शुक्रवार, 25 मार्च 2022

विज्ञापन का इतिहास (History of Advertising)

विज्ञापन का इतिहास 
(History of Advertising) 

         आदिकाल से ही मानव सभ्यता के क्रमिक विकास पथ में विज्ञान और कलाओं के साथ-साथ विज्ञापन का भी विकास और विस्तार होता रहा है। विज्ञापन का इतिहास मानव सभ्यता के विकास के साथ ही जुड़ा है। आदिकाल से वर्तमान तक के वैज्ञानिक युग में मानव किसी न किसी रूप में कम या अधिक अपनी आवश्यकताओं के अनुसार विज्ञापन पर निर्भर रहा है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ संचार माध्यम बदलते रहे हैं और उन्हीं माध्यमों के सहारे विज्ञापनों का स्वरूप भी बदलता रहा है। 

           विज्ञापन के इतिहास का अध्ययन हम प्राक्-ऐतिहासिक काल की चित्रकला के अध्ययन से करें तो उसमें ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जिनमें चित्रों द्वारा, चिन्हों द्वारा, डुग-डुगी बजाकर मानव अपने विचारों की अभिव्यक्ति करता था। इन्हीं चित्रों एवं चिह्नों से ही विभिन्न चरणों में आधुनिक लिपि का विकास हुआ और लिपि वृहत् सम्प्रेषण के लिये मानव सभ्यता का सबसे प्रभावी माध्यम बनी जिसके द्वारा विभिन्न शासकों ने अपनी घोषणाएं शिलालेखों एवं अभिलेखों पर लिखवाई थी, जो उस समय के अनुसार किसी न किसी रूप में 'विज्ञापन कला' का ही स्वरूप थे। हमारे आदि ग्रन्थ 'रामायण' और 'महाभारत' में भी इस प्रकार के उदाहरण मिलते हैं जो एक तरह के तात्कालिक युग के विज्ञापन कहे जा सकते हैं। अनेक राजाओं द्वारा उद्घोषक नियुक्त किये जाते थे जो राजाओं द्वारा दी जाने वाली सूचनाओं को पूरे राज्य में प्रसारित करते थे, जिसका सुधरा हुआ स्वरूप आज विज्ञापनों में देखने को हमें प्राप्त है।

         लिपि के पश्चात मुद्रण का आविष्कार मानव सभ्यता का महत्वपूर्ण आविष्कार था, वृहद सम्प्रेषण के विभिन्न माध्यम विकसित हुये। सर्वप्रथम चीन में बौद्धों द्वारा प्रथम सदी में लकड़ी के ब्लॉक बनाकर मुद्रण का प्रारम्भ किया गया था लेकिन 1440 ई. में मुद्रणकला के गतिशील अक्षरों से मुद्रण के आविष्कार ने विज्ञापन कला को एक नया आयाम प्रदान किया जिससे प्रपत्रों व पोस्टरों द्वारा विज्ञापन किये जाने लगे। वैज्ञानिक विकास (संचार एवं परिवहन) के साधनों के विकास के साथ विज्ञापन का भी विकास होता रहा है। 20वीं सदी में तो विज्ञापन माध्यमों में आये बदलाव के कारण विज्ञापन में क्रान्तिकारी परिवर्तन आये हैं और विज्ञापन का स्वरूप ही बदल गया है। 

विज्ञापन के इतिहास को हम निम्नलिखित चार कालों में विभक्त कर सकते हैं-

  • (1) मुद्रण से पूर्व एवं प्रारम्भिक मुद्रण काल (प्रारम्भ से 1840 ई. तक) (Pre-Printing and Early Printing Period) 
  • (2) विज्ञापन का विस्तार काल (1840 ई. से 1900 ई. तक) (Period of Expansion) 
  • (3) विज्ञापन का वैज्ञानिक विकास काल (1900 ई. से 1945 ई. तक) (Period of Scientific Developing) 
  • (4) विज्ञापन का व्यवसायिक एवं आधुनिक विकास काल (1945 ई. से वर्तमान तक) (Period of Business and Modern Development) 

