गुरुवार, 31 मार्च 2022

विज्ञापन (Advertising)


       विज्ञापन का नाम सुनते ही हमारे मानसपटल पर किसी वस्तु को खरीदने या बेचने के लिए कहे गये संदेश का बोध होता है। आदिकाल से वर्तमान तक किसी न किसी रूप विज्ञापन मानव सभ्यता का हिस्सा रहा है। आधुनिक युग में विज्ञापन ने जीवन के हर पहलू को छू लिया है। हर ओर विज्ञापन की अनुगूंज सुनाई देती है अतः वर्तमान समय को हम 'विज्ञापन युग' कह सकते हैं। आधुनिक जीवन शैली पर विज्ञापन का बहुत गहरा प्रभाव है। हमारी जीवन-शैली, रहन-सहन, खान-पान, पहनावे तथा अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुओं के उपभोग को विज्ञापन बहुत अधिक प्रभावित करता है और विज्ञापन व्यक्ति को यह आभास दिलाता है कि उसकी आवश्यकता के अनुसार कौन सी वस्तु (उत्पाद) या सेवा उसके लिए उपयुक्त है, और वह वस्तु या सेवा उसको कहाँ और कैसे उपलब्ध होगी ? 


        भूमंडलीकरण के इस दौर में पिछले एक दशक से जिस उपभोक्तावादी संस्कृति ने जन्म लिया है उसका प्रभाव पूर्ण विश्व🌍 पर दिखाई देता है। आज व्यक्ति सुबह से रात्रि तक अपने को विज्ञापनों से घिरा महसूस करता है। सुबह उठते ही समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में विज्ञापनों को देखता-पढ़ता है, घर से बाहर निकलने पर सड़क पर होर्डिंग, वाल पेंटिंग, पोस्टर या अन्य किसी न किसी रूप में उसे विज्ञापन नज़र आते हैं। इसी के साथ-साथ रेडियो, दूरदर्शन, कम्प्यूटर व अन्य आधुनिक संचार माध्यमों में भी विज्ञापनों की भरमार दिखाई देती है। अतः विज्ञापन हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है जो जीवन शैली एवं संस्कृति को प्रभावित करता है। 


बिहार पर्यटन का विज्ञापन।

          भारत में उपभोक्तावाद आज अपने चरम बिन्दु पर है किन्तु उत्पाद का पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाला परिवर्तन (Life Cycle) अब तक के निचले स्तर पर है। यद्यपि उचित उत्पाद उचित मूल्य बिन्दु पर भी उचित विज्ञापन के द्वारा आगे बढ़ाये बिना बाजार सफल नहीं हो सकता है। इसलिये विज्ञापन आज व्यापार के लिए प्रमुख आधार-शिला है जो किसी भी व्यापार की सफलता की कुंजी है। इसलिए विज्ञापन एक नये व्यवसाय के रूप में उभर कर सामने आया है। आधुनिक इलेक्ट्रोनिक्स माध्यमों ने विज्ञापन के व्यवसाय में एक तरह की क्रान्ति-सी पैदा कर दी है जिसका बोध हमें विज्ञापन पर होने वाले विगत वर्षों के वार्षिक व्यय के आंकलन से मिलता है। 

जैसे- सन् 1988 में भारत में विज्ञापन पर लगभग 200 करोड़ रुपये व्यय होता था जो सन् 1995 में बढ़कर 3500 करोड़ तथा वर्ष 2000 में लगभग 7000 करोड़ रुपये हो गया। वर्ष 2002 में लगभग 9000 करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च किये गये थे तथा वर्ष 2005 में विज्ञापन पर 11915 करोड़ रु. खर्च किये गये जिसमें 47% प्रेस पर, 42% दूरदर्शन, 7.3% बाह्य माध्यमों तथा 1.7% रेडियो पर खर्च किये गये। वर्ष 2007 में यह लगभग 17000 करोड़ रु. तक पहुँच गया तथा वर्ष 2010 में लगभग 26600 करोड़ रु. विज्ञापन पर खर्च किये गये। जिसमें लगभग 47% मुद्रण माध्यमों पर तथा 42% दूरदर्शन पर खर्च किया गया। 

