गुरुवार, 31 मार्च 2022

लिपि (Script)


         मनुष्य ने अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए किसी न किसी रूप में सर्वप्रथम भाषा का प्रयोग किया। सभ्यता के विकास के साथ ही मनुष्य ने अपने विचारों को सुरक्षित रखने के लिए चित्रों व संकेतों आदि का प्रयोग प्रारम्भ किया जिससे लिपि का विकास हुआ। लिपि कुछ निर्धारित चिन्हों के रूप में भाषा के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है। दूसरे शब्दों में लिपि भाषा का लिखित रूप है। संसार के सभी देशों में किसी न किसी रूप में (चित्रो भावात्मक चित्र, कीलाक्षर लिपि एवं ध्वन्यात्मक चिन्हों) लिपि का विकास हुआ है। लिपि व भाषा मानव विकास का अभिन्न अंग हैं। लिपि भाषा का वाहन है। 


लिपि का वर्गीकरण

(Classification of Script) 


(1) चित्रात्मक लिपि (Pictographic Script) 

(2) संकेतात्मक या भावात्मक लिपि  (ldeographic Script) 

(3) ध्वन्यात्मक लिपि ( Phonetic Script ) 


1. चित्रात्मक लिपि- आदिकाल में मनुष्य अपने विचारों के आदान-प्रदान के लिए दैनिक उपयोग एवं आसपास की वस्तुओं के चित्रों का प्रयोग करता था। जैसे प्याला☕, चेहरा😊, पानी🌊, पशु-पक्षी🐒🐓, पेड़🌴, पहाड़⛰️, आदि। इन चित्रों के अर्थ केवल उसी वस्तु तक सीमित होते थे। कुछ देशों, जैसे:- अफ्रीका, पीरू, जापान व चीन में सूत्रात्मक लिपि का भी प्रचलन था जिसमें रस्सी में गाँठ लगाकर संदेश भेजने का कार्य किया जाता था। 


2. संकेतात्मक या भावात्मक लिपि- लिपि के विकास में मनुष्य द्वारा लिपि के लिए बनाऐ गये चित्र अब संकेत व भाव प्रकट करने लगे थे। जैसे- प्याले के साथ चेहरा🥣😊 खाने का संकेत देता था, पानी के साथ चेहरा🌊😊 पानी पीने का संकेत देता था, आँख के ऊपर हाथ बनाना, देखने का तथा सूर्य🌅, गर्मी का संकेत भी देता था। उस समय की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं में इस लिपि का प्रयोग होता था। 


3. ध्वन्यात्मक लिपि- शब्दों के लिए चिन्ह निर्धारित करना एक महान और दुर्लभ कार्य था। मानव के विकास के साथ-साथ अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जब प्रारम्भिक भावात्मक शब्द (चित्र) कम पड़ने लगे तो चित्रों की जगह चिन्ह निर्धारित होने लगे जिन्होंने विकास करते हुए अक्षरों का रूप ले लिया। माना जाता है कि सर्वप्रथम मिश्र में अक्षरों वाली लिपि का निर्माण हुआ था जिसमें सिर्फ व्यंजन ही थे। इस लिपि में 24 अक्षर थे। मिश्र के पड़ोसी देश फिनिशिया के लोगों ने इस कार्य को आगे बढ़ाया और आज कुछ देशों (भारत, चीन, जापान, आदि) को छोड़कर विश्व के सभी देशों में किसी न किसी रूप में उसी लिपि के परिवर्तित रूप का प्रयोग होता है। फिनिशिया के लोगों द्वारा 1500 ई. पू. में ध्वन्यात्मक लिपि में चित्रों में ध्वनि का प्रवेश कराया गया। जैसे:- मिश्र की भाषा में बैल को अलिफ तथा फिनिशिया में भी अलिफ को अलपू कहा जाता था। अलिफ के सिर के चित्र को अलिफ की जगह काम लिया गया तथा धीरे धीरे यह अलिफ के सिर का चित्र अंग्रेजी का A बन गया। ऐसे ही आँख को ऐन (अयीन) कहा जाता था जो समय के साथ - साथ  O से O बन गया और इसी तरह अन्य सभी अक्षरों का विकास हुआ। इस प्रकार फिनिशिया के लोगों ने विभिन्न ध्वनियों के आधार पर चिह्न बनाये जिनसे लिखना सरल हो गया। ध्वन्यात्मक लिपि में चिन्ह किसी वस्तु या भाव को प्रकट नहीं करते थे, वे सिर्फ ध्वनि को प्रकट करते थे। इस ध्वन्यात्मक लिपि को भी तीन भागों में वर्गीकरण किया जा सकता है:-


(क) अक्षरात्मक लिपि (Syllable) 

(ख) वर्णात्मक लिपि (Alphabetic) 

(ग) रेखाक्षरात्मक लिपि (Logograph) 


क. अक्षरात्मक लिपि:- इस लिपि में चिन्ह किसी अक्षर को व्यक्त करते हैं। हमारी देवनागरी लिपि अक्षरात्मक लिपि है जिसके अक्षरों में दो वर्ण मिले होते हैं, जैसे क में क् + अ या ब में ब् + अ अक्षर स्वरांत हैं। जिस तरह हिन्दी में राज लिखने पर ज्ञात नहीं होता कि इसमें कौनसे वर्ण हैं लेकिन रोमन लिपि में RAJ लिखने से पता चलता है कि इसमें तीन वर्ण हैं। अरबी, फारसी, बंगला, गुजराती, पंजाबी तथा उड़िया अक्षरात्मक लिपियाँ हैं। 


ख. वर्णात्मक लिपि:- यह लिपि का वैज्ञानिक रूप है जिसमें ध्वनि की प्रत्येक इकाई के लिए अलग चिन्ह निर्धारित किये गये हैं। यह लिपि की अन्तिम सीढ़ी हैं। रोमन लिपि (ABC) वर्णात्मक लिपि है। 


ग. रेखाक्षरात्मक लिपि:- इस लिपि में प्रत्येक शब्द के लिए अलग-अलग रेखा चित्र निर्धारित किये गये हैं। इस लिपि में अक्षरो की जगह रेखाओं का प्रयोग किया जाता है। इस लिपि में चीनी व जापानी लिपियाँ आती हैं। लेकिन जापान और चीन ने अपनी लिपि को सरल बनाने के लिए वर्गों का प्रयोग आरम्भ किया है। 

ओडिशा दिवस 1st अप्रैल। Odisha Day 1st April.


       ओडिशा दिवस, जिसे उत्कल दिवस के नाम से भी जाना जाता हैं। 1st अप्रैल को भारतीय राज्य ओडिशा को मद्रास प्रेसीडेंसी से कोरापुट और गंजम के अलावा बिहार और उड़ीसा प्रांत से अलग राज्य के रूप में निर्मित किया गया। 01 अप्रैल 1936 को इस राज्य के गठन को स्मृति के रूप में मनाया जाता है।  


Odisha Day 1st April.


       Odisha Day, also called Utkala Dibasa, is Celebrated on 1st April in the Indian state of Odisha in memory of the formation of the state as a separate state out of Bihar and Orissa Province with addition of Koraput and Ganjam from the Madras Presidency on 1st April 1936.



विज्ञापन (Advertising)


       विज्ञापन का नाम सुनते ही हमारे मानसपटल पर किसी वस्तु को खरीदने या बेचने के लिए कहे गये संदेश का बोध होता है। आदिकाल से वर्तमान तक किसी न किसी रूप विज्ञापन मानव सभ्यता का हिस्सा रहा है। आधुनिक युग में विज्ञापन ने जीवन के हर पहलू को छू लिया है। हर ओर विज्ञापन की अनुगूंज सुनाई देती है अतः वर्तमान समय को हम 'विज्ञापन युग' कह सकते हैं। आधुनिक जीवन शैली पर विज्ञापन का बहुत गहरा प्रभाव है। हमारी जीवन-शैली, रहन-सहन, खान-पान, पहनावे तथा अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुओं के उपभोग को विज्ञापन बहुत अधिक प्रभावित करता है और विज्ञापन व्यक्ति को यह आभास दिलाता है कि उसकी आवश्यकता के अनुसार कौन सी वस्तु (उत्पाद) या सेवा उसके लिए उपयुक्त है, और वह वस्तु या सेवा उसको कहाँ और कैसे उपलब्ध होगी ? 


        भूमंडलीकरण के इस दौर में पिछले एक दशक से जिस उपभोक्तावादी संस्कृति ने जन्म लिया है उसका प्रभाव पूर्ण विश्व🌍 पर दिखाई देता है। आज व्यक्ति सुबह से रात्रि तक अपने को विज्ञापनों से घिरा महसूस करता है। सुबह उठते ही समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में विज्ञापनों को देखता-पढ़ता है, घर से बाहर निकलने पर सड़क पर होर्डिंग, वाल पेंटिंग, पोस्टर या अन्य किसी न किसी रूप में उसे विज्ञापन नज़र आते हैं। इसी के साथ-साथ रेडियो, दूरदर्शन, कम्प्यूटर व अन्य आधुनिक संचार माध्यमों में भी विज्ञापनों की भरमार दिखाई देती है। अतः विज्ञापन हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है जो जीवन शैली एवं संस्कृति को प्रभावित करता है। 


बिहार पर्यटन का विज्ञापन।

          भारत में उपभोक्तावाद आज अपने चरम बिन्दु पर है किन्तु उत्पाद का पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाला परिवर्तन (Life Cycle) अब तक के निचले स्तर पर है। यद्यपि उचित उत्पाद उचित मूल्य बिन्दु पर भी उचित विज्ञापन के द्वारा आगे बढ़ाये बिना बाजार सफल नहीं हो सकता है। इसलिये विज्ञापन आज व्यापार के लिए प्रमुख आधार-शिला है जो किसी भी व्यापार की सफलता की कुंजी है। इसलिए विज्ञापन एक नये व्यवसाय के रूप में उभर कर सामने आया है। आधुनिक इलेक्ट्रोनिक्स माध्यमों ने विज्ञापन के व्यवसाय में एक तरह की क्रान्ति-सी पैदा कर दी है जिसका बोध हमें विज्ञापन पर होने वाले विगत वर्षों के वार्षिक व्यय के आंकलन से मिलता है। 

जैसे- सन् 1988 में भारत में विज्ञापन पर लगभग 200 करोड़ रुपये व्यय होता था जो सन् 1995 में बढ़कर 3500 करोड़ तथा वर्ष 2000 में लगभग 7000 करोड़ रुपये हो गया। वर्ष 2002 में लगभग 9000 करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च किये गये थे तथा वर्ष 2005 में विज्ञापन पर 11915 करोड़ रु. खर्च किये गये जिसमें 47% प्रेस पर, 42% दूरदर्शन, 7.3% बाह्य माध्यमों तथा 1.7% रेडियो पर खर्च किये गये। वर्ष 2007 में यह लगभग 17000 करोड़ रु. तक पहुँच गया तथा वर्ष 2010 में लगभग 26600 करोड़ रु. विज्ञापन पर खर्च किये गये। जिसमें लगभग 47% मुद्रण माध्यमों पर तथा 42% दूरदर्शन पर खर्च किया गया। 

         इसी प्रकार वर्ष 2011 में देश के मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग को अपन आकार का 41% हिस्सा लगभग 30000 करोड़ रु. विज्ञापन प्राप्त हुये जिनम से सबसे अधिक 46% मुद्रण माध्यमों, 39% टी.वी. 6.27% बाह्य विज्ञापन माध्यम (OOH), 5% डिजिटल (इन्टरनेट एवं मोबाइल) तथा सबसे कम 3.83% रेडियो को विज्ञापनों से प्राप्त हुये हैं। डिजिटल माध्यम अन्य माध्यमों (मुद्रण, टी.वी., रेडियो एवं बाह्य) से विज्ञापन आय की संयोजित वार्षिक वृद्धि दर में (CAGR=Compound Annul Growth Rate ) सबसे आगे है। जैसे कि वर्ष 2007 में इसे 400 करोड़ रु. विज्ञापन से प्राप्त हुये तथा वर्ष 2010 में 42% वृद्धि दर के आधार पर लगभग 1000 करोड़ रु. तथा वर्ष 2011 में 54 % की वृद्धि दर से 1540 करोड़ रु. विज्ञापन से आय के रूप में प्राप्त हुये। वर्ष 2012 में मीडिया एवं मनोरंजन इण्डस्ट्री को विज्ञापन से 9% वृद्धि दर से लगभग 32740 करोड़ रु. प्राप्त हुये हैं जिसमें से लगभग 15000 करोड़ रूपये (46%) मुद्रण माध्यम को प्राप्त हुआ है। अनुमान है कि मीडिया एवं मनोरंजन इंडस्ट्री का आकार वर्ष 2016 तक लगभग 145700 करोड़ का हो जायेगा। जिसका लगभग 42% (58600 करोड़ रु.) विज्ञापन का हिस्सा होगा। भारत में विज्ञापन खर्च का GDP (Gross Domestic Product) अनुपात विश्व के 0.8% की तुलना में 0.4% है। 

             विज्ञापन न केवल हमारे देश में अपितु पूरे विश्व में एक तेजी से विकसित होते व्यापार के रूप में उभरा है। औद्योगीकरण के फलस्वरूप अपने-अपने उत्पादों को बेचने की होड़ में विश्व के सबसे आकर्षक खुदरा बाजारों में भारत प्रथम स्थान पर है इसलिए हमारे यहाँ लगभग प्रत्येक कम्पनी का विज्ञापन बजट बढ़ता ही जा रहा है क्योंकि कम्पनियों को बाज़ार में अपने आप को बनाये रखने के लिए विज्ञापन पहली आवश्यकता बन गई है। प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए कम्पनियाँ विज्ञापन बजट को निरन्तर बढ़ा रही हैं। इसका अनुमान हिन्दुस्तान यूनिलिवर (HUL) के बजट से लगाया जा सकता है, जिसका विज्ञापन पर होने वाला व्यय सन् 1995 में 108.08 करोड़ रुपये था जो अन्य प्रतिस्पर्धी कम्पनियों के बाजार में आने से वर्ष 2000-01 में 696.58 करोड़ रुपये तक पहुंचा। HUL ने वर्ष 2007 में भी लगभग 700 करोड़ रु . विज्ञापन पर खर्च किये तथा वर्ष 2009 में यह लगभग 1011.66 करोड़ रु. तक पहुँच गया। वर्ष 2011 में HUL का विज्ञापन व्ययं लगभग 2764.34 करोड़ रू. रहा है जो वर्ष 2012 में लगभग 2634.79 करोड़ रू. तक रहने की सम्भावना है। सामान्यतः कोई समूह या व्यक्ति जो वस्तु, विचार या सेवाएँ बेचना या खरीदना चाहता है लेकिन उसके पास उस वस्तु को खरीदने या बेचने सम्बन्धी उचित जानकारी का अभाव बाजार में है तो वह अपनी वस्तु या सेवाओं की जानकारी विज्ञापन के द्वारा विभिन्न माध्यमों के जरिये ज्यादा से ज्यादा सम्भावित उपभोक्ताओं को दे सकता है। विज्ञापनकर्ता विज्ञापन द्वारा विपणन प्रक्रिया को भी सामान्य रूप से संचालित कर सकता है, जो उस वस्तु या सेवा को बेचने के लिए आवश्यक है। 

विज्ञापन का अर्थ 
(Meaning of Advertising) 

      विज्ञापन एक बहु आयामी विधा है। यह विज्ञापनकर्ता के लिए अपने उत्पादों, सेवाओं या विचारों को बेचने के लिए उपभोक्ता से सम्पर्क करने का सशक्त जरिया है जो उपभोक्ता को आकर्षित कर विपणन प्रक्रिया में एक प्रमुख हथियार के रूप में कार्य करता है।

         विज्ञापन शब्द की संरचना दो शब्दों वि + ज्ञापन के संयोग से हुई है, जिसमें वि का अर्थ है विशेष तथा ज्ञापन का अर्थ है सूचना या जानकारी देना। अर्थात् विशेष सूचना या जानकारी देना ही विज्ञापन है जो अंग्रेजी शब्द Advertising का हिन्दी रूपान्तरण है। Advertising शब्द का निर्माण लेटिन शब्द Adverto से हुआ है, जिसका अर्थ ध्यान दिलाना या आकर्षित करना है। विज्ञापन उपभोक्ता का ध्यान किसी वस्तु, विचार या सेवा की ओर आकर्षित करने का कार्य करता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि सेवाओं एवं व्यापार की वस्तुओं की ओर ध्यान आकर्षण करना ही विज्ञापन है। 

         हर व्यक्ति अपने विचार से विज्ञापन को अलग-अलग रूप से अभिव्यक्त करता हैं। एक सामान्य उपभोक्ता के लिए विज्ञापन उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बाजार में उपलब्ध वस्तुओं की सूचना लेने का माध्यम है। एक उद्योग के लिए अपना उत्पाद बेचने के लिए उसके बारे में जानकारी देने का तरीका विज्ञापन है।  एक कलाकार के लिए विज्ञापन कला है। कुछ के लिए यह उद्योग है व कुछ लोग विज्ञापन को विज्ञान कहते हैं।

