शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

कला समेकित शिक्षा की समझ





D.El.Ed. 1st Year , F-11 कला समेकित शिक्षा की समझ Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=8Nh_cn5ixV4&t=6s

 

कलात्मकता मनुष्य का नैसर्गिक गुण होता है । वह जन्म से ही कलाकार होता है । वह बचपन से ही कला सृजन की सतत प्रक्रिया में लगा रहता है । चाहे दीवार पर आड़ी तिरछी रेखाएँ खींच रहा हो या अपने आस - पास के किसी व्यक्ति की नकल कर रहा हो या किसी डिब्बे को पीट - पीट कर मनचाही आवाज निकालने की कोशिश कर रहा हो या मिट्टी का खिलौना बना रहा हो । इन गतिविधियों में उन्हें जो आनन्द आता है उन्हें शब्दों में कहना कठिन है । कभी अकेले और कभी समूह में उनके क्रियाकलाप चलते रहते हैं , जैसे - गुडे - गुड़िया का खेल , बरसात में कागज की नाव चलाना , जानवरों की आवाज की नकल करना , लकीरों के माध्यम से अपनी दुनिया एवं काल्पनिक दुनिया के लोगों का चित्रण करना , चाहे वह आपको अच्छा लगे या नहीं परन्तु उसमें उनकी सजनात्मकता दिखाई पड़ती है । सामान्यत : यह देखा जाता है कि बच्चे उन कार्यों को करना चाहते हैं जिनमें उन्हें मजा आता हो और मजा के साथ किया गया कार्य सीखने - सिखाने की प्रक्रिया में प्रभावी होता है । सामान्यत : विद्यालयों में जब सीखने - सीखाने की प्रक्रिया शिक्षक केन्द्रित होती है तब उसमें नीरसता आने लगती है । बच्चे शिक्षक के निर्देशानुसार कार्य करने लगते हैं भले ही वह करना चाहता हो या नहीं । प्राथमिक विद्यालयों में कछ ऐसा ही कार्य करने की आवश्यकता है जिससे बच्चों को विद्यालय में रुचि उत्पन्न हो तथा वह मजे से कार्य कर सकें । कला समेकित शिक्षा , सीखने - सिखाने की वैसी प्रक्रिया है जिसमें कला को एक माध्यम के रूप में उपयोग किया जाता है। अर्थात् कला की कई विधाओं , जैसे - दृश्य कला एवं प्रदर्शन कला के अन्तर्गत चित्रकला, मूर्तिकला कई प्रकार के शिल्प, जैसे - मुखोटे बनाना या अन्य सामग्रियों से कई कलात्मक वस्तुओं का निर्माण तथा प्रदर्शन कलाओं में नाटक नत्य, गीत-संगीत आदि को विषयों के साथ जोड कर बच्चों को आनन्ददायी वातावरण में विषयों की समझ पक्की की जा सकती है।

कला समेकित शिक्षा के लिए शिक्षक को कला विशेषज्ञ होना आवश्यक है । परन्तु यह आवश्यक है कि उन्हें कला विधाओं की थोड़ी समझ होनी चाहिए जिसका समावेश वे समझदारी से विभिन्न विषयों में करा सके । कला समेकित शिक्षण तकनीक में बच्चों को अपनी अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता होती है । इसके लिए आवश्यक है कि एक आनन्ददायी वातावरण का निर्माण हो , और वह तभी सम्भव है , जब बच्चा विद्यालय को अपनी मनपंसद जगह मानने लगे। इसके लिए यह आवश्यक है कि विद्यालय की सम्पूर्ण गतिविधियों में बच्चा स्वतंत्र रूप से अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सके । यहाँ यह भी ध्यान रखना होगा की विद्यालय एक कला विद्यालय में न बदल जाए अपितु यह एक ऐसी जगह में तब्दील हो जाए जहाँ प्रवेश करते ही बच्चा आनन्द से भर कर स्वतः सीखने - सिखाने की प्रक्रिया में संलग्न हो जाता है। विद्यालयों में चेतना - सत्र से छुट्टी की अवधि तक प्रतिदिन एक नवाचारी कला गतिविधियों के लिए बच्चों को तैयार करना चाहिए जैसे चेतना सत्र में बच्चों को नये - नये तरीके से खड़ा होना या बैठना , नई प्रार्थना, गीत-संगीत, लघु नाट्य आदि। का समावेश करना, कई अन्य गतिविधियों का समावेश करना, खेल एवं कला का घंटी का सार्थक एवं कलात्मक उपयोग करना, प्रतिदिन विद्यालयीचर्या का समापन एक लघु प्रार्थना, गीत आदि से करना। विद्यालय परिसर को सुरुचिपूर्ण तरीक से सजाने के लिए भी छात्रों को प्रेरित करना चाहिए।

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