शुक्रवार, 25 मार्च 2022

राही मासूम रजां (Rahi Masoom Raza)

 


         हिंदी और उर्दू में समान गति रखने वाले प्रसिद्ध शायर व गीतकार राही मासूम रज़ा साहब की आज पुण्यतिथि है। आज ही के दिन यानी 15 मार्च 1992 को इनकी मृत्यु मुम्बई में हुई थी। यदि इनके जन्म की बात करें तो इनका जन्म 01 सितंबर 1927 को गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था, कई पुरस्कृत फिल्मों के संवाद, पटकथा व गीत लिखने के साथ-साथ उन्होंने सुप्रसिद्ध सीरियल महाभारत की पटकथा को भी अपने शब्द दिए।

       महाग्रंथ के पात्रों को टीवी पर इतने ख़ूबसूरत तरीक़े से जीवंत करने का कमाल उनकी ज़बरदस्त लेखनी✍️ के जादू से ही संभव हुआ। जन-मन को छूती उस अपूर्व लेखनी के अनुपम स्वामी को हम कृतज्ञ दर्शकों एवं पाठकों का नमन। 🙏🏻❤


      रज़ा जी ने न सिर्फ महाभारत की पटकथा, अपितु इतिहास का एक और अध्याय लिखे है। नीम का पेड़ उनकी एक कालजई रचना है। बुधई, सुखई, जामिन मियां, मुस्लिम मियां, इत्यादि। किरदार और अपनी रेशमी आवाज का जादू बिखेरने वाले स्वर्गीय जगजीत सिंह साहब की धारावाहिक में गाए हुए गीत-


"मुंह की बातें सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन, 

आवाजों के बाजारों में खामोशी को पहचाने कौन" 

दर्शकों पर एक अमिट छाप छोड़ चुकी है।


राही मासूम रजां की कुछ चुनिंदा रचनाएं✍️


मिलते कहाँ हैं ऐसे मुहब्बत💗 रसीदा लोग,

करते  रहो  हमारी  ज़ियारत कभी-कभी।


ऐ आवारा यादों फिर ये फ़ुर्सत के लम्हात कहाँ?  

हमने तो सहरा में बसर की तुम ने गुज़ारी रात कहाँ?



इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई,
हम न सोए रात थक कर सो गई।

जिनसे हम छूट गये....

जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं 
शाखे गुल कैसे हैं खुश्बू के मकाँ कैसे हैं। 

ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी 
उस गली में मेरे पैरों के निशाँ कैसे हैं। 

कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल आके देखो मेरी यादों के जहाँ कैसे हैं। 

मैं तो पत्थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया 
आज उस शहर में शीशे के मकाँ कैसे हैं।


और अंत में राही मासूम रज़ा की एक प्रसिद्ध ग़ज़ल का रसास्वादन करते हैं।


हम तो हैं परदेस में देश में निकला होगा चाँद

अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद


जिन आँखों में काजल बन कर तैरी काली रात

उन आँखों में आँसू का इक क़तरा होगा चाँद


रात ने ऐसा पेँच लगाया टूटी हाथ से डोर

आँगन वाले नीम में जा कर अटका होगा चाँद


चाँद बिना हर दिन यूँ बीता जैसे युग बीते

मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद

हम तो हैं परदेस में देश में निकला होगा चाँद

अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद।


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