1. मुद्रण से पूर्व एवं प्रारम्भिक मुद्रण काल 
     (आरम्भ से 1840 ई. तक) 

        प्रारम्भिक काल में व्यक्ति अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए चित्रों एवं चिन्हों का प्रयोग करता था। रोम, मिश्र तथा उसी काल की अन्य सभ्यताओं में भी अपने संदेश को कहने और वस्तुओं को बेचने के लिए चित्रों, चिन्हों, चिल्लाकर एवं डुग-डुगी बजाकर लोगों का ध्यान आकर्षण करने के तरीकों से विज्ञापन किया जाता था।

         प्राचीन रोमन शहर पम्पई (Pompeii) में मिले अवशेषों से पता चलता है कि सामान बेचने वाली जगहों (दुकानों) के बाहर दीवारों पर चिन्ह अंकित किये जाते थे जिससे राह चलते लोगों को यह आसानी से पता चल जाता था कि इस स्थान पर कौन-सी वस्तु उपलब्ध है। पम्पई में लैटिन भाषा में लिखे हुए कुछ विज्ञापन भी मिले हैं जो देखने में आज के वर्गीकृत विज्ञापनों जैसे दिखते हैं। 
वर्गीकृत विज्ञापन का एक उदाहरण।


प्राचीन रोम व ग्रीस में भी दुकानों के बाहर चिन्ह बनाने के प्रमाण मिलते हैं।

पम्पई की दीवारों पर बनाए गए विज्ञापन।

       भारत में सिन्धुघाटी की सभ्यता के समय की प्राप्त मोहरों से भी अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय व्यापारी उन मोहरों का प्रयोग व्यापार के लिए आधुनिक प्रतीक चिन्ह व लोगो (ट्रेडमार्क) के रूप में करते रहे होंगे। ब्रिटिश संग्रहालय लंदन में मिश्र का 3000 वर्ष पुराना विज्ञापन है जो कागज पर हाथ से लिखा हुआ है। रोम के सम्राट जूलियस सीजर ने प्रथम सदी में एक हस्त लिखित Acta Diurna नामक समाचार-पत्र निकाला था जिसमें विज्ञापन भी होते थे। रोमन सभ्यता के पतन का काल विज्ञापन की दृष्टि से भी अन्धकारमय रहा है। विज्ञापन का यह अन्धकारमय काल (Dark Ages) 400 ई. से 1400 ई. तक रहा जब लिखना और पढ़ना कुछ असाधारण लोगों तक सीमित था। सम्भवतः इस काल में ध्वनियों द्वारा विज्ञापन किया जाता था जिसमें होर्न व घंट्टियों का प्रयोग ध्यानाकर्षण के लिए किया जाता था तथा कहीं-कहीं अपने उत्पादों के लिए आवाज लगा कर लोगों का ध्यान आकर्षित किया जाता था तथा फेरीवाले गली-गली, कस्बे-कस्बे जाकर उत्पाद बेचते थे।

    सन् 1440 में जर्मनी के जोहन गुटेनबर्ग ने गतिशील अक्षरों का आविष्कार किया। गुटेनबर्ग ने 42 लाईनों वाली बाइबिल का मुद्रण किया जिसे यूरोप की प्रथम मुद्रित पुस्तक माना जाता है। वैसे तो चीन में पेई सेंग द्वारा 1040 ई. में लकड़ी के ब्लॉक बनाकर (मिट्टी के अलग-अलग अक्षर बनाकर उन्हें पकाने के पश्चात एक लकड़ी के ब्लॉक में एक साथ रखकर) गतिशील अक्षरों से मुद्रण किया जाने लगा था।

जोहन गुटेनबर्ग द्वारा मुद्रित बाईबिल।

      लेकिन गुटेनबर्ग द्वारा किया गया आविष्कार भविष्य में सूचना, शिक्षा व विज्ञापन के लिए महत्त्वपूर्ण कदम साबित हुआ। इसी समय विश्व के अन्य देशों में भी मुद्रणकला का विस्तार हुआ जिसने विज्ञापन को मुद्रित रूप प्रदान किया। 

