कहीं दूर चला जाऊंगा.....
"जिंदगी रूपी भव-सागर"🌊 से,
सारे रिश्ते-नाते छोड़कर,
सारे बंधन तोड़कर,
इस "सागर" से भी विदा ले लूंगा।
जैसे- पटना से 05 साल रहकर विदा लिया था।
02 वर्षो में काशी ने भी गुदगुदाया।
फिर शेखपुरा की पहाड़ियों ने भी अपने आंचल में तीन साल बिठाया।
आगे का सफर भी अनवरत जारी है।
लेकिन, रूह कांप उठती है कभी-कभी ये सोचकर,
एक दिन इस दुनिया🗺️ से भी मुझे विदा लेना हैं।
जैसे सभी जाते हैं, वैसे मैं भी जाऊंगा।
अंत में चिता पर रख कर जला दिया जाऊंगा,
फिर राख बनकर नदियों में बह जाऊंगा!
फिर जब तक जिंदगी हैं।
मैं इतना ज्यादा परेशान क्यों रहता हूँ?
परखें तो कोई अपना नहीं हैं,
वैसे तो सभी अपने हैं।
क्या यही असली ज़िंदगी है? जो मैं जी रहा हूँ।
खुद से ही खुद को खो रहा हूँ,
हक़ीक़त बयां करने पर रो😓 रहा हूँ।
मेरी जिंदगी में अभी बहुत आग🔥 है,
इसलिए तो रौशनी और चमक बरकरार है।
यें सच हैं कि यें "विश्वजीत" भी एक दिन धुआं बनके उड़ जायेगा औऱ यहाँ बची सिर्फ़ इसकी राख रह जायेगी, जो यें आँखों👀 में रौशनी है, चेहरें पर चमक है कहीं इस ब्रह्माण्ड🗺️ में खो जाएगी, रह जायेगी तो बस उसकी यादें सिर्फ यादें.........
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