किसकी है जनवरी,
किसका अगस्त है?
कौन यहाँ सुखी है, कौन यहाँ मस्त है?
सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है,
गालियाँ भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है।
चोर है, डाकू है, झुठा-मक्कार है।
कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है।
जैसे भी टिकट मिला,
जहाँ भी टिकट मिला,
शासन के घोड़े पर वह भी सवार है।
उसी की जनवरी छब्बीस
उसी का पन्द्रह अगस्त है।
बाक़ी सब दुखी है, बाक़ी सब पस्त है…..
कौन है खिला-खिला, बुझा-बुझा कौन है
कौन है बुलन्द आज, कौन आज मस्त है?
खिला-खिला सेठ है, श्रमिक है बुझा-बुझा
मालिक बुलन्द है, कुली-मजूर पस्त है।
सेठ यहाँ सुखी है, सेठ यहाँ मस्त है।
उसकी है जनवरी, उसी का अगस्त है।
पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है।
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है।
फ्रिज है, सोफ़ा है, बिजली का झाड़ है।
फै़शन की ओट है, सब कुछ उघाड़ है।
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है।
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
मास्टर की छाती में कै ठो हाड़ है।
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
मज़दूर की छाती में कै ठो हाड़ है।
गिन लो जी, गिन लो जी, गिन लो
बच्चे की छाती में कै ठो हाड़ है।
देख लो जी, देख लो जी, देख लो
पब्लिक की पीठ पर बजट पर पहाड़ है।
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है।
पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है।
फ़्रिज है, सोफ़ा है, बिजली का झाड़ है।
महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है।
ग़रीबों की बस्ती में
उखाड़ है, पछाड़ है।
धत तेरी, धत तेरी, कुच्छो नहीं!! कुच्छो नहीं!!
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है।
ताड़ के पत्ते हैं, पत्तों के पंखे हैं।
पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है।
कुच्छो नहीं, कुच्छो नहीं…..
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है।
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है।
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है।
कौन यहाँ सुखी है, कौन यहाँ मस्त है।
सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्त है।
मन्त्री ही सुखी है, मन्त्री ही मस्त है।
उसी की है जनवरी, उसी का अगस्त है।
बाबा नागार्जुन✍️
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