भारत एक विशाल देश है। इसका भौगोलिक विस्तार एवं विस्तृत क्षेत्रफल इसे और भी विशालता प्रदान करता हैं। यहाँ प्राकृतिक विविधता, जातिगत, भाषा, धर्म सम्बन्धी विविधता स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। इसके साथ ही भारतीय संस्कृति के मूलभूत तत्त्वों की ओर ध्यान दें तो हम पाते हैं कि यह बहिर्मुखी (Extrovert) होने की अपेक्षा अंतर्मुखी (Introvert) अधिक है। यदि इसके मूल स्वरूप को देखा जाए तो भौतिकता की अपेक्षा आध्यात्मिकता (spirituality) पर अत्यधिक बल देती है। भारत के सभी 10 दर्शन में हमें भारतीय संस्कृति की झलक मिल जाती है।
Note:- भारत में 'दर्शन' उस विद्या को कहा जाता है जिसके द्वारा तत्व का ज्ञान हो सके। 'तत्व दर्शन' या 'दर्शन' का अर्थ है तत्व का ज्ञान। मानव के दुखों की निवृति के लिए और/या तत्व ज्ञान कराने के लिए ही भारत में दर्शन का जन्म हुआ है।
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कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक राजस्थान से अरुणाचल प्रदेश तक विविधताओं से भरे होने के पश्चात् भी इसमें अंतर्निहित एकता को आप महसूस कर सकते हैं।
विविधता का अर्थ
(Meaning of Diversity)
विविधता एक बहुआयामी शब्द है। विविधताओं से असमानताओं का जन्म होता है। भारतीय संविधान समानता पर बल देता है। तत्पश्चात् देश में विविध प्रकार की विभिन्नताएँ या विविधता विद्यमान हैं। विविधता विकास के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है। समानता की पोशाक रही भारतीय संस्कृति वर्तमान में असमानताओं से त्रस्त है। समानता का अर्थ- जन्म, वंश, स्थान, लिंग, धर्म, जाति, पद प्रतिष्ठा आदि के आधार पर समस्त नागरिकों से समान प्रकार का व्यवहार करने से है। वर्तमान परिस्थितियों में अपने देश में प्रत्येक क्षेत्र में भेदभाव प्रचुर मात्रा में पाया जा रहा है। सरकार हर प्रकार की समानताओं को दूर करने के लिए निरंतर अग्रसर है लेकिन इसकी जड़ें भारतीय जनमानस में इस तरह बैठ गई हैं कि पक्षपात के बगैर किसी कार्य में होने की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। विविधता व्यक्तियों के समान अवसरों में बाधा पैदा करती है। जिससे व्यक्ति का सर्वांगीण विकास संभव नहीं हो पाता है।
भारतीय समाज में विविधता
समाज में विविधता से तात्पर्य है- किसी भौगोलिक-राजनैतिक क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न सामाजिक समूहों का अपनी विशिष्टता के साथ सह-अस्तित्व भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह विविधता विभिन्न रूपों में पायी जाती है। भारत जो कि एक समृद्ध संयुक्त एवं बहुल संस्कृति का केन्द्र है जहाँ विभिन्न शारीरिक संरचना, क्षेत्र, बोली, भाषा, जाति, धर्म, संस्कृति के लोग अपनी सांस्कृतिक विशिष्टता के साथ जीवन यापन करते हैं।
विविधता के विविध रूप अग्रलिखित हैं-
1. क्षेत्रीय या भौगोलिक विविधता
उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक और पूर्व में अरुणाचल प्रदेश से लेकर में राजस्थान तक विभिन्न भौगोलिक विविधतायें है। कश्मीर में बहुत ठंड है तो दक्षिण भारतीय क्षेत्र बहुत गर्म है। गंगा का मैदान है जो अधिक उपजाऊ है तथा इसी के किनारे कई प्रमुख राज्य, शहर, सभ्यता और विकसित हुए। हिमालयी क्षेत्र में अनेक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल जैसे बद्रीनाथ, केदारनाथ तथा गंगा, यमुना, सरयू, ब्रह्मपुत्र, आदि। नदियों का उद्भव स्थल है। देश के पश्चिम में हिमालय से भी पुरानी अरावली पर्वतमाला हैं। कहाँ रेगिस्तानी भूमि है तो वहीं दक्षिण में पूर्वी और पश्चिमी घाट, नीलगिरी की पहाड़ियाँ भी हैं। यह भौगोलिक विविधता भारत को प्राकृतिक रूप से मिला उपहार है।
