अंतिम विकल्प भारी है,
अब युद्ध की बारी है।
शह-मात के खेल में,
लगी मानवता सारी है।
माटी-माटी बंजर होगी,
खून से सनी धरती होगी।
खड़ी फसलें होगी लहूलुहान,
सुनाने को बस कहानी होगी।
घर में सन्नाटा छा जाएगा,
जब हँसाने वाला पिता खो जाएगा।
युद्ध की विभीषिका हुकूमरान क्या जाने,
जब इक मां से बेटा बिछड़ जाएगा।
पल-पल मांगे सुनी होगी,
माँ की साँसे भी थमी होगी।
कलेजा बाहर को आ जायेगा,
जब मासूम के कंधों पे पिता की अर्थी होगी।
हार-जीत का खेल है,
कोई भी जीत जायेगा।
उजड़े घरों के छप्पर,
बरसात में कौन बनायेगा।
कौन देगा बेटे को हौसला,
कोन बेटी के हाथ पीले करवायेगा।
माँ का जनाजा क्या?
बिना बेटे के कंधे के निकल जायेगा।
कलयुग में गीता का सार भूले,
द्वापर में कौरव पांडव का घमासान।
त्रेता में रावण का संहार किया,
फिर भी चाहते हो युद्ध हो इस बार।
द्वापर में कृष्ण ने कौरवों को समझाया
युद्ध का परिणाम विनाश ही लाया
जमीन के टुकड़े के खातिर सबने
मानवता को दांव पे लगाया।
साभार:- Social Media.
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