      सर्वप्रथम 1473 ई. में विलियम कैक्सटोन ने अंग्रेजी भाषा में पहला प्रतीक चिह्न मुद्रित किया। इस तरह विलियम कैक्सटोन ने ही 1477 ई. में अंग्रेजी भाषा में प्रथम विज्ञापन मुद्रित किया, जो एक पोस्टर (हैण्डबिल) के रूप में था। 16वीं और 17वीं सदी में अधिकतर हाथ से लिखे हुए पोस्टरनुमा विज्ञापन ही होते थे। मुद्रण के विकास के कारण इंग्लैण्ड में 17वीं सदी के मध्य तक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का प्रकाशन हुआ, जिनमें उद्यमियों और व्यवसायियों द्वारा अपने-अपने उत्पादों की घोषणा की जाने लगी। प्रारम्भिक विज्ञापन घोषणा के रूप में ही होते थे।

विलियम कैक्सटोन द्वारा मुद्रित प्रथम पोस्टर 


        सर्वप्रथम 1622 ई. में अंग्रेजी भाषा का मुद्रित समाचार-पत्र वीकली न्यूज ऑफ लंदन (Weekly news of London) प्रकाशित किया गया और 1625 ई. में अंग्रेजी भाषा के विज्ञापन प्रकाशित किए गए।

      प्रारम्भिक मुख्य विज्ञापनकर्ता इंग्लैण्ड के लिये नये उत्पाद आयातकर्ता थे। इनके द्वारा सन् 1652 में पहली बार एक साप्ताहिक समाचार-पत्र में कॉफी का विज्ञापन प्रकाशित हुआ। उसके पश्चात् 1657 ई. में चॉकलेट तथा 1658 ई. में चाय का विज्ञापन प्रकाशित हुआ जो घोषणाओं के रूप में थे। सन् 1702 में पहला दैनिक समाचार-पत्र डेली करन्ट (Daily Current) इंग्लैण्ड में प्रकाशित हुआ जो विज्ञापन के लिए एक आदर्श माध्यम था। इंग्लैण्ड में समाचार पत्रों एवं विज्ञापनों पर कर लगाया जाता था जबकि अमेरिका में इन पर कोई कर नहीं लगाया जाता था। इसलिये इंग्लैण्ड की अपेक्षा अमेरिका में विज्ञापनों का तेजी से विकास हुआ। 24 अप्रैल 1704 को अमेरिका से प्रकाशित बोस्टन न्यूज लैटर्स (Bosten News Letters) नामक साप्ताहिक समाचार-पत्र में भी मकान और दुकान बेचने सम्बन्धी विज्ञापन प्रकाशित हुए थे जो उस समय इंग्लैण्ड के समाचार-पत्रों में प्रकाशित विज्ञापनों से प्रभावित थे। सन् 1741 में फिलाडेलफिया में दो पत्रिकायें प्रकाशित हुईं, जिनमें विज्ञापन भी थे। लगभग 1750 ई. में इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के प्रारम्भ ने विज्ञापन को बढ़ावा दिया जिसके प्रभाव से धीरे-धीरे अमेरिका में भी औद्योगिक क्रान्ति से वस्तुओं का निर्माण बढ़ा जिन्हें बेचने के लिए विज्ञापन की जरूरत ज्यादा जोर पकड़ने लगी। 

     18वीं सदी में प्रकाशित होने वाले विज्ञापनों में वस्तु के प्रतिस्पर्धात्मक गुणों की चर्चा अधिक होती थी। इस समय मुद्रित विज्ञापन सामान्य रूप से प्रयोग किये जाते थे। इस सदी के मध्य तक विज्ञापन के स्वरूप में बहुत सुधार हो चुका था जिसे देखते हुए 1759 ई. में सैमुअल जॉनसन ने कहा था कि विज्ञापन पूर्णता के इतना समीप है कि इसमें सुधार का प्रस्ताव आसान नहीं है। सन् 1774 तक अमेरिका में लगभग 31 समाचार पत्र प्रकाशित होने लगे थे जिनमें विज्ञापन भी प्रकाशित किये जाते थे। सन् 1800 में पहली पूर्णत: लोहे की मुद्रण मशीन का आविष्कार हो चुका था और सन् 1814 में भाप से चलने वाली मशीन से दी टाइम्स (The Times) समाचार पत्र का प्रकाशन किया गया था। इसी मुद्रण मशीन के कारण 1830 ई. तक अमेरिका में लगभग 1200 पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित होने लगी थीं जिनमें काफी संख्या में विज्ञापन भी होते थे। इन विज्ञापनों में विभिन्न प्रकार के टाइपों का प्रयोग किया जाता था। 