2. भाषायी विविधता
भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है, प्राचीन काल से ही भारत में विभिन्न भाषाओं व बोलियों का प्रचलन रहा हैं। वर्तमान में भारत में 18 राष्ट्रीय भाषाएँ तथा 1,652 के लगभग बोलियाँ पाई जाती हैं। भारत में रहने वाले इतनी भाषाएँ व बोलियाँ इसलिए बोलते हैं क्योंकि, यह उपमहाद्वीप एक लम्बे समय से विविध प्रजातीय समूहों की नींव रहा है। भारत में बोली जाने वाली भाषाओं को मुख्य रूप से चार भाषा परिवारों में बाँटा जा सकता हैं-
- ऑस्ट्रिक परिवार- इसके अन्तर्गत मध्य भारत की जनजातीय-पट्टी की भाषाएँ आती है जैसे :- संथाल, मुण्डा, आदि।
- द्रावीड़ियन परिवार- तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मलयालम, गोंडी, आदि।
- साइनो तिब्बतन परिवार- सामान्यतः उत्तर-पूर्वी भारत की जनजातियाँ।
- इंडो-यूरोपियन परिवार- भारत में सबसे अधिक संख्या में बोली जाने वाली भाषाएँ व बोलियाँ इण्डो आर्य भाषा परिवार की हैं। जहाँ एक ओर पंजाबी, सिंधी भाषाएँ व बोलियाँ बोली जाती। वहीं दूसरी ओर मराठी, कोंकणी, राजस्थानी, गुजराती, मारवाड़ी, हिन्दी, उर्दू, छत्तीसगढ़ी, बंगाली, मैथिली, कुमाउंनी, गढ़वाली जैसी भाषाएँ व बोलियाँ बोली जाती हैं।
3. प्रजातीय विविधता
प्रजाति ऐसे व्यक्ति का समूह है जिनमें त्वचा का रंग, नाक का आकार, बालों के रंग के प्रकार कुछ स्थायी शारीरिक विशेषताएँ पायी जाती हैं। भारत को प्रजातियों का अजायबघर (Museum) इसीलिए कहा गया। क्योंकि, यहाँ समय-समय पर अनेक बाहरी प्रजातियाँ किसी-न-किसी रूप में आती रहीं और उनका एक-दूसरे में मिश्रण होता रहा। भारतीय मानवशास्त्री सर्वेक्षण के अनुसार देश की प्रजातीय स्थिति को अच्छी तरह समझ पाना कठिन है। प्रजाति व्यक्तियों का ऐसा विशाल समूह है जिसकी शारीरिक विशेषताओं में अत्यधिक बदलाव न आकर यह आगे की पीढ़ियों में चलती रहती हैं। संसार में मुख्यतः 03 प्रजातियाँ कॉकेशाय, मंगोलॉयड, नीग्रॉयड पाई जाती हैं। अन्य शब्दों में इन्हें हम ऐसे मानव-समूह के नाम से सम्बोधित करते जिनके शरीर का रंग सफेद, पीला तथा काला हो भारतीय समाज में शुरू से ही द्रविड़ तथा आर्य प्रजातीय रूप से एक-दूसरे से अलग थे। द्रविड़ों में नीग्रॉयड तथा आर्यों में कॉकेशायड प्रजाति की विशेषताएँ अधिक पायी जाती थीं। बाद में शक, हूण, कुषाण व मंगोलों के आने पर मंगोलॉयड प्रजाति भी यहाँ बढ़ने लगी व धीरे-धीरे यह सभी आपस में इतना घुल-मिल गई कि, आज हमें भारत में सभी प्रमुख प्रजातियों के लोग मिल जाते हैं।
4. धार्मिक विविधता
भारत में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। एक समय तक भारत में एक साथ विश्व के कई धर्म फले-फूले हैं जैसे हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म, सिक्ख धर्म, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, पारसी धर्म, यहूदी धर्म, इत्यादि। यहाँ हिन्दू धर्म के कई रूपों तथा सम्प्रदायों के रूप में वैदिक धर्म, पौराणिक धर्म, सनातन धर्म, शैव धर्म, वैष्णव धर्म, शाक्त धर्म, नानक पन्थी, आर्यसमाजी, आदि अनेक मतों के मानने वाले अनुयायी मिलते हैं। इस्लाम धर्म में भी शिया और सुन्नी दो मुख्य सम्प्रदाय मिलते हैं। इसी प्रकार सिक्ख धर्म भी नामधारी और निरंकारी , जैन धर्म में दिगम्बर व श्वेतांबर और बौद्ध धर्म हीनयान व महायान में विभाजित है। भारतीय समाज विभिन्न धर्मों तथा मत-मतान्तरों का संगम स्थल रहा है।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, जहाँ सभी को अपने-अपने धर्म का आचरण व पालन करने की स्वतन्त्रता मिली है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में हिन्दू धर्म के अनुयायी सबसे अधिक अर्थात् 81.92 प्रतिशत, मुस्लिम धर्म के 12.29 प्रतिशत, इसाई धर्म के 2.16 प्रतिशत, सिक्ख धर्म 2.02 प्रतिशत, बौद्ध धर्म 0.79 प्रतिशत जैन धर्म के 0.40 प्रतिशत तथा अन्य 0.42 प्रतिशत हैं। इस प्रकार सभी धर्मों के लोगों की उपस्थिति को देखकर यह कहा जा सकता है कि देश की धार्मिक संरचना बहुधर्मी है।
5. जातिगत विविधता
'प्यूपिल ऑफ इण्डिया' के अनुसार भारत में करीब 4,635 समुदाय है। यह भारतीय संस्कृति की मौलिक विशेषता है, जो और कहीं नहीं पायी जाती। यह व्यक्ति को जन्म के आधार पर एक समूह का सदस्य मान लेता है, जिसके अन्तर्गत समूह अपने सदस्यों के खान-पान, विवाह और व्यवसाय, सामाजिक सम्बन्धों के लिए कुछ प्रतिबन्धों को लागू करता है। आज बाहरी प्रजातियाँ भी हमारी जातियों में ही समाहित हो गई हैं, यह इस व्यवस्था की व्यापकता को ही दर्शाता है। यद्यपि कई विचारकों जैसे के. एम. पणिक्कर और ईरावती कर्वे ने माना है कि जाति-व्यवस्था ने हिन्दू समाज को विभिन्न भागों में बाँट दिया है।
6. सांस्कृतिक विविधता
भारतीय संस्कृति में हम प्रथाओं, वेश-भूषा, रहन-सहन, परम्पराओं, कलाओं, व्यवहार के ढंग, नैतिक मूल्यों, धर्म, जातियों आदि के रूप में भिन्नताओं को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। उत्तर भारत की वेशभूषा, भाषा, रहन-सहन आदि अन्य प्रान्तों यथा दक्षिण पूर्व व पश्चिम से अलग हैं। नगर और गाँवों को संस्कृति अलग है, विभिन्न जातियों के व्यवहार के ढंग, विश्वास अलग हैं। हिन्दुओं में एक विवाह तो मुस्लिमों में बहुपत्नी प्रथा का चलन है, देवी-देवता भी सबके अलग-अलग हैं। भारतीय मानवशास्त्रीय सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 91 संस्कृति क्षेत्र हैं। गाँवों में संयुक्त परिवार प्रथा और श्रमपूर्ण जीवन है तो शहरों में एकांकी परिवार हैं। अतः स्पष्ट है कि भारत सांस्कृतिक दृष्टि से विभिन्न विविधताएँ लिए हैं।
7. जनांकिकीय विविधता (Demographic Diversity)
सन् 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 102 करोड़ से अधिक थी जो आज 121 करोड़ तक पहुँच चुकी है। देश के विभिन्न राज्यों में जनसंख्या में बहुत विविधता पायी जाती है। उत्तर प्रदेश में जनसंख्या का कुल 16.17 प्रतिशत भाग है तो उत्तर-पूर्वी राज्यों सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मणिपुर, आदि। में कुल जनसंख्या का एक प्रतिशत भाग रहता है। दिल्ली में औसतन 9,294 लोग एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में रहते हैं तो वहीं अरुणाचल प्रदेश में में 13 लोग रहते हैं। साक्षरता की दृष्टि से भारत का अध्ययन करने पर पता चलता है कि, सबसे कम साक्षरता बिहार में 47 प्रतिशत एवं सबसे अधिक लोग 99.1 प्रतिशत केरल में साक्षर हैं। देश में 6.78 करोड़ के लगभग विभिन्न जनजातियों के लोग रहते हैं जिनकी जीवन शैली बिल्कुल अलग हैं। कुल जनसंख्या में अनुसूचित जातियों तथा पिछड़े वर्गों की जनसंख्या लगभग 47% है।
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