शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

🌹दीपावली, कुम्हार, और गोधन पूजा🌹

 

🌹दीपावली, कुम्हार, और  गोधन पूजा🌹

       बचपन की कुछ स्मृतियाँ बार-बार मन मस्तिष्क पर आ ही जाती है। हर सभी के मन में दिया-दियारी (दीपावली) त्योहार के दस-पन्द्रह दिन पहलें से पटाखा का विचार मन में आ ही जाता है। हर गाँव में कुम्हार लोग मिट्टी के बने सुन्दर दीयाँ, कोशी, गुल्लक, घाटी, जतोला ले करके आ जातें थे। उसके बदले में कुछ लोग पैसा देते थे, नही तो अधिकतर लोग खेतों से आयी नयी फसल धान को दे देते थे। मेरे यहाँ बड़हरिया एवं बंगरा के कुम्हार लोग आते थे क्योकि मेरे यहाँ कुम्हार जाती के लोग नही थे। सभी का अपना अलग-अलग सीवान (किसी भी गाँव का कोना) बटा रहता था। कोई दूसरा व्यक्ति दूसरें के सीवान में अपना सामान देने नहीं जाता था। गाँव के लोग उनकों पूरा सम्मान देते थे। दीपावली के दिन दीपक जलाने के लिए जो बातीं बनती थी वह घर के बुजुर्गों के धोती से बनती थी। उसको धोबी के यहाँ पहलें दे करके अच्छी तरह से साफ करवा दिया जाता था। त्योहार में सब लोग अपनी-अपनी जिम्मेदारी का अच्छी तरह से निवर्हन करते थे।

         उस समय तीसी व सरसों की पैदावार अच्छी होती थी।अधिकांशतः घरों पर तेल नही खरीदना पड़ता था। धन-धान्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहता था। पटाखा भी लोग अनाज से ही खरीद लेते थे। एक किलो या एक सेर में एक दो पैकेट पटाखा🎉 व छुरछुरी🎆 मिल जाया करती थी। आज भी मुझे नागिन🐍 पटाखा याद है।

        आज के जैसे लोग की तरह लोग धूल मिट्टी से परहेज नही करते थे। दीपावली के दूसरे दिन से ही सभी के घरों के बच्चे घर के सदस्यों से अपने खेलने का समान माँगने लगते थे और खूब धूल इकट्ठा करके उसको पीसते थे। फिर जब वापस घरों पर जाते थे तो जो इकट्ठा धूल का ढेर रहता था उसकों फेंक करके चलें जाते थे। 

       दीपावली के दूसरे दिन गोधन का दिन होता था। उस दिन सुबह में गांव की औरतें और महिलाएं मिलकर एक मोहल्ले या टोले में गाय के गोबर से गोधन की आकृतियां बनाती थी और अगले दिन फिर उन्हें कुटा जाता था। बड़ा ही मनोरम दृश्य होता था, गीत-संगीत के माहौल से पूरा वातावरण संगीतमय हो जाता था। उसी दिन रात में सुप एवं कंडा से बाजा बजाते हुए दलिदर खेडने की प्रथा थी जो आज भी चल रही है। उसके बाद से ही घर में जवान हो रहे लड़के एवं लड़कियों की शादी की चर्चाएं होने लगती थी यानी यू कह सकते हैं कि शादी का माहौल शुरू हो जाता था। इन सभी पूजा के बाद फिर आता था बिहार का सबसे बड़ा पर्व छठ महापर्व जिसके बारे में हम अगले लेख में चर्चा करेंगे। 

धन्यवाद🙏

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