2. विज्ञापन का विस्तार काल 
    (1840 ई . से 1900 ई. तक) 

        19वीं सदी का मध्यकाल विज्ञापन के लिए महत्त्वपूर्ण रहा जब अमेरिका में औद्योगिक क्रान्ति और परिवहन का विकास हुआ तो इसके साथ-साथ विज्ञापन का भी विकास हुआ। उद्योगों में अधिक उत्पादन शुरू हुआ और नयी-नयी वस्तुओं का निर्माण होने लगा निर्मित वस्तुओं की जानकारी देने के लिए विज्ञापनों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुई क्योंकि उत्पाद निर्माताओं ने अपने उत्पादों के लिए डीलरों एवं खुदरा विक्रेताओं को आकर्षित करने के लिये विज्ञापनों का सहारा लिया था। मुद्रण मशीनों और परिवहन के साधनों के विकास के कारण पत्र-पत्रिकाओं का लोगों तक पहुँचाना सस्ता एवं आसान हो गया इसलिए अधिक संख्या में लोग पत्र पत्रिकायें पढ़ने लगे तथा पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापनों की संख्या भी बढ़ने लगी। 

        वाल्नी पामर पहला व्यक्ति था जिसने 1840 ई. में पत्र-पत्रिकाओं में स्थान खरीदने-बेचने वाले (Sapace Brocker) के रूप में कार्य प्रारम्भ किया जो आधुनिक विज्ञापन एजेन्सी का प्रारम्भिक रूप था। वाल्नी पामर पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशकों से विज्ञापन के लिए कम लागत में विज्ञापन के लिए थोक में स्थान खरीदता और उसे विज्ञापनकर्ताओं को अधिक कीमत में बेच देता था। सन् 1798 में जर्मनी में आविष्कृत की गई मुद्रण की नई तकनीक लिथोग्राफी द्वारा 1843 ई. में रंगीन पोस्टर, पुस्तकों एवं पत्रिकाओं आदि के लिये रंगीन चित्रों का मुद्रण किया जाने लगा था।

       सर्वप्रथम 1846 ई. में अमेरिका के रिचर्ड एम. हॉई (Richard M. Hoe) ने लिथोग्राफी की प्रथम रोटेरी प्रिंटिंग प्रेस का पेटेंट करवाया और मुद्रणकला को नए आयाम प्रदान किए। 1850 ई. तक अमेरिका में पत्र-पत्रिकाओं की संख्या 700 के लगभग थी। सन् 1871 में हॉई द्वारा ही वेब प्रेस का आविष्कार किया गया। इस मशीन पर पेपर रोल लगाकर मुद्रण किया जाने लगा था। इस वेब मशीन के कारण ही 1880 ई. तक पत्रिकाओं की संख्या बढ़कर 2400 के करीब पहुँच चुकी थी। उस समय विज्ञापन अधिकतर नयी पत्रिकाओं में अधिक प्रकाशित होते थे। इस समय अमेरिका में विज्ञापन के लिए पत्र-पत्रिकाओं का सही तरीके से प्रयोग होने लग गया था। और तब से आज तक अमेरिका विज्ञापन के क्षेत्र में सबसे अग्रणी देश है।

      एन. डब्ल्यू अय्यर पहला ऐसा व्यक्ति था जिसने 1875 ई. में फिलाडेलफिया में स्पेस बेचने के साथ-साथ अन्य सेवायें भी विज्ञापनदाताओं को देना प्रारम्भ किया जो विज्ञापन एजेन्सी का मूल रूप था। वह विज्ञापनदाता को विज्ञापन और विपणन दोनों में सहयोग करता था।

