गुरुवार, 31 मार्च 2022

लिपि (Script)


         मनुष्य ने अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए किसी न किसी रूप में सर्वप्रथम भाषा का प्रयोग किया। सभ्यता के विकास के साथ ही मनुष्य ने अपने विचारों को सुरक्षित रखने के लिए चित्रों व संकेतों आदि का प्रयोग प्रारम्भ किया जिससे लिपि का विकास हुआ। लिपि कुछ निर्धारित चिन्हों के रूप में भाषा के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है। दूसरे शब्दों में लिपि भाषा का लिखित रूप है। संसार के सभी देशों में किसी न किसी रूप में (चित्रो भावात्मक चित्र, कीलाक्षर लिपि एवं ध्वन्यात्मक चिन्हों) लिपि का विकास हुआ है। लिपि व भाषा मानव विकास का अभिन्न अंग हैं। लिपि भाषा का वाहन है। 


लिपि का वर्गीकरण

(Classification of Script) 


(1) चित्रात्मक लिपि (Pictographic Script) 

(2) संकेतात्मक या भावात्मक लिपि  (ldeographic Script) 

(3) ध्वन्यात्मक लिपि ( Phonetic Script ) 


1. चित्रात्मक लिपि- आदिकाल में मनुष्य अपने विचारों के आदान-प्रदान के लिए दैनिक उपयोग एवं आसपास की वस्तुओं के चित्रों का प्रयोग करता था। जैसे प्याला☕, चेहरा😊, पानी🌊, पशु-पक्षी🐒🐓, पेड़🌴, पहाड़⛰️, आदि। इन चित्रों के अर्थ केवल उसी वस्तु तक सीमित होते थे। कुछ देशों, जैसे:- अफ्रीका, पीरू, जापान व चीन में सूत्रात्मक लिपि का भी प्रचलन था जिसमें रस्सी में गाँठ लगाकर संदेश भेजने का कार्य किया जाता था। 


2. संकेतात्मक या भावात्मक लिपि- लिपि के विकास में मनुष्य द्वारा लिपि के लिए बनाऐ गये चित्र अब संकेत व भाव प्रकट करने लगे थे। जैसे- प्याले के साथ चेहरा🥣😊 खाने का संकेत देता था, पानी के साथ चेहरा🌊😊 पानी पीने का संकेत देता था, आँख के ऊपर हाथ बनाना, देखने का तथा सूर्य🌅, गर्मी का संकेत भी देता था। उस समय की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं में इस लिपि का प्रयोग होता था। 


3. ध्वन्यात्मक लिपि- शब्दों के लिए चिन्ह निर्धारित करना एक महान और दुर्लभ कार्य था। मानव के विकास के साथ-साथ अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जब प्रारम्भिक भावात्मक शब्द (चित्र) कम पड़ने लगे तो चित्रों की जगह चिन्ह निर्धारित होने लगे जिन्होंने विकास करते हुए अक्षरों का रूप ले लिया। माना जाता है कि सर्वप्रथम मिश्र में अक्षरों वाली लिपि का निर्माण हुआ था जिसमें सिर्फ व्यंजन ही थे। इस लिपि में 24 अक्षर थे। मिश्र के पड़ोसी देश फिनिशिया के लोगों ने इस कार्य को आगे बढ़ाया और आज कुछ देशों (भारत, चीन, जापान, आदि) को छोड़कर विश्व के सभी देशों में किसी न किसी रूप में उसी लिपि के परिवर्तित रूप का प्रयोग होता है। फिनिशिया के लोगों द्वारा 1500 ई. पू. में ध्वन्यात्मक लिपि में चित्रों में ध्वनि का प्रवेश कराया गया। जैसे:- मिश्र की भाषा में बैल को अलिफ तथा फिनिशिया में भी अलिफ को अलपू कहा जाता था। अलिफ के सिर के चित्र को अलिफ की जगह काम लिया गया तथा धीरे धीरे यह अलिफ के सिर का चित्र अंग्रेजी का A बन गया। ऐसे ही आँख को ऐन (अयीन) कहा जाता था जो समय के साथ - साथ  O से O बन गया और इसी तरह अन्य सभी अक्षरों का विकास हुआ। इस प्रकार फिनिशिया के लोगों ने विभिन्न ध्वनियों के आधार पर चिह्न बनाये जिनसे लिखना सरल हो गया। ध्वन्यात्मक लिपि में चिन्ह किसी वस्तु या भाव को प्रकट नहीं करते थे, वे सिर्फ ध्वनि को प्रकट करते थे। इस ध्वन्यात्मक लिपि को भी तीन भागों में वर्गीकरण किया जा सकता है:-


(क) अक्षरात्मक लिपि (Syllable) 

(ख) वर्णात्मक लिपि (Alphabetic) 

(ग) रेखाक्षरात्मक लिपि (Logograph) 


क. अक्षरात्मक लिपि:- इस लिपि में चिन्ह किसी अक्षर को व्यक्त करते हैं। हमारी देवनागरी लिपि अक्षरात्मक लिपि है जिसके अक्षरों में दो वर्ण मिले होते हैं, जैसे क में क् + अ या ब में ब् + अ अक्षर स्वरांत हैं। जिस तरह हिन्दी में राज लिखने पर ज्ञात नहीं होता कि इसमें कौनसे वर्ण हैं लेकिन रोमन लिपि में RAJ लिखने से पता चलता है कि इसमें तीन वर्ण हैं। अरबी, फारसी, बंगला, गुजराती, पंजाबी तथा उड़िया अक्षरात्मक लिपियाँ हैं। 


ख. वर्णात्मक लिपि:- यह लिपि का वैज्ञानिक रूप है जिसमें ध्वनि की प्रत्येक इकाई के लिए अलग चिन्ह निर्धारित किये गये हैं। यह लिपि की अन्तिम सीढ़ी हैं। रोमन लिपि (ABC) वर्णात्मक लिपि है। 


ग. रेखाक्षरात्मक लिपि:- इस लिपि में प्रत्येक शब्द के लिए अलग-अलग रेखा चित्र निर्धारित किये गये हैं। इस लिपि में अक्षरो की जगह रेखाओं का प्रयोग किया जाता है। इस लिपि में चीनी व जापानी लिपियाँ आती हैं। लेकिन जापान और चीन ने अपनी लिपि को सरल बनाने के लिए वर्गों का प्रयोग आरम्भ किया है। 

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