकी लोकप्रियता का परिचायक है। पंचतंत्र की कहानियों की रचना का इतिहास भी बड़ा ही रोचक हैं। लगभग 2000 साल पहले पूर्वी भारत के दक्षिणी हिस्से में महिला रोग्यनामक नगर में राजा अमर शक्ति का शासन था उनके तीन पुत्र थे- बहू शक्ति, उग्र शक्ति और अनंत शक्ति।
राजा अमर शक्ति जितने उदार, प्रशासक और कुशल नीतिज्ञ थे उनके पुत्र उतने ही मूर्ख व अहंकारी थे । राजा ने उन्हें व्यवहारिक शिक्षा देने की बहुत कोशिश की परंतु किसी भी प्रकार से बात नहीं बनी । थक हार कर राजा ने अपने मंत्रिमंडल की एक बैठक बुलाई उनके मंत्रियों के समूह में कई कुशल दूरदर्शी और योग्य मंत्री भी थे उन्हीं में से एक मंत्री सुमति ने राजा को परामर्श दिया कि पंडित विष्णु शर्मा सर्वशास्त्रों के ज्ञाता है और एक कुशल ब्राह्मण भी है। यदि राजकुमारों को शिक्षा देने और व्यवहारिक रूप से प्रशिक्षित करने का उत्तरदायित्व पंडित विष्णु शर्मा को सौंपा जाए तो बहुत कम समय में ही वो राजकुमारों को शिक्षित कर सकते हैं।
राजा अमर शक्ति ने पंडित विष्णु शर्मा से अनुरोध किया और उपहार स्वरूप उन्हें एक सौ गांव देने का वचन भी दिया। विष्णु शर्मा ने उपहार को तो अस्वीकार कर दिया और राजकुमारों को शिक्षित करने के कार्य को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और राजा के दरबार में एक घोषणा भी की। मैं यह असंभव कार्य मात्र 6 महीनों में पूरा करूंगा यदि मैं ऐसा ना कर सका तो महाराज मुझे मृत्युदंड दे सकते हैं । विष्णु शर्मा की प्रतिज्ञा सुनकर हर कोई अचंभित हो गया राजा अमर शक्ति निश्चित होकर अपने शासन कार्य में लग गए।
पंडित विष्णु शर्मा ने राजकुमारों को अनेक प्रकार की नीति शास्त्र से संबंधित कथा सुनाई उन्होंने इन कथाओं में पात्रों के रूप में पशु पक्षियों का वर्णन किया पशु पक्षियों को ही आधार बनाकर उन्होंने राजकुमारों को उचित, अनुचित इत्यादि का ज्ञान दिया और इसके साथ ही राजकुमारों को व्यवहारिक रूप से प्रशिक्षित करना आरंभ किया। राजकुमारों की शिक्षा समाप्त होने के पश्चात पंडित विष्णु शर्मा ने इन कहानियों को संग्रहित किया जिसे आज हम पंचतंत्र की कहानियां के नाम से जानते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जब यह रचना पूरी हुई उस समय विष्णु शर्मा की उम्र लगभग 80 वर्ष थी। विष्णु शर्मा ने तीनों राजकुमारों को जिस कहानी के माध्यम से उन्हें नीतिपरक बातें बताई हैं उन कहानियों का संग्रह पांच भागों में किया गया है इसीलिए हम इसे पंचतंत्र कहते हैं।
(01) मित्र भेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)
(02) मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)
(03) संधि- विग्रह/काकोलुकियम (कौवे एवं उल्लूओं की कथा)
(04)लब्ध प्रणाश (हाथ लगी चीज का हाथ से निकल जाना, मृत्यु या विनाश के आने पर क्या समाधान किया जाए)
(05) अपरीक्षित कारक( जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें, हड़बड़ी में कदम ना उठाये )
मनोविज्ञान व्यवहारिकता तथा राजकाज के सिद्धांतों से परिचित कराती यह कहानियां सभी विषयों को बड़े ही रोचक तरीके से हमारे सम्मुख प्रस्तुत करती है एवं साथ ही साथ सीख देने की कोशिश भी करती है।
पंचतंत्र की कुछ कहानियां निम्न है:-
मित्र भेद:- मूर्ख बगुला और नेवला, मूर्ख मित्र (मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु ज्यादा अच्छा होता है) जैसे को तैसा मित्र-द्रोह का फल
मित्र संप्राप्ति:- साधु और चूहा, गजराज और मूषकराज की कथा ब्राह्मणी औऱ तिल के बीज
संधि विग्रह:- कौवे और उल्लू के बैर की कथा, कबूतर का जोड़ा और शिकारी, दो सांपों की कथा (घर का भेदी)
लब्धप्रणास:- बंदर का कलेजा और मगरमच्छ, शेर और मूर्ख गधा
अपरीक्षित कारक:- मूर्ख वैज्ञानिक (जब शेर जी उठा), मित्र की सलाह (संगीतमई गद्य), वानरराज का बदला (लोभ बुद्धि पर पर्दा डाल देता है।)
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