वंचित होने का अर्थ है रहित होना, विहीन होना। यदि हम किसी सुविधा से किसी को विहीन कर देते हैं तो वह वंचित हो जाता है। जैसे:- हमें प्यास लगी है और पानी चाहिए, भूख लगी है तो भोजन चाहिए। पानी और भोजन से विहीन कर देना इनसे वंचित कर देना है। वंचित होने पर असन्तोष होना स्वाभाविक है। वंचित बालक का अर्थ है कि बालक को किसी चीज से रहित किया गया है, उसमें इसीलिए कुछ कमी है और इस कमी के कारण उसमें असन्तोष है।
वंचित वर्ग की शिक्षा
(Education of Deprived)
समाज में वंचित वर्ग के प्रति हमारी उदासीनता इतनी ज्यादा है कि उनकी इच्छाओं का ध्यान नहीं दिया जाता है। आज भी बहुत से लोगों में अशिक्षा होने से उनके विचारों में रूढ़िवादिता (conservatism) का समावेश है। रूढ़िवादिता अधिकांशत: अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों में अधिक से अधिक होने का कारण अशिक्षा है। ये लोग पुराने विचारों, रीतियों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलाना चाहते हैं। उन्हें छोड़ने में वे अपनी पुरानी पीढ़ी का अपमान समझते हैं। परन्तु शिक्षा के विकास के साथ धीरे-धीरे रूढ़िवादी विचारों में कमी आती जा रही है।
भारतीय समाज के वर्तमान पतन का एक कारण लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखना भी था। जबकि एक तरफ हम सभी स्वतन्त्रता का 75वाँ वर्ष मना रहे हैं, एवं इस युग को हम 'नारी जागरण युग' कहते हैं किन्तु वास्तव में अब तक नारियों की सामाजिक पराधीनता की बेड़ियाँ काटकर हम फेंकने में असफल रहे हैं। स्वतन्त्र भारत के संविधान में समस्त क्षेत्रों में समानता के अवसरों की गारण्टी के बावजूद अभी भी स्त्रियों को मानवीय रूपों में स्थान नहीं मिल पाया है। एक जाति विशेष में यह समस्या विकराल रूप धारण किये है जबकि स्वयंसेवी संस्थाओं ने इस जाति विशेष की बालिकाओं को शिक्षित होने के लिये महिला शिक्षा समितियों की स्थापना की है। हरिजन बस्तियों में नगर पालिकाओं एवं स्थानीय संस्थाओं द्वारा प्राथमिक विद्यालय खोले गये, जिनमें इन्हें निःशुल्क शिक्षा देने का प्रावधान किया गया। इन संस्थाओं के द्वारा सरकार ने हरिजनों के प्रति उदारता दिखलायी एवं अनेक नियम बनाकर उनकी शिक्षा को प्रत्येक सम्भव रीति से प्रोत्साहित किया। फिर भी अनुसूचित जाति की बालिका शिक्षा में वांछित प्रगति नहीं कर पाई। इस सम्बन्ध में कई कारणों जैसे निर्धनता एवं गृह कार्य के अतिरिक्त माता-पिता की अशिक्षा और बालिकाओं को शिक्षित करने के प्रति निरुत्साहपूर्ण दृष्टिकोण भी एक बहुत बड़ा कारण है।
अनुसूचित जाति के लोगों को समाज में प्रारम्भ से ही अति निम्न स्तर प्राप्त था। उन्हें शिक्षा प्रदान करने हेतु कभी कोई प्रयास ही नहीं किया गया था। लेकिन नवीन समाज के निर्माण के साथ ही इनकी शिक्षा पर ध्यान तो दिया गया पर आज भी यह स्थिति नहीं आ पाई है कि यह कहा जा सके कि शिक्षा की सभी प्रक्रिया अनुसूचित जातियों में ठीक प्रकार से चल रही है।