आइए हम एक-एक करके इन तीनों टर्म्स को समझते हैं-

  • विज्ञापन एक उद्योग 

       उद्योग के लिए मशीनें, पूँजी, कच्चा माल, श्रमिक शक्ति और उत्पादन आवश्यक माने जाते हैं जो विज्ञापन के लिए भी आवश्यक होते हैं। विज्ञापन निर्माण एवं उसके प्रसारण की प्रक्रिया में भी विभिन्न प्रकार की मशीनों की आवश्यकता होती है। पूँजी के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की मशीनों के प्रयोग से विज्ञापन-विधा से जुड़े अलग-अलग विधाओं के विशेषज्ञों द्वारा विज्ञापन का निर्माण एवं पुनर्उत्पादन किया जाता है। इस आधार पर विज्ञापन को एक उद्योग कहा जा सकता है।

  • विज्ञापन एक विज्ञान 

       विज्ञापन एक विज्ञान है क्योंकि यह सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित होता है जो विपणन निर्णयों को प्रभावित करते हैं। विज्ञान की तरह ही विज्ञापन के निर्माण उसको जारी करने (प्रसारण) के लिए वैज्ञानिक उपकरणों के साथ-साथ वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है तथा निश्चित परिणाम प्राप्त किये जाते हैं विज्ञापन के परिणाम और कार्यक्षमता मापने योग्य होते हैं तथा इसको वैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुसार जाँचा जा सकता है। विज्ञापन योजना के निर्माण में विभिन्न अन्वेषण (बाजार का अन्वेषण, उत्पाद का अन्वेषण आदि) के अतिरिक्त कम्प्यूटर तकनीकी का प्रयोग मुख्य रूप से किया जाता है जो पूर्णतः वैज्ञानिक है। इसलिए विज्ञापन को विज्ञान भी कहा जा सकता है।

  • विज्ञापन एक व्यवसाय 

       व्यवसाय वे मानवीय वैद्य आर्थिक क्रियाएँ हैं जिनका उद्देश्य वस्तुओं एवं सेवाओं के निरन्तर उत्पादन, उनके विनिमय एवं क्रय-विक्रय द्वारा समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करके लाभ कमाना है। आधुनिक युग में विज्ञापन एक व्यवसाय के रूप में परिपुष्ट हो कर सामने आया है। व्यवसाय की तरह ही विज्ञापन द्वारा भी समाज की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बाजार में उपलब्ध वस्तुओं की जानकारी देने का कार्य किया जाता है, जिसमें विज्ञापनकर्ता का उद्देश्य वस्तुओं का क्रय-विक्रय करके अधिक लाभ कमाना ही होता है। इस कार्य के लिए निर्माता विज्ञापन एजेन्सी की सेवायें लेता है। एजेन्सियाँ पैसा लेकर सेवायें देती हैं जो एक वैध आर्थिक क्रिया है। इसमें विज्ञापनकर्ता का उद्देश्य क्रय-विक्रय द्वारा अधिक लाभ कमाना ही होता है। इसलिए विज्ञापन को एक व्यवसाय भी कहा जा सकता है। 

  • विज्ञापन एक कला 

         किसी भी कार्य को सृजनात्मक व प्रभावी ढंग से करना कला है। प्राचीन काल से ही विज्ञापन को एक कला के रूप में माना गया है। विज्ञापन में सृजनात्मकता के साथ-साथ प्रभाव क्षमता का विशेष योगदान रहता है। विज्ञापन की सृजनात्मक योग्यताओं से ही सम्प्रेषण के प्रभावशाली उपाय प्राप्त होते हैं। आधुनिक युग में भी वैज्ञानिक पद्धतियों के प्रयोग ने विज्ञापन में सृजनात्मकता को और अधिक प्रभावशाली बनाया है। विज्ञापन द्वारा उत्पाद या संदेश को कलात्मक दृष्टि से प्रस्तुत किया जाता है जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के कला विशेषज्ञों एवं सृजनात्मकता का रंगों के संयोजन, शब्दों, संदेश और चित्रों के निर्माण में विशेष योगदान रहता है, जिसके कारण विज्ञापन की कलात्मक प्रस्तुति उपभोक्ता को प्रभावित करती है। एक विज्ञापन आकर्षित करने वाला एवं प्रभावी तभी बन सकता है जब उसमें कलात्मक बोध होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विज्ञापन में उद्योग, विज्ञान एवं व्यावसायिक विशेषताओं के होते हुए भी यह एक कलात्मक अभिव्यक्ति है।

विज्ञापन की परिभाषाएँ 
(Definitions of Advertising) 

          वर्तमान में विज्ञापन विभिन्न प्रकार की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं व्यावसायिक समस्याओं के समाधान का औजार बन गया है। अर्थात् विज्ञापन क्या है ? यह जानने के लिए विभिन्न संगठनों एवं विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं से समझा जा सकता है, जो निम्न प्रकार हैं-

अमेरिकन विपणन संघ के अनुसार, "विज्ञापन किसी जाने-पहचाने प्रायोजक द्वारा अपने खर्चे पर किया गया विचारों, वस्तुओं या सेवाओं का अवैयक्तिक प्रस्तुतीकरण या अभिवृद्धि है।" 

अर्थात् विज्ञापन किसी जाने-माने प्रायोजक द्वारा वस्तु या विचार को प्रस्तुत करना है, जो किसी विशिष्ट एक ही के लिए नहीं होता है और जिसके लिए विज्ञापक द्वारा भुगतान किया जाता है। यह परिभाषा इस तथ्य को इंगित करती है कि विज्ञापन भुगतान किया गया अव्यैयक्तिक सम्प्रेषण है अर्थात् यह किसी एक व्यक्ति विशेष के लिए न होकर लोगों के समूह के लिए होता है जो प्रस्तुतीकरण एवं अभिवृद्धि को महत्व प्रदान करता है। इसमें विक्रय संदेश का प्रस्तुतीकरण दृश्य एवं मौलिक रूप में हो सकता है तथा इसमें प्रायोजक को भी मुख्य रूप से महत्व दिया जाता है। 

जोहन एस. राइट, विलिस एल. विनटर एवं एस.के. जीग्लर ने उपर्युक्त परिभाषा को आधार मानकर विज्ञापन की नयी परिभाषा प्रस्तुत की है- "विज्ञापन वृहद् सम्प्रेषण माध्यम के उपाय के रूप में नियन्त्रित, अभिज्ञात सूचना और विश्वास दिलाना है।" 

       यह परिभाषा इस तथ्य को प्रकट करती है कि विज्ञापन की सूचना विज्ञापनकर्ता द्वारा नियन्त्रित होती है क्योंकि विज्ञापन संदेश, माध्यम, समय, स्थान आदि विज्ञापनकर्ता द्वारा नियन्त्रित एवं निर्देशित होते हैं तथा सन्देश किसी विशिष्ट समूह पर निर्देशित होता है। अभिज्ञात यह इसलिए है कि यह विज्ञापनकर्ता एवं उत्पाद की पहचान कराता है अर्थात संदेश के उद्देश्य एवं जरिये (विज्ञापनकर्ता) दोनों की पहचान कराने योग्य होता है। विश्वास दिलाना विज्ञापन का मुख्य विषय होता है जो लक्षित उपभोक्ता को आकर्षित करने के लिए सृजनात्मक रूप से तैयार किया जाता है तथा इसे जारी करने के लिए वृहद् सम्प्रेषण माध्यमों (समाचार पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, दूरदर्शन आदि) का प्रयोग किया जाता है।

फिलिप कोटलर के अनुसार, "विज्ञापन संप्रेषण का अवैयक्तिक रूप है जो सुनिश्चित प्रायोजक के अधीन भुगतान किये गये माध्यम द्वारा संचालित किया जाता है।"

शेल्डन का मत है कि "विज्ञापन वह व्यवसायिक ताकत है, जिससे मुद्रित शब्दों द्वारा विक्रय वृद्धि में सहायता मिलती है तथा साख बढ़ती है एवं ख्याति बनती है।" 

एस. डब्लु. डुन और ए.एम. बारबन ने कहा है कि, "विज्ञापन व्यवसायिक फर्मों द्वारा अपने खर्चे पर विभिन्न माध्यमों के जरिये किया गया अवैयक्तिक सम्प्रेषण हैं।"

लार्ड एण्ड थॉमस विज्ञापन एजेन्सी के कॉपी राइटर जोहन ई. कैनडी ने 1905 में विज्ञापन को परिभाषित करते हुए "मुद्रित विक्रय कला" को विज्ञापन कहा है। 

रॉबर्ट वी. जाचर ने विज्ञापन को परिभाषित करते हुए कहा है, "विज्ञापन एक सशक्त संचार माध्यम है जो वस्तु, सेवा या विचार बेचने में औज़ार का कार्य करता है।" 

रोजर रीवज़ का कथन है, "विज्ञापन एक व्यक्ति के मस्तिष्क से दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क में एक विचार को स्थापित करने की कला है।" 

