नर होना आसान नहीं है।
धूप घनी या अम्बर बरसे
बोझ कभी उतरा क्या सर से?
उम्मीदों की गठरी लेकर
रोज़ निकलता है वह घर से
भोग रहा है कितनी पीड़ा इसका कुछ अनुमान नहीं है
सच बतलाता हूँ नारायण, नर होना आसान नहीं है।
जतन किये पर कब मिट पाई, दूरी अधरों से पनघट की
करती थी उपहास हमेशा, सुविधाएं छींके से लटकी
माखन मिसरी की तो छोड़ो, दाल-भात दुर्लभ लगता था
टोह लगाते बीता बचपन, हाथ न आई सुख की मटकी
बंदीगृह में जान बचाना कठिन बहुत था लेकिन कान्हा
नित्य अभावों वाले जीवन का तुमको संज्ञान नहीं है
सच बतलाता हूँ नारायण, नर होना आसान नहीं है।
विपदाओं के फन पर, श्रम की वेणु बजाना सरल नहीं है
रस्मों का प्रतिरोध कठिन, पर रस्म निभाना सरल नहीं है
माना, कर्तव्यों के पथ पर रिश्ते बिसराना मुश्किल था
पर रिश्तों की ख़ातिर अपनी उम्र गलाना सरल नहीं है
गौवर्द्धन का भार उठाना निश्चित ही दूभर था गिरिधर
पर घर भर का बोझा कैसा; इसका तुमको भान नहीं है
सच बतलाता हूँ नारायण नर होना आसान नहीं है।
इच्छाओं के रण में निशदिन ख़ुद को हारा पाता है वो
मन के अर्जुन को पग-पग पर गीता ज्ञान सुनाता है वो
तुमने तो इक युद्ध लड़ा था, बनकर बस सारथि कन्हैया
मुट्ठी भर दानों की ख़ातिर रोज़ युध्द पर जाता है वो
पांडव को संग्राम जिताना कठिन बहुत था लेकिन केशव
वो उस रण में जूझ रहा है जिसकी हाथ कमान नहीं है
सच बतलाता हूँ नारायण नर होना आसान नहीं है।
निकुंज शर्मा✍️
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें