मंगलवार, 29 मार्च 2022

ये बताओ इसमें क्या मेरी ख़ता, आपका ग़र दिल💗 दीवाना हो गया।


रोज़ ही घर उनके जाना हो गया, 

काम का तो बस बहाना हो गया।


दिल के कितने बोझ हल्के हो गए, 

आपका जो मुस्कुराना हो गया। 


पूछना मेरा कि क्यूँ हैं दूरियां, 

उनका बातों को घुमाना हो गया।


ये बताओ इसमें क्या मेरी ख़ता, 

आपका ग़र दिल💗 दीवाना हो गया।


खूबियां अब मुझमें कुछ दिखती नहीं, 

दोस्त उनका मैं पुराना हो गया।


हम वफ़ा के इम्तेहाँँ देते रहे, 

और उनका आज़माना हो गया।


बात ये लग जाए ना कुछ को बुरी, 

चुप रहें ग़र सच बताना हो गया।


पुनीत कुमार माथुर 'परवाज़'✍️

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें