बिहार और उत्तर प्रदेश के गांवों में, हर गाँव के संरक्षक देवता के रूप में एक विशेष पहचान है, और ये हैं ब्रह्म बाबा। हमारे गाँव कोइरीगाँवा में भी, ब्रह्म बाबा का महत्व अतुलनीय है। वो सिर्फ एक देवता नहीं, बल्कि हमारे गाँव के प्रहरी हैं, हर सुख-दुःख के साथी हैं। हर शुभ कार्य की शुरुआत में उनका आशीर्वाद लेना एक अटूट परंपरा है।
ब्रह्म बाबा का वास अक्सर एक पुराने, विशाल बरगद के पेड़ में होता है, जो गाँव के जीवन का केंद्र बिंदु है। इस बरगद की छाँव में हमने बचपन की शरारतें की हैं, गर्मी की दोपहर में सुकून पाया है और कहानियाँ सुनी हैं। यह पेड़ सिर्फ एक छायादार जगह नहीं, बल्कि हमारे दादा-परदादाओं की भी स्मृतियों का हिस्सा है। उस ठंडी, सुकून भरी छाँव में बैठना, मानो ब्रह्म बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करना हो। जब हम उस बरगद के नीचे होते हैं, तो एक आवाज मन में गूँजती है, - "अरे कहाँ भाग रहा है? याद कर, यहीं तो तू अपने दोस्तों के साथ खेला करता था।"
आज भले ही समय बदल गया है, गाँव का अपनापन कहीं खोता जा रहा है, लेकिन ब्रह्म बाबा का सम्मोहन आज भी कायम है। वो हमें अपनी जड़ों को याद दिलाते हैं। उनका यह कहना कि "तुम्हारे दादा-परदादा भी इसी छाँव में आराम करते थे" हमें हमारी विरासत से जोड़ता है।
हमारे गाँव कोइरीगाँवा में ब्रह्म बाबा को सबसे शक्तिशाली देवता माना जाता है। उनके बारे में कई मान्यताएँ प्रचलित हैं। लोग मानते हैं कि अगर कोई झूठ बोलता है, तो ब्रह्म बाबा उसे बीमार कर सकते हैं। आम तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ने पर पटक सकते हैं और हाँ, वो सिर्फ एक देवता नहीं, बल्कि हमारे परिवार का हिस्सा भी हैं। ठंड की रातों में जब हम आग तापते थे, तो महसूस होता था कि ब्रह्म बाबा भी हमारे साथ हैं। बचपन में जब हम उस बरगद के नीचे जाते थे, तो एक हल्की सरसराहट की आवाज के साथ एक डर मन में बैठ जाता था, "गलत काम किया तो ब्रह्म बाबा यहीं पटक देंगे।" यह सिर्फ एक डर नहीं था, बल्कि एक विश्वास था जो हमें सही राह पर चलने की प्रेरणा देता था।
आज भले ही गाँव का पुराना बरगद का पेड़ कमजोर हो रहा हो और आने वाली पीढ़ियां ब्रह्म बाबा को न पहचानें, लेकिन उनका अस्तित्व हमारे दिलों में हमेशा रहेगा। ब्रह्म बाबा अडिग हैं, और वो कभी हमारा साथ नहीं छोड़ेंगे। यह जरूरी है कि हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें। गाँव का मतलब सिर्फ काली माई, जिन बाबा, गोरिया बाबा, और ब्रह्म बाबा ही नहीं, बल्कि वे रिश्ते-नाते भी हैं जो बिना किसी स्वार्थ के हमारे जीवन का हिस्सा बन गए हैं। यह हमारी परंपरा है, जिसे हम तोड़ना नहीं चाहते।
आप चाहे कहीं भी हों, अपनी मिट्टी को न भूलें। छठ और दिवाली जैसे त्योहारों के बहाने ही सही, एक बार अपने गाँव जरूर लौटें। अपने पुरखों की धरती पर कदम रखें और एक बार वहाँ के ब्रह्म बाबा को प्रणाम🙏🏻 जरूर करें। यह एक ऐसा प्रयास है जो हमें हमारी पहचान से जोड़े रखेगा और हमारी परंपराओं को जीवित रखेगा।
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