विज्ञापन अधिनियम एवं आचार संहिता
(Advertising Acts and Code of Conduct)
विज्ञापन व्यापार की सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं जिससे विज्ञापनकर्ता के व्यापार की वृद्धि होती है तथा वह अधिक लाभ अर्जित करता है। इस अधिक लाभ अर्जित करने की लालसा के कारण ही विज्ञापनकर्ता विज्ञापन द्वारा अपने उत्पाद के बारे में झूठे दावे व झूठी डींगें हाँकने की कोशिश करता है। इन झूठे दावों द्वारा उपभोक्ता का शोषण करने की कोशिश विज्ञापनकर्ता द्वारा की जाती है।
विज्ञापन के निर्माण एवं उसे प्रसारित (जारी) करने के लिए चार स्तर होते हैं:-
(1) विज्ञापनकर्ता
(2) विज्ञापन एजेंसी
(3) विज्ञापन संदेश या वस्तु
(4) माध्यम
विज्ञापन निर्माण में विज्ञापनकर्ता (फर्म) की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस तथ्य को न्यायालय ने भी स्वीकार किया है तथा 'इण्डियन न्यूज पेपर सोसायटी' (आई.एन.एस.) ने भी इसे माना है। इसलिए विज्ञापन के लिए विज्ञापनकर्ता को उत्तरदायी माना जा सकता है। देश में उपभोक्ता सरंक्षण और विज्ञापन सम्बन्धी अनेक अधिनियम हैं जिनकी जानकारी रखना विज्ञापनकर्ता के लिए आवश्यक है। इन अधिनियमों से वह जान सकता है कि जो विज्ञापन वह अपने उत्पाद के लिए जारी कर रहा है वह कानून की परिधि के अन्तर्गत ही हैं। विज्ञापन से सम्बन्धित कुछ अधिनियमों का वर्णन हम यहां कर रहे है जिनका परोक्ष या अपरोक्ष रूप से विज्ञापनों से सम्बन्ध है।
1. स्त्री अश्लील चित्रण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986
2. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986
3. ट्रेड मार्क एक्ट
4. चिन्ह एवं नाम (अनधिकृत प्रयोग पर रोक) अधिनियम, 1950
5. मानहानि अधिनियम
6. औषधि एवं जादुई इलाज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम , 1956
7. कॉपी राइट कानून -1957
8. युवा व्यक्ति (हानिप्रद प्रकाशन) अधिनियम, 1956
9 . प्रेस एवं परिषद् अधिनियम, 1978
10. ड्रग्स एक्ट, 1940
11. आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955
12. पैटेन्ट अधिनियम, 1970
13. प्राइज कम्पीटिशन एक्ट, 1955
14. पुरस्कार प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 1955
15. विदेशी विनिमय रेग्युलेशन एक्ट
16. प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1958
17. सिनेमेटोग्राफी एक्ट
18. भारतीय डाकघर अधिनियम
उपरोक्त अधिनियमों में से कुछ अधिनियम जिनका विज्ञापन से परोक्ष सम्बन्ध है, का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:-
1. स्त्री अश्लील चित्रण (प्रतिषेध) अधिनियम
यह विधेयक सन् 1986 में मार्गेट अल्वा के प्रयासों से पारित किया गया था जिसके द्वारा विज्ञापनों, पत्र-पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में नारी देह के अश्लील चित्रण (प्रदर्शन) पर रोक लगाई गई है, जैसे-
(1) स्त्री का अश्लील चित्रण वह है जिसमें स्त्री-आकृतियों या उसके किसी भी अंग का प्रदर्शन, जिसका प्रभाव अश्लील, अप्रतिष्ठाजनक, स्त्रियों के लिए असम्मानजनक या अपमानकारी अथवा किसी वर्ग या समूह को चोट पहुँचाने वाला हो तो वह अश्लील माना जायेगा।
(2) यह अधिनियम ऐसे सभी विज्ञापनों, पुस्तकों आदि के प्रदर्शन, बेचने एवं प्रसारित करने आदि को प्रतिषेध करता है जिसमें नारी का अश्लील चित्रण किया गया हो।
(3) इस अधिनियम द्वारा दोषी पाये गये व्यक्ति को प्रथम बार दोषी पाये जाने पर दो वर्ष कारावास या दो हजार रुपये तक का दण्ड एवं दूसरी बार व बार-बार दोषी पाये जाने पर कठोर दण्ड दिया जा सकता है।
2. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986
यह अधिनियम उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए बनाया गया है जिसके लिए उपभोक्ता विवादों के निष्पादन करने के लिए उपभोक्ता परिषदों एवं प्राधिकरणों की स्थापना करना शामिल है। इस अधिनियम द्वारा उपभोक्ता के निम्नांकित अधिकारों को संरक्षण मिलता है:-
(1) गुणवत्ता एवं शुद्धता आदि के बारे में जानकारी देने का अधिकार, जिससे उपभोक्ता का शोषण न हो सके।
(2) उपभोक्ता को ठगे जाने या शोषण के विरुद्ध प्रतितोष का अधिकार।
(3) ऐसे उत्पाद या वस्तु के विपणन के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार जिससे संपत्ति और जीवन को खतरा हो।
(4) जहाँ तक सम्भव हो प्रतिस्पर्धी मूल्यों पर वस्तु तक पहुँच का आश्वासन उपभोक्ता को दिये जाने का अधिकार।
(5) उपभोक्ता के मामलों की सुनवाई करने और यह आश्वस्त करने का अधिकार कि उपभोक्ता के हितों के लिए समुचित मंचों (उपभोक्ता परिषदों आदि) में सम्यक् रूप से विचार किया जायेगा।
3. ट्रेड मार्क एक्ट
यह अधिनियम व्यापारिक चिन्हों (ट्रेड मार्क) को सुरक्षा प्रदान करता है। ट्रेड मार्क किसी भी फर्म की ब्राँड छवि होता है जो फर्म के लिए अमूल्य सम्पत्ति की तरह उसकी साख का प्रतीक माना जाता है। ट्रेड मार्क पर निर्माता (फर्म) का अधिकार रहता है तथा यह उसके द्वारा ही प्रयोग किया जा सकता है। कोई भी फर्म अगर दूसरी किसी फर्म का ट्रेड मार्क प्रयोग करती है तो यह अपराध माना जाता है। फर्म द्वारा अपने ट्रेडमार्क का रजिस्ट्रेशन (पंजीकरण) रजिस्ट्रार ट्रेडमार्क के पास करवाया जाता है तथा समय-समय पर इसका नवीनीकरण करवाया जा सकता है।
4. चिन्ह एवं नाम (अनधिकृत प्रयोग पर रोक) अधिनियम
भारत सरकार, राज्य सरकार, राष्ट्रीय ध्वज, देश के राष्ट्रपति, राज्यपालों, सर्वोच न्यायालय, उच्च न्यायालयों के नाम, उनकी मुद्रा (मुहर) का अनधिकृत प्रयोग, निजी विज्ञापनों में करना वर्जित है। इसी प्रकार संयुक्त राष्ट्रसंघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं यूनेस्को आदि ऐसे अन्य संगठनों के नाम एवं उनके प्रतीक चिन्हों का अनुचित प्रयोग निषिद्ध है। भारतीय मुद्रा की नकल अगर विज्ञापन में प्रयोग करनी हो तो इसके लिए भारतीय रिज़र्व बैंक की अनुमति लेना आवश्यक है।
5. मानहानि अधिनियम
इस अधिनियम द्वारा विज्ञापन में किसी व्यक्ति की निजी प्रतिष्ठा पर प्रहार करना, झूठा लांछन लगाना आदि दण्डनीय है। हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपनी प्रतिष्ठा पर होने वाले चरित्र हनन से रक्षा के लिए न्यायालय की शरण ले सकता है।
6. औषधि एवं जादुई इलाज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम
यह अधिनियम उपभोक्ता को ऐसे भ्रामक एवं आपत्तिजनक विज्ञापनों से बचाता है जिनमें जादुई इलाज द्वारा रोगों को चमत्कारिक ढंग से दूर किये जाने का दावा किया जाता है।
7. कॉपी राइट कानून
किसी भी विज्ञापनकर्ता या विज्ञापन एजेन्सी द्वारा तैयार किये गये विज्ञापन पर उसका अपना कॉपी राइट होता है। यह कानून किसी विज्ञापनकर्ता को अन्य विज्ञापनकर्ता के विज्ञापन में प्रयुक्त तत्वों (अगर वे उसके मौलिक हैं) की नकल करने से रोकता है।
8 . युवा व्यक्ति (हानिप्रद प्रकाशन) अधिनियम
इस अधिनियम के अनुसार ऐसे विज्ञापनों एवं प्रकाशनों को निषिद्ध माना गया है, जिनसे किशोर मस्तिष्क में विकार पैदा होने की सम्भावना है।
9. प्रेस अधिनियम
प्रेस अधिनियम के अनुसार प्रत्येक विज्ञापन पर अन्त में विज्ञापन एजेन्सी या प्रकाशक का नाम अंकित होना आवश्यक है।
आचार संहिता