लीच के अनुसार, "विज्ञापन में चार तत्त्व होते हैं- वस्तु, उपभोक्ता, माध्यम और उद्देश्य।" 

फ्रेंक जैफकिन का विचार है, "विज्ञापन हमें बताता है कि हम क्या बेच सकते हैं और हमें क्या खरीदना है।" 

लस्कर ने कहा है, "विज्ञापन मुद्रित रूप से विक्रय की कला है।" 

एच. जी. वेल्स की मान्यता बहुत रोचक है। वह कहते हैं, "वैध झूठ का दूसरा नाम विज्ञापन है।"  

रॉबर्ट जे. लेविस एवं गेरी ए. स्टेनर ने विज्ञापन के कई कदमों की चर्चा की है, "विज्ञापन लोगों में वस्तु के बारे में जागृति पैदा करते हैं, उन्हें जानकारी एवं ज्ञान देते हैं। उनमें पसन्द को जागृत करते हैं तथा लोगों में खरीद के लिए पहल पैदा करके उनकी धारणा को सम्बल प्रदान करते हैं और अन्त में खरीद और बार-बार खरीद के लिए प्रेरणा का कार्य करते हैं। 

रौलेण्ड हाल कहते हैं, "विज्ञापन विक्रय-कला की ऐसी प्रणाली है जिसमें वस्तु की लेखन, मुद्रण तथा चित्रण द्वारा सूचनाएँ दी जाती हैं।" 

फ्रैंक प्रेस्बी के मतानुसार, "विज्ञापन मुद्रित, लिखित, उच्चारित एवं चित्रित विक्रय-कला है।" 

        उक्त विद्वानों के विचारों से हम विज्ञापन के विषय में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल सकते हैं 

1. विज्ञापन एक संचार व्यवस्था है, जो उपभोक्ता को वस्तु या सेवाओं के लिए आकर्षित करने की कोशिश करता है जिससे विज्ञापनकर्ता को अधिक से अधिक लाभ मिल सके। 

2. विज्ञापन किसी सूचना या संदेश का ललित प्रस्तुतीकरण है, जो अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को वस्तु खरीदने के लिए प्रेरित करता है। 

3. व्यापारिक वस्तुओं एवं सेवाओं की उपयोगिता की ओर ध्यान आकर्षण करना ही विज्ञापन है। 

4. विज्ञापन व्यवसाय लिए एक औज़ार के रूप में कार्य करता है जिससे वस्तु की बिक्री बढ़ती है। 

5. विज्ञापनकर्ता, विज्ञापन द्वारा अपने विचारों से उपभोक्ता को प्रभावित करने की कोशिश करता है।

6. विज्ञापन, विज्ञापनकर्ता की विक्रय हेतु प्रस्तुत वस्तु की पैरवी का कार्य करता है। 

        उपर्युक्त सभी विचारों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि विज्ञापन एक जाने-माने प्रायोजक द्वारा अपने खर्चे पर विभिन्न माध्यमों के जरिये दिया गया नियंत्रित कलात्मक संदेश है जो एक विशिष्ट उत्पाद या सेवा पर विश्वास दिलाता है जिससे उस उत्पाद या सेवा की बिक्री अभिवृद्धि होती है।

भारत में विज्ञापन का इतिहास। (History of Advertising in India.)

 भारत में विज्ञापन का इतिहास 

           प्राचीन काल से ही अन्य सभ्यताओं की तरह ही भारत में भी विज्ञापन का किसी न किसी रूप में अस्तित्व रहा है। हमारे प्राचीन ग्रन्थों में भी ढोल बजाकर, चिल्लाकर या डुग-डुगी बजाकर उद्घोषणा करने के प्रमाण मिलते हैं। सिन्धुघाटी की सभ्यता से प्राप्त प्रमाणों में भी चिन्हों, मोहरों और लिपि के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। इन मोहरों या चिन्हों का स्वरूप आधुनिक प्रतीक चिन्हों या लोगो टाइप से मिलता-जुलता है। ईसा पूर्व की लगभग ढाई-तीन हजार वर्ष पूर्व की प्राचीन सभ्यता के नगरों, हड़प्पा और मोहन जोदाड़ो, से प्राप्त अवशेषों में भी कलात्मक वस्तुएँ और मोहरें प्राप्त हुई हैं जो एक तरह से व्यापारिक चिन्ह आदि के रूप में विज्ञापन का ही माध्यम रहा होगा। 

सिंधु घाटी से प्राप्त कुछ मोहरे।

           मौर्यकाल में भी सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तम्भों का निर्माण बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए किया गया था जिनमें ब्राह्मी लिपि में संदेश होते थे। इन स्तम्भों के संदेशों में बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए की गई घोषणाएँ हैं जो आधुनिक विज्ञापन का ही प्राचीन रूप हैं। जिस प्रकार से मुद्रण के आविष्कार ने अन्य देशों में विज्ञापन को प्रोत्साहन दिया उसी तरह भारत में भी विज्ञापन के लिए मुद्रणकला का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत में सर्वप्रथम मुद्रण-मशीन 06 सितम्बर, 1556 में संयोगवश ही आ गई। इस मुद्रण-मशीन को पुर्तगाल से गोवा होते हुए अबीसीनियां भेजा जाना था। राजनैतिक कारणों से इस मशीन को गोवा में ही रोक लिया गया और गोवा में प्रथम मुद्रण-मशीन (Printing Press) की स्थापना हुई जिससे प्रथम पुस्तक दौक्त्रीना क्रिस्ताओं का प्रकाशन किया गया। भारत में दूसरी मुद्रण-मशीन 1674-75 ई. में स्थापित की गयी जिसे गुजरात के व्यापारी भीमजी पारिख ने इंग्लैण्ड से मंगवाया था। इसके बाद लगभग 1712 ई. में मद्रास में तीसरी मुद्रण-मशीन की स्थापना की गयी। उपरोक्त सभी मशीनों की स्थापना ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मप्रचार के उद्देश्य के लिए की गई थी।


        18वीं सदी के प्रारम्भ में कोलकाता में मुद्रण तकनीकों का विकास हो चुका था और स्थानीय लोगों ने अपनी कार्यशालाएं स्थापित कर ली थी जिनमें लकड़ी के ब्लॉक से मुद्रित देवी-देवताओं एवं बंगाली साहित्य का प्रकाशन किया जाता था। सन् 1792 में बंगाली में विज्ञापन प्रकाशित किया गया जो सम्भवत लकड़ी के ब्लॉक से मुद्रित किया गया था। 18 वीं सदी में विज्ञापन का लिखित संदेश गतिशील टाइपफेसों से तथा इलस्ट्रेशन लकड़ी के ब्लॉक से मुद्रित किये जाते थे। 18 वीं सदी के अन्त में रेखा अम्लाकन (Eaching) की तकनीक इंग्लैण्ड से भारत पहुंची और अंग्रेजों ने पुस्तकों में चित्रों एवं रेखा चित्रों का मुद्रण प्रारम्भ किया। 29 जनवरी 1779 को जैम्स आगस्ट हिक्की ने कलकत्ता (कोलकाता) में प्रथम समाचार-पत्र बंगाल गजट (हिक्की गजट) प्रकाशित किया।

देश में मुद्रित प्रथम समाचार-पत्र हिक्की गजट

        सन् 1784 से समाचार पत्र 'कलकत्ता गजट' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। सन् 1786 तक कलकत्ता (कोलकाता) में चार साप्ताहिक समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ छापे जाने लगे थे। सन् 1786-88 के मध्यम विलियम डेनियल और उनके भतीजे थॉमस डेनियल ने कोलकात्ता में 'बारह दृश्य' नामक एलबम में ऐचिंग द्वारा चित्र मुद्रित किये थे।


        सन् 1789 में ऐशियाटिक रिसर्चस का प्रथम ग्रन्थ कम्पनी की प्रैस से मुद्रित हुआ जिसमें भारतीय कलाकारों के पंद्रह उत्कीर्ण थे जिनमें भारतीय देवताओं के चित्र भी मुद्रित किये गये थे। इस समय बंगाल गजट नामक समाचार-पत्र में सरकारी विज्ञापन मुफ्त छपते थे। सन् 1790 से बम्बई में द कोरियर नामक समाचार-पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ जिसमें सर्वप्रथम भारतीय भाषाओं - उर्दू, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं में विज्ञापन छापे गये। सन् 1816 में अमेरिकी ईसाई मिशनरियों द्वारा बम्बई (मुम्बई) में मुद्रण की विस्तृत व्यवस्था की गई थी। पहला भारतीय भाषा का समाचार-पत्र दिग्दर्शन सन् 1818 में बंगाल में प्रकाशित किया गया था। भारत में 1822 ई. में लिथोग्राफी द्वारा मुद्रण प्रारम्भ किया गया था। प्रथम लिथोग्राफी प्रेस की स्थापना कोलकाता में की गई थी। पटना भी लिथोग्राफी द्वारा मुद्रण का प्रारम्भिक केन्द्र रहा है। यहाँ पर चित्रकार सर चार्ल्स डी. ओलेय ने अपने द्वारा बनाये चित्रों को मुद्रित करने के लिये बिहार लिथोग्राफी प्रेस की स्थापना की थी। इन्होंने स्थानीय चित्रकार जयरामदास को लिथोग्राफी में प्रशिक्षित किया और अपना सहायक बनाया था। 

