सोमवार, 11 अक्तूबर 2021

न... न... व्यंग्य नहीं है ये। कृपया इसे पूरा पढ़े।

 


        करीब दस साल पहले उससे पहली बार मुलाकात हुई थी, काले रंग की महंगी लक्जरी गाड़ी, काले रंग का ब्रांडेड सूट, आंखों में काला चश्मा, महंगा वाला आईफोन, कुल मिलाकर बहुत जंच रहा था वो, उससे मुलाकात एक जानने वाले ने कराई थी वो उन जानने वाले का मित्र था। बातें शुरू हुईं तो पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा कि बातों में वह रुचि नहीं ले रहा है। थोड़ी देर बाद उसका कोई फोन आ गया तो बात करने वो बाहर चला गया। तब मैंने उनसे जिसने उसका परिचय कराया था इसकी वजह पूछी। तब उसने कहा- सर वह आपकी बात पकड़ नहीं पा रहा है, दरअसल वह बहुत कम पढ़ा लिखा है, बमुश्किल नाम लिख पाता है।

        इतना कम पढ़ा-लिखा है तो इतना आगे कैसे बढ गया🤔. इसपर उन्होंने उसकी कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि गांव में थोड़ा बहुत पढ़ने के बाद वह मजदूरी करने लगा था। ये उसकी मजबूरी भी थी क्योंकि बाप पियक्कड़ थे मां मजदूरी करती थी तो यही रास्ता समझ में आया उसे। बाद में गांव के लड़कों के साथ बेंगलुरु पेंट पॉलिश का काम करने चला गया, बाकी लड़के जहां काम से जी चुराते यह बंदा पूरी जिम्मेदारी से काम करता था। धीरे-धीरे कार्य करते-करते छोटा-मोटा ठेकेदार हो गया। लोगों का काम इतनी जिम्मेदारी से कराता जैसे वो उसका खुद काम हो, (यही उसका मूलमंत्र है) 

    इसीलिए कुछ ही दिनों में इसकी डिमांड बढ़ गई इसकी और आज दृश्य यह है कि बेंगलुरु शहर में एक शानदार अपार्टमेंट में दो सामने के फ्लैट ले रखे हैं इसने। एक में ऑफिस बना रखा है जहां खूब पढ़े-लिखे स्टाफ लोग दिन भर इंटरनेट पर दुबई, आबू-धाबी, संयुक्त अरब अमीरात, जैसी जगहों पर बड़ी-बड़ी निर्माण कम्पनियों के पेंट पॉलिश के काम का टेंडर देखते हैं। उनमें से काम की सूचना इसको दी जाती है, फिर यह जोड़-घटा कर के रेट कोट कराता है और बाहर का काम लेता है। वो बता रहे थे कि कम से कम तीन-चार सौ लोगों को काम दे रखा है इसने। 

        गांव में किसी का खेत बिकता है तो यही खरीदता है, आत्मनिर्भर होने का यही भावार्थ है कि अगर किसी बड़ी नौकरी के लायक हो तो ठीक वरना काम मत मांगो, काम देने लायक बनो।

          कुछ दिनो पहले एक उधोगपति से मुलाकात हुई थी तो वे बता रहे थे कि भगवान ने कम से कम दो सौ करोड़ की जायदाद सबको दे रखी है और वो है उसकी खोपड़ी यानी कि उसका मस्तिष्क। उनके मुताबिक वो अपने दिमाग की बदौलत जीरो से दो सौ करोड़ तक पहुंच गए तो कोई भी पहुंच सकता है।

          तो कुल मिलाकर आज के इस लेख का उद्देश्य यह है कि दिमाग चलाइए, अपने मनपसंद का काम ढूंढिए और पागलों की तरह पूरी जिम्मेदारी से लग जाइये। संघर्ष कीजिए और खुद भी आगे बढिये और समाज को भी आगे बढ़ाइए।👍 और अंतिम में एक जरूरी बात पागल (CRAZY) तो होना ही पड़ेगा।

साभार:- सोशल मीडिया


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