      19 वीं सदी के अन्त में ही ब्राण्ड नाम का प्रचलन हुआ। जैसे- सन् 1873 में लेविस, 1873 ई. में ही मैक्सवेल हाऊस और 1876 ई. में कोका-कोला आदि। ऐसे पहले ब्राण्ड नाम वाले उत्पाद थे जिन्होंने उपभोक्ताओं में अपनी पहचान बनायी। 19वीं सदी के 80वें दशक में मीसेन बैच कम्पनी (Meisenbach Company - Munich) ने प्रथम बार रेखा व तान (Line and Tone) का ब्लॉक बनाया। 1890 के दशक में अर्धतान (Half Tone) स्क्रीन व्यावसायिक उपयोग में आने लगी थी । जिसके कारण विज्ञापनकर्ता धातु की प्लेट से चित्र मुद्रित करने लगे थे। फिलाडेलफिया (अमेरिका) का फ्रेडरिक इवस (Fradric Eivs) प्रथम व्यक्ति था जिसने 1880 ई. में तीन रंग का ब्लॉक बनाया था। इस तकनीक ने विज्ञापनकर्ताओं के लिये बहुत अच्छी सम्भावनाएँ प्रदान की थी। 1890 के दशक में यह तकनीक इग्लैण्ड में भी प्रयुक्त की जाने लगी थी। सर्वप्रथम 1887 ई. में मिलायस (Millais) की पेंटिंग बबल्स का प्रयोग पीयर्स साबुन के एक पोस्टर में किया गया और यहीं से विज्ञापन में सृजनात्मकता का प्रयोग किया जाने लगा। चित्रकार विज्ञापन से जुड़ने लगे और व्यावहारिक कला (कॉमर्शियल आर्ट) का उदय हुआ। 19वीं सदी में रेलवे के उदय से वस्तुओं को लाने ले जाने में सुविधा होने लगी तथा नये-नये बाजार उपलब्ध होने लगे जिससे विज्ञापन को ओर अधिक बढ़ावा मिला। 19 वीं सदी के अन्तिम दशक में फोटोग्राफी की विधि द्वारा रंगीन चित्रों को मुद्रित किया जाने लगा था। सन् 1875 से 1918 के मध्य तक विज्ञापन पूर्ण रूप से एक व्यवसाय का रूप ले चुका था।

मिलायस की पेंटिंग के प्रयोग से बना पोस्टर।

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बबल्स- पेयर्स साबुन के लिए एक पुराना विज्ञापन

     विक्टोरियन कलाकार सर जॉन मिलियस द्वारा सबसे प्रसिद्ध चित्रों में से एक को लेडी लीवर आर्ट गैलरी में लंबे समय तक ऋण पर रखा गया है।  इसे यूनिलीवर ने उधार दिया है।

 'बबल्स' को 1885-86 में चित्रित किया गया था।  इसमें एक लड़के को पाइप और साबुन की कटोरी से बुलबुले उड़ाते हुए दिखाया गया है।  लड़का कलाकार का पोता, विली जेम्स था। जिसकी उम्र लगभग चार वर्ष थी। वह बाद में एडमिरल बन गया।  बुलबुलों को रंगने की समस्या को हल करने के लिए, कलाकार ने विशेष रूप से निर्मित एक कांच का गोला बनाया था।  मिलिस ने मूल रूप से अपनी पेंटिंग का शीर्षक 'ए चाइल्ड्स वर्ल्ड' रखा था, लेकिन बाद में इसे बदलकर 'बबल्स' कर दिया गया।

3. विज्ञापन का वैज्ञानिक विकास काल 
     (1900 ई. से 1945 ई. तक) 