         

         सन् 1820 से 1850 के मध्य तक कोलकाता में बहुत अधिक लिथोग्राफी प्रेसों की स्थापना हो चुकी थी और लिथोग्राफी तकनीक द्वारा चित्रों का मुद्रण किया जाने लगा था। 30 मई, 1826 को हिन्दी का पहला समाचार-पत्र उदन्त मार्तण्ड कोलकाता से प्रकाशित किया गया। उस समय छपने वाले अधिकतर विज्ञापन वर्गीकृत व घोषणाएँ होती थीं जो विदेशी वस्तुओं के लिए अधिक होते थे जैसे- टोपी, जूते, कपड़े और पनीर आदि। इन विज्ञापनों में भाषा पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था। उनकी भाषा काम चलाऊ होती थी। 19वीं सदी के पूर्वार्द्ध के दशकों में धातु उत्कीर्ण की अपेक्षा काष्ठ उत्कीर्ण अधिक लोकप्रिय रहा। भारत के कला विद्यालयों में भी काष्ठ उत्कीर्ण एवं लिथोग्राफी की तकनीकों पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा था। 


         1860 के दशक में मद्रास से 'The General Advertiser & Journal of Commerce' नामक समाचार पत्र छापा गया जिसमें चार पृष्ठ विज्ञापनों से सम्बन्धित थे। सन् 1880 तक कोलकाता में रंगीन लिथोग्राफी बहुत लोकप्रिय हो चुकी थी और बड़े-बड़े रंगीन पोस्टर लिथोग्राफी द्वारा मुद्रित किये जाने लगे थे। मुम्बई में राजा रवि वर्मा द्वारा भी अपनी लिथोग्राफी प्रेस से बड़े-बड़े पोस्टर एवं कलेण्डर मुद्रित किये गये थे। उस समय भागे हुए लड़कों के बारे में भी समाचार पत्रों में विज्ञापन छपते थे, जैसे- 31 मई 1887 को 'कलकत्ता गजट' में भागे हुए लड़के के बारे में विज्ञापन छपा था जिसमें उसके बारे में जानकारी थी एवं उसको खोज कर लाने वाले को एक सोने की मोहर (मुद्रा) देने के बारे में लिखा गया था इस प्रकार के विज्ञापनों की भाषा काम चलाऊ होती थी। 21 नवम्बर 1888 में मुम्बई से 'दी टाइम्स ऑफ इण्डिया' में दो विज्ञापन मुद्रित हुये जो खाने के सामान से सम्बन्धित थे। उस समय अधिकतर विज्ञापन विदेशी आयातित वस्तुओं से सम्बन्धित होते थे।


           भारत में 1890 ई. में छपने वाले विज्ञापनों में लगभग 50 प्रतिशत विज्ञापन तो एलोपेथिक दवाओं के ही होते थे जिनकी भाषा अंग्रेजी होती थी। ये विज्ञापन 'टाइम्स ऑफ इण्डिया' व 'ट्रिब्युन' में छपते थे। उस समय आयुर्वेदिक दवाओं के विज्ञापन मुम्बई समाचार-पत्र में छपते थे। संस्कृत और फारसी भाषा से अंग्रेजी में अनुवादित पुस्तकों, जैसे:- भगवद गीता, उत्तर रामचरित तथा आइने अकबरी आदि के विज्ञापन भी समाचार पत्रों में सम्मानजनक स्थान लिए हुए होते थे। 19वीं सदी के अन्त तक भारत में भी यूरोप की तरह लोकप्रिय टाइपफेशो का आविर्भाव हो चुका था। इस समय कोलकाता का बाजार तेजी से विकसित हो रहा था और इसमें ग्रामोफोन, साइकिल एवं बैंक आदि सम्बन्धी सेवायें उपलब्ध होने लगी थी। 


          भारत में 20वीं शताब्दी के आरम्भ में ही विज्ञापन का आधुनिक स्वरूप सामने आया। कुछ समाचार पत्रों, जैसे- स्टेट्समैन और टाईम्स ऑफ इण्डिया ने विज्ञापनदाताओं को कला सम्बन्धी एवं कॉपी लेखन के लिए सेवायें देना प्रारम्भ किया। इस समय विज्ञापनों में स्वदेशी पर जोर दिया जाने लगा था जिसका उद्देश्य भारतीय उत्पादों के प्रति जागरूकता लाना था। उस समय दिल्ली की 'हिन्दू बिस्कुट कम्पनी' ने अपने विज्ञापनों में कहा था कि उनके द्वारा बनाये गये बिस्कुट आयातित बिस्कुटों से अधिक ताजा, पौष्टिक व सस्ते हैं। इसी तरह सन् 1906 में धारीवाल कम्पनी द्वारा प्रसारित किये गये विज्ञापन का मुख्य शीर्षक था- "भारत में बना भारत का" जो कि ऊनी वस्त्रों के लिए किया गया विज्ञापन था। उस समय स्वदेशी निब, स्वदेशी होल्डर, स्वदेशी दवाइयाँ, आदि। के विज्ञापन भी प्रसारित किये जाते थे। रेलवे, बैंकिंग सेवा तथा शेयर बाजार के उदय ने भी विज्ञापन को बढ़ावा दिया।


          सन् 1907 में भारत में रोटेरी मशीन के आ जाने के बाद सबसे पहले कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले समाचार-पत्र स्टेट्समेन ने इस मशीन का प्रयोग शुरू किया और बाद में अन्य समाचार पत्रों ने भी इस मशीन का उपयोग करना प्रारम्भ कर दिया जिससे पत्र-पत्रिकाओं की छपाई सस्ती व अधिक संख्या में होने लगी। अब अधिक संख्या में लोग समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ पढ़ने लगे और इनमें विज्ञापनों की संख्या भी बढ़ी। उस समय कोलकाता देश की राजनीतिक राजधानी और मुम्बई देश की औद्योगिक राजधानी थी। इसलिए विज्ञापन उद्योग का प्रारम्भ भी इन्हीं केन्द्रों पर हुआ। 

      सन् 1907 में ही मुम्बई में प्रथम भारतीय विज्ञापन एजेन्सी की स्थापना मुम्बई में हुई। सन् 1909 में कोलकाता में विज्ञापन एजेन्सी की स्थापना हुई। ये विज्ञापन एजेन्सियाँ विज्ञापनकर्ता को कला सम्बन्धी सेवायें भी देने लगी थीं।


        भारत में टाइम्स ऑफ इण्डिया ने 1910 ई. में अपने वार्षिक अंक में प्रथम बार रंगीन विज्ञापन मुद्रित किये जो पियर्स साबुन तथा इनो फ्रूट नमक से सम्बन्धित थे। इन विज्ञापनों में जो रंगीन चित्र प्रयुक्त किये गये थे वे ऐचिंग पद्धति द्वारा मुद्रित किये गये थे। इनमें 'पीयर्स' का विज्ञापन पोस्टर की तरह दिखाई देता था जबकि 'इनो फ्रूट' नमक का विज्ञापन अधिक सुरुचिपूर्ण एवं कालांकित था। इनमें चित्र वाला भाग तीन रंगों से मुद्रित किया गया था। 

Pears soap. Advertisement. Times of India. 1910


Eno's Fruit Salt. Advertisement

         प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के समय समाचार पत्रों की प्रसार संख्या में बढ़ोतरी हुई, जिसके कारण समाचार-पत्रों की संख्या भी बढ़ी। विश्व युद्ध के पश्चात् भारतीय बाजारों में विदेशी वस्तुएं बहुतायत में आने लगीं और विदेशी निर्माताओं के लिए भारत एक बड़े बाजार के रूप में सामने आया। बाजार में वस्तुओं की अधिकता के कारण प्रेस में विज्ञापनों की संख्या भी बढ़ने लगी और इसी समय भारत में विज्ञापन के लिए बाह्य माध्यम (होर्डिंग, कियोस्क आदि अन्य विज्ञापन वाहनों) का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। 

     