         इसी प्रकार वर्ष 2011 में देश के मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग को अपन आकार का 41% हिस्सा लगभग 30000 करोड़ रु. विज्ञापन प्राप्त हुये जिनम से सबसे अधिक 46% मुद्रण माध्यमों, 39% टी.वी. 6.27% बाह्य विज्ञापन माध्यम (OOH), 5% डिजिटल (इन्टरनेट एवं मोबाइल) तथा सबसे कम 3.83% रेडियो को विज्ञापनों से प्राप्त हुये हैं। डिजिटल माध्यम अन्य माध्यमों (मुद्रण, टी.वी., रेडियो एवं बाह्य) से विज्ञापन आय की संयोजित वार्षिक वृद्धि दर में (CAGR=Compound Annul Growth Rate ) सबसे आगे है। जैसे कि वर्ष 2007 में इसे 400 करोड़ रु. विज्ञापन से प्राप्त हुये तथा वर्ष 2010 में 42% वृद्धि दर के आधार पर लगभग 1000 करोड़ रु. तथा वर्ष 2011 में 54 % की वृद्धि दर से 1540 करोड़ रु. विज्ञापन से आय के रूप में प्राप्त हुये। वर्ष 2012 में मीडिया एवं मनोरंजन इण्डस्ट्री को विज्ञापन से 9% वृद्धि दर से लगभग 32740 करोड़ रु. प्राप्त हुये हैं जिसमें से लगभग 15000 करोड़ रूपये (46%) मुद्रण माध्यम को प्राप्त हुआ है। अनुमान है कि मीडिया एवं मनोरंजन इंडस्ट्री का आकार वर्ष 2016 तक लगभग 145700 करोड़ का हो जायेगा। जिसका लगभग 42% (58600 करोड़ रु.) विज्ञापन का हिस्सा होगा। भारत में विज्ञापन खर्च का GDP (Gross Domestic Product) अनुपात विश्व के 0.8% की तुलना में 0.4% है। 

             विज्ञापन न केवल हमारे देश में अपितु पूरे विश्व में एक तेजी से विकसित होते व्यापार के रूप में उभरा है। औद्योगीकरण के फलस्वरूप अपने-अपने उत्पादों को बेचने की होड़ में विश्व के सबसे आकर्षक खुदरा बाजारों में भारत प्रथम स्थान पर है इसलिए हमारे यहाँ लगभग प्रत्येक कम्पनी का विज्ञापन बजट बढ़ता ही जा रहा है क्योंकि कम्पनियों को बाज़ार में अपने आप को बनाये रखने के लिए विज्ञापन पहली आवश्यकता बन गई है। प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए कम्पनियाँ विज्ञापन बजट को निरन्तर बढ़ा रही हैं। इसका अनुमान हिन्दुस्तान यूनिलिवर (HUL) के बजट से लगाया जा सकता है, जिसका विज्ञापन पर होने वाला व्यय सन् 1995 में 108.08 करोड़ रुपये था जो अन्य प्रतिस्पर्धी कम्पनियों के बाजार में आने से वर्ष 2000-01 में 696.58 करोड़ रुपये तक पहुंचा। HUL ने वर्ष 2007 में भी लगभग 700 करोड़ रु . विज्ञापन पर खर्च किये तथा वर्ष 2009 में यह लगभग 1011.66 करोड़ रु. तक पहुँच गया। वर्ष 2011 में HUL का विज्ञापन व्ययं लगभग 2764.34 करोड़ रू. रहा है जो वर्ष 2012 में लगभग 2634.79 करोड़ रू. तक रहने की सम्भावना है। सामान्यतः कोई समूह या व्यक्ति जो वस्तु, विचार या सेवाएँ बेचना या खरीदना चाहता है लेकिन उसके पास उस वस्तु को खरीदने या बेचने सम्बन्धी उचित जानकारी का अभाव बाजार में है तो वह अपनी वस्तु या सेवाओं की जानकारी विज्ञापन के द्वारा विभिन्न माध्यमों के जरिये ज्यादा से ज्यादा सम्भावित उपभोक्ताओं को दे सकता है। विज्ञापनकर्ता विज्ञापन द्वारा विपणन प्रक्रिया को भी सामान्य रूप से संचालित कर सकता है, जो उस वस्तु या सेवा को बेचने के लिए आवश्यक है। 

विज्ञापन का अर्थ 
(Meaning of Advertising) 

      विज्ञापन एक बहु आयामी विधा है। यह विज्ञापनकर्ता के लिए अपने उत्पादों, सेवाओं या विचारों को बेचने के लिए उपभोक्ता से सम्पर्क करने का सशक्त जरिया है जो उपभोक्ता को आकर्षित कर विपणन प्रक्रिया में एक प्रमुख हथियार के रूप में कार्य करता है।