      विज्ञापन का पूर्ण विकास इसी काल में हुआ। इसी समय कला (Art), कॉपी लेखन (Copy writing) तथा माध्यम (Media) के चुनाव पर भी ध्यान दिया जाने लगा। प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918) के बाद विज्ञापन को ज्यादा प्रोत्साहन मिला क्योंकि विश्वयुद्ध के कारण वस्तुओं की माँग में बढ़ोत्तरी हुई और विज्ञापनों की संख्या भी ज्यादा होने लगी जिसके कारण विज्ञापन एजेन्सियों का विकास तेजी से हुआ और इसी समय विज्ञापन एजेन्सियाँ विज्ञापन के लिए सम्पूर्ण विज्ञापन योजना (Campaign plan) बनाने लगी और विज्ञापन को विपणन के एक प्रमुख औजार के रूप में मान्यता मिली। इसी समय कॉपी लेखन पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा और विज्ञापन-संदेश आकर्षक एवं प्रभावित करने वाले होने लगे। 

     सन् 1917 में अमेरिकन विज्ञापन एजेन्सी संघ (American Association of Advertising Agencies) की नींव डाली गई। सन् 1928 में रेडियो का प्रयोग विज्ञापन माध्यम के रूप में किया जाने लगा जिसकी पहुँच ग्रामीण क्षेत्रों तक भी बढ़ी और विज्ञापन के क्षेत्र का विस्तार हुआ। सन् 1930 तक अमेरिका में लगभग 814 रेडियो स्टेशनों की स्थापना हो चुकी थी जिनसे विज्ञापनों का प्रसारण भी होने लगा था। इसी समय विज्ञापनों में प्रतिस्पर्धा होने के कारण विज्ञापनों में विभिन्नता आने लगी तथा विज्ञापन एजेन्सियों ने स्वतन्त्र रूप से बाज़ार का अन्वेषण, उत्पाद की सम्भावित मांग व माध्यम के प्रभाव और क्षेत्र के बारे में कार्य करने प्रारम्भ किये और विज्ञापन के अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रभावी विज्ञापनों का निर्माण प्रारम्भ हुआ जिससे निर्माता, उपभोक्ता और विज्ञापन एजेन्सी को और अधिक लाभ एवं प्रोत्साहन मिलने लगा। इस समय वाल्टर थॉमसन नामक एजेन्सी का बाजार में एकाधिकार था। 

        ए.सी. नीलसन और डेनियल स्ट्रेची ने 1930 एवं 1940 के दशकों के दौरान अन्वेषण संगठनों की स्थापना की जिन्होंने विज्ञापन को प्रभावशाली बनाने में बहुत योगदान दिया तथा विज्ञापन एक पूर्व निर्धारित व्यूह रचना के तहत प्रसारित होने लगे। विज्ञापन बिक्री बढ़ाने के साथ-साथ विपणन प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग बनने लगे और विज्ञापनों ने उपभोक्ताओं को जानकारी देने के साथ ही अप्रत्यक्ष बिक्री बढ़ाना भी प्रारम्भ किया। डायरेक्ट मेल भी इसी समय एक माध्यम के रूप में सामने आया। इसी समय इंग्लैण्ड में विज्ञापन फिल्मों का निर्माण प्रारम्भ हुआ जो 50 सैकण्ड से 2 मिनट तक की अवधि की होती थी जिन्हें सिनेमा घरों में दिखाया जाता था और इसी काल में विज्ञापनों के लिए सिनेमा स्लाइड का प्रयोग होने लगा। 

4. विज्ञापन का व्यावसायिक विकास व आधुनिक काल (1945 ई. से अब तक)

      द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-42) के पश्चात् वस्तुओं के उत्पादन में बहुती तेजी आयी क्योंकि युद्ध के समय जो लोग अभाव में रहे थे उन्होंने अधिक से अधिक वस्तुएँ खरीदना प्रारम्भ कर दिया था। निर्माता अपने उत्पादों को अधिक से अधिक संख्या में बेचना चाहते थे जिससे विज्ञापनों की संख्या में वृद्धि हुई तथा विज्ञापनों पर होने वाला खर्च भी अधिक बढ़ा। विश्वयुद्ध के पश्चात् 1950 ई. में दूरदर्शन एक सशक्त माध्यम के रूप में उभर कर सामने आया जो दूसरे माध्यमों से अधिक प्रभावी व महंगा था। दूरदर्शन उस समय प्रेस और डायरेक्ट मेल के बाद तीसरे सशक्त माध्यम के रूप में माना गया था। 1950 के दशक में रोजर रिवज ने उत्पाद के विलक्षण विक्रय प्रस्ताव (Unique Selling Propositions - USPs) को प्रस्तुत किया जो विज्ञापन के लिए बहुत प्रभावशाली था जिसमें अन्य प्रतिस्पर्धी की अपेक्षा उत्पाद से उपभोक्ता को लाभ का प्रस्ताव दिया जाता था जो वर्तमान में भी विज्ञापनों में मुख्य रूप से प्रयुक्त किया जाता है।