       सन् 1920 के आस-पास कुछ विदेशी विज्ञापन एजेन्सियों ने भी देश में अपनी शाखाओं की स्थापना की। आज़ादी से पहले अधिकतर विज्ञापन कार, ग्रामोफोन, होटल और कपड़ों आदि से सम्बन्धित होते थे जो राजघराने के लोगों, अंग्रेजों और अमीरों के लिए प्रसारित किये जाते थे। सन् 1931 में विज्ञापन एजेन्सी ने आधुनिक एजेन्सी के रूप में काम प्रारम्भ किया। दूसरे विश्वयुद्ध के समय अंग्रेज सरकार द्वारा भी भारतीय लोगों का सहयोग प्राप्त करने के लिए विज्ञापन अभियान चलाये गये थे। अनेक विज्ञापनों में राष्ट्रीय नेताओं द्वारा दिये गये वक्तव्य भी छापे जाते थे। उस समय फिल्मों के अलावा अन्य विज्ञापनों में मॉडल के रूप में जो चित्र छपते थे उनमें भारतीय महिलाओं के चित्र नहीं होते थे। विदेशी महिलायें ही मॉडल के रूप में कार्य करती थीं हालांकि पुरुष मॉडल भारतीय ही होते थे। सन् 1939 में इण्डियन एण्ड ईस्टर्न न्यूज पेपर एसोसिएशन (IENA) का गठन किया गया और 1945 ई. में एडवरटाइजिंग एसोसिएशन ऑफ इण्डिया (AAI) की स्थापना हुई। इस समय के समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में छपने वाले विज्ञापन आकर्षक एवं प्रभावी दिखाई देने लगे थे। 

  

मुद्रित विज्ञापन

         भारत में विज्ञापन का विकास वास्तव में आजादी के बाद ही हुआ है। सन् 1948 में समाचार पत्रों की प्रसार संख्या प्रमाणित करने के लिए ऑडिट ब्यूरो ऑफ सरक्यूलेशन की स्थापना की गई। सन् 1950 में विज्ञापन फिल्में बनने लगीं जिनकी अवधि दो मिनट होती थी। आज़ादी के बाद ही भारत में औद्योगिक विकास की गति तीव्र हुई, जिससे विज्ञापनों की संख्या भी बढ़ी एवं विज्ञापन कला को बढ़ावा मिला तथा विज्ञापन के लिए विपणन, बाजार अन्वेषण, उपभोक्ता अन्वेषण आदि नई तकनीकों का प्रयोग किया जाने लगा। सन् 1952 में भारतीय विज्ञापन समिति की स्थापना की गयी, जिसका मुख्य उद्देश्य विज्ञापनों की गुणवत्ता को सुधारना था। इस प्रकार 20वीं सदी के मध्य तक विज्ञापन का स्वरूप पूर्ण रूप से बदल गया था। सन् 1962 में मुम्बई में विज्ञापन क्लब की स्थापना की गई। इस क्लब द्वारा श्रेष्ठ विज्ञापन के लिए अखिल भारतीय पुरस्कार दिया जाने लगा और विज्ञापन एवं इससे जुड़े अन्य विषयों पर परिचर्चा, सेमीनार, स्लाइड शो आदि किए जाने लगे जिससे विज्ञापनों की गुणवत्ता में बहुत अधिक सुधार आया। 


         02 नवम्बर 1967 से रेडियो पर विज्ञापन प्रसारित होने लगे तथा 1967 ई. में ही नेशनल कॉउन्सिल ऑफ एडवरटाइजिंग एजेन्सीज (NCAA) की स्थापना की गई। 01 जनवरी 1976 से दूरदर्शन पर भी विज्ञापनों का प्रसारण बहुत तेजी से बढ़ा और दूरदर्शन ने व्यवसायिक रूप धारण कर लिया। सन् 1995 में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले विज्ञापनों का व्यय प्रेस विज्ञापन से बहुत कम था जो कुछ समय तक प्रेस से ज्यादा रहा तथा वर्तमान में यह प्रेस से कुछ कम ही है। आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स माध्यमों के प्रयोग ने विज्ञापन को एक नई दिशा प्रदान की है तथा भारत में भी अन्य देशों (अमेरिका , इग्लैण्ड एवं कनाडा आदि) की तरह ही आधुनिक विज्ञापन माध्यमों एवं तकनीकों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।



बुधवार, 30 मार्च 2022

अप्रैल फूल दिवस (April Fool's Day)

     

 

       मूर्ख दिवस या अप्रैल फूल दिवस एक अप्रैल को आयोजित एक वार्षिक प्रथा है जिसमें व्यावहारिक चुटकुले और हंसी-मजाक शामिल है। अक्सर लोग एक-दूसरे को थोड़ा परेशान करते हुए "अप्रैल फूल!" चिल्लाकर मनाते हैं।


April Fool's Day 


       April Fools' Day or April Fool's Day is an annual custom on 1st April consisting of practical jokes and hoaxes. Jokesters often expose their actions by shouting "April Fools!" at the recipient. Mass media can be involved in these pranks, which may be revealed as such the following day.

लोग महबूब पर, गज़ल लिखते हैं, हम "महबूब पर ही", "गज़ल" लिखेंगे।


लोग महबूब पर, गज़ल लिखते  हैं,

हम "महबूब पर ही""गज़ल" लिखेंगे।


पढ़ेंगे हर्फ़-हर्फ़ जिस्म उसका,

आज मिटा कर, फिर "कल" लिखेंगे।


उसने मेरे दिल💗 में, दख्लअन्दाज़ी करके,

मुझे इश्क़ से अपने, बे-दख़ल💔 कर दिया।


हम उसके दिल की हर धक-धक पर,

अपना "दख़ल" लिखेंगे।


पढ़ेंगे हर्फ़- हर्फ़ धड़कनें उसकी,

आज मिटा कर, फिर "कल" लिखेंगे।

हर्फ़ का अर्थ:- अक्षर, वर्ण।


ख्वाहिशों के दामन को,

बस उसकी आरज़ू है तो।

दामन के हर "सिलवट" पर,

उसके "करवटों की शक्ल" लिखेंगे।


लोग महबूब परगज़ल लिखते  हैं,

हम "महबूब पर ही""गज़ल" लिखेंगे।


बैठेंगे साथ उसके,

आशिकी का जाम🥂 लेकर।


मयक़दे में कल इश्क़ की,

"पूरी गज़ल" लिखेंगे।


लड़खड़ा न जाये दिल💗 उसके,

दीदार👸 से इक दफा फिर।

"सूरत उसकी",धड़कन पर,

ज़रा "संभल-संभल" लिखेंगे।


लोग महबूब परगज़ल लिखते  हैं,

हम "महबूब पर ही""गज़ल" लिखेंगे।


जाने ना देंगे उनको,

घायल❤‍🩹 ये  रूह करके।


कल हाथों से उनके,

अपना "पूरा क़त्ल" लिखेंगे।


तैयार रहना "चस्मदीदों",

कल गवाही है तुम्हारी अदालत में।


हम बेवफाई के मुआवज़े में,

"वफा" का सूद समेत "असल" लिखेंगे।


लोग महबूब परगज़ल लिखते  हैं,

हम "महबूब पर ही""गज़ल" लिखेंगे।

                                

जब तेरी याद में, मैंने दिल💗 को जलाई🔥 थी।


मार कर फूँक, 

मैंने रात बुझाई थी।

जब तेरी याद में,

मैंने दिल💗 को जलाई🔥 थी।


एक बगल चाँद🌛 बैठा था मेरे,

एक बगल में मेरे तन्हाई थी।


मार कर फूँक, 

मैंने रात बुझाई थी।

जब तेरी याद में,

मैंने दिल💗 को जलाई🔥 थी।


सोचता हूँ पँख मिल जाते,

तो आ कर सो जाता।

तेरे बिस्तर के उस छोर, 

जहाँ तूने मेरी जगह बनाई थी।


मार कर फूँक.........


छान कर,"दो कप"☕☕, 

क्यूँ रखती हो शाम को चाय?

क्या याद में मेरी,

तुमने भी साँझ डुबाई थी।


मार कर फूँक.........


आओ ना फिर से कंधे पर,

सर रख कर बैठो।

तुम्हारा सुकून देख कर ही तो,

मुझे भी नींद आई थी।


मार कर फूँक.........


तुम्हारी बाहों में,

मेरे सुकून की कीमत तुम क्या जानो।

मेरे ताउम्र की, 

बस वही तो एक कमाई थी।


मार कर फूँक.........


हमने नाम उसके कर दी,

अपनी सारी वसीयत।

जो नींद  से उठकर,

ली तुमने अँगड़ाई थी।


मार कर फूँक, 

मैंने रात बुझाई थी।

जब तेरी याद में,

मैंने दिल💗 को जलाई🔥 थी।

मंगलवार, 29 मार्च 2022

तुम साथ हों, बस। यहीं काफी हैं.....


कौन-सा, कितना-सा,

सफर बाकी हैं।

तुम साथ हों, 

बस।

यहीं काफी हैं..... 

मईया यशोदा, ये तेरा नंदलाला।


मईया यशोदा देख तेरा नंदलाला,

हमकों तंग करें हैं रोज। 

पनिया भरन को जमुना में जाउ,

तोड़े मटकिया रोज। 


दही बेचन को घर से निकलु,

राह तके है रोज। 

ग्वाल सखा संग पाछे पड़,

छीने मटकिया रोज। 


मईया यशोदा देख तेरा नंदलाला,

हमकों बहुत सतावे रोज। 


लाला को थोड़ा समझा दे...

कान पकड़ के सबक सिखा दे। 

सासु ननदिया रार करे हैं,

हमको डांट पड़े हैं रोज।


यशोदा देख तेरा नंदलाला,

हमकों तंग करे हैं रोज। । 


माता यशोदा बोली- गुजरी

झूठ काहे को बोले?

लाला तो मेरो कहीं नहीं गयो,

सब मिल पीछे पड़ी हो रोज। 


मेरा सोय रहा नंदलाला,

झूठी करो शिकायत रोज।




ये बताओ इसमें क्या मेरी ख़ता, आपका ग़र दिल💗 दीवाना हो गया।


रोज़ ही घर उनके जाना हो गया, 

काम का तो बस बहाना हो गया।


दिल के कितने बोझ हल्के हो गए, 

आपका जो मुस्कुराना हो गया। 


पूछना मेरा कि क्यूँ हैं दूरियां, 

उनका बातों को घुमाना हो गया।


ये बताओ इसमें क्या मेरी ख़ता, 

आपका ग़र दिल💗 दीवाना हो गया।


खूबियां अब मुझमें कुछ दिखती नहीं, 

दोस्त उनका मैं पुराना हो गया।


हम वफ़ा के इम्तेहाँँ देते रहे, 

और उनका आज़माना हो गया।


बात ये लग जाए ना कुछ को बुरी, 

चुप रहें ग़र सच बताना हो गया।


पुनीत कुमार माथुर 'परवाज़'✍️

सोमवार, 28 मार्च 2022

हम अपना बिहार घुमाएंगे....

 


धीरे-धीरे हम तुम्हें,

अपनी मोहब्बत💗 दिखाएंगे। 


मिलना कभी हमसे, 

तुम्हें हम अपना बिहार घुमाएंगे..🤍🤍


We'll take you slowly, 

Show your love.💗


Meet up sometime, 

We will twirl our Bihar to you..🤍🤍



कोट, नया जुत्ता और राजेशवा के बारात।

        ऑफिस में एक दोस्त है जिसकी शादी कुछ महीने पहले हुई। उसकी शादी में बाराती बनकर हमको भी जाना था। 10-15 दिन से बहुते उत्साहित थे कि वहां नागिन🐍 धुन पर जमकर डांस करने का मौका मिलेगा। 


       आखिरकार शादी वाला दिन भी आ गया और हम भी शाम तीन बजे अपना आलमारी खोले कोट पैंट निकालने के लिए। भैया के शादी में कोट हम बनारस में सिलवाये थे Raymonds के टेलर से, पूरा 15000 रुपया लगा कर। ससुरा कपड़ा से जादे सिलाइये लग गया था। आज पैसा वसूल करने का समय आ गया था।


         इससे पहले जिस शादी में हम जाते थे वो अप्रैल, मई की गर्मी में होता था जिसके चलते कोट-पैंट हम कभी पहन नहीं पाते थे। एक बार कोशिश किये थे तो इतना पसीना से डुब गए थे की लग रहा था कि अभीये पानी मे से डूबा के निकाला गये हैं। उसके ऊपर से नागिन डांस कर-करके एतना धुर-माटी कर दिए थे कि Drycleaning वाला भी यह कहकर लौटा दिया कि धोबी से धुलवाने वाला कपड़ा धोकर हम अपना drycleaning वाला मशीन थोड़े खराब करेंगे। रेमंड टेलर वाला भी ससुरा, Nike, एडिडास टाइप सामने अपना प्रिंट नहीं लगाया था, अब क्या उसको हम सबके सामने चिल्लाते कि महंगा है कोट मेरा, सस्ता वाला नहीं समझो।


      खैर!!!! उसकी बेइजत्ती करने के पहले ही हमको बढ़िया से सबके सामने बेइज्जत कर चूका था। वैसे मेरा हुलिया देखकर 15000 वाली बात भी नहीं ही मानता। एक तो बार बार मेरा टी शर्ट देख कर ससुरा मुस्कुरा रहा था, जबकि हम 220 रुपये लगाकर Reebok ब्रांड का खरीदे थे। बहुत बड़े अक्षर में लिखा भी था। समझ नहीं आया, फिर घर आके सोचे और स्पेलिंग चेक किये तो Reebuk लिखा हुआ था, स्पेलिंग मिस्टेक🤦 बताओ, कंपनी वाला यह सब भी कर दे रहा है। 


         खैर, आज मस्त स्मार्ट💁 बनके जाना था हमको। कोट-पैंट का क्रीज सलामत पाकर मन खुश हो गया। पैंट बहुत टाइट हो रही थी लेकिन फैशन है आजकल। कोट थोड़ा कन्धा पकड़ रहा था और हाथ का मूवमेंट हल्का सा रुक रहा था, पर हम भी सोच लिए थे कि स्मार्ट बनके ही जाना है, नहीं तो विशाल मेगामार्ट, पटना से खरीदा हुआ 5000 का कुरता पैजामा सेट भी था मेरे कलेक्शन में, बस कुरतवा उसका थोड़ा शाइन ज्यादा मारता था। बाकी फ़ोटो आपके साथ साझा कर रहे हैं।



        टाइट कोट पैंट पहनकर शीशा में देखे तो बहुत फिट लग रहे थे। ऐसा फील हो रहा था कि लड़की लोग के लेग्गिंस जैसा कुछ पहन लिए हैं। साला, स्मार्ट दिखने के चक्कर में हॉट (HOT)🔥 दिखने लगे थे। लेकिन आजकल सब चलता है। 


       फिर फटाक से निकाले शू रैक से अपना favourite ली-कूपर का जूता जो हमको हमारे जन्मदिन पर गिफ्ट में मिला था और उसको हम सम्हाल कर रखे थे, वर्षों से। कौन दिया था ये मत पूछियेगा। 


         मजा और याद दोनों आ गया पहनकर। याद माने जो गिफ्टवा दिया था। लेकिन जैसे ही ऊ जुतवां पहनकर दो कदम आगे बढ़ाये कि जूता का पूरा सोल दो टुकड़ों में टूट गया। दूसरे पाँव का जूता देखे तो पूरा क्रैक कर गया। 

"अरे साला, ई का हुआ रे" 

         पूरा दिमाग झनझना गया। इतना अफ़सोस हुआ कि क्या बताएं। इसीलिए कुछ भी भविष्य के लिए बचा कर रखने से कुछ मिलने वाला नहीं है। समझ गए अच्छे से हम ई जूता महाराज🙏 से। 


      स्मार्टनेस की वो क्या कहते हैं वही लग गयी। अब जूता कहाँ से लाएं ? ऑफिस वाला एक जूता था जो माइंस में पहनकर जाते हैं उसको पहनकर देखे तो लगा कि कोई पागल बारात जा रहा है। पूरे शरीर में जुतवा ही फुटेज ले रहा था। इसीलिए शायद फुटेज शब्द का आविष्कार हुआ होगा, foot जो है इसमें। 


        छोड़िये, ये सब बताकर क्या फायदा। हम तो फंस गए। बिना जूता के कोट पैंट चप्पल पर पहन कर भी चेक किये, लगा की भीख़ मांगने कोई आया है। बहुत टेंशन हो गया। स्पोर्ट्स वाला जूता भी निराश ही किया।


       फिर याद आया कि नजदीक के दूकान से कोई नया जूता खरीद लेते हैं। देर ना करते हुए, पहुँच गए हम बिल्लो शू एंड अंडरगार्मेंट्स स्टोर ऐसा दुकान कसम से बता रहे हैं, कभी नहीं देखे थे, जिसमे चप्पल जूता और अंडरगार्मेंट्स मिलता हो। और नहीं तो और ऊ ससुरा बाहर में टांग दिया था लड़की लोग वाला चीज़, जिसके चलते थोड़ा शरम भी आ रहा था जाने में। 


        लेकिन मज़बूरी थी, क्या करते। सम्हाल कर दुकान में घुसने के चक्कर में एक ठो लड़की लोग वाला चीज़ माथा से टकरा ही गया और दुकान में बैठी दो लड़कियां हँस दी।  "बहुत सीरियस रहने के कोशिश, के चक्कर में हमेशा इस बेरहम समाज नें मुझे जोकर ही माना।" ये डाइलॉग है जो हम लिखे हैं अपने लिए। कैसा हैं आप बताइयेगा।


