रविवार, 20 मार्च 2022

महाकवि नीरज की होली🎊 पर रचित✍️ कविता....


स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से। 
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे। कारवां गुजऱ गया, गुबार देखते रहे।
 

महाकवि नीरज की कविता....


करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है।


 हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना कि होली है।


 किसी को याद करते ही, अगर बजते सुनाई दें 


 कहीं घुँघरू कहीं कंगन, समझ लेना कि होली है। 


 कभी खोलो अचानक, आप अपने घर का दरवाजा 


 खड़े देहरी पे हों साजन, समझ लेना कि होली है।


 तरसती जिसके हों दीदार तक को आपकी आंखें 


 उसे छूने का आये क्षण, समझ लेना कि होली है। 


 हमारी ज़िन्दगी यूँ तो है इक काँटों भरा जंगल 


 अगर लगने लगे मधुबन, समझ लेना कि होली है। 


 बुलाये जब तुझे वो गीत गा कर ताल पर ढफ की 


 जिसे माना किये दुश्मन, समझ लेना कि होली है। 


 अगर महसूस हो तुमको, कभी जब सांस लो 'नीरज' 


 हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना कि होली है


होली🎊 की  हार्दिक शुभकामनाएं🙂🌹🙏🏻

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