         विज्ञापन शब्द की संरचना दो शब्दों वि + ज्ञापन के संयोग से हुई है, जिसमें वि का अर्थ है विशेष तथा ज्ञापन का अर्थ है सूचना या जानकारी देना। अर्थात् विशेष सूचना या जानकारी देना ही विज्ञापन है जो अंग्रेजी शब्द Advertising का हिन्दी रूपान्तरण है। Advertising शब्द का निर्माण लेटिन शब्द Adverto से हुआ है, जिसका अर्थ ध्यान दिलाना या आकर्षित करना है। विज्ञापन उपभोक्ता का ध्यान किसी वस्तु, विचार या सेवा की ओर आकर्षित करने का कार्य करता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि सेवाओं एवं व्यापार की वस्तुओं की ओर ध्यान आकर्षण करना ही विज्ञापन है। 

         हर व्यक्ति अपने विचार से विज्ञापन को अलग-अलग रूप से अभिव्यक्त करता हैं। एक सामान्य उपभोक्ता के लिए विज्ञापन उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बाजार में उपलब्ध वस्तुओं की सूचना लेने का माध्यम है। एक उद्योग के लिए अपना उत्पाद बेचने के लिए उसके बारे में जानकारी देने का तरीका विज्ञापन है।  एक कलाकार के लिए विज्ञापन कला है। कुछ के लिए यह उद्योग है व कुछ लोग विज्ञापन को विज्ञान कहते हैं।

आइए हम एक-एक करके इन तीनों टर्म्स को समझते हैं-

  • विज्ञापन एक उद्योग 

       उद्योग के लिए मशीनें, पूँजी, कच्चा माल, श्रमिक शक्ति और उत्पादन आवश्यक माने जाते हैं जो विज्ञापन के लिए भी आवश्यक होते हैं। विज्ञापन निर्माण एवं उसके प्रसारण की प्रक्रिया में भी विभिन्न प्रकार की मशीनों की आवश्यकता होती है। पूँजी के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की मशीनों के प्रयोग से विज्ञापन-विधा से जुड़े अलग-अलग विधाओं के विशेषज्ञों द्वारा विज्ञापन का निर्माण एवं पुनर्उत्पादन किया जाता है। इस आधार पर विज्ञापन को एक उद्योग कहा जा सकता है।

  • विज्ञापन एक विज्ञान 

       विज्ञापन एक विज्ञान है क्योंकि यह सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित होता है जो विपणन निर्णयों को प्रभावित करते हैं। विज्ञान की तरह ही विज्ञापन के निर्माण उसको जारी करने (प्रसारण) के लिए वैज्ञानिक उपकरणों के साथ-साथ वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है तथा निश्चित परिणाम प्राप्त किये जाते हैं विज्ञापन के परिणाम और कार्यक्षमता मापने योग्य होते हैं तथा इसको वैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुसार जाँचा जा सकता है। विज्ञापन योजना के निर्माण में विभिन्न अन्वेषण (बाजार का अन्वेषण, उत्पाद का अन्वेषण आदि) के अतिरिक्त कम्प्यूटर तकनीकी का प्रयोग मुख्य रूप से किया जाता है जो पूर्णतः वैज्ञानिक है। इसलिए विज्ञापन को विज्ञान भी कहा जा सकता है।

  • विज्ञापन एक व्यवसाय 

       व्यवसाय वे मानवीय वैद्य आर्थिक क्रियाएँ हैं जिनका उद्देश्य वस्तुओं एवं सेवाओं के निरन्तर उत्पादन, उनके विनिमय एवं क्रय-विक्रय द्वारा समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करके लाभ कमाना है। आधुनिक युग में विज्ञापन एक व्यवसाय के रूप में परिपुष्ट हो कर सामने आया है। व्यवसाय की तरह ही विज्ञापन द्वारा भी समाज की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बाजार में उपलब्ध वस्तुओं की जानकारी देने का कार्य किया जाता है, जिसमें विज्ञापनकर्ता का उद्देश्य वस्तुओं का क्रय-विक्रय करके अधिक लाभ कमाना ही होता है। इस कार्य के लिए निर्माता विज्ञापन एजेन्सी की सेवायें लेता है। एजेन्सियाँ पैसा लेकर सेवायें देती हैं जो एक वैध आर्थिक क्रिया है। इसमें विज्ञापनकर्ता का उद्देश्य क्रय-विक्रय द्वारा अधिक लाभ कमाना ही होता है। इसलिए विज्ञापन को एक व्यवसाय भी कहा जा सकता है। 

