Click Here For बरबीघा पर निर्मित कविता।
Click Here for बरबीघा पर निर्मित कविता।
बिहार केसरी श्रीकृष्ण बाबू को शत-शत नमन 🙏🙏
चलो-चलें चलकर देखें,
'श्री कृष्ण' जी का बरबीघा गाँव रे!
ना हीं किसी मोटर गाड़ी से,
ना ही ऐसो-आराम से।
हम तो घूमेंगे वहां
पैदल-पैदल पाँव रे ! -2
चलो-चलें चलकर देखें,
'श्री कृष्ण' का बरबीघा गाँव रे!
धन्य धरा माउर की माटी,
वट-पीपल के छांव रे।
जिसने दिया जन्म 'केसरी' को,
उत्तम-कुल जिस ठाव रे।
चलो चलें.....
"गाँव नहीं कानन यह नन्दन,
कण-कण हर जिसका है चन्दन।
शासन किया 'भरत' सा जिसने,
प्रभु राम का मान खड़ांव रे!
चलो चलें......
जिसके लिए सूबे बिहार था,
जैसे अयोध्या धाम रे।
लगे दाग दामन में कोई,
किया ना ऐसा काम रे।
चाहत सदा विकास की रहती,
करते थे विपक्ष भी सम्मान रे।
चलो चलें.....
चाहते तो इसे स्वर्ग बनाते,
अलका पूरी सा इसे सजाते।
मगर उठे अंगूली न निज पर,
इसी में, रह गया गांव बस गांव रे।
चलो चलें...
किन्तु था उनका जीवन अर्पित,
राज-धर्म को रहा सदा समर्पित।
आंदोलन से तपकर निकला,
बन शासक कुंदन सा चमका।
जिसके सिंह गर्जन से कांपे,
थर-थर अरि के पाँव रे।
चलो चलें.....
जमींदारी उन्मूलन के नायक,
नव-निर्माण का सच्चा गायक।
अछूतो द्वार का प्रबल समर्थक,
प्रगतिवादी सोच का पोषक।
मंदिरो में प्रवेश कराकर,
दलितों का किया उद्धार रे।
चलो चलें.....
गांधी के सच्चे अनुआयी,
आंदोलन की थी अगुआई।
पहुँचाया क्रांति को शिखर पर,
धर अंगार पर पाँव रे।
चलो चलें.....
जार्ज-पंचम के पटना आने की,
छात्रावास में मिली खबर जब।
एक झलक पाने को उमड़ा,
सड़कों पर जन-सैलाव तब।
नजर न पड़े म्लेच्छ पर,
बंद कर ली खिड़की किवाड़ रे।
ऐसा था उनका नफरत का भाव रे!!!
चलो चलें....
स्वाधीनता का एक सेनानी,
सत्याग्रही 'प्रथम' स्वाभिमानी।
खौलते कड़ाह को लगा छाती से,
देश-भक्ति का दिया प्रमाण रे।
चलो चलें हम....
रहा बिहार अग्रिम पंक्ति में,
हाथों में जबतक वागडोर रहा।
टाल सके 'नेहरू' न कभी,
जो कदम विकास की ओर बढ़ा।
बहती हर विकास की गंगा,
होकर बिहार के कोर रे।
चलो चलें...
रखते सोच नहीं सीमित थे,
अपने जिला और गाँव तक।
और न भाई-भतीजावाद का,
खेल घिनौना चुनाव तक।
स्वाध्यायी पुस्तक-प्रेमी,अद्यतन,
जानकारी के ठांव रे।
चलो चलें....
श्री कृष्ण सेवा-सदन की पुस्तकें,
करती उसका बखान रे।
चलो चलें.....
साभार:- सोशल मीडिया
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें