इतिहास बताता है कि चेतना के चमत्कारिक उत्कर्ष से ऋषि वाल्मीकि का शोक, श्लोक में बदल गया। प्रथम श्लोक की रचना का वह क्षण ही विश्व की सबसे पहली कविता के अवतरण का पल था। वह श्लोक है👇
अर्थात,
हे निषाद!!! तुमको अनंत काल तक शांति न मिले, क्योंकि तुमने प्रेम💗, प्रणय-क्रिया में लीन असावधान क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक की हत्या कर दी।तब से आज तक कविता दुनिया के समस्त संवेदनशील हृदयों को अशोक करने का दायित्व अत्यंत कुशलतापूर्वक निभाते आ रही है। आज का दिन उसी पावन कविता कल्याणी को समर्पित है जिसकी पुण्य-धार मनुष्य को सदियों से आनंद की अनुभूति कराती आ रही है।
आप सभी काव्य-प्रेमियों🙏 को विश्व कविता दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।🎊💐
इस दिवस पर समर्पित है एक छोटी सी रचना✍️
बदलते दौर के बदलते विमर्श को दर्शाती कविता।
दिलों के अंतः भाव को दिलों तक पहुंचाती कविता।
भावनाओं के धागे में शब्दों के है फूल पिरोती।
प्रेम विरह, दर्द_हर्ष एवं एहसास को सहलाती कविता।
कविता दिवस पर प्रस्तुत डॉ. हरिओम पंवार जी की एक कविता👇
मेरा तो रोज कविता दिवस है।
कविता ही मन है, कविता ही वचन है, कविता ही संघर्ष है, कविता ही हथियार है, कविता ही धर्म है, कविता ही परिवार है, कविता ही दिन है, कविता ही रात है, मेरी कविता मेरी ही नहीं पूरी मानवता की बात है, कविता ही जिंदगी है, कविता ही बन्दगी है, कविता ही प्रेम है, कविता ही साँस है कविता के अतिरिक्त कुछ न मेरे पास है।
-डॉ. हरिओम पंवार✍️
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