  • विज्ञापन एक कला 

         किसी भी कार्य को सृजनात्मक व प्रभावी ढंग से करना कला है। प्राचीन काल से ही विज्ञापन को एक कला के रूप में माना गया है। विज्ञापन में सृजनात्मकता के साथ-साथ प्रभाव क्षमता का विशेष योगदान रहता है। विज्ञापन की सृजनात्मक योग्यताओं से ही सम्प्रेषण के प्रभावशाली उपाय प्राप्त होते हैं। आधुनिक युग में भी वैज्ञानिक पद्धतियों के प्रयोग ने विज्ञापन में सृजनात्मकता को और अधिक प्रभावशाली बनाया है। विज्ञापन द्वारा उत्पाद या संदेश को कलात्मक दृष्टि से प्रस्तुत किया जाता है जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के कला विशेषज्ञों एवं सृजनात्मकता का रंगों के संयोजन, शब्दों, संदेश और चित्रों के निर्माण में विशेष योगदान रहता है, जिसके कारण विज्ञापन की कलात्मक प्रस्तुति उपभोक्ता को प्रभावित करती है। एक विज्ञापन आकर्षित करने वाला एवं प्रभावी तभी बन सकता है जब उसमें कलात्मक बोध होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विज्ञापन में उद्योग, विज्ञान एवं व्यावसायिक विशेषताओं के होते हुए भी यह एक कलात्मक अभिव्यक्ति है।

विज्ञापन की परिभाषाएँ 
(Definitions of Advertising) 

          वर्तमान में विज्ञापन विभिन्न प्रकार की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं व्यावसायिक समस्याओं के समाधान का औजार बन गया है। अर्थात् विज्ञापन क्या है ? यह जानने के लिए विभिन्न संगठनों एवं विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं से समझा जा सकता है, जो निम्न प्रकार हैं-

अमेरिकन विपणन संघ के अनुसार, "विज्ञापन किसी जाने-पहचाने प्रायोजक द्वारा अपने खर्चे पर किया गया विचारों, वस्तुओं या सेवाओं का अवैयक्तिक प्रस्तुतीकरण या अभिवृद्धि है।" 

अर्थात् विज्ञापन किसी जाने-माने प्रायोजक द्वारा वस्तु या विचार को प्रस्तुत करना है, जो किसी विशिष्ट एक ही के लिए नहीं होता है और जिसके लिए विज्ञापक द्वारा भुगतान किया जाता है। यह परिभाषा इस तथ्य को इंगित करती है कि विज्ञापन भुगतान किया गया अव्यैयक्तिक सम्प्रेषण है अर्थात् यह किसी एक व्यक्ति विशेष के लिए न होकर लोगों के समूह के लिए होता है जो प्रस्तुतीकरण एवं अभिवृद्धि को महत्व प्रदान करता है। इसमें विक्रय संदेश का प्रस्तुतीकरण दृश्य एवं मौलिक रूप में हो सकता है तथा इसमें प्रायोजक को भी मुख्य रूप से महत्व दिया जाता है। 

जोहन एस. राइट, विलिस एल. विनटर एवं एस.के. जीग्लर ने उपर्युक्त परिभाषा को आधार मानकर विज्ञापन की नयी परिभाषा प्रस्तुत की है- "विज्ञापन वृहद् सम्प्रेषण माध्यम के उपाय के रूप में नियन्त्रित, अभिज्ञात सूचना और विश्वास दिलाना है।" 

       यह परिभाषा इस तथ्य को प्रकट करती है कि विज्ञापन की सूचना विज्ञापनकर्ता द्वारा नियन्त्रित होती है क्योंकि विज्ञापन संदेश, माध्यम, समय, स्थान आदि विज्ञापनकर्ता द्वारा नियन्त्रित एवं निर्देशित होते हैं तथा सन्देश किसी विशिष्ट समूह पर निर्देशित होता है। अभिज्ञात यह इसलिए है कि यह विज्ञापनकर्ता एवं उत्पाद की पहचान कराता है अर्थात संदेश के उद्देश्य एवं जरिये (विज्ञापनकर्ता) दोनों की पहचान कराने योग्य होता है। विश्वास दिलाना विज्ञापन का मुख्य विषय होता है जो लक्षित उपभोक्ता को आकर्षित करने के लिए सृजनात्मक रूप से तैयार किया जाता है तथा इसे जारी करने के लिए वृहद् सम्प्रेषण माध्यमों (समाचार पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, दूरदर्शन आदि) का प्रयोग किया जाता है।

फिलिप कोटलर के अनुसार, "विज्ञापन संप्रेषण का अवैयक्तिक रूप है जो सुनिश्चित प्रायोजक के अधीन भुगतान किये गये माध्यम द्वारा संचालित किया जाता है।"

