शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2021

विषमता/असमानता का अर्थ (Meaning of Inequality) S-1, D.El.Ed. 2nd Year B.S.E.B. Patna.

       विषमता या असमानता की अवधारणा को उचित एवं सही रूप से समझने के लिए समानता की अवधारणा को समझना आवश्यक है। सामान्य अर्थों में समानता का तात्पर्य सभी प्रकार के सन्दर्भों में समस्त लोगों में बिना किसी भेदभाव के आपसी बराबरी से है। इसका आशय यह है कि मानव, मानव के मध्य किसी भी प्रकार का भेदभाव विद्यमान न हो। सभी मनुष्यों को समान शिक्षा, सुविधाएँ, वेतन, सम्पत्ति अर्जन एवं जीवन अवसर बिना किसी भेदभाव के सरलता से प्राप्त हों।

            समानता की अवधारणा में यह बोध अन्तर्निहित रहता है कि सभी व्यक्तियों को अपने सर्वांगीण विकास के समान अवसर प्राप्त हैं तथा समस्त प्रकार की निर्योग्यताओं और विशेषाधिकारों पर बल दिया जाता है। इसका आशय यह है कि जाति प्रजाति, लिंग, धर्म, भाषा, प्रान्त-स्थान, क्षेत्र, संस्कृति, सामाजिक स्थिति आदि के आधार पर किसी भी प्रकार का विभेद न तो वास्तविक रूप में किया जाता है और न ही स्वीकार किया जाता है तथा न ही इसे किसी भी रूप में सामाजिक स्वीकृति, मान्यता एवं संस्तुति प्रदान की जाती है। मूलत: सामाजिक असमानता का तात्पर्य किसी भी समरूप समाज में प्रमुखतया पारिवारिक पृष्ठभूमियों, सामाजिक परम्पराओं एवं परिपाटियों, आय-सम्पदा, राजनैतिक प्रभाव, आचरण, शिक्षा, नैतिकता इत्यादि पर आधारित भिन्नताओं के कारण सामाजिक पद-प्रतिष्ठा अधिकार एवं अवसरों में उत्पन्न अन्तर को सामाजिक असमानता के सम्बोधन से अभिहित करते हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा की भिन्नता का हस्तान्तरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पारिवारिक संस्थाओं, सम्पत्ति स्वामित्व एवं उत्तराधिकार की संस्थाओं के साथ-साथ समान सामाजिक वर्ग श्रेणी के व्यक्तियों के सम्पकों द्वारा सम्भव होता है।

           विषमता में लोगों को अपने व्यक्तित्व हेतु सर्वांगीण विकास के अवसर प्राप्त नहीं होते। समाज में विशेषाधिकार विद्यमान रहता है तथा जन्म, जाति, प्रजाति, धर्म, भाषा, आय व सम्पत्ति के आधार पर अन्तर पाया जा सकता है। इन्हीं आधारों पर एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से, एक समूह दूसरे समूह से, एक समुदाय अन्य समुदाय से, एक जाति या प्रजाति अन्य जाति या प्रजाति से, एक धर्म दूसरे धर्म से उच्चता एवं निम्नता का भेद बनाए रखने के साथ-साथ उचित सामाजिक दूरी भी बनाता है। विषमता को अभिव्यक्त करने वाले प्रमुख कारकों में शक्ति, सत्ता, पद, प्रभुत्व, आर्थिक असमानता, सामाजिक विभेद तथा उत्पादन के साधनों पर असमान अधिकार आदि प्रमुख स्थान रखते हैं। विषमता का आशय किसी समूह, समुदाय अथवा समाज के लोगों के जीवन अवसर तथा जीवन शैली की भिन्नताओं से है, जो विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों में इनकी असमान स्थिति में जीवनयापन करने से होती है। प्रख्यात समाजशास्त्री आन्द्रे बिताई का मत है कि सामाजिक परम्पराओं एवं मानदण्डों के बिना किसी भी समाज की कल्पना करना असम्भव है और ये ही सामाजिक असमानताओं को जन्म देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। 

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