विज्ञापन सामाजिक मूल्यों को प्रभावित करता है इसलिए सामाजिक मूल्यों को बनाये रखने के लिए उपर्युक्त अधिनियमों एवं कानूनों के अतिरिक्त विज्ञापनकर्ताओं के लिए आचार संहिता भी मौजूद है जिसका निमार्ण एडवरटाइजिंग स्टैण्डईस कौसिल ऑफ इण्डिया (ASCI) एवं इण्डियन न्यूजपेपर सोसाइटी (INS) द्वारा किया गया है। विज्ञापनकर्ता एवं विज्ञापन एजेन्सियों द्वारा लोकहित की सुरक्षा और उक्त कानूनों की पालना के लिए आचार संहिता का पालन करना आवश्यक है। इसलिए विज्ञापन में जो संदेश कहा जाये वह सामाजिक आचार-व्यवहार के अनुरूप होना चाहिए। यह आचार संहिता कोई लिखित कानून नहीं है बल्कि सामाजिक मान्यताओं और देश के कानूनों पर आधारित परम्पराएँ हैं जिनका विज्ञापनकर्ता द्वारा पालन किया जाना आवश्यक है।
जैसे:-
1. विज्ञापनकर्ता या विज्ञापन एजेन्सी विज्ञापन की सरंचना इस प्रकार करे कि वह देश के कानूनों के अनुकूल तथा धार्मिक, सामाजिक मान्यताओं और नैतिकता के अनुरूप हो।
2. विज्ञापन में दूसरे विज्ञापनों की नकल नहीं करना तथा तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश नहीं करना चाहिए।
3. विज्ञापन में लोगों में निराशा उत्पन्न करने वाले दावे न हों।
4. ऐसे विज्ञापनों की संरचना नहीं होनी चाहिए जो बच्चों एवं समाज पर कुप्रभाव डालें तथा उनकी सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हों।
5. विज्ञापन द्वारा अन्य विज्ञापनकर्ता या उसके उत्पाद एवं सेवाओं के बारे में अपमानजनक नहीं कहा जाना चाहिए।
6. निजी विज्ञापनों में राष्ट्रीय चिन्हों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
7. ऐसे विज्ञापन जिनका दोहरा अर्थ निकलता हो तथा जो गुमराह करने वाले हों, उनका प्रसारण नहीं करना चाहिए।
8. ऐसे विज्ञापनों का प्रसारण न करना जिनमें किसी जाति, धर्म व्यक्ति व राष्ट्रीयता की निन्दा हो तथा जो विज्ञापन भारतीय व्यवस्थाओं के प्रतिकूल हों।
9. ऐसे विज्ञापन जो नारी चित्रण को अश्लील रूप से प्रदर्शित करते हों, वे प्रसारण योग्य नहीं माने गये हैं।
10. जन-सामान्य के अन्धविश्वासों से अर्जित लाभ का निजी स्वार्थ पूर्ति के लिए विज्ञापन प्रकाशित नहीं करना।
11. बुराई या कमी से ग्रसित विज्ञापन प्रसारित नहीं करना आदि।
अगर कोई विज्ञापनकर्ता आचार संहिता का उल्लंघन करता है या विज्ञापन आचार-संहिता के अनुरूप नहीं है तो उसकी शिकायत 'एडवरटाइजिंग स्टैण्ड्स कौंसिल ऑफ इण्डिया' में की जा सकती है। दोषी पाये जाने पर कौंसिल विज्ञापनकर्ता के विरुद्ध कार्यवाही करती है जिससे उपभोक्ता के अधिकारों को संरक्षण प्राप्त होता है। इस कौंसिल को की गई शिकायत की जाँच उपभोक्ता शिकायत समिति करती है जिसमें 12 सदस्य होते हैं। इसमें विज्ञापन व्यवसाय से सम्बन्धित 04 सदस्य तथा 08 सदस्य अन्य व्यवसायों जैसे पत्रकारिता, चिकित्सा, शिक्षा, इन्जीनियरिंग आदि से सम्बन्धित होते हैं। इस समिति की बैठक में 05 सदस्यों का उपस्थित होना अनिवार्य है। शिकायत प्राप्त होने पर समिति सम्बन्धित विज्ञापनकर्ता या विज्ञापन एजेन्सी (जिसके विरुद्ध शिकायत की गई है) को बुलाकर जाँच-पड़ताल करती है तथा शिकायत को उचित पाये जाने पर सम्बन्धित विज्ञापनकर्ता को विज्ञापन का प्रसारण नहीं करने को कहा जाता है। अगर विज्ञापनकर्ता परिषद् के निर्देश को नहीं मानता है तो यह परिषद् सभी एजेन्सियों, समाचार पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं एवं अन्य विज्ञापन माध्यमों को ऐसे विज्ञापनों को प्रसारित नहीं करने के लिए कहती है और विज्ञापन के प्रसारण को बन्द किया जाता है। इस संस्था का मुख्यालय मुम्बई, महाराष्ट्र में है।
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