       छोड़िये, जूता खरीद लें। बिल्लो से बोले कि भाई बढ़िया 500 तक का कोई लेदर शू दिखाओ। फर्स्ट एटेम्पट में ही निकाल के लाया एकदम चमकदार जूता, जिसकी चमक देखकर मेरी निराश आँखें चमक गईं।  पहनकर देखे जब तो मजा आ गया। बस 370 रुपया देकर पैक करवाये और निकल लिए घर के लिए। निकलते समय भी उ स्त्री लोग वाला चीज़ फिर माथा से टकरा गया। लड़की लोग फिर हँस दी, हम भी चिल्लाकर बोल ही दिए दुकानदार को कि अंडर-गारमेंट को अंदर रखो यार। टांग दिए हो, माथा पर। वो मेरी बात भी नहीं सुना।


          खैर, हम मस्त तैयार होकर घर से निकल गए राजेशवा का बिआह, जिस मैरिज गार्डन में होना था। पहुंचे तो देखे कि बारात लग गयी थी और लौंडे नाचे पड़े थे। हम भी देर ना करते हुए शुरू हो गए। राजेशवा घोड़ी पर बैठा था। घोड़ी गीधरोईन टाइप थी। लग रहा था कि कहीं किसी रोड से पकड़कर ले आया था।  हो सकता है तेज लगन के चलते नहीं मिल पायी होगी बढ़िया घोड़ी। उ घोड़ी ऐसी लग रही थी जैसे मुंह में राजश्री दबा कर पूछ रही हो हमसे कि "का भैवा, अपने टाइप माल हो का" ? घोड़ी से ध्यान हटाकर राजेशवा को देखने लगे।


        राजेशवा ससुरा चेहरा ब्लीच कराके बानर लग रहा था लेकिन ठीक है, हमको क्या फर्क पड़ता, दुल्हन जाने जिसको राजेशवा मिलेगा। इसी बीच कौनो हमरे मुंह में डिस्पोजल गिलास लगा दिया, हम देखे भी नहीं और मार दिए एक शॉट में पूरा। दारु पे खर्चा किया था राजेशवा। लड़की मन लायक जो पा गया था।


         अब काहें का शरीर रुके भाई। दे झमाझम डांस। बारात मंडप के पास आ गयी और मेरा पैर डांस इंडिया डांस वाला टेरेंस और उकर चेला सब से भी तेज चलने लगा। जयमाला के स्टेज के पहिले कौनो पागल कालीन टाइप कुछ बिछा दिया था। डांस में चूर हमको कुछ दिखा नहीं और हमर नैका जुतवा को भी नया ग्राउंड समझ में नहीं आया। अभी कुछ समझते कि ऐसा फिसलन हम मारे कि सीधे दुल्हन के सामने पटका गए। सकपका कर पीछे हट गये नहीं तो हमार जुत्ता से बेचारी का लहंगा का Accesories टूट जाता।  इस फिसलन में चरचराते हुए मेरा टाइट पैंट भी धोखा दे दिया। हम अक-बक में जल्दी से उठकर ऐसे हंसने लगे कि जैस कीे हम जानकर ये स्टंट किये हों। 


        दुल्हन और उसकी सहेलियां हंसने लगीं और इधर मेरे दोस्त भी। बूढ़े-बुजुर्ग बोलने लगे कि पी-पाकर आ जाते हैं कहाँ से बद्तमीज लौंडे सब। अब हम क्या बताते सबको कि ई 400 वाला लेदर जुतवा चमकदार तो बहुत था पर उसका ग्रिप तनिक भी नहीं था। सस्ता के फेर में गाँजा हो गया। सूट भी फटा, इज्जत भी गयी और तो और ड्रोनवा भी वीडियो रिकॉर्डिंग कर लिया। बिना खाये, बस पीके घर लौट आये।


       बहुत बार बुलाता है पर राजेशवा की बीबी से शरम के मारे कभी मिलने भी नहीं गए उसके घर। डर लगता है कि रिकॉर्डिंग में नया जूता के फेर में मेरा अंडरगारमेंट तो नहीं दिख गया। अब समझ में आया कि जूता और Undergarment एक ही दुकान में क्यों बेचता है ससुरा बिल्लो!!!


      स्मार्ट, हैंडसम दिखने के फेर में मुंह दिखाने लायक ना रहे। कहते हैं समय सब जख्म भर देता है पर ख़तम दोस्त उसे हमेशा जिन्दा रखते हैं।


अमित रंजन✍️

बिहार में भईल थपड़वस कांड के बाद देश के नेताओं की स्थिति।


         माननीय नीतेश जी के ऊपर आम आदमी द्वारा थप्पड़ रूपी हमले के बाद भारत के राजनेताओं में खलबली मच गई हैं। सभी नेता टेंशन🤔 में हैं कि कहीं कोई उन्हें भी भीड़ वगैरा से निकलकर थपड़वस न दे। माहौल कुछ इस तरह का हो गया है देश में :-


(१) बालू यादव का कहना है कि जगह जगह फूल पहनाने से का होगा, बिहार के लोग को फूल जो बनाएगा, उसको बिहारी थोड़े छोड़ता है। हमही को देख लीजिए, चारा से बेचारा हो गए हैं। बिहार की भैसिया सब गुस्सा होके हमको जेल करवा ही न दी, उनको तो थप्पड़े बस पड़ा।


(२) तरेंद्र भोदी जी कहते हैं कि भाइयों और बहनों, मेरा अच्छा इमेज है विदेश में। ऐसा कुछ मेरे साथ मत करना नहीं तो अमेरिका और पाकिस्तान वाला पगला प्रधानमंत्री सब बहुत चिढ़ाएगा हमको, फिर हम अपने मन की बात किसी को नहीं बताएंगे।


(३) जाहुल घांदी जी कहते हैं कि जनता को रोजगाल चाहिए नहीं तो खाली हाथ में बहुत खुजली होती है। मैं आलू चिप्स बनाने में बिहाल को दुनिया का लंबर एक देश बना दूंगा। सबको रोजगाल दूंगा। इतना रोजगाल दूंगा कि बीहाल नेपाल को टक्कल देगा।


(४) केतलीवाल हंस रहे हैं बस। उनका कहना है कि नीतेश जी को इसकी आदत बना लेनी चाहिए मेरी तरह। अब हम दोनो दोस्त बन जाएंगे और एक साथ पिटायेंगे मतलब चुनाव बिहाल में एक साथ मिलकर लड़ेंगे। लोग हंसते थे हमपर। अब हम अकेला फील नहीं करेंगे। आई लव💗 नीतेश जी।


(५) अतिक्लेश यादव का कहना है कि गर्मी बहुत पड़ रही है। साइकिल वालों को धूप लगेगी और लाज सरकार की तरफ से बिहाल में ठंडा चिल्ड तरल पदार्थ बंद कर दिया गया है तो गुस्सा तो आयेगा न। सबको सरकार फ्रूटी अनाज के बदले बांटें, इससे ठंडक बनी रहेगी और घटनाएं कम होंगी ऐसी।


(६) अलुपम खेल कहते हैं कि शायद वो गुस्से वाला आदमी कस्मीली है और पिक्चर का टिकट नहीं मिलने से नाराज़गी दिखा दिया।


(७) योग गुरु राजदेव बाबा कहते हैं कि गांजा मारने के बाद युवा अनुलोम-विलोम ना करें। इससे गांजा का असर बढ़ जाता है और गलत हरकत हो जाती है।


(८) अलबलनब गऊ स्वामी कहते हैं ये तो कुछ नहीं, मेरे साथ जो हुआ है उसके बारे में कोई बात नहीं करता। 


(९) संजना सोम काशयूप निंदा की हैं और इनका मानना है कि युवक दूसरे राज्य का घुसपैठिया है शायद। 


(१०) जो सिक्योरिटी वाले थे उनका कहना है कि बाहर इतना नहीं निकलना चाहिए। फेसबुक पर इतना मस्त-मस्त रील आता है कि उसको देखने ही लगता है आदमी और ध्यान भटक जाता है अक्सर। इसलिए, घर में रहें, सुरक्षित रहें।


       ऐसी तमाम बातें पूरे देश में चल रही हैं, इस कांड के बाद। बाकी मारपीट गलत बात है। किसी के साथ नहीं होना चाहिए चाहे वो नेता हो या अभिनेता, राजा हो या रंक। 


      ये लेख बस हंसी-मजाक😆 के लिए लिखा गया है, सीरियस होने का मन हो भी तो मन को ठंडा कर लेना है। नीतेश जी ने माफी दे दिया है उसको शायद।


अमित रंजन✍️