     1960 एवं 1970 का दशक विज्ञापन का सृजनात्मक दौर था जो लीयो ब्रन्ट (Leo Burnett), डेविड ओगिल्वि (David Ogilvy) और विलियम बेर्नबैच  (William Bernbach) तीनों विज्ञापन एजेन्सियों द्वारा अनुप्रेरित किया गया था। सन् 1960 में दूरदर्शन के रंगीन होने के बाद इस माध्यम ने अधिक लोकप्रियता प्राप्त की और इस पर प्रसारित विज्ञापन अधिक प्रभावशाली होने लगे। लगभग इसी समय विज्ञापन में सृजनात्मक क्रान्ति का उदय हुआ जिसको कॉपी लेखकों और कला-निर्देशकों ने अपनी सृजन क्षमताओं से विज्ञापन एजेन्सियों में विज्ञापन को और अधिक प्रभावशाली बनाया। विज्ञापन के दृष्टिकोण से दूरदर्शन 20वीं सदी के अन्तिम दशक का सबसे प्रभावी और सशक्त माध्यम बना। कम्प्यूटर के प्रयोग ने तो इस माध्यम की लोकप्रियता को द्विगुणित कर दिया है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों ने विज्ञापन के विकास को और अधिक त्वरित किया है। नये माध्यम ऑन लाइन कम्प्यूटर सेवा, होम शॉपिंग ब्रॉडकास्ट, सी.डी. रोम और इन्टरनेट ने तो विज्ञापन के परम्परागत स्वरूप को जैसे बदल ही दिया है। 1990 का दशक संघटित विपणन सम्प्रेषण और वैश्वीकरण का दौर था जिसमें उपभोक्ताओं को संदेश सम्प्रेषित करने के लिए विज्ञापन, बिक्री अभिवृद्धि, प्रत्यक्ष विपणन, जनसम्पर्क, व्यक्तिकृत बिक्री आदि विभिन्न विपणन सम्प्रेषण उपकरणों का प्रयोग किया जाने लगा। 20वीं सदी के अन्त में विज्ञापन माध्यमों में आये बदलाव को देखने से लगता है कि भविष्य में विज्ञापन माध्यमों में होने वाले तकनीकी बदलाव विज्ञापन के लिए और अधिक रोमांचकारी सिद्ध हो रहे हैं। वर्तमान समय में विज्ञापन को व्यावसायिक वातावरण में बदलाव जैसे- प्रौद्योगिकी, वैश्वीकरण और विपणन व्यवहार द्वारा सशक्त रूप से प्रभावित किया जा रहा है। वर्तमान 21वीं सदी में तकनीकी विकास और डिजिटल पद्धति ने नये-नये अन्योन्य क्रिया माध्यमों (Interactive Media) का विकास किया है, जिसमें सोशल मीडिया, मोबाइल, अन्योन्य क्रिया बिलबोई, 3 डी बिलबोर्ड तथा पी.ओ.पी. (Point of Purchage), ट्रांजिट मीडिया आदि के लिये भिन्न आकार-प्रकार के विज्ञापन वाहनों का उपयोग किया जाने लगा है। इन माध्यमों ने विज्ञापन की प्रभावन क्षमता को और अधिक प्रभावी एवं आकर्षक बना दिया है। वर्तमान में अधिक लोकप्रिय हो रहे डिजिटल माध्यम उपभोक्ता एवं विज्ञापनकर्ता दोनों को दो तरफा सम्प्रेषण उपलब्ध करवाते हैं जिससे विज्ञापनकर्ता को तत्काल प्रतिक्रिया प्राप्त हो जाती है।


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