प्रथम स्थिति में तो माता-पिता पूरी तरह अशिक्षित हैं जो शिक्षा की उपयोगिता ही नहीं समझ पाते, इसलिए अपने बच्चों को भी शिक्षा दिलाने में उचित रुचि नहीं लेते हैं। ये लोग अभी तक वर्षों से चले आ रहे परम्परागत जीवन के अनुसार ही जीवन व्यतीत करते हैं। ये अन्य भारतीयों की अपेक्षा अधिक अन्धविश्वासी और रूढ़िवादी हैं। सभ्य एवं शिक्षित समाज के सम्पर्क में कम आने के कारण ये लोग सांस्कृतिक वंचना (Cultural Deprivation) के शिकार हो जाते हैं।
समाज के वंचित वर्ग के व्यक्ति अशिक्षित रह जाते हैं क्योंकि ये लोग शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझते हैं परिणाम यह है कि शिक्षा प्रसार के लिये इनके क्षेत्र में समाज की ओर से सरकार को कोई विशेष सहयोग उपलब्ध नहीं होता है। प्रथम तो ये लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजना पसन्द नहीं करते हैं और यदि बच्चे जाते भी हैं तो इच्छानुसार उनका स्कूल बन्द कर देते हैं।
इसके अतिरिक्त यदि माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा दिलाना भी चाहते हैं तो निर्धनता के कारण वे ऐसा नहीं कर पाते हैं। अनुसूचित जाति के लोग भूमिहीन श्रमिक रहे हैं तथा समाज में अन्य वर्ग में गिने जाने वाले व्यक्तियों की निर्धनता के शिकार होते रहे हैं। निर्धनता के कारण परिवार के सभी सदस्यों को आवश्यक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिये एकजुट होकर कार्य करना पड़ता है। परिणामतः आज भी माता-पिता अपने बच्चों को घर पर कार्य में मदद करवाने के लिये रोक लेते हैं तथा कभी-कभी बीच में ही पढ़ने वाले बच्चों को स्कूल जाना बन्द करवा देते हैं। किन्हीं परिवारों में यदि अभिभावक स्कूल भेजने में सफल हो जाते हैं तो बच्चों को पढ़ाई में आवश्यक अध्ययन सामग्री उपलब्ध नहीं करा पाते, जिससे मजबूरी में उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ती है।
अनुसूचित जातियों का एक बड़ा वर्ग गाँवो में निवास करता है। ग्रामों में आज भी स्कूलों का अभाव-सा है। पिछड़े इलाकों में तो कई गाँव के बीच एक स्कूल है। अभिभावक अधिक दूर स्कूल होने के कारण प्रायः अपने बच्चों को स्कूल भेजने से हिचकते हैं। किन्हीं स्थानों में विद्यालय भी होते हैं और अस्पृश्य जाति के लोग अपने बच्चों को विद्यालय भेजना शुरू कर देते हैं तो भी उचित सुविधाएँ व माहौल नहीं जुटा पाते हैं जिससे बच्चे कक्षा में असफल होने लगते हैं जिससे अपव्यय होता है और बार-बार अवरोधन भी जिससे क्षुब्ध होकर ये अपने बच्चों को रोक लेते हैं और उनकी शिक्षा अधूरी रह जाती है।
अनुसूचित जातियाँ अधिकतर क्षेत्रीय या प्रान्तीय भाषा जानती हैं। बहुत बड़े वर्ग की यह एक प्रमुख समस्या होती है क्योंकि उन्हें उनकी अपनी भाषा में पाठ्यक्रम उपलब्ध नहीं होता है और इसी कारण वह वास्तविक भाव व अर्थ समझ नहीं पाते हैं और शिक्षा के प्रति उनकी रुचि उत्पन्न न होने के कारण असफल हो जाते हैं। भाषा के साथ ही पाठ्यक्रम भी उनकी रुचि का नहीं होता है। किताबों का पाठ्यक्रम सामान्य वर्ग व सामान्य स्तर का होता है परन्तु उनका घर-परिवार व आस-पास का माहौल वैसा नहीं होता। जिस वजह से वह शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
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