रविवार, 10 अक्टूबर 2021

Brief History of Indian Art Origin and Develop (भारतीय कला की उत्पत्ति और विकास का संक्षिप्त इतिहास) हिंदी एवं English Notes.

Brief History of Indian Art Origin and Develop (भारतीय कला की उत्पत्ति और विकास का संक्षिप्त इतिहास) हिंदी एवं English Notes.





पूर्व बौद्ध काल

बौद्ध काल 

गंधार शैली

          गंधार शैली प्रथम/दूसरी शताब्दी में जन्म ली थी। यह शैली कुषाण राज्य में विम तथा कनिष्क आदि राजाओं के समय अपने चरम उत्कर्ष पर पहुंची।
        महात्मा बुद्ध की मृत्यु के पश्चात बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए चार बौद्ध संगीतियो का आयोजन हुआ।
  1. 483 BC - राजगीर - आजातशत्रु - महाकश्यप
  2. 383 BC - वैशाली - कालाशोक - साबकामीर
  3. 255 BC - पाटलिपुत्र - अशोक - मोगलीपपुट तिस्स शिष्य
  4. प्रथम/द्वितीय शताब्दी - कुंडलवन - कनिष्क - वसुमित्र (अध्यक्ष)
        चौथी बौद्ध संगीति के बाद बौद्ध धर्म दो भागों में बंट गया। 
  1. हीनयान 
  2. महायान 
1. यह बौद्ध धर्म के उपदेशों में कोई परिवर्तन नहीं करते थे एवं धर्म प्रचार या उनके अस्तित्व को प्रदर्शित करने के लिए प्रतीक चिन्हों का प्रयोग करते थे। 
जैसे:- कमल (जन्म), सफेद हाथी (गर्भ), चरण पादुका/पदचिन्ह (निर्वाण), घोड़ा (गृह त्याग), चक्र/धर्मचक्र प्रवर्तन (प्रथम उपदेश), स्तूप (मृत्यु), पीपल का पत्ता/बोधि वृक्ष (ज्ञान प्राप्ति) इत्यादि।

2. यह महात्मा बुद्ध के उपदेशों में परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन कर लेते थे एवं धर्म प्रचार के लिए महात्मा बुद्ध के चित्र या मूर्तियों का निर्माण करने लगे थे। आगे चलकर महायान शाखा दो भागों में विभाजित हो गया।
  • शून्यवाद 
  • ब्रजयान 
(१) शून्यवाद :- नागार्जुन शून्यवाद को मानते थे। शून्यवाद या शून्यता बौद्धों की महायान शाखा के माध्यमिक नामक विभाग का मत या सिद्धांत है जिसने संसार को शून्य और उस के सब पदार्थों को सत्ताहीन माना जाता है।

(२) ब्रजयान शाखा बौद्ध धर्म के विनाश का कारण बना। इसमें मदिरा सेवन, मूर्तिपूजन, वेश्यावृत्ति, इत्यादि। की अनुमति थी।

       कनिष्क ने भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं बनवानी आरंभ कर दी। इन मूर्तियों के निर्माण में यूनानी प्रभाव अधिक है। इस प्रभाव वाली अधिकांश मूर्तियां पेशावर, रावलपिंडी तथा तक्षशिला में बनी जिसे गन्धार प्रदेश कहा जाता है। इसलिए इस शैली का नाम गंधार कला पड़ा।
       इन मूर्तियों का विषय भारतीय तथा बौद्ध है परंतु उनमें यूनानी शैली की छाप है इसी कारण कुछ विद्वानों ने इसे इंडो यूनानी बौद्ध कला के नाम से पुकारा है। कलाकारों ने इन मूर्तियों द्वारा भगवान बुद्ध के जीवन की घटनाओं का प्रदर्शन किया।


गांधार शैली की विशेषताएं:- 
  • इस शैली के चित्रों में भगवान बुद्ध केशयुक्त बने हैं तथा उनकी मूंछे भी बनाई गई है।
  • इन मूर्तियों में विषय तो भारतीय हैं परन्तु शैली रोम तथा यूनानी है।
  • मूर्तियों में विश्व कल्याण तथा आध्यात्मिकता का भाव परिलक्षित नहीं होता है। 
  • कानों में छोटे कुंदल पहनाये गए हैं। 
  • अजन्ता का हल्का सा प्रभाव परीलक्षित होता है।

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