शेल्डन का मत है कि "विज्ञापन वह व्यवसायिक ताकत है, जिससे मुद्रित शब्दों द्वारा विक्रय वृद्धि में सहायता मिलती है तथा साख बढ़ती है एवं ख्याति बनती है।" 

एस. डब्लु. डुन और ए.एम. बारबन ने कहा है कि, "विज्ञापन व्यवसायिक फर्मों द्वारा अपने खर्चे पर विभिन्न माध्यमों के जरिये किया गया अवैयक्तिक सम्प्रेषण हैं।"

लार्ड एण्ड थॉमस विज्ञापन एजेन्सी के कॉपी राइटर जोहन ई. कैनडी ने 1905 में विज्ञापन को परिभाषित करते हुए "मुद्रित विक्रय कला" को विज्ञापन कहा है। 

रॉबर्ट वी. जाचर ने विज्ञापन को परिभाषित करते हुए कहा है, "विज्ञापन एक सशक्त संचार माध्यम है जो वस्तु, सेवा या विचार बेचने में औज़ार का कार्य करता है।" 

रोजर रीवज़ का कथन है, "विज्ञापन एक व्यक्ति के मस्तिष्क से दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क में एक विचार को स्थापित करने की कला है।" 

लीच के अनुसार, "विज्ञापन में चार तत्त्व होते हैं- वस्तु, उपभोक्ता, माध्यम और उद्देश्य।" 

फ्रेंक जैफकिन का विचार है, "विज्ञापन हमें बताता है कि हम क्या बेच सकते हैं और हमें क्या खरीदना है।" 

लस्कर ने कहा है, "विज्ञापन मुद्रित रूप से विक्रय की कला है।" 

एच. जी. वेल्स की मान्यता बहुत रोचक है। वह कहते हैं, "वैध झूठ का दूसरा नाम विज्ञापन है।"  

रॉबर्ट जे. लेविस एवं गेरी ए. स्टेनर ने विज्ञापन के कई कदमों की चर्चा की है, "विज्ञापन लोगों में वस्तु के बारे में जागृति पैदा करते हैं, उन्हें जानकारी एवं ज्ञान देते हैं। उनमें पसन्द को जागृत करते हैं तथा लोगों में खरीद के लिए पहल पैदा करके उनकी धारणा को सम्बल प्रदान करते हैं और अन्त में खरीद और बार-बार खरीद के लिए प्रेरणा का कार्य करते हैं। 

रौलेण्ड हाल कहते हैं, "विज्ञापन विक्रय-कला की ऐसी प्रणाली है जिसमें वस्तु की लेखन, मुद्रण तथा चित्रण द्वारा सूचनाएँ दी जाती हैं।" 

फ्रैंक प्रेस्बी के मतानुसार, "विज्ञापन मुद्रित, लिखित, उच्चारित एवं चित्रित विक्रय-कला है।" 

        उक्त विद्वानों के विचारों से हम विज्ञापन के विषय में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल सकते हैं 

1. विज्ञापन एक संचार व्यवस्था है, जो उपभोक्ता को वस्तु या सेवाओं के लिए आकर्षित करने की कोशिश करता है जिससे विज्ञापनकर्ता को अधिक से अधिक लाभ मिल सके। 

2. विज्ञापन किसी सूचना या संदेश का ललित प्रस्तुतीकरण है, जो अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को वस्तु खरीदने के लिए प्रेरित करता है। 

3. व्यापारिक वस्तुओं एवं सेवाओं की उपयोगिता की ओर ध्यान आकर्षण करना ही विज्ञापन है। 

4. विज्ञापन व्यवसाय लिए एक औज़ार के रूप में कार्य करता है जिससे वस्तु की बिक्री बढ़ती है। 

5. विज्ञापनकर्ता, विज्ञापन द्वारा अपने विचारों से उपभोक्ता को प्रभावित करने की कोशिश करता है।

6. विज्ञापन, विज्ञापनकर्ता की विक्रय हेतु प्रस्तुत वस्तु की पैरवी का कार्य करता है। 

        उपर्युक्त सभी विचारों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि विज्ञापन एक जाने-माने प्रायोजक द्वारा अपने खर्चे पर विभिन्न माध्यमों के जरिये दिया गया नियंत्रित कलात्मक संदेश है जो एक विशिष्ट उत्पाद या सेवा पर विश्वास दिलाता है जिससे उस उत्पाद या सेवा की बिक्री अभिवृद्धि होती है।

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